विपक्षी दलों के बीच राष्ट्रपति चुनाव (President Election 2022) को लेकर चल रही माथापच्ची फिलहाल खत्म हो गई है. संयुक्त विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए यशवंत सिन्हा का नाम आगे कर दिया गया है. वैसे, यशवंत सिन्हा के तृणमूल कांग्रेस छोड़ने के ट्वीट के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे थे कि विपक्ष की ओर से उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है. वैसे, विपक्षी दलों ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति चुनाव के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार चुना गया है. लेकिन, यशवंत सिन्हा का नाम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर चुने जाने में रोचकता तब आती है. जब शरद पवार, फारूख अब्दुल्ला और गोपालकृष्ण गांधी पहले ही राष्ट्रपति चुनाव की रेस में विपक्ष का धावक बनने से मना कर चुके हों. खैर, विपक्ष की जैसी हालत फिलहाल है, राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार के सामने उसकी संभावनाएं शून्य ही नजर आती हैं. तो, कहना गलत नहीं होगा कि यशवंत सिन्हा चले हुए कारतूस हैं, खुद विपक्ष ने ही साबित कर दिया है.
सियासी करियर खत्म होने का खतरा नहीं
किसी जमाने में भाजपा के कद्दावर नेता रहे यशवंत सिन्हा ने हाशिये पर डाले जाने (लोकसभा चुनाव का टिकट न मिलने) से खफा होकर पार्टी और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. हालांकि, भाजपा की ओर से उनकी परंपरागत सीट हजारीबाग से यशवंत के बेटे जयंत सिन्हा को टिकट दिया गया था. 2014 की पहली मोदी सरकार में जयंत सिन्हा को मंत्री भी बनाया गया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो यशवंत सिन्हा लंबे समय से पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन, उनकी आवाज को पश्चिम बंगाल...
विपक्षी दलों के बीच राष्ट्रपति चुनाव (President Election 2022) को लेकर चल रही माथापच्ची फिलहाल खत्म हो गई है. संयुक्त विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए यशवंत सिन्हा का नाम आगे कर दिया गया है. वैसे, यशवंत सिन्हा के तृणमूल कांग्रेस छोड़ने के ट्वीट के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे थे कि विपक्ष की ओर से उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है. वैसे, विपक्षी दलों ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति चुनाव के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार चुना गया है. लेकिन, यशवंत सिन्हा का नाम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर चुने जाने में रोचकता तब आती है. जब शरद पवार, फारूख अब्दुल्ला और गोपालकृष्ण गांधी पहले ही राष्ट्रपति चुनाव की रेस में विपक्ष का धावक बनने से मना कर चुके हों. खैर, विपक्ष की जैसी हालत फिलहाल है, राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार के सामने उसकी संभावनाएं शून्य ही नजर आती हैं. तो, कहना गलत नहीं होगा कि यशवंत सिन्हा चले हुए कारतूस हैं, खुद विपक्ष ने ही साबित कर दिया है.
सियासी करियर खत्म होने का खतरा नहीं
किसी जमाने में भाजपा के कद्दावर नेता रहे यशवंत सिन्हा ने हाशिये पर डाले जाने (लोकसभा चुनाव का टिकट न मिलने) से खफा होकर पार्टी और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. हालांकि, भाजपा की ओर से उनकी परंपरागत सीट हजारीबाग से यशवंत के बेटे जयंत सिन्हा को टिकट दिया गया था. 2014 की पहली मोदी सरकार में जयंत सिन्हा को मंत्री भी बनाया गया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो यशवंत सिन्हा लंबे समय से पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन, उनकी आवाज को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सुनी. और, उन्हें तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया.
वैसे, यशवंत सिन्हा ने भी 2024 के लिए ममता बनर्जी को संयुक्त विपक्ष का पीएम कैंडिडेट बनवाने की कोशिश की. लेकिन, कामयाब नहीं हो सके. और, हर जगह से नाकामी ही हाथ लगी. खैर, राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से यशवंत सिन्हा कोई खास नुकसान होता नजर नहीं आ रहा है. क्योंकि, उनका सियासी करियर पहले से ही डांवाडोल चल रहा था. तृणमूल कांग्रेस में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिए गए. लेकिन, सांसद तक नहीं बन सके. जबकि, उनके बाद पार्टी में आए शत्रुघ्न सिन्हा को तृणमूल कांग्रेस ने सांसद बना दिया. इस स्थिति में सिन्हा के सियासी करियर के खत्म होने का खतरा तो है ही नहीं.
विपक्ष अभी भी संयुक्त नहीं
कांग्रेस, टीएमसी और समाजवादी पार्टी समेत 13 विपक्षी दलों ने संयुक्त विपक्ष के नाम पर यशवंत सिन्हा का नाम आगे कर दिया है. लेकिन, बड़ी बात ये है कि इस संयुक्त विपक्ष में टीआरएस, बीजेडी, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और वाईएसआरसीपी शामिल नही हैं. इन सियासी दलों ने पहले भी संयुक्त विपक्ष की बैठक से दूरी बना रखी थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो संयुक्त विपक्ष अभी भी अधूरा ही है. और, विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा का नाम केवल खानापूर्ति के लिए ही लिया गया है. क्योंकि, बीजेडी और वाईएसआरसीपी पहले भी कई मौकों पर भाजपा के लिए समर्थन जुटा चुकी हैं. अगर इन दोनों पार्टियों ने भाजपा का साथ दे दिया. तो, राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए का उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत जाएगा.
आखिर में क्या हांसिल होगा सिन्हा को?
भाजपा अपनी चुनावी रणनीतियों को लेकर हमेशा से ही गंभीर रही है. जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तेलंगाना जाकर नगर निकाय चुनावों में पूरी ताकत झोंक देते हैं. तो, राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भाजपा ने क्या रणनीति बनाई होगी? ये विपक्ष के लिए समझना मुश्किल है. हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों में भी भाजपा ने राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक में विपक्षी दलों की सांसें अटका दी थीं. हरियाणा और महाराष्ट्र में तो भाजपा की रणनीति कामयाब भी रही. अब अगर राष्ट्रपति चुनाव की बात की जाए, तो भाजपा के पास एकतरफा जीत के लिए कुछ हजार वोट ही कम हैं. और, शायद पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को इन वोटों का जुगाड़ करने में कोई तकलीफ नहीं होगी.
वैसे, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति चुनाव के लिए उनके नाम की भी अटकलें लगने लगी हैं. लेकिन, भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर सरप्राइज एलिमेंट को बरकरार रखा. क्योंकि, पीएम नरेंद्र मोदी हर बार चौंकाते हुए चर्चा में चल रहे नामों से अलग किसी ऐसे नाम की घोषणा कर देते हैं. जिसके बारे में कयास भी न लगाया जा सके. वैसे, आदिवासी समुदाय से आने वाली महिला उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के उम्मीदवार बन जाने के बाद यशवंत सिन्हा के सामने हार के अलावा शायद कोई रास्ता नहीं बचा है. क्योंकि, ओडिशा से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को बीजेडी का समर्थन मिलने की संभावना बढ़ गई है.
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