2019 के आम चुनाव को लेकर तमाम राजनैतिक दल अपनी बिसात बिछाने में जुटे हुए हैं. एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी अपने रूठे साथियों को मना उन्हें अपने साथ लाने में जुटी है. तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस तमाम विपक्षी पार्टियों को एक साथ लाने की कोशिश में लगी है, इसकी बानगी अभी पिछले ही हफ्ते आयोजित कांग्रेस की इफ्तार पार्टी में भी दिखी जहां विभिन्न विपक्षी पार्टियों के प्रतिनिधियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. हालांकि इन दोनों पार्टियों के बिना तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट भी गाहे बेगाहे सुनाई दे जाती है. हालांकि वर्तमान राजनैतिक घटनाक्रमों पर नजर दौड़ाएं तो लगता है कि 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को ठेंगा दिखा बाकी विपक्षी दल एक महागठबंधन बना सकते हैं, और अगर वाकई ऐसा होता है तो यह स्थिति कांग्रेस के लिए काफी कठिन होने वाली है.
अब यदि पिछले कुछ दिनों की घटनाओं पर गौर करें तो, दिल्ली के क्रांतिकारी मुख्यमंत्री ने एक बार फिर से क्रांतिकारी रुख अख्तियार करते हुए उपराज्यपाल के यहां सोफे पर ही धरना दे बैठे. हालांकि कांग्रेस को तो इसमें नौटंकी नजर आयी मगर तीसरे मोर्चे के संभावित दलों के नेताओं को यह अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का बेहतर मौका दिखा. तभी तो चार राज्यों के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायुडु, पिनाराई विजयन और एच डी कुमारस्वामी ना केवल खुलकर सामने आए बल्कि उनसे मिलने उनके आवास पर भी पहुंच गए. कह सकते है कि कांग्रेस इस मौके को अपने राजनैतिक हित के लिहाज से भुना नहीं सकी.
इसके अलावा कांग्रेस के लिए असली मुसीबत की खबर उत्तर प्रदेश से आ रही है, खबरों की मानें तो समाजवादी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को लेकर ज्यादा इच्छुक नहीं है. इससे पहले...
2019 के आम चुनाव को लेकर तमाम राजनैतिक दल अपनी बिसात बिछाने में जुटे हुए हैं. एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी अपने रूठे साथियों को मना उन्हें अपने साथ लाने में जुटी है. तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस तमाम विपक्षी पार्टियों को एक साथ लाने की कोशिश में लगी है, इसकी बानगी अभी पिछले ही हफ्ते आयोजित कांग्रेस की इफ्तार पार्टी में भी दिखी जहां विभिन्न विपक्षी पार्टियों के प्रतिनिधियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. हालांकि इन दोनों पार्टियों के बिना तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट भी गाहे बेगाहे सुनाई दे जाती है. हालांकि वर्तमान राजनैतिक घटनाक्रमों पर नजर दौड़ाएं तो लगता है कि 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को ठेंगा दिखा बाकी विपक्षी दल एक महागठबंधन बना सकते हैं, और अगर वाकई ऐसा होता है तो यह स्थिति कांग्रेस के लिए काफी कठिन होने वाली है.
अब यदि पिछले कुछ दिनों की घटनाओं पर गौर करें तो, दिल्ली के क्रांतिकारी मुख्यमंत्री ने एक बार फिर से क्रांतिकारी रुख अख्तियार करते हुए उपराज्यपाल के यहां सोफे पर ही धरना दे बैठे. हालांकि कांग्रेस को तो इसमें नौटंकी नजर आयी मगर तीसरे मोर्चे के संभावित दलों के नेताओं को यह अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का बेहतर मौका दिखा. तभी तो चार राज्यों के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायुडु, पिनाराई विजयन और एच डी कुमारस्वामी ना केवल खुलकर सामने आए बल्कि उनसे मिलने उनके आवास पर भी पहुंच गए. कह सकते है कि कांग्रेस इस मौके को अपने राजनैतिक हित के लिहाज से भुना नहीं सकी.
इसके अलावा कांग्रेस के लिए असली मुसीबत की खबर उत्तर प्रदेश से आ रही है, खबरों की मानें तो समाजवादी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को लेकर ज्यादा इच्छुक नहीं है. इससे पहले बहुजन समाजवादी पार्टी की ओर से भी ऐसी खबरें आयी थीं कि वो कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति में है, और अभी एक दिन पहले ही बसपा के राज्य नेतृत्व की ओर से भी ऐसा बयान आया है कि बसपा मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में भी अकेले ही लड़ने के मूड में है. मतलब कांग्रेस कोई गठबंधन बनाने से पहले ही अलग थलग दिखाई दे रही है और अगर सपा बसपा का यही रूख रहा तो 80 लोकसभा सीट वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
हालांकि कांग्रेस के रणनीतिकार भी इन सुगबुगाहटों के बीच अपने आप को अलग नहीं रखना चाहते तभी तो कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की. कांग्रेस को ये बात भली भांति पता है कि ममता दीदी तीसरे मोर्चे के दलों को साथ लाने में काफी अहम किरदार में हैं, ऐसे में कांग्रेस उनको अपने पाले में रखने की कोशिश में है. हालांकि इन कोशिशों के अलावा कांग्रेस का भविष्य इन बातों पर भी निर्भर करेगा कि कांग्रेस मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में कैसा प्रदर्शन करती है. अगर कांग्रेस इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर पाती है जैसी कि उम्मीद भी जताई जा रही है, तो निश्चित रूप से यह 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए कई दलों को कांग्रेस के साथ आने में मदद कर सकती है. वहीं इन चुनावों में भी अगर कांग्रेस खराब प्रदर्शन करती तो फिर शायद कांग्रेस 2019 के रण में अकेले ही भारतीय जनता पार्टी और तीसरे मोर्चे का सामना करना पड़ सकता है.
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