तीन साल बाद कांग्रेस की दिल्ली में इफ्तार पार्टी हुई. नजर तो सबकी इफ्तार में आने वाले विपक्षी नेताओं पर रही लेकिन सबसे ज्यादा इंतजार उस शख्सियत का रहा जिसने विचारधाराओं की तकरार पर नये सिरे से बहस छेड़ दी है - पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी.
प्रणब मुखर्जी के पार्टी में आने को लेकर शुरू से ही सस्पेंस बना रहा. पहले तो न्योता को लेकर ही शक जताया जा रहा था - और यही वजह रही कि कांग्रेस की ओर से साफ करना पड़ा कि न्योता भी दिया गया है और पूर्व राष्ट्रपति ने उसे स्वीकार भी किया है. बावजूद इसके सस्पेंस तभी खत्म हुआ जब मेहमानों ने, संभव है मेजबान भी, अपनी आंखों से प्रणब मुखर्जी को वेन्यू में दाखिल होते देखा.
प्रणब के आने के बाद चर्चाओं के टॉपिक और कानाफूसी कवायदों ने भी वैसे ही करवट ले ली जैसे बाहर दिल्ली और एनसीआर में मौसम बदल रहा था. मगर, सरप्राइज तो इंतजार कर रहा था. सरप्राइज रहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिटनेस वीडियो पर राहुल गांधी की टिप्पणी और बगल में बैठे प्रणब मुखर्जी की खामोशी.
बोलते भी तो प्रणब मुखर्जी भला क्या कहते?
राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी को लेकर आई हर मीडिया रिपोर्ट में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की खामोशी का जिक्र जरूर है. सवाल ये है कि प्रणब मुखर्जी अगर खामोशी नहीं अख्तियार करते तो क्या करते? आखिर मोदी पर राहुल गांधी की टिप्पणी पर प्रणब मुखर्जी से टिप्पणी की अपेक्षा क्यों होनी चाहिये?
राहुल गांधी के इफ्तार में प्रणब मुखर्जी को न्योता, उनका पहुंचना और राहुल की टिप्पणी पर खामोश रहना - ये सब चर्चा के विषय उनके नागपुर दौरे की वजह से बन रहे हैं ये तो साफ है, लेकिन राहुल गांधी की इस पर कोई टिप्पणी नहीं आयी. यहां तक कि भिवंडी कोर्ट में आरोप तय होने के बाद...
तीन साल बाद कांग्रेस की दिल्ली में इफ्तार पार्टी हुई. नजर तो सबकी इफ्तार में आने वाले विपक्षी नेताओं पर रही लेकिन सबसे ज्यादा इंतजार उस शख्सियत का रहा जिसने विचारधाराओं की तकरार पर नये सिरे से बहस छेड़ दी है - पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी.
प्रणब मुखर्जी के पार्टी में आने को लेकर शुरू से ही सस्पेंस बना रहा. पहले तो न्योता को लेकर ही शक जताया जा रहा था - और यही वजह रही कि कांग्रेस की ओर से साफ करना पड़ा कि न्योता भी दिया गया है और पूर्व राष्ट्रपति ने उसे स्वीकार भी किया है. बावजूद इसके सस्पेंस तभी खत्म हुआ जब मेहमानों ने, संभव है मेजबान भी, अपनी आंखों से प्रणब मुखर्जी को वेन्यू में दाखिल होते देखा.
प्रणब के आने के बाद चर्चाओं के टॉपिक और कानाफूसी कवायदों ने भी वैसे ही करवट ले ली जैसे बाहर दिल्ली और एनसीआर में मौसम बदल रहा था. मगर, सरप्राइज तो इंतजार कर रहा था. सरप्राइज रहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिटनेस वीडियो पर राहुल गांधी की टिप्पणी और बगल में बैठे प्रणब मुखर्जी की खामोशी.
बोलते भी तो प्रणब मुखर्जी भला क्या कहते?
राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी को लेकर आई हर मीडिया रिपोर्ट में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की खामोशी का जिक्र जरूर है. सवाल ये है कि प्रणब मुखर्जी अगर खामोशी नहीं अख्तियार करते तो क्या करते? आखिर मोदी पर राहुल गांधी की टिप्पणी पर प्रणब मुखर्जी से टिप्पणी की अपेक्षा क्यों होनी चाहिये?
राहुल गांधी के इफ्तार में प्रणब मुखर्जी को न्योता, उनका पहुंचना और राहुल की टिप्पणी पर खामोश रहना - ये सब चर्चा के विषय उनके नागपुर दौरे की वजह से बन रहे हैं ये तो साफ है, लेकिन राहुल गांधी की इस पर कोई टिप्पणी नहीं आयी. यहां तक कि भिवंडी कोर्ट में आरोप तय होने के बाद भी. भिवंडी कोर्ट में पेशी के बाद बाहर निकलने पर राहुल गांधी का कहना रहा, "रोजगार-किसानों की रक्षा के बारे में प्रधानमंत्री कुछ नहीं कहते... पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों पर प्रधानमंत्री कुछ नहीं कहते... मेरे ऊपर कितने भी आरोप लगें मुझे फर्क नहीं पड़ता है... ये मेरी विचारधारा की लड़ाई है."
बेशक, भिवंडी कोर्ट में जो केस चल रहा है वो विचारधारा की ही लड़ाई है, मोदी के फिटनेस चैलेंज और वीडियो को अजीब बताना भी क्या आइडियोलॉजी का ही विरोध है?
एक सवाल के जवाब में ममता बनर्जी का कहना रहा कि राजनीति के लोग जब मिलेंगे तो जाहिर है बात राजनीति की ही होगी. मोदी का फिटनेस वीडियो के जिक्र की एक वजह ये भी रही कि वो इफ्तार पार्टी के दिन ही ट्वीटर पर शेयर किया गया था. खबर के हिसाब से भी चर्चा होनी स्वाभाविक है. पार्टी चल रही थी. माहौल खुशनुमा ही था. तभी राहुल ने सवाल किया. सवाल टेबल पर मौजूद सभी से था, "आपने पीएम का फिटनेस वीडियो देखा? ये तो हास्यास्पद है... आय मीन अजीब... बिलकुल दिवालियापन... " राहुल गांधी ने मोदी के वीडियो पर टिप्पणी में तीन शब्दों का इस्तेमाल किया - 'Ridiculous, Bizarre और Bankruptcy.'
सवाल भी राहुल ने ही पूछा और खुद ही जवाब भी दे दिया, लिहाजा बाकियों के पास ठहाके लगाने का ही ऑप्शन बचा था. ठहाके लगाने वालों में टीएमसी नेता दिनेश त्रिवेदी, बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्री और डीएमके नेता कनिमोझी रहीं. कांग्रेस की ओर से इसे लेकर एक छोटा सा वीडियो भी ट्विटर पर शेयर किया गया है.
राहुल गांधी की इस टिप्पणी के बाद सभी ने एक दूसरे के चेहरे पर नजर दौड़ाई. पास में बैठीं प्रतिभा पाटिल टिप्पणी के बाद की बातचीत में हिस्सेदार बनती तो दिखीं लेकिन चेहरे पर गंभीरता बनी रही. प्रणब मुखर्जी जरूर थोड़े असहज नजर आये. प्रणब मुखर्जी ने सामने, फिर नीचे देखा और खामोशी से पूरे वाकये को नजरअंदाज कर दिया.
राहुल गांधी ने येचुरी से मुखातिब होते हुए अपना फिटनेस वीडियो निकालने की सलाह दी. येचुरी की फौरी प्रतिक्रिया रही, "अरे भाई, हमें तो छोड़ दो."
राहुल ने ऐसी टिप्पणी क्यों की?
राहुल गांधी की तरह उनके दो राजनीतिक सहयोगी अशोक गहलोत और प्रमोद तिवारी ने भी मोदी के फिटनेस वीडियो पर कड़ी टिप्पणी की थी. प्रमोद तिवारी ने तो दो कदम आगे बढ़ते हुए उसे सरहद पर जवानों की शहादत से भी जोड़ दिया.
प्रमोद तिवारी का कहना था, ''प्रधानमंत्री ने अपने फिटनेस को दिखाने के लिए बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण दिन चुना है. जब देश जवानों के जनाजों को कंधा दे रहा था तब मोदी फिटनेस वीडियो जारी कर रहे थे. आज तो उन्हें शहीदों के सम्मान में सर झुका कर संवेदना व्यक्त करना चाहिए. अपनी फिटनेस दिखा कर उन्होंने जवानों की शहादत का अपमान किया है.''
कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा, "प्रधानमंत्री अपनी फिटनेस दिखाने में व्यस्त हैं, जबकि देश कई गंभीर मुद्दों से जूझ रहा है... देश की अर्थव्यवस्था की सेहत नाजुक है, पाकिस्तान रोज हमारे सैनिकों और अफसरों को मार रहा है, किसान तनाव के कारण आत्महत्या कर रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री का जुनून अपनी फिटनेस को लेकर है."
सामान्य भाव से देखें तो मोदी के फिटनेस वीडियो पर राहुल गांधी की टिप्पणी स्वाभाविक और अपेक्षित रही. जब प्रधानमंत्री मोदी देश की सारी समस्याओं के लिए 'आपके के पाप...' कह कर कांग्रेस को कोसेंगे तो न्यूटन का तीसरा नियम लागू तो होगा ही - 'हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है.' लेकिन प्रणब मुखर्जी की मौजूदगी में राहुल गांधी की टिप्पणी के क्या मायने हो सकते हैं?
देखा जाये तो राहुल गांधी खुद भी फिटनेस को लेकर काफी सचेत और अनुशासित रहते हैं - और जापानी मार्शल आर्ट ऐकिडो में ब्लैक बेल्ट हैं.
फिटनेस से चिढ़ तो है नहीं?
एक वाकया 2009 के चुनाव प्रचार के वक्त का है. कांग्रेस के एक नेता ने पत्रकारों को बताया था, "राहुल गांधी ने हरदोई पुलिसलाइन के मैदान में घंटे पर जॉगिंग की."
जॉगिंग का दिलचस्प पहलू ये रहा कि राहुल गांधी वहां रात के साढ़े ग्यारह बजे पहुंचे थे और एक घंटे में मैदान के कई राउंड लगाये. 2013 में राहुल गांधी को जापानी मार्शल आर्ट ऐकिडो में ब्लैक बेल्ट मिल था. राहुल गांधी ने खुद ही इस बात का खुलासा भी किया जब बॉक्सर विजेंदर सिंह ने एक कार्यक्रम में कह दिया कि नेताओं की खेलों में रुचि नहीं होती.
ये सुन कर राहुल बोले, "मैं एक्सरसाइज करता हूं. दौड़ता हूं, तैरता हूं. और मैं ऐकिडो में ब्लैक बेल्ट हूं. मैं सार्वजनिक तौर पर इसकी चर्चा नहीं करता."
ये सब जानने के बाद समझना मुश्किल हो रहा है कि राहुल गांधी ने मोदी के फिटनेस को अजीब और हास्यास्पद क्यों बताया?
क्या राहुल गांधी चेक करना चाहते थे कि मोदी पर कमेंट सुन कर प्रणब मुखर्जी की कैसी प्रतिक्रिया होगी? कहीं राहुल गांधी को अब भी राष्ट्रपति बनने से पहले वाले कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी जैसी गफलत तो नहीं है. क्या राहुल के मन में ऐसी भी कोई बात रही होगी कि जिस तरह मनमोहन सिंह उनके लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने को तैयार हुआ करते थे दूसरों की भी वैसी ही सोच हो सकती है!
या फिर राहुल गांधी मोदी के फिटनेस पर टिप्पणी कर प्रणब मुखर्जी के नागपुर जाने को लेकर अपने तरीके से गुस्सा निकाल रहे थे?
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