कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेता भगवा धारण कर चुके हैं और बीजेपी नेताओं का कहना है कि पिक्चर अभी बाकी है. कुछ नेता ऐसे भी हैं जो बीजेपी छोड़ भी रहे हैं. गुजरात में हार्दिक पटेल की एक पुरानी साथी रेशमा पटेल ने डेढ़ साल में ही बीजेपी छोड़ दी है. संभव है वो हार्दिक पटेल के साथ कांग्रेस में जाने का मन बना चुकी हों.
जब भी कोई नेता एक पार्टी छोड़ कर दूसरे दल में जाता है मीडिया के सामने आकर नयी जगह का बखान करता है, पुरानी जमात की बुराई भी एक स्वाभाविक फीचर माना जा सकता है.
ऐसा पहले भी होता आया है और अब भी हो रहा है. इसमें कोई खास बात नहीं है - फिर खास बात क्या है?
खास बात ये है कि फिलहाल बीजेपी ज्वाइन कर रहा हर नेता एक जैसा ही बयान दे रहा है - लगता है जैसे सभी नयी भर्तियों के लिए कोई स्क्रिप्ट पहले से तैयार की गयी हो और मीडिया के सामने आकर पढ़ दिया जा रहा हो.
...और कितने आने वाले हैं?
केरल से आने वाले टॉम वडक्कन और हरियाणा के अरविंद शर्मा कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं. तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर अर्जुन सिंह भी बीजेपी के नेता हो गये हैं. खुद भी तृणमूल छोड़ कर बीजेपी नेता बने मुकुल रॉय फूले नहीं समा रहे हैं. कहते हैं, 'महाभारत के अर्जुन ने बीजेपी ज्वॉइन किया है. ये तो बस ट्रेलर है, अभी पूरी पिक्चर बाकी है.' बढ़िया है. वैसे अब तक तो बीजेपी को मुकुल रॉय से निराशा ही हाथ लगी है.
अब चर्चा है कि बीजेडी सांसद बलभद्र माझी भी जल्द ही दिल्ली पहुंच कर भगवा अंग वस्त्रम् धारण करने वाले हैं. बीजेडी के बड़े नेता बैजयंत पांडा तो पहले ही बीजेपी में आ चुके हैं.
चुनावों के वक्त नेताओं का पाला बदलना आम बात है. ये शायद चुनावी बयार का असर होता होगा. ज्यादातर तो ऐसा तब होता है जब पार्टियां नेताओं के टिकट काट देती हैं - और तभी राजनीतिक विरोधी चारे के रूप में टिकट ऑफर कर देते हैं. इस चुनाव में भी ऐसा हो रहा है.
जो इस चुनाव में हो रहा है वो कुछ अलग है. ऐसा कैसे हो सकता है विपक्षी दलों...
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेता भगवा धारण कर चुके हैं और बीजेपी नेताओं का कहना है कि पिक्चर अभी बाकी है. कुछ नेता ऐसे भी हैं जो बीजेपी छोड़ भी रहे हैं. गुजरात में हार्दिक पटेल की एक पुरानी साथी रेशमा पटेल ने डेढ़ साल में ही बीजेपी छोड़ दी है. संभव है वो हार्दिक पटेल के साथ कांग्रेस में जाने का मन बना चुकी हों.
जब भी कोई नेता एक पार्टी छोड़ कर दूसरे दल में जाता है मीडिया के सामने आकर नयी जगह का बखान करता है, पुरानी जमात की बुराई भी एक स्वाभाविक फीचर माना जा सकता है.
ऐसा पहले भी होता आया है और अब भी हो रहा है. इसमें कोई खास बात नहीं है - फिर खास बात क्या है?
खास बात ये है कि फिलहाल बीजेपी ज्वाइन कर रहा हर नेता एक जैसा ही बयान दे रहा है - लगता है जैसे सभी नयी भर्तियों के लिए कोई स्क्रिप्ट पहले से तैयार की गयी हो और मीडिया के सामने आकर पढ़ दिया जा रहा हो.
...और कितने आने वाले हैं?
केरल से आने वाले टॉम वडक्कन और हरियाणा के अरविंद शर्मा कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं. तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर अर्जुन सिंह भी बीजेपी के नेता हो गये हैं. खुद भी तृणमूल छोड़ कर बीजेपी नेता बने मुकुल रॉय फूले नहीं समा रहे हैं. कहते हैं, 'महाभारत के अर्जुन ने बीजेपी ज्वॉइन किया है. ये तो बस ट्रेलर है, अभी पूरी पिक्चर बाकी है.' बढ़िया है. वैसे अब तक तो बीजेपी को मुकुल रॉय से निराशा ही हाथ लगी है.
अब चर्चा है कि बीजेडी सांसद बलभद्र माझी भी जल्द ही दिल्ली पहुंच कर भगवा अंग वस्त्रम् धारण करने वाले हैं. बीजेडी के बड़े नेता बैजयंत पांडा तो पहले ही बीजेपी में आ चुके हैं.
चुनावों के वक्त नेताओं का पाला बदलना आम बात है. ये शायद चुनावी बयार का असर होता होगा. ज्यादातर तो ऐसा तब होता है जब पार्टियां नेताओं के टिकट काट देती हैं - और तभी राजनीतिक विरोधी चारे के रूप में टिकट ऑफर कर देते हैं. इस चुनाव में भी ऐसा हो रहा है.
जो इस चुनाव में हो रहा है वो कुछ अलग है. ऐसा कैसे हो सकता है विपक्षी दलों के सभी नेता एक ही वजह से बीजेपी ज्वाइन कर रहे हों?
पार्टी छोड़ने की एक ही वजह कैसे?
असम चुनाव से पहले बीजेपी ज्वाइन करने वाले हिमंत बिस्वा सरमा ने राहुल गांधी को लेकर एक अजीब बात बतायी थी. हिमंत बिस्वा सरमा को असम में बीजेपी की जीत का आर्किटेक्ट माना जाता है. पहले यही काम वो कांग्रेस में करते रहे लेकिन जब लगा कि मेहनत का फल नहीं मिल रहा तो मौका मिलते ही पार्टी छोड़ दी.
एक बार इंटरव्यू में हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि जब वो अपनी समस्याएं लेकर राहुल गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचते थे, तो कांग्रेस नेता को उनकी बातों में जरा भी दिलचस्पी नहीं होती थी. बकौल हिमंत बिस्वा सरमा, नेताओं के मुकाबले राहुल गांधी की ज्यादा दिलचस्पी अपने पालतू जानवरों में नजर आती थी. वो उन्हीं से बात करते और खेलते रहते थे.
पहले नेताओं के कांग्रेस छोड़ने की ये वजह होती होगी - लेकिन अब जमाना बदल चुका है. अब नये नये कारण सामने आ रहे हैं.
बीजेपी ज्वाइन करने के बाद टॉम वडक्कन ने कहा का जिस पार्टी को अपने राजनीतिक जीवन का सर्वोत्तम वक्त दे डाला उसकी बुराई नहीं करना चाहेंगे. बस इतना कहा और फिर ताबड़तोड़ शुरू हो गये - 'कांग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे जिससे मैं दुखी हुआ. मैंने कांग्रेस को 20 साल सेवा दी लेकिन वहां यूज एंड थ्रो की नीति है.'
टॉम वडक्कन के अनुसार कांग्रेस छोड़ने की ये भी असल वजह नहीं थी, बल्कि कुछ और रही. वडक्कन बोले, 'मेरे पास विकल्प नहीं था. कांग्रेस ने सेना और पुलवामा हमले पर सवाल उठाये. देश के खिलाफ रुख अपनाया जिससे मैं आहत हुआ.'
टॉम वडक्कन के अनुसार असल वजह रही कांग्रेस का बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाना - जिससे गुस्सा आने पर उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी. हरियाणा कांग्रेस से बीजेपी पहुंचे अरविंद शर्मा को भी सबसे ज्यादा इसी बात का गुस्सा है कि विपक्ष एयर स्ट्राइक पर सवाल उठा रहा है. टॉम वडक्कन का महीने भर पुराना एक बयान भी चर्चा में है जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजेपी ज्वाइन करने पर सभी के पाल धुल जाते हैं.
तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आये अर्जुन सिंह के भी ख्यालात बिलकुल टॉम वडक्कन और अरविंद शर्मा जैसे ही हैं. अर्जुन सिंह का कहना रहा, 'मैंने 30 साल तक ममता बनर्जी के लिए काम किया. अब मैं देश के लिए काम करूंगा. जब पुलवामा में हमारे 40 जवान शहीद हुए थे तो ममता बनर्जी ने ऐसा बयान दिया, जिससे हम सब अचंभित थे. बालाकोट एयरस्ट्राइक पर उन्होंने सवाल उठाए.'
आखिर ऐसा क्या है कि बीजेपी ज्वाइन करने के बाद सभी नेता एक जैसा बयान दे रहे हैं? क्या बीजेपी ने ज्वाइन करने वाले सभी नेताओं के लिए कोई शर्त रखी है कि एक स्क्रिप्ट पढ़नी होगी?
बीजेपी ने तो बहुत पहले ही वो धारणा बदल दी थी कि चुनाव सिर्फ मौसमी चीज होती है. स्थानीय चुनाव से लेकर आम चुनाव तक अगर पूरी तन्मयता से लड़े जायें तो सभी राष्ट्रीय फलक का हिस्सा बन सकते हैं, ये भी बीजेपी ने साबित कर दिया है - और ये भी कि सिर्फ कांग्रेस मुक्त अभियान ही नहीं, विपक्ष के खिलाफ भी उसकी नेस्तनाबूद करने वाली मुहिम थमी नहीं है.
मोदी-शाह के नेतृत्व में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करती आई बीजेपी को जब विपक्ष ने उसके राष्ट्रवाद के एजेंडे पर घेरना शुरू किया तो, पार्टी ने विपक्ष को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. अब इसे बीजेपी की खुशकिस्मती कहें या कुछ और कि विपक्ष की ओर से गलतियां भी ऐसी होती जा रही हैं और बीजेपी फटाफट फायदा उठाती जा रही है.
बीजेपी पर विपक्ष सेना और पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन पर राजनीति का आरोप लगाया तो बीजेपी ने कह दिया कि विपक्ष पाकिस्तान की भाषा बोल रहा है. विपक्ष की किस्मत खराब देखिये कि 21 दलों के संयुक्त बयान को पाकिस्तान में टीवी पर बहस का मुद्दा बना लिया गया - और पाकिस्तानी नेता भी उसका हवाला देने लगे.
शीला दीक्षित के एक इंटरव्यू को लेकर तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ट्विटर पर बाकायदा टैग कर धन्यवाद भी दिया है, जबकि शीला दीक्षित सफाई दिये जा रही हैं कि वैसा कुछ उन्होंने बोला ही नहीं. इंटरव्यू में जिक्र इस बात का है कि मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी में ज्यादा सख्त कौन है?
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