अगले साल के शुरुआत में 2019 के लोकसभा के चुनावों तारीखों की घोषणा होने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे देश में लगभग 50 रैलियों को सम्बोधित करेंगे. इन रैलियों के द्वारा मोदी करीब 150 संसदीय क्षेत्रों का दौरा करेंगे. इसके अलावा, अमित शाह और राजनाथ सिंह भी 50 रैलियां करेंगे. ऐसा खबरिया चैनलों में सूत्रों के हवाले से चलाया जा रहा है. और ये रैलियां इस साल के अंत में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों की रैलियों के अलावा होंगी. यानी ये 50 रैलियां शुद्ध रूप से लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र की जाएंगी. मतलब साफ़ है - ये रैलियां 2019 की सियासी जमीन तैयार करने के लिए हैं और साथ ही साथ अपने सहयोगी दलों को इससे साधने का भी प्रयास होगा.
लेकिन अहम सवाल ये है कि क्या भाजपा मोदी की इन रैलियों के सहारे 2014 के चुनाव नतीजों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में दोहरा पाएगी? क्या 2014 की तरह नरेंद्र मोदी का जादू जनता में अब भी बरकरार है? क्या मोदी अपने सहयोगी दलों को अपने साथ रख पाने में कामयाब हो पाएंगे? क्या इन रैलियों के द्वारा वो किसानों में उपजे असंतोष को शांत कर उनके विश्वास को वापस जीत पाएंगे?
किसान रैलियों पर जोर...
हाल के दिनों में किसानों में उपजे भाजपा के प्रति असंतोष को खत्म करने के लिए किसान रैलियों पर मोदी का खास जोर होगा. और इसकी शुरुआत पंजाब के मुक्तसर जिले के मलोट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसान कल्याण रैली को संबोधित करके कर चुके हैं. इसके बाद मोदी उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर, फिर बंगाल के मिदनापुर, कर्नाटक और ओडिशा में किसान रैलियों को भी संबोधित करेंगे.
सहयोगी दलों को साधने की कोशिश...
इन रैलियों के द्वारा भाजपा अपने सहयोगियों को भी साधने का प्रयास करेगी. मसलन पंजाब की रैली के द्वारा अकाली दल को मंच पर...
अगले साल के शुरुआत में 2019 के लोकसभा के चुनावों तारीखों की घोषणा होने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे देश में लगभग 50 रैलियों को सम्बोधित करेंगे. इन रैलियों के द्वारा मोदी करीब 150 संसदीय क्षेत्रों का दौरा करेंगे. इसके अलावा, अमित शाह और राजनाथ सिंह भी 50 रैलियां करेंगे. ऐसा खबरिया चैनलों में सूत्रों के हवाले से चलाया जा रहा है. और ये रैलियां इस साल के अंत में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों की रैलियों के अलावा होंगी. यानी ये 50 रैलियां शुद्ध रूप से लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र की जाएंगी. मतलब साफ़ है - ये रैलियां 2019 की सियासी जमीन तैयार करने के लिए हैं और साथ ही साथ अपने सहयोगी दलों को इससे साधने का भी प्रयास होगा.
लेकिन अहम सवाल ये है कि क्या भाजपा मोदी की इन रैलियों के सहारे 2014 के चुनाव नतीजों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में दोहरा पाएगी? क्या 2014 की तरह नरेंद्र मोदी का जादू जनता में अब भी बरकरार है? क्या मोदी अपने सहयोगी दलों को अपने साथ रख पाने में कामयाब हो पाएंगे? क्या इन रैलियों के द्वारा वो किसानों में उपजे असंतोष को शांत कर उनके विश्वास को वापस जीत पाएंगे?
किसान रैलियों पर जोर...
हाल के दिनों में किसानों में उपजे भाजपा के प्रति असंतोष को खत्म करने के लिए किसान रैलियों पर मोदी का खास जोर होगा. और इसकी शुरुआत पंजाब के मुक्तसर जिले के मलोट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसान कल्याण रैली को संबोधित करके कर चुके हैं. इसके बाद मोदी उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर, फिर बंगाल के मिदनापुर, कर्नाटक और ओडिशा में किसान रैलियों को भी संबोधित करेंगे.
सहयोगी दलों को साधने की कोशिश...
इन रैलियों के द्वारा भाजपा अपने सहयोगियों को भी साधने का प्रयास करेगी. मसलन पंजाब की रैली के द्वारा अकाली दल को मंच पर लाया गया. इसी तरह उत्तर प्रदेश में मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में होंगे और मिर्जापुर में एक रैली को संबोधित करेंगे.
मोदी 14 जुलाई को आज़मगढ़ में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की आधारशिला भी रखेंगे. इस प्रकार अपना दल तथा सुहैलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे सहयोगियों की शिकायतें भी दूर करेंगे. अभी हाल में ही सुहैलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर भाजपा के प्रति अपनी नाराज़गी खुले तौर पर व्यक्त कर चुके हैं.
2014 में रैलियों के द्वारा जीत हासिल की थी..
पिछले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने 437 बड़ी रैलियों को संबोधित किया था तथा 25 राज्यों में तीन लाख किलोमीटर से अधिक की यात्रा की थी. इसका नतीजा भाजपा की झोली में 282 सीटों का आना था और एनडीए को कुल 336 सीटें मिलना था.
2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की व्यापक रैलियों की बदौलत भाजपा बम्पर जीत के साथ केंद्र में सरकार बनाई थी. लेकिन क्या इस बार भी नरेंद्र मोदी अपने इस करिश्मे को बरकरार रख पाएंगे? इसका जवाब मिलने में अभी काफी वक़्त है.
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