3 सितम्बर को नरेंद्र मोदी सरकार अपने मंत्रीमंडल में फेरबदल करने जा रही है. 2014 में सत्ता में आने के बाद से ये तीसरा फेरबदल होगा. इस फेरबदल की खबरों के बीच जो सबसे बड़ा सवाल है वो ये कि क्या अब मोदी सरकार में कोई फुल-टाइम रक्षा मंत्री होगा? और अगर होगा, तो कौन? एक तरफ जहां मीडिया रात-दिन किसकी कुर्सी जाएगी और किसे कुर्सी मिलेगी के अटकलों पर बात करने में व्यस्त है, वहीं दूसरी तरफ इस सवाल की कोई सुध नहीं ले रहा.
कुछ महीने पहले मनोहर पर्रिकर के रक्षा मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से वित्त मंत्री अरूण जेटली को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार मिला हुआ है. बहुत मुमकिन है कि जेटली दोनों पदों पर बने रहें. मेरे इस अनुमान के पीछे कई कारण हैं. और मैं दोहराना चाहता हूं कि ये मेरा अनुमान ही है. क्योंकि मोदी मंडल में प्रधान मंत्री मोदी के अलावा सिर्फ चार लोगों- भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, आरएसएस नेताओं मोहन भागवत और भईयाजी जोशी को ही असलियत का पता होगा.
जेटली को हटाने की कोई जल्दी नहीं है-
संसद के सेंट्रल हॉल में अरुण जेटली ने पत्रकारों से कहा था- 'मैं ज्यादा दिनों तक रक्षा मंत्री का अतिरिक्त प्रभार नहीं संभालूंगा.' देखने वालों ने उनके इस बयान को इस तरह से देखा कि शायद कुछ समय तक उन्हें रक्षा मंत्रालय से नहीं हटाया जाएगा.
दूसरा मोदी के पास बहुत विकल्प नहीं हैं. अभी इस कद और अनुभव के बहुत नेता मोदी के पास नहीं हैं जिनके पास रक्षा मंत्रालय जैसे प्रमुख विभाग को संभालने की जिम्मेदारी दी जा सके. खासकर हाल ही में भारत-चीन के तनाव के बाद तो किसी कद्दावर व्यक्ति को ही ये भार सौंपा जाएगा. हालांकि डोकलाम विवाद कुछ हद तक शांत हुआ है लेकिन खत्म नहीं...
3 सितम्बर को नरेंद्र मोदी सरकार अपने मंत्रीमंडल में फेरबदल करने जा रही है. 2014 में सत्ता में आने के बाद से ये तीसरा फेरबदल होगा. इस फेरबदल की खबरों के बीच जो सबसे बड़ा सवाल है वो ये कि क्या अब मोदी सरकार में कोई फुल-टाइम रक्षा मंत्री होगा? और अगर होगा, तो कौन? एक तरफ जहां मीडिया रात-दिन किसकी कुर्सी जाएगी और किसे कुर्सी मिलेगी के अटकलों पर बात करने में व्यस्त है, वहीं दूसरी तरफ इस सवाल की कोई सुध नहीं ले रहा.
कुछ महीने पहले मनोहर पर्रिकर के रक्षा मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से वित्त मंत्री अरूण जेटली को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार मिला हुआ है. बहुत मुमकिन है कि जेटली दोनों पदों पर बने रहें. मेरे इस अनुमान के पीछे कई कारण हैं. और मैं दोहराना चाहता हूं कि ये मेरा अनुमान ही है. क्योंकि मोदी मंडल में प्रधान मंत्री मोदी के अलावा सिर्फ चार लोगों- भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, आरएसएस नेताओं मोहन भागवत और भईयाजी जोशी को ही असलियत का पता होगा.
जेटली को हटाने की कोई जल्दी नहीं है-
संसद के सेंट्रल हॉल में अरुण जेटली ने पत्रकारों से कहा था- 'मैं ज्यादा दिनों तक रक्षा मंत्री का अतिरिक्त प्रभार नहीं संभालूंगा.' देखने वालों ने उनके इस बयान को इस तरह से देखा कि शायद कुछ समय तक उन्हें रक्षा मंत्रालय से नहीं हटाया जाएगा.
दूसरा मोदी के पास बहुत विकल्प नहीं हैं. अभी इस कद और अनुभव के बहुत नेता मोदी के पास नहीं हैं जिनके पास रक्षा मंत्रालय जैसे प्रमुख विभाग को संभालने की जिम्मेदारी दी जा सके. खासकर हाल ही में भारत-चीन के तनाव के बाद तो किसी कद्दावर व्यक्ति को ही ये भार सौंपा जाएगा. हालांकि डोकलाम विवाद कुछ हद तक शांत हुआ है लेकिन खत्म नहीं हुआ.
बीजेपी के युवा नेताओं की खेप संभावानाओं से भरपूर दिखती है लेकिन इनमें से किसी पर मोदी का इतना विश्वास नहीं है कि वे इस महत्वपूर्ण मंत्रालय की कमान सौंप दें.
तीसरा, डोकलाम विवाद का कोई सौहार्दपूर्ण हल नहीं निकला है. इस वक्त मोदी निश्चित रूप से एक पूर्ण रक्षा मंत्री नियुक्त करने के लिए बहुत दबाव में थे. लेकिन अब मोदी के सिर पर कई तलवारे लटक रही हैं.
चौथी और शायद सबसे महत्वपूर्ण बात. जेटली को प्रधान मंत्री का पूरा भरोसा मिला हुआ है. बिना किसी कारण के प्रधान मंत्री ने उन्हें दूसरी बार रक्षा का अतिरिक्त प्रभार नहीं थमा दिया है. जब मोदी ने मई 2014 में पहली बार जेटली को रक्षा मंत्री का अतिरिक्त प्रभार दिया था और उन्होंने पांच महीने से अधिक समय तक मंत्रालय चलाया था. तब प्रधान मंत्री ने उन्हें सशस्त्र बलों के तेजी से आधुनिकीकरण के लिए एक खाका तैयार करने का काम सौंपा था. साथ ही विदेश से नए हथियारों की खरीद के लिए सुझाव देने को कहा था.
अपनी दूसरी पारी में भी जेटली को ऐसी ही भूमिका थमाई गई है. मोदी सरकार 2 लाख करोड़ रुपये की लागत से रक्षा उपकरण और हथियारों की खरीद की तैयारी में है. और मोदी चाहते हैं कि ये काम उस व्यक्ति द्वारा किया जाए जिसपर अपने पूरे मंत्रिमंडल में वो सबसे अधिक विश्वास करते हैं.
लेकिन फिर भी कोई ये पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि रक्षा मंत्री के पोर्टफोलिओ के साथ वो क्या करेंगे. क्योंकि उनके काम करने के स्टाइल से अबतक तो सभी लोग वाकिफ हो गए हैं.
हो सकता है कि ये फेरबदल मोदी के मौजूदा कार्यकाल का अंतिम ही बदलाव होगा. इसलिए गुजरात, हिमाचल प्रदेश (दोनों ही राज्यों में इस वर्ष के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं) और मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक (यहां अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे) जैसे राज्यों से इसे जोड़ा जाएगा और फायदा उठाने की कोशिश की जाएगी.
स्वाभाविक रूप से भाजपा इन राज्यों से कुछ नए चेहरों को शामिल करना चाहेगी. इसके अलावा राज्यपालों की नियुक्ति का मुद्दा भी है. सरकार सात से आठ नए राज्यपालों की घोषणा कर सकती है, जिनमें से कई वर्तमान मंत्रिमंडल से भी हो सकते हैं.
हालांकि कुछ नाम स्पष्ट है जिन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा और जिन्हें अंदर लाया जाएगा. उदाहरण के लिए, चार जूनियर मंत्रियों- राजीव प्रताप रूडी, संजीव कुमार बल्यान, फाग्गन सिंह कुलस्ते और महेंद्र नाथ पांडे ने पहले ही इस्तीफा दे दिया है. जबकि दो कैबिनेट मंत्री उमा भारती और कलराज मिश्रा ने इस्तीफा देने की पेशकश की है.
संभावित उम्मीदवारों में भाजपा के महासचिव भूपेंद्र यादव, पार्टी के उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रहलाद पटेल, सुरेश अंगदी, सत्यपाल सिंह और प्रहलाद जोशी शामिल हो सकते हैं.
इसके बाद गठबंधन धर्म भी है जिसका मोदी-शाह को ध्यान रखना है. खासकर तब जब भाजपा की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) अपना विस्तार कर रही है. एक तरफ जहां जनता दल (यूनाइटेड) सरकार में शामिल होने जा रही है, जबकि अन्नाद्रमुक पर कोई स्पष्ट राय नहीं है. जेडीयू के आरसीपी सिंह राज्य सभा में संसदीय दल के नेता हैं और संतोष कुमार को मंत्री पद मिल सकता है. अगर अन्नाद्रमुक सरकार में शामिल होने का फैसला करती है तो एक पी वेणुगोपाल और वी मैत्रेयन कैबिनेट में संभावित चेहरे हो सकते हैं.
लेकिन सीटें लिमिटेड हैं. क्योंकि फिलहाल प्रधान मंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 73 है. जबकि अधिकतम संख्या 81 से ज्यादा नहीं हो सकती. लेकिन चार लोग हैं जिनपर दो मंत्रालयों की जिम्मेदारी है- जेटली, हर्षवर्धन, स्मृति ईरानी और नरेंद्र सिंह तोमर.
भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को रेलवे मंत्रालय मिलने की पूरी संभावना है. यह देखना बाकी है कि क्या दोनों मंत्रालयों को चीन की तर्ज पर एक विशाल परिवहन मंत्रालय बना दिया जाएगा. इस बात की अनुशंसा 2014 में प्रधान मंत्री मोदी को नीति आयोग ने भी की थी.
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