पुलवामा में आतंकी हमला कर के 40 सीआरपीएफ के जवानों को मौत के घाट उतारने की जिम्मेदारी जैसे ही जैश-ए-मोहम्मद ने ली, मोदी सरकार ने जवाब देने का पूरा मन बना लिया था. आखिरकार 26 फरवरी की रात को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सीमा में घुसकर बालाकोट में चल रहे जैश के आतंकी ठिकाने को तबाह कर दिया. पाकिस्तान इससे तिलमिलाया जरूर, लेकिन यही कहता रहा कि भारतीय विमान तो खेतों में बम गिराकर चले गए. जब सबूत की तलाश में पत्रकारों की टीमों ने बालाकोट जाने की कोशिश की, तो सेना ने उन्हें रोक दिया.
दुनिया भर का मीडिया बालाकोट में जाना चाहता था, लेकिन पाकिस्तान बहानेबाजी करता रहा और किसी को भी घटनास्थल तक नहीं पहुंचने दिया. अब जब इस एयर स्ट्राइक को 43 दिन बीत चुके हैं, तो पाकिस्तानी सेना 10 अप्रैल को पत्रकारों को लेकर बालाकोट के उस पहाड़ पर पहुंची, जहां पर भारतीय वायुसेना ने हमला किया था. किसी भी घटनास्थल पर चंद दिनों तक किसी को न जाने देना तो समझ आता है, लेकिन डेढ़ महीने लगा देना गले नहीं उतरता. अगर पाकिस्तान इतना ही सच्चा है और भारत झूठा तो पाकिस्तान ने बालाकोट की हकीकत दुनिया के सामने लाने में 43 दिन क्यों लगा दिए?
बालाकोट की पहाड़ी पर क्या मिला?
भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट पर की गई एयर स्ट्राइक के 43 दिन बाद पाकिस्तानी सेना अंतरराष्ट्रीय मीडियाकर्मियों और विदेशी राजनयिकों को बालाकोट ले गई. पूरे घटनास्थल की वीडियो बनाने और तस्वीरें लेने की इजाजत भी मिली थी. इन पत्रकारों में बीबीसी उर्दू के पत्रकार भी शामिल थी. बीबीसी के मुताबिक पत्रकारों को हेलिकॉप्टर के जरिए इस्लामाबाद से बालाकोट के जाबा ले जाया गया. वहां पर करीब डेढ़ घंटे पैदल चलने के बाद...
पुलवामा में आतंकी हमला कर के 40 सीआरपीएफ के जवानों को मौत के घाट उतारने की जिम्मेदारी जैसे ही जैश-ए-मोहम्मद ने ली, मोदी सरकार ने जवाब देने का पूरा मन बना लिया था. आखिरकार 26 फरवरी की रात को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सीमा में घुसकर बालाकोट में चल रहे जैश के आतंकी ठिकाने को तबाह कर दिया. पाकिस्तान इससे तिलमिलाया जरूर, लेकिन यही कहता रहा कि भारतीय विमान तो खेतों में बम गिराकर चले गए. जब सबूत की तलाश में पत्रकारों की टीमों ने बालाकोट जाने की कोशिश की, तो सेना ने उन्हें रोक दिया.
दुनिया भर का मीडिया बालाकोट में जाना चाहता था, लेकिन पाकिस्तान बहानेबाजी करता रहा और किसी को भी घटनास्थल तक नहीं पहुंचने दिया. अब जब इस एयर स्ट्राइक को 43 दिन बीत चुके हैं, तो पाकिस्तानी सेना 10 अप्रैल को पत्रकारों को लेकर बालाकोट के उस पहाड़ पर पहुंची, जहां पर भारतीय वायुसेना ने हमला किया था. किसी भी घटनास्थल पर चंद दिनों तक किसी को न जाने देना तो समझ आता है, लेकिन डेढ़ महीने लगा देना गले नहीं उतरता. अगर पाकिस्तान इतना ही सच्चा है और भारत झूठा तो पाकिस्तान ने बालाकोट की हकीकत दुनिया के सामने लाने में 43 दिन क्यों लगा दिए?
बालाकोट की पहाड़ी पर क्या मिला?
भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट पर की गई एयर स्ट्राइक के 43 दिन बाद पाकिस्तानी सेना अंतरराष्ट्रीय मीडियाकर्मियों और विदेशी राजनयिकों को बालाकोट ले गई. पूरे घटनास्थल की वीडियो बनाने और तस्वीरें लेने की इजाजत भी मिली थी. इन पत्रकारों में बीबीसी उर्दू के पत्रकार भी शामिल थी. बीबीसी के मुताबिक पत्रकारों को हेलिकॉप्टर के जरिए इस्लामाबाद से बालाकोट के जाबा ले जाया गया. वहां पर करीब डेढ़ घंटे पैदल चलने के बाद पत्रकारों की टीम उस मदरसे तक पहुंची, जिस पर हमले का दावा किया जा रहा था.
वो बात, जो माथा ठनकाती है
जिस समय पत्रकार मदरसे में पहुंचे, वहां पर करीब 12-13 की उम्र के 150-200 बच्चे पढ़ रहे थे. उन्हें पढ़ाने के लिए टीचर्स भी वहां थे. वहीं के सूचना बोर्ड पर लिखा था कि 27 फरवरी से 14 मार्च तक मदरसा बंद है. जब बच्चों और टीचर्स से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मदरसा तो अभी भी बंद है. अब सवाल ये उठता है कि अगर मदरसा अभी भी बंद है तो फिर इतने सारे बच्चे क्यों पढ़ रहे हैं? जवाब मिला कि ये तो स्थानीय बच्चे हैं. तो फिर मदरसे की छुट्टी का मतलब क्या हुआ? वहीं दूसरी ओर, अगर छुट्टी अभी तक है तो फिर मदरसे के सूचना बोर्ड पर 27 फरवरी से लिखी हुई सूचना को मिटाया क्यों नहीं गया है? साफ है कि यह दिखाने की कोशिश की गई है कि मदरसा बंद किया गया था. खैर, छुट्टी के दिनों में भी मदरसे में 150-200 बच्चों का पढ़ना किसी का भी माथा ठनकाने के लिए काफी है.
बातचीत करने पर सख्त निगरानी क्यों?
बालाकोट पहुंचे पत्रकारों ने 20 मिनट के अपने दौरे में तस्वीरें भी लीं और वीडियो भी बनाए, लेकिन जैसे ही बात आई किसी से बात करने की, तो एक बार फिर शक की सुई पाकिस्तान की ओर मुड़ गई. ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी पत्रकारों ने किसी से बात की तो सेना की निगाहें उन पर टिकी रहीं और किसी से भी अधिक बात करने नहीं दी गई. बीबीसी के मुताबिक, सेना के जवान बोलने लगते- 'जल्दी करो, बहुत देर तक बात मत करो.' जब पाकिस्तान कह रहा है कि भारत झूठा है, तो फिर पत्रकारों के किसी से बात करने में डर किस बात का. बशर्ते, बालाकोट में दिख रहा तामझाम हमले के बाद ना तैयार किया गया हो.
बोर्ड पर यूसुफ अजहर का नाम क्यों?
मदरसे के बोर्ड पर मौलाना यूसुफ अजहर का नाम भी देखा गया. अब सवाल ये उठता है कि क्या इस मदरसे को यूसुफ अजहर ही चला रहा था? वही यूसुफ अजहर जो पाकिस्तान में चल रहे आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर का साला था, जिसके भारतीय एयर स्ट्राइक में मारे जाने की खबर है. जब यूसुफ अजहर का नाम बोर्ड पर होने की बात पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग में प्रवक्ता आसिफ गफूर से पूछी गई तो वह भी बात को टाल-मटोल गए. उन्होंने कहा कि हम मदरसों की फंडिंग और उसके कोर्स पर ध्यान देने की कोशिश कर रहे हैं.
एक गड्ढा दिखाने के लिए लगा दिए 43 दिन !
जैसा कि पाकिस्तान कहता रहा कि भारतीय वायुसेना के विमान तो खेतों में बम गिराकर चले गए, तो पाकिस्तानी सेना ने वो गड्ढा भी दिखाया, जो बम गिराने की वजह से हुआ था. बीबीसी ने उसकी भी तस्वीरें लीं. अब एक सवाल जो मन में उठ रहा है कि आखिर उस गड्ढे को दिखाने में 43 दिन क्यों लगा दिए? जब बम खेत में ही गिरे थे तो एक वीडियो बनाकर सेना को खुद ही अपने सच्चे होने के सबूत दे देना चाहिए थे. एक चुटकी में भारत का मुंह बंद हो जाता और इमरान खान की वाहवाही हो जाती. लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया, बल्कि 43 दिन इंतजार किया और उसके बाद पत्रकारों को वह 'खास' गड्ढा दिखाया.
इतनी देरी के पीछे का कुतर्क भी जानिए
जब पत्रकारों ने पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों से पूछा कि आखिर मीडिया को बालाकोट लाने में इतनी देरी क्यों की गई, तो कुतर्क मिला कि हालात अस्थित थे. लोगों को यहां लाना बहुत मुश्किल था. अब सब सही हुआ है तो लाए हैं. आपको बता दें कि इससे पहले कई बार मीडिया ने वहां जाना चाहा, लेकिन पाकिस्तानी सेना ना न तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया को वहां जाने दिया, ना ही अपने देश के मीडिया को. यहां तक कि स्थानीय लोगों के भी वहां जाने पर पाबंदी थी. हां, रायटर्स के कुछ पत्रकारों को पहाड़ी से करीब 100 मीटर दूर से उस मदरसे को देखने की इजाजत मिली थी, लेकिन इतने सारे पेड़ों के बीच 100 मीटर दूर से क्या दिखेगा? तो बस कुछ दिखा भी नहीं. पेड़ों की झुरमुट में सच छुपा रहा और अब 43 दिनों में उस सच को ठिकाने लगा दिया गया है.
कुछ अहम बातें जान लेना भी जरूरी
जब बीबीसी के पत्रकार बालाकोट पहुंचे तो मदरसे को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि मदरसे को कोई नुकसान पहुंचा था या फिर उसमें कुछ नया बनाया गया है. यहां तक कि बहुत सारी चीजें तो काफी पुराने समय की बनी हुई लग रही थीं. इससे पहले सैटेलाइट से भी मदरसे की तस्वीरें जारी हुई थीं, जिसमें कहा गया था कि मदरसे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. पाकिस्तान इन्हीं सब बातों के आधार पर भारत को झूठा साबित करना चाहता है. यहां एक बात समझने की है कि भारत ने स्पाइस 2000 मिसाइल का इस्तेमाल कर के हमला किया था. इसकी खासियत ही यही है कि ये घर के अंदर घुसकर फटती है और बिल्डिंग को कोई नुकसान पहुंचाए बिना टारगेट को खत्म कर देती है. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि उस दिन भी मदरसे पर हुए हमले में मिसाइल ने सिर्फ छत को भेदा होगा और अंदर आकर फटी होगी, जैसा कि भारत ने दावा भी किया है. इसी वजह से मदरसे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. ये वीडियो आपको सब कुछ साफ कर देगा.
26 फरवरी को हुई एयर स्ट्राइक के बाद से ही पाकिस्तान खुद को सच्चा और भारत को झूठा कह रहा था, लेकिन सबूत नहीं दिखा रहा था. वैसे भी, अगर भारतीय वायुसेना की कार्रवाई से पाकिस्तान में कोई नुकसान हुआ ही नहीं, तो पाकिस्तान तिलमिलाया किस बात पर? 27 फरवरी को पाकिस्तानी विमान भारतीय सीमा के अंदर कैसे घुस आए? ना सिर्फ घुसे, बल्कि कुछ सैन्य ठिकानों पर बम तक गिरा दिए. पाकिस्तान का इस तरह तिलमिला जाना ही ये साबित करने के लिए काफी है कि उसके चहेते मसूद अजहर का आतंकी ठिकाना भारत ने तबाह कर दिया था. खैर, हर बार की तरह, इस बार भी 43 दिनों की देरी कर के खुद पाकिस्तान ही सवालों में घिर गया है. 43 दिनों में तो बहुत कुछ बदला जा सकता है, जो पाकिस्तान ने भी किया है.
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