आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे राहुल गांधी के नेतृत्व की परीक्षा लेंगे, अगर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं तो पार्टी उनको पुरजोर तरीके से विपक्ष के नेता और भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करेगी. वैसे भी कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ सबसे बड़ा दावेदार मानती है. लेकिन विपक्षी पार्टियां इससे फ़िलहाल सहमत नहीं दिख रही हैं, क्योंकि साल 2013 से हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार मिली है. हां, कांग्रेस पार्टी पंजाब और कर्नाटक जैसे अहम राज्यों में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में जरूर कामयाब रही है. बता दें कि इन चुनावों में कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी ही कर रहे थे, जिसको बीजेपी बार-बार उजागर कर ये जताने में कोई कसर नहीं छोड़ती है कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते.
बीजेपी ही नहीं, बल्कि राजनीतिक जानकारों की मानें तो नरेंद्र मोदी की छवि के सामने राहुल गांधी फ़िलहाल बहुत कमजोर नजर आते हैं. लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव राहुल गांधी के लिए एक सुनहरा मौका हैं, क्योंकि पांच में से तीन राज्यों में बीजेपी सत्ता में काबिज है और वहां एंटी-इंकम्बैंसी का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. वैसे इन तीनों राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी ही बड़े दावेदार हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी अन्य दलों के साथ गठजोड़ कर अपनी दावेदारी को और मजबूत कर सकती थी फ़िलहाल ऐसा नहीं हो पाया है. इसके पीछे तीन कारण हो सकते हैं एक तो ये कि अन्य दलों के साथ सीटों को लेकर सहमति ना बन पाना. दूसरा ये कि कांग्रेस पार्टी इन राज्यों में मजबूत है और अकेले दम पर बीजेपी को हराकर 2019 लोकसभा चुनाव के लिए संदेश देना चाहती है या फिर कहें कि अन्य दल फ़िलहाल कांग्रेस से दूरी बनाकर रखना चाह रहे हैं.
आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे राहुल गांधी के नेतृत्व की परीक्षा लेंगे, अगर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं तो पार्टी उनको पुरजोर तरीके से विपक्ष के नेता और भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करेगी. वैसे भी कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ सबसे बड़ा दावेदार मानती है. लेकिन विपक्षी पार्टियां इससे फ़िलहाल सहमत नहीं दिख रही हैं, क्योंकि साल 2013 से हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार मिली है. हां, कांग्रेस पार्टी पंजाब और कर्नाटक जैसे अहम राज्यों में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में जरूर कामयाब रही है. बता दें कि इन चुनावों में कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी ही कर रहे थे, जिसको बीजेपी बार-बार उजागर कर ये जताने में कोई कसर नहीं छोड़ती है कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते.
बीजेपी ही नहीं, बल्कि राजनीतिक जानकारों की मानें तो नरेंद्र मोदी की छवि के सामने राहुल गांधी फ़िलहाल बहुत कमजोर नजर आते हैं. लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव राहुल गांधी के लिए एक सुनहरा मौका हैं, क्योंकि पांच में से तीन राज्यों में बीजेपी सत्ता में काबिज है और वहां एंटी-इंकम्बैंसी का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. वैसे इन तीनों राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी ही बड़े दावेदार हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी अन्य दलों के साथ गठजोड़ कर अपनी दावेदारी को और मजबूत कर सकती थी फ़िलहाल ऐसा नहीं हो पाया है. इसके पीछे तीन कारण हो सकते हैं एक तो ये कि अन्य दलों के साथ सीटों को लेकर सहमति ना बन पाना. दूसरा ये कि कांग्रेस पार्टी इन राज्यों में मजबूत है और अकेले दम पर बीजेपी को हराकर 2019 लोकसभा चुनाव के लिए संदेश देना चाहती है या फिर कहें कि अन्य दल फ़िलहाल कांग्रेस से दूरी बनाकर रखना चाह रहे हैं.
कांग्रेस से अन्य दलों की दूरी की बात इसलिए कही जा रही है, क्योंकि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इन विधानसभा चुनावों में मायावती और अखिलेश यादव का कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं हो पाया है, वजह चाहे जो भी रही हो. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में कांग्रेस को कमजोर नहीं आंका जा सकता. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में फिलहाल बीजेपी की सरकार है, लेकिन इन राज्यों में कांग्रेस भी सत्ता में रह चुकी है और मिजोरम में कांग्रेस सत्तारूढ़ दल है, जबकि तेलंगाना में टीआरएस की सरकार रही है. यूपी में कांग्रेस का संगठन कमजोर है, पकड़ कमजोर है, लेकिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो उसकी स्थिति मजबूत है. फिर ऐसा क्यों है कि अखिलेश यादव और मायावती का उनसे गठबंधन नहीं हो पाया है जिससे ऐसा माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को कांग्रेस के साथ जाने में अपनी भलाई नहीं दिख रही है या फिर उन्हें राहुल गांधी के नेतृत्व पर पूरा भरोसा नहीं है. तभी तो अखिलेश ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ समझौता किया है और मायावती की पार्टी ने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी से हाथ मिलाया है.
यूपीए के शासनकाल से हमने देखा है कि कैसे बीजेपी दूसरे दलों के मुकाबले बहुत आसानी से भ्रष्टाचार सहित कई मुद्दों पर कांग्रेस को घेर लेती थी. कुछ ऐसा ही हमने कई राज्य सरकारों के खिलाफ भी देखा है, जहां बीजेपी लोगों को अपनी ओर करने में कामयाब हो गयी. लेकिन एक तरह से देखा जाये तो बीजेपी ने सबसे अधिक कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाया है ऐसे में अन्य दल फ़िलहाल कांग्रेस से दूरी बनाकर बीजेपी से मुकाबला करने की सोच रहे हैं और उनकी कामयाबी कर्नाटक चुनाव के नतीजों में देखने को मिली थी जहां जेडीएस और मायावती साथ आए थे और बीजेपी बड़ा दल होने के बावजूद सत्ता में नहीं आ पायी.
वैसे राफेल में भ्रष्टाचार के मुद्दे को राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी पुरजोर तरीके से हर मंच से उठा रहे हैं और इसे 2019 लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाने की सोच रहे हैं, जिससे प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ वो लहर लायी जा सके जो खुद नरेंद्र मोदी ने 2014 में भ्रष्टाचार के खिलाफ पैदा की थी. लेकिन फिलहाल विपक्ष के दूसरे बड़े दल राफेल मुद्दे पर जोरदार प्रदर्शन करते नहीं दिख रहे या फिर राहुल गांधी की हां में हां नहीं मिला रहे. लेकिन इसमें भी राहुल गांधी की ही कमी कही जा सकती है कि वो पूरे विपक्ष को एकजुट नहीं कर पा रहे हैं. यही नहीं तेल की कीमतों को लेकर सितम्बर में कांग्रेस द्वारा बुलाये गए भारत बंद के दौरान बिहार, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस पार्टी को जैसा समर्थन मिला वैसा राजनीति के सबसे बड़ा अखाड़ा माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में नहीं दिखा. वजह थी यहां सपा, बसपा और आरएलडी जैसे दलों का मनमाफिक समर्थन नहीं मिलना. बसपा प्रमुख मायावती ने तेल की बढ़ी कीमतों के लिए बीजेपी के साथ कांग्रेस पर भी निशाना साधा था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की गलत आर्थिक नीतियों को मोदी सरकार ने आगे बढ़ाया, जिसकी वजह से आज पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बेतहाशा इजाफा हुआ है. मायावती ने हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से गठबंधन किया है जिससे कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है.
कह सकते हैं कि यूपी ही नहीं कई दूसरे राज्यों में भी पार्टियां कांग्रेस के साथ आने से बच रही हैं. दूसरी पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस पर बीजेपी का ज्यादा हमलावर होना इसके पीछे की वजह मानी जा रही है. यही नहीं हमने देखा है कि कैसे कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने 2019 में प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष के प्रत्याशी के तौर पर राहुल गांधी को स्वीकार नहीं किया है या फिर कहें कि इस सवाल का जवाब नहीं दिया है या इस सवाल से बचते दिखे हैं. वैसे यूपीए की कमान तो कांग्रेस के हाथ में है. लेकिन उसमें फ़िलहाल बहुत कम पार्टियां रह गई हैं लेकिन अगर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मजबूत हुई तो क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ आ जाएंगे. कह सकते हैं कि मौजूद वक़्त में एक मजबूत यूपीए या फिर तीसरे मोर्चे की मुहिम बस नाम मात्र है, फिलहाल राजनीतिक दल अपना-अपना हित देख रहे हैं और आगामी लोकसभा चुनाव में कौन किधर होगा इसकी तस्वीर हाल में होने वाले विधानसभा चुनाव नतीजे कुछ साफ जरूर कर देंगे.
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