अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जे के बाद तालिबान (Taliban) ने खुद का 'उदार' चेहरा दिखाने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर हर मुमकिन कोशिश की. दुनिया के कई देशों में तालिबान के इस बदले हुए चेहरे की तारीफ भी की जाने लगी. लेकिन, तालिबानी लड़ाकों ने जल्द ही ये 'मुखौटा' उतार फेंका. महिलाओं, अफगान सैनिकों और नागरिकों के साथ क्रूरता की हदें पार करने वाली तस्वीरों ने स्पष्ट कर दिया है कि तालिबान के बदलने की बात केवल 'दिन में सपने देखने' जैसा था. तालिबान के नेताओं ने उन तमाम समर्थकों की आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया है, जो अफगानिस्तान में लोकतंत्र का फूल खिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे. तालिबान ने बता दिया है कि अफगानिस्तान में इस्लामिक राज और शरिया कानून ही सर्वोपरि होंगे. तालिबान के बर्बर इरादों के आगे अफगानिस्तान के कई सूरमाओं ने घुटने टेक दिए हैं. लेकिन, अफगानिस्तान के सभी प्रांतों में कब्जा कर चुके तालिबान को एक छोटे से प्रांत पंजशीर (Panjshir Valley) से बड़ी चुनौती मिल रही है. आइए जानते हैं कि आखिर तालिबान को पंजशीर से डर क्यों लग रहा है?
पंजशीर घाटी क्या है?
अफगानिस्तान के पंजशीर प्रांत (panjshir afghanistan) पर अब तक तालिबान कब्जा नहीं कर सका है. 1996 से 2001 के दौरान तालिबान के सत्ता में रहने के बावजूद भी पंजशीर घाटी उसके कब्जे से बाहर ही रही. इतना ही नहीं पंजशीर के इस इलाके के लड़ाकों ने सोवियत संघ के सैनिकों के भी दांत खट्टे कर दिए थे. 80 के दशक से ही पंजशीर घाटी एक अभेद्य किला रही है. पंजशीर घाटी लंबे समय से तालिबान विरोधी क्षेत्र (panjshir resistance) के तौर पर जानी जाती रही है.
पंजशीर प्रांत (panjshir meaning) को 'पांच शेरों...
अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जे के बाद तालिबान (Taliban) ने खुद का 'उदार' चेहरा दिखाने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर हर मुमकिन कोशिश की. दुनिया के कई देशों में तालिबान के इस बदले हुए चेहरे की तारीफ भी की जाने लगी. लेकिन, तालिबानी लड़ाकों ने जल्द ही ये 'मुखौटा' उतार फेंका. महिलाओं, अफगान सैनिकों और नागरिकों के साथ क्रूरता की हदें पार करने वाली तस्वीरों ने स्पष्ट कर दिया है कि तालिबान के बदलने की बात केवल 'दिन में सपने देखने' जैसा था. तालिबान के नेताओं ने उन तमाम समर्थकों की आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया है, जो अफगानिस्तान में लोकतंत्र का फूल खिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे. तालिबान ने बता दिया है कि अफगानिस्तान में इस्लामिक राज और शरिया कानून ही सर्वोपरि होंगे. तालिबान के बर्बर इरादों के आगे अफगानिस्तान के कई सूरमाओं ने घुटने टेक दिए हैं. लेकिन, अफगानिस्तान के सभी प्रांतों में कब्जा कर चुके तालिबान को एक छोटे से प्रांत पंजशीर (Panjshir Valley) से बड़ी चुनौती मिल रही है. आइए जानते हैं कि आखिर तालिबान को पंजशीर से डर क्यों लग रहा है?
पंजशीर घाटी क्या है?
अफगानिस्तान के पंजशीर प्रांत (panjshir afghanistan) पर अब तक तालिबान कब्जा नहीं कर सका है. 1996 से 2001 के दौरान तालिबान के सत्ता में रहने के बावजूद भी पंजशीर घाटी उसके कब्जे से बाहर ही रही. इतना ही नहीं पंजशीर के इस इलाके के लड़ाकों ने सोवियत संघ के सैनिकों के भी दांत खट्टे कर दिए थे. 80 के दशक से ही पंजशीर घाटी एक अभेद्य किला रही है. पंजशीर घाटी लंबे समय से तालिबान विरोधी क्षेत्र (panjshir resistance) के तौर पर जानी जाती रही है.
पंजशीर प्रांत (panjshir meaning) को 'पांच शेरों का प्रांत' कहा जाता है. इस नाम के पीछे एक कहानी बताई जाती है. कहा जाता है कि 10वीं शताब्दी के दौरान गजनी के सुल्तान के कहने पर यहां के पांच भाईयों ने पंजशीर घाटी को बाढ़ के पानी से बचाने के लिए एक बांध का निर्माण किया था. इन पांचों भाईयों के नाम पर ही इसे पंजशीर घाटी कहा जाने लगा. काबुल के उत्तर पूर्व में हिंदूकुश पहाड़ियों से लगे इस प्रांत को अपराजेय माना जाता है. पंजशीर की करीब दो लाख की आबादी में ताजिक समुदाय की बहुलता है. पंजशीर घाटी को नॉर्दर्न एलायंस का गढ़ भी कहा जाता है.
'पंजशीर का शेर' अहमद शाह मसूद
अफगानिस्तान में सोवियत संघ और तालिबान के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले कई वॉरलॉर्ड यानी मिलिशिया के नेता हुए. लेकिन, इनमें से अफगानिस्तान के हीरो के तौर पर अहमद शाह मसूद (ahmad shah massoud) को जो दर्जा हासिल है, वो अन्य किसी के पास नहीं है. अहमद शाह मसूद वो शख्स थे, जिन्होंने सोवियत संघ से लेकर तालिबान तक को नाकों चने चबवा दिए थे. सोवियत संघ की सेना ने पंजशीर पर कब्जा करने की कई नाकाम कोशिशें कीं. लेकिन, हर बार बुरी तरह से शिकस्त का सामना करना पड़ा. सोवियत संघ की सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद अहमद शाह मसूद को सम्मान के तौर पर 'पंजशीर के शेर' की उपाधि दी गई. 1992 में अहमद शाह मसूद को पेशावर समझौते के तहत अफगानिस्तान का रक्षा मंत्री बनाया गया था. उन्होंने 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान की कट्टरपंथी सोच के खिलाफ भी मजबूती से लड़ाई लड़ी और पंजशीर को तालिबानी कब्जे से बचाए रखा. सितंबर 2001 में अलकायदा के दो आत्मघाती आतंकियों ने तालिबानी आतंकियों के धुर विरोधी अहमद शाह मसूद की हत्या कर दी थी.
नॉर्दर्न एलायंस की कमान फिलहाल अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद (ahmad massoud) के हाथ में है. उन्होंने हाल ही में फ्रांसीसी दार्शनिक बर्नार्ड हेनरी लेवी से बातचीत में कहा था कि मैं अहमद शाह मसूद का बेटा हूं और मेरी डिक्शनरी में आत्मसमर्पण जैसा शब्द नहीं है. अहमद मसूद एक अफगान राजनेता और नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट ऑफ अफगानिस्तान के संस्थापक (ahmad massoud panjshir) के तौर पर जाने जाते हैं. लंदन में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में मास्टर्स डिग्री हासिल करने वाले अहमद मसूद तालिबान के प्रतिरोध का चेहरा बने हुए हैं. अहमद मसूद ने अफगानिस्तान के सभी लोगों से तालिबान के खिलाफ एकजुट होने की अपील की है. अहमद मसूद ने कहा है कि वो आखिरी सांस तक तालिबान के खिलाफ लड़ते रहेंगे.
नार्दर्न एलायंस क्या है?
अहमद शाह मसूद ने सोवियत संघ के खिलाफ पहली बार विद्रोही ताकतों को एकजुट किया था. 1996 में अहमद शाह मसूद ने तालिबान के खिलाफ नार्दर्न एलायंस (northern alliance) की नींव रखी. नार्दर्न एलायंस के दम पर तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था. इस दौरान अहमद शाह मसूद को मजार-ए-शरीफ के वॉरलॉर्ड अब्दुल रशीद दोस्तम का भी साथ मिला हुआ था. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ ही पंजशीर फिर से विद्रोह की आवाज बन गया है. नार्दर्न एलायंस के झंडे तले अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह, अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और बल्ख प्रांत के पूर्व गवर्नर अता मुहम्मद नूर के नेतृत्व में यहां तालिबान विरोधी सैनिकों और लड़ाकों की फौज इकट्ठा हो रही है. नार्दर्न एलायंस का एकमात्र उद्देश्य तालिबान को सत्ता से बाहर करने का है.
पंजशीर प्रांत में तालिबान विरोधी लड़ाकों और नेशनल आर्मी के सैनिकों के इकट्ठा होने की खबरें काबुल पर तालिबान के कब्जे के साथ ही आनी शुरू हो गई थीं. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ने के बाद खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्लाह सालेह के भी पंजशीर में होने की खबरें सामने आ रही हैं. हालांकि, अभी तक ये साफ नहीं हो पाया है कि सालेह कहां पर हैं. लेकिन, उनके पंजशीर में होने की खबर से ही तालिबान की धड़कन बढ़ी हुई है. दरअसल, अमरुल्लाह सालेह ने कहा था कि वो तालिबान के आगे मरते दम तक घुटने नहीं टेकेंगे और उसके खिलाफ आंदोलन कर पूरे अफगानिस्तान में समर्थन जुटाएंगे. हाल ही में एक खबर में दावा किया गया है कि बगलान प्रांत में हमला कर विद्रोही सेना ने करीब 300 तालिबानी लड़ाकों को मार गिराया है.
अमरुल्लाह सालेह कौन हैं?
तालिबान ने करीब 24 घंटे पहले पंजशीर घाटी पर बड़ा हमला (taliban in panjshir) करने के लिए अपने लड़ाकों की फौज को रवाना कर दिया था. लेकिन, काबुल से केवल तीन घंटे की दूरी होने के बाद भी तालिबानी लड़ाके वहां नही पहुंच पाए हैं. दावा किया जा रहा है कि तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह (Amrullah Saleh) भी पंजशीर घाटी में मौजूद हैं. अमरुल्लाह सालेह का जन्म पंजशीर प्रांत में हुआ है और उन्हें अहमद शाह मसूद का शागिर्द कहा जाता है. काबुल पर कब्जे के साथ तालिबान ने युद्ध खत्म होने की घोषणा कर दी थी. लेकिन, अमरुल्लाह सालेह ने तालिबान को चुनौती देते हुए कहा था कि युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है. सालेह ने 19 अगस्त को ट्विटर पर लिखा था कि देशों को कानून के शासन का सम्मान करना चाहिए, हिंसा का नहीं. अफगानिस्तान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान निगल नहीं सकता है. यह तालिबान के शासन के लिए बहुत बड़ा है. अपने इतिहास को अपमान पर एक अध्याय न बनने दें और आतंकी समूहों के आगे नतमस्तक न हों.
दरअसल, 1996 में तालिबानी लड़ाकों ने सालेह की बहन का अपहरण कर हत्या कर दी थी. इस घटना ने तालिबान के खिलाफ उनकी नफरत को और भड़का दिया. अमरुल्लाह सालेह के प्रभान का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि ताजिकिस्तान के दुशांबे में स्थित अफगानिस्तानी दूतावास में राष्ट्रपति के तौर पर उनकी तस्वीर लगा दी गई है. अमरुल्लाह सालेह ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए एक बड़ी एसेट माने जाते हैं. सालेह अफगानिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी के हेड के तौर पर भी काम कर चुके हैं. तालिबान के खिलाफ सालेह ने जासूसों का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा किया था. माना जा रहा है कि इस नेटवर्क के सहारे ही वो तालिबान को चुनौती दे रहे हैं. अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई तालिबान से बातचीत के पक्षधर थे. अमरुल्लाह सालेह ने इसका विरोध किया और करजई को सत्ता से बाहर होना पड़ा. 2014 में सालेह अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति बने थे.
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