जी हां, हम उस देश के वासी हैं जहां- 'गाय के हत्यारों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है, बनिस्बत लापरवाह ड्राइवरों के.' ये टिप्पणी है दिल्ली के साकेत कोर्ट की, जिसने 2008 के BMW केस में दोषी उत्सव भसीन को दो साल की कैद की सजा और पीड़ित परिवार को दस लाख रुपये बतौर जुर्माना देने की हिदायत दी है.
गाय बनाम इंसान की जान
ज्यादा दिन नहीं हुए. राजस्थान हाई कोर्ट के एक जज ने रिटायर होने से एक दिन पहले अपने फैसले के साथ एक सलाह भी दी- गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाये. सोशल मीडिया पर जज साहब की टिप्पणी पर लोगों ने अपने अपने तरीके से रिएक्ट किया, खासकर उनके 'मोर के आंसू' वाले अन्वेषण पर. देखते ही देखते मोर के आंसू ने घड़ियाली आंसू के मुहावरे को रिप्लेस सा कर दिया था.
उस टिप्पणी में एक जज का भावनात्मक पक्ष सामने आया तो साकेत कोर्ट के जज संजीव कुमार ने कानूनी प्रावधान में नजरअंदाज किये हुए मानवीय पहलू की ओर ध्यान दिलाया है.
उत्सव भसीन को सजा सुनाते हुए जज ने कहा, "गाय की हत्या करने पर पांच या सात, या कई राज्यों में 14 साल की सजा का प्रावधान है, लेकिन लापरवाही से गाड़ी चलाने या रैश ड्राइविंग के मामले में कानून में महज दो साल की सजा ही निर्धारित की हुई है." अदालत ने फैसले की एक कॉपी प्रधानमंत्री को भेजे जाने को कहा है ताकि IPC की धारा 304 A के तहत लापरवाही से होने वाली मौतों के लिए 'अपर्याप्त सजा' को लेकर उचित कदम उठाया जा सके.
सही पकड़े हैं - जज साहब! कीमत हर जान की होनी चाहिये. गाय की भी और इंसान की भी. हकीकत तो ये है कि गाय बनाम इंसान की बहस बड़े ही खतरनाक दौर में पहुंच चुकी है. आये दिन उसका खूनी खेल सड़कों पर देखने को मिल रहा है.
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने...
जी हां, हम उस देश के वासी हैं जहां- 'गाय के हत्यारों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है, बनिस्बत लापरवाह ड्राइवरों के.' ये टिप्पणी है दिल्ली के साकेत कोर्ट की, जिसने 2008 के BMW केस में दोषी उत्सव भसीन को दो साल की कैद की सजा और पीड़ित परिवार को दस लाख रुपये बतौर जुर्माना देने की हिदायत दी है.
गाय बनाम इंसान की जान
ज्यादा दिन नहीं हुए. राजस्थान हाई कोर्ट के एक जज ने रिटायर होने से एक दिन पहले अपने फैसले के साथ एक सलाह भी दी- गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाये. सोशल मीडिया पर जज साहब की टिप्पणी पर लोगों ने अपने अपने तरीके से रिएक्ट किया, खासकर उनके 'मोर के आंसू' वाले अन्वेषण पर. देखते ही देखते मोर के आंसू ने घड़ियाली आंसू के मुहावरे को रिप्लेस सा कर दिया था.
उस टिप्पणी में एक जज का भावनात्मक पक्ष सामने आया तो साकेत कोर्ट के जज संजीव कुमार ने कानूनी प्रावधान में नजरअंदाज किये हुए मानवीय पहलू की ओर ध्यान दिलाया है.
उत्सव भसीन को सजा सुनाते हुए जज ने कहा, "गाय की हत्या करने पर पांच या सात, या कई राज्यों में 14 साल की सजा का प्रावधान है, लेकिन लापरवाही से गाड़ी चलाने या रैश ड्राइविंग के मामले में कानून में महज दो साल की सजा ही निर्धारित की हुई है." अदालत ने फैसले की एक कॉपी प्रधानमंत्री को भेजे जाने को कहा है ताकि IPC की धारा 304 A के तहत लापरवाही से होने वाली मौतों के लिए 'अपर्याप्त सजा' को लेकर उचित कदम उठाया जा सके.
सही पकड़े हैं - जज साहब! कीमत हर जान की होनी चाहिये. गाय की भी और इंसान की भी. हकीकत तो ये है कि गाय बनाम इंसान की बहस बड़े ही खतरनाक दौर में पहुंच चुकी है. आये दिन उसका खूनी खेल सड़कों पर देखने को मिल रहा है.
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सड़क पर गोरक्षा के नाम पर उत्पात मचाने वालों का डॉजियर तैयार करने की सलाह दी थी. दूसरी बार गुजरात में भी प्रधानमंत्री मोदी ने सवाल उठाया, ''क्या गाय के नाम पर हमें किसी इंसान को मारने का हक मिल जाता है? क्या ये गो-भक्ति है? क्या ये गोरक्षा है? ये गांधीजी, विनोबाजी का रास्ता नहीं हो सकता. अहिंसा हम लोगों का जीवन धर्म रहा है. हम कैसे आपा खो रहे हैं? गाय के नाम पर इंसान को मार दें?'' "गाय के नाम पर इंसान को मार दें?'' प्रधानमंत्री मोदी ने सवाल तो बड़ा उठाया था, लेकिन उसी दिन रांची में बीच सड़क पर एक शख्स को गाड़ी में बीफ ले जाने के इल्जाम में पीट-पीटकर मार डाला गया. दिलचस्प बात ये रही कि उस मामले में पुलिस के शक की सुई भी घूमती हुई रुकी भी तो बीजेपी के ही एक नेता पर.
जिस गुजरात की धरती से प्रधानमंत्री ने ये बातें कही वहां तो पहले से ही गोहत्या कानून मौजूद था, अब उसे और सख्त बना दिया गया है. गुजरात देश का पहला ऐसा राज्य है जहां गोहत्या पर उम्रकैद की सजा दी जाएगी. गुजरात एनिमल प्रिजर्वेशन अमेंडमेंट बिल के पास होने के साथ ही गोहत्या को गैर जमानती अपराध की श्रेणी में भी डाल दिया गया है. उसके मुताबिक, गाय और गोवंश की हत्या करने वाले को उम्र कैद की सजा होगी और किसी भी हाल में ये 10 साल से कम नहीं होगी. पहले इसके लिए सात साल की जेल और 50 हजार रुपये जुर्माना हुआ करता था.
BMW केस का हाल देखिये. उत्सव भसीन को दो साल की सजा मिली भी तो फौरन जमानत भी मिल गयी ताकि वो सजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सके. तीन साल से कम की सजा वाले मामलों में जमानत की ऐसी ही व्यवस्था है.
एक वाकया छत्तीसगढ़ का भी जान लीजिए. पत्रकारों ने जब मुख्यमंत्री रमन सिंह से गोहत्या कानून बनाने को लेकर सवाल किया तो, उल्टे उन्होंने ही सवाल दाग दिया, 'आपने राज्य में कोई मामला सुना क्या?' इसके साथ ही रमन सिंह ने ये भी बता दिया कि गायों की हत्या करने वालों को फांसी पर लटका देंगे.
गो-भक्ति और देशभक्ति का घालमेल
BMW केस में जज ने देश में सड़क हादसों को लेकर गंभीर चिंता जतायी है - और उसी प्रसंग में प्रधानमंत्री के 'मन की बात' का भी जिक्र किया है. इससे मालूम होता है कि गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी और रैश ड्राइविंग तकरीबन बराबरी पर ही खड़े हैं. वैसे ये पूरा पचड़ा मौजूदा माहौल के चलते है जिसमें गोभक्ति और देशभक्ति में घालमेल कर दिया गया है - नतीजा ये हो रहा है कि इस चक्रव्यूह में इंसानियत फंस कर दम तोड़ दे रही है.
बीबीसी पर राजेश जोशी ने अपने ब्लॉग में देशभक्ति के इस नये नरेटिव पर बड़ी ही सटीक टिप्पणी की है - 'ऐसी मौतें देशभक्ति के खाते में दर्ज नहीं होतीं'. इसमें जोशी ने दक्षिण दिल्ली के घिटोरनी इलाके की उस घटना का जिक्र किया है जहां सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दम घुटने से चार सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई. जोशी लिखते हैं, "ये चार लोग सीमा पर तैनात सेना के जवान नहीं थे जिनके नाम पर इन दिनों हिंदुस्तान की राजनीति के हर काले को सफ़ेद बताया जा रहा है. या जिनकी मौत पर शोकाकुल प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ट्वीट करते हैं और देशभक्तों की फ़ौज ख़ून का बदला दुश्मनों के ख़ून से लेने के लिए फ़ेसबुक पर जुट जाती है."
हाल ही में कोलकाता की आर्टिस्ट सुजात्रो घोष ने गाय के मास्क वाले फोटो प्रोजेक्ट के जरिये वस्तुस्थिति को पेश करने की कोशिश की थी. इस सीरीज में घोष ने कई फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर किया था.
उम्मीद की जानी चाहिये साकेत कोर्ट के ध्यान दिलाने पर प्रधानमंत्री मोदी की सरकार जरूरी उपाय पर गौर करेगी. इस बात के भी उपाय करेगी कि आगे से कोई और अखलाक, पहलू खान या जुनैद किसी खूनी भीड़ के शिकार न हों. सच में गोहत्या पर उम्रकैद और इंसान को मारने के बाद सिर्फ दो साल में बच निकलने की गुंडाइश - ये तो बहुत नाइंसाफी है.
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