कांग्रेस और भाजपा के बीच की तल्खियां और सियासी लड़ाई किसी से छुपा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार पी चिदंबरम ने 15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने जो भाषण दिया था उसकी तारीफ करते हुए एक नए विवाद को जन्म दे दिया है. ध्यान रहे कि चिदंबरम का शुमार कांग्रेस के उन नेताओं में है जो मुखर होकर प्रधानमंत्री और उनकी नीतियों पर अपनी राय देते हैं. पूर्व में ऐसे कई मौके आए हैं जब किसी मुद्दे को लेकर पार्टी तो खामोश रही मगर चिदंबरम की कही बातों ने देश के प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के माथे पर चिंता के बल डाले और जवाब के लिए वो बगलें झांकते नजर आए.
पी चिदंबरम के ट्वीट का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि उन्होंने ट्वीट कर कहा कि स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के तीन घोषणाओं, जिनमें छोटा परिवार देशभक्ति का कर्तव्य, वेल्थ क्रिएटर्स का सम्मान और प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक का सभी को स्वागत करना चाहिए.
इसी ट्वीट के साथ उन्होंने यह भी लिखा है कि वे उम्मीद करते हैं कि वित्त मंत्री, उनके टैक्स अधिकारियों की फौज और जांचकर्ता पीएम मोदी के संदेश को साफ तौर पर सुना होगा. यहां पी. चिदंबरम का इशारा 'वेल्थ क्रिएटर्स के सम्मान' वाली बात की तरफ था.
इसके बाद चिदंबरम ने एक ट्वीट और किया और कहा है कि पहली और तीसरी उद्घोषणा को लोगों का आंदोलन बनना...
कांग्रेस और भाजपा के बीच की तल्खियां और सियासी लड़ाई किसी से छुपा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार पी चिदंबरम ने 15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने जो भाषण दिया था उसकी तारीफ करते हुए एक नए विवाद को जन्म दे दिया है. ध्यान रहे कि चिदंबरम का शुमार कांग्रेस के उन नेताओं में है जो मुखर होकर प्रधानमंत्री और उनकी नीतियों पर अपनी राय देते हैं. पूर्व में ऐसे कई मौके आए हैं जब किसी मुद्दे को लेकर पार्टी तो खामोश रही मगर चिदंबरम की कही बातों ने देश के प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के माथे पर चिंता के बल डाले और जवाब के लिए वो बगलें झांकते नजर आए.
पी चिदंबरम के ट्वीट का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि उन्होंने ट्वीट कर कहा कि स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के तीन घोषणाओं, जिनमें छोटा परिवार देशभक्ति का कर्तव्य, वेल्थ क्रिएटर्स का सम्मान और प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक का सभी को स्वागत करना चाहिए.
इसी ट्वीट के साथ उन्होंने यह भी लिखा है कि वे उम्मीद करते हैं कि वित्त मंत्री, उनके टैक्स अधिकारियों की फौज और जांचकर्ता पीएम मोदी के संदेश को साफ तौर पर सुना होगा. यहां पी. चिदंबरम का इशारा 'वेल्थ क्रिएटर्स के सम्मान' वाली बात की तरफ था.
इसके बाद चिदंबरम ने एक ट्वीट और किया और कहा है कि पहली और तीसरी उद्घोषणा को लोगों का आंदोलन बनना चाहिए. सैकड़ों समर्पित स्वैच्छिक संगठन हैं जो स्थानीय स्तर पर आंदोलनों का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं.
ज्ञात हो कि एक ऐसे समय में जब पार्टी में तमाम तरह के आंतरिक गतिरोध के बाद सोनिया ने पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली हो तो चिदंबरम के ट्वीट्स चिढ़ाने वाले ही हुए ना. कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से जहां मोदी के भाषण पर हमले हो रहे थे, तो चिदंबरम ने अपने ट्विटर हैंडल से फूल बरसा दिए. एक प्रबल आलोचक का इस तरह देश के प्रधानमंत्री की तारीफ करना न सिर्फ कांग्रेस को संदेह के घेरों में लकार खड़ा कर रहा है बल्कि ये भी बता रहा है कि देश के लिए जो निर्णय प्रधानमंत्री ले रहे हैं वो बिल्कुल सही दिशा में हैं और कांग्रेस और राहुल गांधी जो भी आरोप लगा रहे हैं वो महज प्रोपेगेंडा से ज्यादा कुछ नहीं हैं.
अब जबकि कांग्रेस के वफादारों में शुमार चिदंबरम ने मोदी की तारीफ कर दी है. तो हमें भी ये समझ लेना चाहिए कि कहीं न कहीं चिदंबरम भी इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि अब जैसा राजनीतिक परिदृश्य चल रहा है. मुश्किल है कि, सोनिया लगातार गर्त में जाती कांग्रेस पार्टी को संभाल पाएं.
क्यों सोनिया गांधी नहीं संभाल पाएंगी गिरती हुई कांग्रेस
आज जैसी पार्टी की स्थिति है और जैसे तमाम बड़े छोटे नेताओं ने पार्टी लाइन को छोड़कर अपने अपने राग अलापने शुरू कर दिए हैं. साफ हो गया है कि आने वाले वक़्त में सोनिया गांधी के सामने मुसीबतों का अंबार लगने वाला है. कुछ और बात करने से पहले उन कारणों पर नजर डालना बहुत जरूरी है जिनके बाद हमें ये पता लग जाएगा कि चिदंबरम का इस तरह पार्टी लाइन से इतर जाना कोई एक दिन में नहीं हुआ है.
राहुल का जिद्दी स्वाभाव
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि राहुल गांधी जिद्दी हैं. राहुल कितने जिद्दी हैं? यदि इस सवाल को समझना हो तो हम 19 के लोकसभा चुनावों का अवलोकन कर सकते हैं. चुनाव में मिली हार की जिम्मेदारी राहुल गांधी ने ली और अपने इस्तीफे की पेशकश की. कार्यकर्ताओं के अलावा तमाम नेता और खुद सोनिया गांधी राहुल के इस्तीफे के विरोध में आए और इस बात पर बल दिया कि पार्टी के लिए मुश्किल वक़्त चल रहा है इसलिए राहुल को इस्तीफ़ा नहीं देना चाहिए.
इस दिशा में तमाम तरह के प्रयास किये गए मगर राहुल नहीं मानें और अपनी जिद पर अड़े रहे. मजबूरन सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनना पड़ा. अब इन सारी बातों का अवलोकन किया जाए तो मिलता है इसका सीधा असर कांग्रेस पर दिखेगा और वो लोग जो राहुल का समर्थन करते हैं सोनिया गांधी को कोई विशेष तवज्जो नहीं देंगे जो कहीं न कहीं पार्टी के लियुए नुकसान का एक बड़ा कारण हैं.
ओल्ड स्कूल और न्यू स्कूल की जंग
कांग्रेस में हमेशा से ही ओल्ड स्कूल प्रभावी रहा है जिसे नए स्कूल या ये कहें कि वो समूह जिसके प्रेरणास्रोत राहुल गांधी हैं ने कभी पसंद नहीं किया. राहुल के इस्तीफे के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि इसका फायदा सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया या फिर मुकुल वासनिक को होगा. अब चूंकि सोनिया दोबारा अध्यक्ष बन गई हैं तो इसका सीधा फायदा उन लोगों जैसे अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद को मिलेगा जो सोनिया गांधी के खास हैं और पार्टी में लम्बे समय से टिके हुए हैं. इन बातों के बाद ये खुद ब खुद साफ हो गया है कि टकराव की स्थिति बरक़रार रहेगी जिसका एक बड़ा नुकसान कांग्रेस पार्टी को होगा.
परिवारवाद
चाहे 2014 का चुनाव रहा हो या फिर 19 का चुनाव परिवारवाद एक बड़ा मुद्दा रहा है और ऐसे तमाम मौके आए थे जब देश के प्रधानमंत्री ने इस बात को देश की जनता के सामने रखा था. पहले सोनिया गांधी फिर राहुल गांधी और फिर अब सोनिया गांधी और बीच में प्रियंका गांधी का नाम पर जोर पकड़ना. यदि कांग्रेस भविष्य में टूटती है या फिर पार्टी में बिखराव होता है तो परिवारवाद एक बड़ा मुद्दा रहेगा. इस समय तक आते आते कहीं न कहीं पार्टी के नेताओं को भी लग गया है कि पार्टी में पद संभालने के लिए योग्यता नहीं गांधी होना जरूरी है.
नेतृत्व का आभाव
सोनिया गांधी भले ही आज पार्टी की अध्यक्ष बन गई हों मगर जैसी स्थिति पार्टी की है और जिस तरह पार्टी के अन्दर नेतृत्व का आभाव है, किसी भी क्षण पार्टी बिखर सकती है. बात अगर हाल की हो तो जैसा अभी कश्मीर में 370 हटने पर पार्टी के नेताओं का रुख रहा है और जैसे कश्मीर और 370 को लेकर पार्टी के नेताओं के बयान आए साफ पता चलता है कि पार्टी एक लाइन पर नहीं है और जिसका जो मन है वो वैसा कर रहा है.
प्रियंका से उम्मीद करना है बेकार
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत एक बड़ा वर्ग है जो मानता है कि प्रियंका गांधी में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का अक्स है. वहीं पार्टी में ही ऐसे तमाम नेता है जो इस बात का पुरजोर करते हैं. बात साफ है कि पार्टी में प्रियंका की पोजीशन को लेकर भी टकराव की स्थिति है जिसे सोनिया गांधी के लिए संभलना अपने आप में एक टेढ़ी खीर है.
2009 के मुकाबले 19 में कमजोर हैं सोनिया
2009 में जिस सोनिया गांधी को इस देश ने देखा है यदि उस सोनिया की तुलना वर्तमान सोनिया से की जाए तो मिलता है कि जो सोनिया आज हम देख रहे हैं वो न सिर्फ सेहत के लिहाज से कमजोर हैं बल्कि उनके आस पास जो लोग हैं उनके अन्दर भी ठोस निर्णय लेने की क्षमता नहीं है. जो साफ तौर पर पार्टी के हित में नहीं है और शायद यही वो कारण हैं कि आज पार्टी में हर व्यक्ति अपने फायदे के लिए अपनी तरह से निर्णय ले रहा है.
पार्टी में बगावत हो चुकी है
संगठन के लिए एका बहुत जरूरी है. ऐसे में जैसी स्थिति कांग्रेस की है और जैसे दृश्य हमने 19 के चुनाव के बाद देखें हैं ये भी साफ है कि पार्टी के नेता बगावत कर चुके हैं. सोनिया गांधी इनको कितना जोड़कर रख पाती हैं इसका फैसला भविष्य की गर्त में छुपा है मगर जैसा वर्तमान है कह सकते हैं कि भले ही सोनिया पार्टी की सरपरस्त हों मगर पार्टी टूट चुकी है जिसे एक धागे में पिरोकर रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
बहरहाल हमने बात की शुरुआत चिदंबरम और उनके द्वारा की गई मोदी की तारीफ से की थी. चिदंबरम की ये तारीफ कांग्रेस को कहां ले जाएगी? इसका फैसला वक़्त करेगा. मगर जिस तरह चिदंबरम ने अपने को पार्टी लाइन से अलग किया और अपने विरोधी की तारीफ की है उसने कई बातों को साफ कर दिया है और ये बता दिया है कि जब पार्टी में सब अलग अलग चल रहे हों चिदंबरम ने अलग चलते हुए एक ऐसा रास्ता पकड़ा है जो राजनीतिक रूप से उनके लिए वर्तमान की अपेक्षा कहीं ज्यादा फायदेमंद है.
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