यूपी विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) सूबे में कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई थी. 100 सीटों पर चुनाव लड़ी एआईएमआईएम को करीब साढ़े चार लाख वोट ही मिले थे. आसान शब्दों में कहा जाए तो ओवैसी की पार्टी को हर सीट पर करीब 4500 वोट ही मिले. लेकिन, असदुद्दीन ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में अपनी संभावनाओं पर विराम नहीं लगाया है. दरअसल, बीते कुछ दिनों से सियासी गलियारों में चर्चा है कि असदुद्दीन ओवैसी आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव लड़ सकते हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनाव के जरिये उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी की राजनीति को विस्तार दे सकते हैं. यूपी विधानसभा चुनाव में कोई कमाल नहीं कर सके ओवैसी के लिए निश्चित रूप से ये एक बेहतरीन मौका कहा जा सकता है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या असदुद्दीन ओवैसी आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव लड़ेंगे?
आजमगढ़ पर क्यों दिया जा रहा है जोर?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों आजम खान के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज होने के खबरें काफी चर्चा में हैं. आजम खान के गुस्से को उनके समर्थक समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े वोटबैंक मुस्लिम समुदाय की अखिलेश यादव से बढ़ती दूरी के तौर पर दर्शा रहे हैं. वहीं, आजम खान की इस नाराजगी को बल इस बात से भी मिला कि उन्होंने जेल में मिलने आए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव से मुलाकात की. इतना ही नहीं, आजम खान ने आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी और कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम से भी मुलाकात की. लेकिन, समाजवादी पार्टी के विधायक रविदास मेहरोत्रा और अन्य सपा नेताओं से मिलने से इनकार कर दिया. देखा जाए, तो आजम खान ने अखिलेश यादव को अपनी नाराजगी का साफ इशारा कर दिया है.
यूपी विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) सूबे में कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई थी. 100 सीटों पर चुनाव लड़ी एआईएमआईएम को करीब साढ़े चार लाख वोट ही मिले थे. आसान शब्दों में कहा जाए तो ओवैसी की पार्टी को हर सीट पर करीब 4500 वोट ही मिले. लेकिन, असदुद्दीन ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में अपनी संभावनाओं पर विराम नहीं लगाया है. दरअसल, बीते कुछ दिनों से सियासी गलियारों में चर्चा है कि असदुद्दीन ओवैसी आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव लड़ सकते हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनाव के जरिये उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी की राजनीति को विस्तार दे सकते हैं. यूपी विधानसभा चुनाव में कोई कमाल नहीं कर सके ओवैसी के लिए निश्चित रूप से ये एक बेहतरीन मौका कहा जा सकता है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या असदुद्दीन ओवैसी आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव लड़ेंगे?
आजमगढ़ पर क्यों दिया जा रहा है जोर?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों आजम खान के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज होने के खबरें काफी चर्चा में हैं. आजम खान के गुस्से को उनके समर्थक समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े वोटबैंक मुस्लिम समुदाय की अखिलेश यादव से बढ़ती दूरी के तौर पर दर्शा रहे हैं. वहीं, आजम खान की इस नाराजगी को बल इस बात से भी मिला कि उन्होंने जेल में मिलने आए प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव से मुलाकात की. इतना ही नहीं, आजम खान ने आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी और कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम से भी मुलाकात की. लेकिन, समाजवादी पार्टी के विधायक रविदास मेहरोत्रा और अन्य सपा नेताओं से मिलने से इनकार कर दिया. देखा जाए, तो आजम खान ने अखिलेश यादव को अपनी नाराजगी का साफ इशारा कर दिया है.
वहीं, अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने पहले से ही 'टीपू' के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात से लेकर ट्विटर पर भगवा दल के जैसे ही विचार शेयर कर शिवपाल यादव ने संकेतों की झड़ी लगा दी है. खैर, इन सबसे इतर यहां सबसे बड़ा चौंकाने वाला तथ्य ये है कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले शिवपाल यादव उसी भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ जुड़े थे. जिसमें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम शामिल थी. कयास लगाए जा रहे हैं कि शिवपाल यादव और आजम खान ने मिलकर असदुद्दीन ओवैसी को आजमगढ़ लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव लड़ने के लिए मनाने की कोशिशें करना शुरू कर दिया है. अगर ऐसा हो जाता है, तो उत्तर प्रदेश में मुस्लिम सियासत को एक नया चेहरा मिल जाएगा.
अखिलेश के लिए आजमगढ़ में क्यों पैदा हो गई मुश्किल?
अखिलेश यादव के विधायक बनने के बाद खाली हो चुकी आजमगढ़ लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के लिए नाक का सवाल है. लेकिन, हाल ही में हुए एमएलसी चुनाव में मिली करारी हार के बावजूद अखिलेश यादव सीख लेते नजर नहीं आते हैं. आजमगढ़ की 10 विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा होने के बावजूद इस एमएलसी सीट पर पार्टी के उम्मीदवार का न जीतना किसी झटके से कम नही है. और, समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं ने इस हार का दोष अखिलेश यादव पर ही थोप रहे हैं. दरअसल, भाजपा ने पार्टी से बगावत कर अपने बेटे को एमएलसी का चुनाव लड़ाने वाले एमएलसी यशवंत सिंह को बर्खास्त कर दिया था. लेकिन, सपा विधायक रमाकांत यादव ने अपने बेटे और भाजपा प्रत्याशी अरुणकांत यादव का खुलकर समर्थन किया, तो अखिलेश यादव ने कोई कार्रवाई नहीं की.
माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के इस व्यवहार से स्थानीय नेताओं में व्यापक रोष उपजा है. इतना ही नहीं, आजमगढ़ में अब खुलकर गुटबाजी भी सामने आने लगी है. समाजवादी पार्टी के कई नेता अब इस सीट से सांसद बनने के ख्वाब देख रहे हैं. बहुत हद तक संभव है कि नेताओं की इस गुटबाजी का असर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों पर भी दिखाई पड़े. क्योंकि, भितरघात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. वहीं, आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती भी दलित-मुस्लिम गठजोड़ को ताकत को आजमाने का मौका देख रही हैं. अगर ऐसा होता है, तो अखिलेश यादव के लिए आजमगढ़ का अपना किला बचाना मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि, इस स्थिति में वोटों का बंटवारा सीधे तौर पर भाजपा को ही लाभ पहुंचाएगा.
वहीं, इस सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की संभावनाओं पर नजर डाली जाए, तो एक मुस्लिम समर्थक नेता की छवि के चलते मुसलमानों का वोट हासिल करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी. वहीं, शिवपाल यादव और आजम खान का साथ मिल जाने पर यादव वोटबैंक के भी ओवैसी के साथ जुड़ने की संभावना बन जाती है. प्रमोद कृष्णम से मुलाकात कहीं न कहीं कांग्रेस की ओर से भी इस अंदरखाने पकाई जा रही खिचड़ी में छौंक की तरह नजर आ रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो असदुद्दीन ओवैसी के लिए आजमगढ़ में संभावनाओं की कमी नही है. लेकिन, इसके लिए उन्हें अपने गढ़ हैदराबाद को छोड़ना होगा. अगर ओवैसी ये फैसला कर लेते हैं, तो उत्तर प्रदेश में केवल मुस्लिम सियासत ही नहीं, पूरी राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
आजम की नाराजगी में क्या संकेत है?
शिवपाल यादव, जयंत चौधरी, प्रमोद कृष्णम से मुलाकात कर आजम खान ने अखिलेश यादव के सामने नाराजगी जाहिर कर दी है. लेकिन, चौंकाने वाली बात ये भी है कि शफीकुर रहमान बर्क जैसे समाजवादी पार्टी के सांसद भी अखिलेश यादव पर मुस्लिमों के लिए आवाज नहीं उठाने का आरोप जड़ चुके हैं. आजम खान की नाराजगी कहीं न कहीं इशारा कर रही है कि वो शिवपाल यादव के साथ भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल हो सकते हैं. और, इसमें उनके साथ कांग्रेस भी शामिल रहेगी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अखिलेश की गठबंधन वाली सियासत को आजम खान ने असदुद्दीन ओवैसी के सहारे चुनौती देने का मन बना लिया है. हालांकि, देखना दिलचस्प होगा कि आजम खान और शिवपाल सिंह के इस प्लान पर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की मुहर लगती है या नहीं.
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