विंग कमांडर अभिनंदन पूरे धमाके के साथ भारत लौट आए हैं. भारतीय वायुसेना के एक लड़ाकू विमान का पायलट, जो शत्रु के घर पर हमला करता है, उसके तुरंत दो दिनों के अन्दर स्वदेश वापसी का हो जाना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. यह नए भारत का असर है कि पाकिस्तान ने घुटनों को टेक कर अभिनंदन को ससम्मान भारत भेज दिया. क्या आपको इस तरह का दूसरा उदाहरण विश्व में कहीं और मिलेगा? पुलवामा हमले से नाराज भारत का पाकिस्तान की सरहद के अंदर घुसकर सैकड़ों आतंकियों को मार गिराना उस भारत की तस्वीर पेश करता है, जो आत्म विश्वास से लबरेज है. उस भारत में अब धैर्य नहीं बचा है कि वह अपने ऊपर होने वाले हमलों को निरीह बनकर झेलता ही रहे.
सारी दुनिया ने देखा था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भयाक्रांत चेहरे को जब वे अपने देश की संसद में अभिनंदन की रिहाई की घोषणा कर रहे थे. उन्हें बिना किसी शर्त के अभिनंदन की रिहाई करने की घोषणा करनी ही पड़ी. हालांकि कुछ ज्ञानी कह रहे हैं कि पाकिस्तान को अभिनंदन को रिहा करना ही था क्योंकि जेनेवा संधि के तहत कोई भी देश युद्धबंधियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकता. उसे रिहा करना ही होता है. पर इन सर्वज्ञानियों से पूछा जाना चाहिए कि कारगिल युद्ध के दौरान इसी धूर्त पाकिस्तान ने युद्ध बंदी विंग कमांडर अजय आहूजा और कैप्टन सौऱभ कालिया की हत्या क्यों कर दी थी. तब भी जेनेवा संधि थी, पर तब पाकिस्तान अपनी घटिया हरकत से बाज नहीं आया था. उसने विश्व बिरादरी की परवाह किए बगैर भारत के इन दोनों शूरवीरों को यातना पूर्वक मार डाला था. उसे तब यह खूनी खेल खेलते वक्त रत्ती भर भी शर्म नहीं आई थी कि भारत ने तो 1971 की जंग में पाकिस्तान के 93 हजार युद्ध बंदियों को ससम्मान रिहा कर दिया था. वे जब तक भारतीय जेलों में रहे थे, तब तक उन्हें पूरी इज्जत से खिला-पिला कर रखा गया था.
इमरान खान को ये समझ आ गया है कि भारत से भिड़े तो दांत खट्टे होना तय है.
पुलवामा हमले के बाद भारत ने कूटनीति के मोर्चे पर पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया था. इसी के कारण पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की सुरक्षा परिषद में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने प्रस्ताव पेश किया. फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने प्रस्ताव में मसूद की वैश्विक यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने और उसकी सभी संपत्ति फ्रीज करने की मांग भी की. यह सब यूं ही नहीं हो गया. यह कहते हैं नेतृत्व के हनक का असर. आज मोदी जी ने विश्व को अपनी नेतृत्व क्षमता का मुरीद बना दिया. यह पहले क्यों नहीं हुआ?
बहरहाल, अभिनंदन को रिहा कर के इमरान ने यह संकेत देने की कोशिश अवश्य की कि वे पाकिस्तान सेना के दबाव से मुक्त हैं. पर वस्तुस्थिति तो यह है कि अभिनंदन की रिहाई में वहां की सेना की सहमति अवश्य ही रही होगी. बंदरभभकी देने में मशहूर पाकिस्तान सेना को भी यह तो अच्छी तरह पता है कि भारत के साथ मुठभेड़ में उसके दांत खट्टे कर दिए जाएंगे. अभिनंदन की रिहाई करने के बाद हमारे अपने देश के भी कुछ मूर्ख इमरान खान को महान नेता के रूप में पेश कर रहे हैं. यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि उन्हें यह सब करने का अधिकार हासिल है. पर वे यह न भूलें कि इमरान खान मुंबई से लेकर पठानकोट और अब पुलवामा हमले का भी साक्ष्य मांगते हैं. क्या इमरान खान को पता नहीं है कि मुंबई पर हमला करने वाले कौन थे? क्या वे इतने भोले हैं कि उन्हें यह पता ही नहीं कि मुंबई हमलों के तार लाहौर में बैठे हाफिज सईद से जुड़े हैं? पुलवामा हमलों की जिम्मेदारी जैश ए मोहम्मद जैसा संगठन खुलेआम लेता है. क्या इमरान खान इतने नासमझ हैं कि उन्हें यह भी पता नहीं है कि मसूद अजहर ही सर्वसर्वा है जैश का? इमरान खान के कुछ भारतीय मित्र उनके आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का छात्र होने के कारण भी अभिभूत हैं. उन्हें शायद लगता है कि जैसे कि वहां से पढ़ा इंसान कोई महामानव होता होगा.
इस बीच, भारत-पाकिस्तान के बीच ताजा विवाद का एक नेरेटिव हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का संयुक्त अरब अमीरात में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) सम्मेलन को संबोधित करना भी रहा है. सुषमा स्वराज ने अबू धाबी में बैठक के उद्घाटन सत्र को सम्मानित अतिथि के रूप में संबोधित किया. उन्होंने इस दौरान आतंकवाद का मुद्दा उठाकर परोक्ष रूप से पाकिस्तान पर निशाना साधा. यह पहली बार है जब भारत को सम्मानित अतिथि के रूप में ओआईसी बैठक में आमंत्रित किया गया है. इस्लामिक सहयोग संगठन 56 इस्लामिक देशों का प्रभावशाली समूह है. इसके बरक्स दुनिया के इस्लामिक देशों का अपने को नेता से लेकर प्रवक्ता कहने वाला पाकिस्तान उपर्युक्त सम्मेलन से नदारद रहा. उसे तकलीफ ये थी कि भारत को इसमें क्यों भाग लेने का अवसर दिया जा रहा है. उसने इस बाबत अपना विरोध भी दर्ज करवाया था, जिसे किसी ने सुनने की जहमत तक नहीं उठाई. यानी पाकिस्तान इस्लामिक देशों के संगठनों में यानि अपने ही घर में अलग-थलग पड़ गया. यहां यह बताना भी आवश्यक है कि पाकिस्तान इस ओआईसी का संस्थापक सदस्य है. पाकिस्तान ने बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद कैंप पर भारतीय हवाई हमले के मद्देनजर ओआईसी की बैठक में भारत की भागीदारी पर अपना विरोध जताया था.
दरअसल इस सम्मेलन में भारत को भागेदारी का मौका मुख्य रूप से बांग्लादेश, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरत की कोशिशों के फलस्वरूप मिला. इन तीनों देशों से भारत के संबंध निरंतर सुधरते जा रहे हैं. इनका तर्क था कि चूंकि भारत में मुसलमानों की आबादी खासी अधिक है, इसलिए उसे इस संगठन का सदस्य बनाया जाना चाहिए. इससे ओआईसी के गैर-इस्लामिक संसार से मैत्रीपूर्ण संबंध बनेंगे. यह तथ्य है कि संसार में इंडोनेशिया के बाद सार्वाधिक मुसलमान भारत में ही हैं. इसलिए यदि भारत को ओआईसी में पर्यवेक्षक राष्ट्र के रूप में शामिल किया जाता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है.
दरअसल भारत की ओआईसी में दस्तक देना आज यह सिद्ध कर रहा है कि पाकिस्तन को छोड़कर सारा इस्लामिक संसार भी भारत से अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने का इच्छुक है. ताजा स्थिति यह है कि पाकिस्तान अब चारों तरफ से घिर चुका है. उसके साथ कहीं कोई खड़ा नहीं दिख रहा है. उसे कोई कर्ज देने के लिए भी तैयार नहीं है. कमोबेश उसके साथ थोड़ा बहुत चीन खड़ा है. चीन तो स्वार्थ वश उसके साथ है क्योंकि उसके वहां अरबों रुपये का निवेश है. देखा जाए तो पाकिस्तान पर अपना नियंत्रण सा कर लिया है. अब पाकिस्तान उससे लाख चाहकर भी मुक्ति नहीं पा सकता. लेकिन, पुलवामा हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान को हर तरफ से कसना चालू कर दिया तो चीन भी अब पाकिस्तान को सुधारने की सीख दे रहा है. भारत का उस पर यह दबाव जारी रहना चाहिए. उससे संबंध सुधारने या बातचीत करने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है जबतक आतंकवाद पाकिस्तान की धरती से समूल नष्ट न हो जाये?
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