मैं व्यक्तिगत रूप से मासिक धर्म में धार्मिक अनुष्ठान में सम्मिलित नहीं होने की पक्षधर हूं क्योंकि धार्मिक अनुष्ठान में शुद्धता का अपना महत्व है. हो सकता है कुछ महिला पुरुषों को मेरी बात आदिम युग की लगे लेकिन मैं इसकी परवाह नहीं करती. मासिक धर्म आवश्यक और प्राकृतिक क्रिया है जिसका होना जीवनचक्र के लिए आवश्यक है. मासिक धर्म में स्त्री रोगी या अछूत नहीं होती इस बात पर भी मैं कायम हूं. मासिक धर्म में महिलाओं और लड़कियों के साथ छुआछूत का व्यवहार भी अमानवीय है. इन सबके बावजूद मैं धार्मिक स्थलों पर मासिक धर्म की अवस्था में महिलाओं के जाने का विरोध करती हूं. इसके पीछे मेरे पास ठोस कारण है और वह कारण है सफाई.
बड़े दुख की बात है कि महिलाएं जो कि अपने घर को चमका कर रखती हैं जो फर्श पर एक तिनका देख अपनी कामवाली या बच्चों पर बिगड़ जाती हैं. कभी कभी रौद्र रूप धारण कर ताडंव करने लगती हैं वे महिलाएं सार्वजनिक स्थल तो छोड़िए धार्मिक स्थलों पर भी गंदगी का ढेर लगा आती हैं. सार्वजनिक शौचालय में महिला शौचालय की स्थिति देखें तो आप वहाँ पर सेनेटरी पैड्स इधर उधर पड़े पाओगे या फर्श पर मूत्र. कमोड़ तक में सेनेटरी पैड्स डालकर चोक कर देती हैं.
यही हाल मैंने वैष्णो देवी यात्रा के दौरान वहां मौजूद सार्वजनिक शौचालय व स्नानगृह के देखे. बाथरूम में फर्श और वाशबेसिन में सेनेटरी पैड्स और उनके रैपर. फर्श पर गंदगी और फ्लश भी नहीं. जो लोग इन जगहों की सफाई करते हैं वह भी इंसान हैं. तुम महिलाओं को इतनी शर्म भी नहीं आती. यह महिलाएं हर वर्ग की हैं.पढी लिखी वेल एजुकेटेड.फैशनपरस्त, सीधी सादी, घरेलू, नौकरीपेशा. हर तरह की महिलाएं सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करती हैं.
यह महिलाओं...
मैं व्यक्तिगत रूप से मासिक धर्म में धार्मिक अनुष्ठान में सम्मिलित नहीं होने की पक्षधर हूं क्योंकि धार्मिक अनुष्ठान में शुद्धता का अपना महत्व है. हो सकता है कुछ महिला पुरुषों को मेरी बात आदिम युग की लगे लेकिन मैं इसकी परवाह नहीं करती. मासिक धर्म आवश्यक और प्राकृतिक क्रिया है जिसका होना जीवनचक्र के लिए आवश्यक है. मासिक धर्म में स्त्री रोगी या अछूत नहीं होती इस बात पर भी मैं कायम हूं. मासिक धर्म में महिलाओं और लड़कियों के साथ छुआछूत का व्यवहार भी अमानवीय है. इन सबके बावजूद मैं धार्मिक स्थलों पर मासिक धर्म की अवस्था में महिलाओं के जाने का विरोध करती हूं. इसके पीछे मेरे पास ठोस कारण है और वह कारण है सफाई.
बड़े दुख की बात है कि महिलाएं जो कि अपने घर को चमका कर रखती हैं जो फर्श पर एक तिनका देख अपनी कामवाली या बच्चों पर बिगड़ जाती हैं. कभी कभी रौद्र रूप धारण कर ताडंव करने लगती हैं वे महिलाएं सार्वजनिक स्थल तो छोड़िए धार्मिक स्थलों पर भी गंदगी का ढेर लगा आती हैं. सार्वजनिक शौचालय में महिला शौचालय की स्थिति देखें तो आप वहाँ पर सेनेटरी पैड्स इधर उधर पड़े पाओगे या फर्श पर मूत्र. कमोड़ तक में सेनेटरी पैड्स डालकर चोक कर देती हैं.
यही हाल मैंने वैष्णो देवी यात्रा के दौरान वहां मौजूद सार्वजनिक शौचालय व स्नानगृह के देखे. बाथरूम में फर्श और वाशबेसिन में सेनेटरी पैड्स और उनके रैपर. फर्श पर गंदगी और फ्लश भी नहीं. जो लोग इन जगहों की सफाई करते हैं वह भी इंसान हैं. तुम महिलाओं को इतनी शर्म भी नहीं आती. यह महिलाएं हर वर्ग की हैं.पढी लिखी वेल एजुकेटेड.फैशनपरस्त, सीधी सादी, घरेलू, नौकरीपेशा. हर तरह की महिलाएं सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करती हैं.
यह महिलाओं बड़े श्रद्धा भाव से ईश्वर के दर्शन को निकलती हैं. पुण्य कमाने की इच्छुक यह महिलाओं अपने धार्मिक स्थलों को नरक बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ती. इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इनकी गंदगी से यह पाप लेकर जा रही हैं. यदि किसी महिला को मासिक धर्म की शुरुआत हो चुकी है तो वह क्रांतिकारी बन क्यों धार्मिक स्थलों पर गंदगी छोड़ने आती हैं!
और यदि अचानक आपको इस अवस्था से गुजरना पड़ रहा है तो क्यों नहीं सफाई का ख्याल रखती? शर्म नहीं तो दूसरों के हाइजीन का ख्याल ही रख लो. यही वजह रही होगी जो महिलाओं इस अवस्था में धार्मिक स्थलों पर यात्रा के लिए मना किया जाता होगा.इतनी सुविधा मिलने के बाद भी महिलाओं ने गंद ही फैलाना है तो सार्वजनिक शौचालय व स्नानगृहों को बंद ही कर देना चाहिए.
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