अरविंद केजरीवाल चुनावों में झन्नाटेदार जीत के लिए कुख्यात हैं. उनका स्टाइल एकतरफा जीतना होता है. दिल्ली के तीन और पंजाब का हालिया विधानसभा चुनाव उदाहरण हैं. पर, एमसीडी में इस दफे वैसी विजय उन्हें नहीं मिली, जिसकी उम्मीद लगाए बैठे थे. कुछ ना कुछ कसक रह गई. चुनावी कैंपेन में टीवी चैनलों को लिख-लिखकर दे रहे हैं कि 230 सीटें आएंगी और दिल्ली को भारतीय जनता पार्टी से मुक्त कर देंगे, ठीक वैसे ही जैसा 2013 में कांग्रेस का किया था. पर, कहीं ना कहीं चूक गए, भाजपा हारी जरूरी है, लेकिन जीतने की उनकी संभावनाओं को बीच में ही छोड़ दिया. आप पार्टी के वोट प्रतिशत में भी जबरदस्त गिरावट आई है. आम आदमी पार्टी का आंकलन 250 में 230 सीटों पर विजय पताका फहराने का था, लेकिन सिमट सस्ते में गए. गढ़ और अपनी राजनीतिक स्थली दिल्ली में ऐसा होना, निश्चित रूप केजरीवाल के लिए खतरे की घंटी है. जीत के बावजूद भी कुछ समीकरण ऐसे बिगड़े हैं जिनपर विमर्श करने उन्हें जरूरत महसूस करवा दी है मौजूदा चुनाव परिणाम ने.
उनके सबसे वफादार और पार्टी के कद्दावर नेता व सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अपने क्षेत्र में अच्छा नहीं कर पाए, प्रदर्शन उम्मीद से कहीं बेकार रहा. वहीं, हेल्थ मिनिस्टर सत्येंद्र जैन की विधानसभा भी धूल चाट गई, सारे के सारे पार्षद हार गए, इसके अलावा अन्य प्रभावशाली नेताओं के क्षेत्रों में भी भाजपा ने सेंधमारी की. हालांकि, अंत में जो जीता वही सिकंदर कहलाया जाता है.
कम अंतर से ही जीते, लेकिन खुशियों को उसी तरह मनाया जैसे विधानसभा में एकतरफा जीतकर मनाई थी. केजरीवाल इस जीत में भी अपनी हार देखने लगे हैं....
अरविंद केजरीवाल चुनावों में झन्नाटेदार जीत के लिए कुख्यात हैं. उनका स्टाइल एकतरफा जीतना होता है. दिल्ली के तीन और पंजाब का हालिया विधानसभा चुनाव उदाहरण हैं. पर, एमसीडी में इस दफे वैसी विजय उन्हें नहीं मिली, जिसकी उम्मीद लगाए बैठे थे. कुछ ना कुछ कसक रह गई. चुनावी कैंपेन में टीवी चैनलों को लिख-लिखकर दे रहे हैं कि 230 सीटें आएंगी और दिल्ली को भारतीय जनता पार्टी से मुक्त कर देंगे, ठीक वैसे ही जैसा 2013 में कांग्रेस का किया था. पर, कहीं ना कहीं चूक गए, भाजपा हारी जरूरी है, लेकिन जीतने की उनकी संभावनाओं को बीच में ही छोड़ दिया. आप पार्टी के वोट प्रतिशत में भी जबरदस्त गिरावट आई है. आम आदमी पार्टी का आंकलन 250 में 230 सीटों पर विजय पताका फहराने का था, लेकिन सिमट सस्ते में गए. गढ़ और अपनी राजनीतिक स्थली दिल्ली में ऐसा होना, निश्चित रूप केजरीवाल के लिए खतरे की घंटी है. जीत के बावजूद भी कुछ समीकरण ऐसे बिगड़े हैं जिनपर विमर्श करने उन्हें जरूरत महसूस करवा दी है मौजूदा चुनाव परिणाम ने.
उनके सबसे वफादार और पार्टी के कद्दावर नेता व सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अपने क्षेत्र में अच्छा नहीं कर पाए, प्रदर्शन उम्मीद से कहीं बेकार रहा. वहीं, हेल्थ मिनिस्टर सत्येंद्र जैन की विधानसभा भी धूल चाट गई, सारे के सारे पार्षद हार गए, इसके अलावा अन्य प्रभावशाली नेताओं के क्षेत्रों में भी भाजपा ने सेंधमारी की. हालांकि, अंत में जो जीता वही सिकंदर कहलाया जाता है.
कम अंतर से ही जीते, लेकिन खुशियों को उसी तरह मनाया जैसे विधानसभा में एकतरफा जीतकर मनाई थी. केजरीवाल इस जीत में भी अपनी हार देखने लगे हैं. परिणामों के बाद पार्टी कार्यालय में जब अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे, तो उनकी बॉडी लैंग्वेज में उतना करारापन और उत्साह नहीं था जो पिछली जीतों में देखा जाता था. उन्हें पता भाजपा उनकी घेराबंदी अब अच्छे से करेगी. उनके पास भी थोक के भाव में पार्षद हैं.
बहरहाल, केजरीवाल ने एमसीडी का चुनाव बेशक जीता है. पर, धड़कने उनकी तेज हैं. धड़कने इसलिए तेज हैं, उन्होंने दिल्ली की जनता से ऐसे वायदे कर डाले हैं जिन्हें वो शायद पूरा कर पाएं, दिल्ली में तीन कूड़ों के पहाड़ हैं जिसपर पर उन्होंने मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा है जिन्हें आधुनिक तरीकों से हटाने का वायदा किया है. उनको पता है अगर वादे पूरे नहीं हुए, तो यहीं से जनता में उनकी लोकप्रियता कम होनी शुरू हो जाएगी.
हालांकि, चुनावी पंड़ित अभी से कहने लगे हैं कि दिल्ली वालों ने केजरीवाल को एमसीडी में जिताकर अच्छे से अपने जाल में फंसाया है. अब काम नहीं करने का बहाना वो नहीं कर पाएंगे, अब उनके पास डबल इंजन की सरकार है, जो मन में आए करें,. राजधानी की अपनी कुछ बुनियादी समस्याएं हैं. कहने को तो देश की दिल्ली है, लेकिन जगहों-जगहों पर गंदगी का अंबार लगा है.
कर्मचारियों की कई-कई महीनों की सैलरी पेंडिंग है जिसको लेकर हड़तालें समय-समय पर होती हैं. वहीं, लाखों की संख्या में कच्चे कर्मचारियों को पक्का करना, लोकल टैक्सों में सहूलियतें देना, अवैध भवन निर्माण में होनी वाली अधिकारियों और नेताओं की धन वसूली को रोकने जैसे मुद्दों को सुलझाने की चुनौती उनके समझ होगी. दूसरी, सबसे अहम बात ये है, सामने विपक्ष भी लोहे से जैसा मजबूत है इस दफे.
खुलकर कोई निर्णय नहीं ले पाएंगे, क्योंकि निगम के सदन में विपक्ष के तौर 104 पार्षद भाजपा के होंगे, क्या उनका दबाव झेल पाएंगे. विधानसभा में तो तकरीबन उन्हीं के ही विधायक हैं, 70 में 63 एमएलए केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ के हैं. दरअसल, केजरीवाल अच्छे से जानते हैं कि अगर बहुमत के आंकड़े से जीत थोड़ी बहुत ही आगे रही, तो भाजपा देर-सबेर कभी भी अपने स्पेशल जोड़तोड़ वाले फार्मूले का इस्तेमाल करके उन्हें पटखनी दे देगी.
संकेत भाजपा ने दे ही दिए हैं कि मेयर तो उन्हीं का होगा, आज नहीं तो कल? भाजपा के इस बयान के मायने बहुत गहरे हैं जिसके मायने लोग अभी से निकलने शुरू कर दिए हैं. एमसीडी में मेयर बनाने के लिए 126 पार्षद चाहिए, केजरीवाल की पार्टी से 134 चुने गए हैं, यानी मात्र आठ ही ज्यादा हैं. केजरीवाल के जीते पार्षदों में कुछ ऐसे भी पार्षद हैं जो भाजपा छोड़कर उनके टिकट पर लड़े थे, उन्हें घर वापसी कराने में शायद ही चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को देर लगे.
इसके अलावा तीन निर्दलीय पार्षद भी जीते हैं, जिनकी संभावनाएं सबसे ज्यादा है कि वो लालच में आकर भाजपा का दामन थाम सकते हैं. इसके अलावा गोवा जैसा खेल भाजपा दिल्ली में एमसीडी के भीतर भी खेल सकती है. वहां कांग्रेस के जीते विधायकों को भाजपा ने अपने साथ ले लिया. एमसीडी में 9 कांग्रेस के पार्षद चुने गए हैं. कुलमिलाकर संभावनाएं ऐसी जगने लगी हैं कि भाजपा के अपने 104, निर्दलीय तीन और दो-चार कांग्रेसी पार्षद तोड़कर बहुमत के करीब पहुंचकर आम आदमी पार्टी के पार्षदों पर निशाना साधना शुरू कर देगी.
आम आदमी पार्टी ने ‘अच्छे होंगे पांच साल, एमसीडी में भी केजरीवाल’ नारे के साथ चुनाव लड़कर दिल्ली नगर निगम पर कब्जा किया है. उन्हें 250 में 134 सीटें मिली, भाजपा को पंद्रह सालों बाद सत्ता से बेदखल किया है. दरअसल, यहीं से कुछ सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं कि क्या केजरीवाल को भाजपा ने वॉक ओवर देकर फंसा तो नहीं दिया है. उनकी कोई बात ना उपराज्यपाल मानेंगे और ना केंद्र सरकार कोई तवज्जों देगी.
फिर दिल्लवासियों से किया वादा वो कैसे पूरा कर पाएंगे, उसके बाद तो भाजपा को अच्छा मुद्दा मिल जाएगा केजरीवाल को गलत साबित करने के लिए. इस जीत के साथ ही केजरीवाल का दिल्ली के एलजी और केंद्र सरकार के साथ तनातनी बढ़नी निश्चित हैं. लेकिन इस लड़ाई में नुकसान सिर्फ और सिर्फ दिल्ली की जनता का ही होगा. दिल्ली वाले भी अब आगामी किचकिच सुनने के लिए तैयार हो जाएं. क्योंकि दिल्ली एक यूटी राज्य है जिसकी तकरीबन कमान एलजी और केंद्र सरकार के अधीन होती है. आगे देखने वाली बात यही होगी, क्या आम आदमी पार्टी अपने फ्री वाले फार्मूले के दम पर आगे भी सफल होगी.
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