बीजेपी को त्रिपुरा के नतीजों से काफी राहत मिली होगी. क्योंकि ये जीत गुजरात की तरह जोश हाई करने वाली तो कतई नहीं है. खास बात ये है कि त्रिपुरा चुनाव को लेकर भी बीजेपी पहले काफी परेशान थी, यही वजह रही कि कर्नाटक की तरफ त्रिपुरा में भी मुख्यमंत्री बदल दिया गया. वैसे कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने की एक बड़ी वजह बीएस येदियुरप्पा को हटाना भी रहा.
कर्नाटक को लेकर भी बीजेपी नेतृत्व को जो अंदरूनी रिपोर्ट मिली है, वो फिक्र बढ़ाने वाली ही बतायी जाती है. पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी बसवराज बोम्मई सरकार राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर रहे हैं, ऊपर से बीजेपी विधायक का 40 लाख रुपया रिश्वत लेते पकड़ा जाना - और फिर लोकायुक्त के छापे में विधायक के ठिकानों से 8 करोड़ कैश बरामद होना, वोटर के बीच क्या संदेश दे रही है कहने की जरूरत नहीं है.
कर्नाटक में लोकायुक्त का एक्शन हमेशा ही बीजेपी के लिए मुसीबतें लेकर आया है. लोकायुक्त के सबसे बड़े शिकार तो कर्नाटक में कमल खिलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ही रहे हैं - अक्टूबर 2011 में जमीन घोटाले का आरोप लगने पर येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जेल तक जाना पड़ा था - और विधानसभा चुनावों के ऐन पहले लोकायुक्त का चाबुक ही एक बार फिर बीजेपी के लिए मुसीबत का पहाड़ लेकर आया है.
बहरहाल, बीजेपी की कोशिशों में कभी कमी तो रहती नहीं. चुनाव जीतने का काउंटर मेकैनिज्म तो बीजेपी के पास होता ही है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने महादेश्वर हिल्स में हरी झंडी दिखाकर विजय संकल्प यात्रा को रवाना कर ही दिया है. कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को काउंटर करने के लिए यात्रा का एक दौर पहले भी चल ही चुका है.
केंद्रीय मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने बीजेपी के लिए कर्नाटक में 150 विधानसभा सीटों का लक्ष्य भी तय कर...
बीजेपी को त्रिपुरा के नतीजों से काफी राहत मिली होगी. क्योंकि ये जीत गुजरात की तरह जोश हाई करने वाली तो कतई नहीं है. खास बात ये है कि त्रिपुरा चुनाव को लेकर भी बीजेपी पहले काफी परेशान थी, यही वजह रही कि कर्नाटक की तरफ त्रिपुरा में भी मुख्यमंत्री बदल दिया गया. वैसे कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने की एक बड़ी वजह बीएस येदियुरप्पा को हटाना भी रहा.
कर्नाटक को लेकर भी बीजेपी नेतृत्व को जो अंदरूनी रिपोर्ट मिली है, वो फिक्र बढ़ाने वाली ही बतायी जाती है. पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी बसवराज बोम्मई सरकार राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर रहे हैं, ऊपर से बीजेपी विधायक का 40 लाख रुपया रिश्वत लेते पकड़ा जाना - और फिर लोकायुक्त के छापे में विधायक के ठिकानों से 8 करोड़ कैश बरामद होना, वोटर के बीच क्या संदेश दे रही है कहने की जरूरत नहीं है.
कर्नाटक में लोकायुक्त का एक्शन हमेशा ही बीजेपी के लिए मुसीबतें लेकर आया है. लोकायुक्त के सबसे बड़े शिकार तो कर्नाटक में कमल खिलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ही रहे हैं - अक्टूबर 2011 में जमीन घोटाले का आरोप लगने पर येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जेल तक जाना पड़ा था - और विधानसभा चुनावों के ऐन पहले लोकायुक्त का चाबुक ही एक बार फिर बीजेपी के लिए मुसीबत का पहाड़ लेकर आया है.
बहरहाल, बीजेपी की कोशिशों में कभी कमी तो रहती नहीं. चुनाव जीतने का काउंटर मेकैनिज्म तो बीजेपी के पास होता ही है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने महादेश्वर हिल्स में हरी झंडी दिखाकर विजय संकल्प यात्रा को रवाना कर ही दिया है. कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को काउंटर करने के लिए यात्रा का एक दौर पहले भी चल ही चुका है.
केंद्रीय मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने बीजेपी के लिए कर्नाटक में 150 विधानसभा सीटों का लक्ष्य भी तय कर ही दिया है - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे करके अपनी कड़ी निगरानी में बीजेपी के इलेक्शन कैंपेन को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर 2023 के सारे ही विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला तो बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने ही किया है, जिसमें एक सदस्य बीएस येदियुरप्पा (BS Yeddiyurappa) भी हैं. जब बोर्ड में उनको एंट्री दी गयी थी तब भी यही माना गया था कि ऐसा कर्नाटक चुनाव को देखते हुए किया गया - और अब तो अमित शाह के बयान से भी ये बात कंफर्म हो चुकी है.
हैरानी की बात ये है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की जगह मोदी के साथ येदियुरप्पा का नाम लेकर ही अमित शाह लोगों से वोट मांग रहे हैं. मोदी के नाम पर तो वो यूपी चुनावों में भी वोट मांग रहे थे, लेकिन साथ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लेना भी कभी नहीं भूलते थे. योगी को तो प्रधानमंत्री मोदी भी पूरे चुनाव 'Pयोगी' बताते रहे.
लेकिन कर्नाटक में तो प्रधानमंत्री मोदी भी येदियुरप्पा का ही अभिनंदन कर रहे हैं. उनके बर्थडे पर एयरपोर्ट का उद्घाटन करना अच्छी बात है, जन्मदिन के बारे में अच्छे शब्दों में तारीफ करना भी अच्छी बात है - लेकिन उसे मिसाल के तौर पेश करना तो सवाल खड़े करने वाला ही है.
हैरानी तो तब होती है जब बीजेपी में अमित शाह की तरफ से बुजुर्गों के सम्मान की नसीहत दी जाती है. वो भी बीएस येदियुरप्पा का नाम लेकर और कांग्रेस को टारगेट करते हुए. अमित शाह ने चूंकि कांग्रेस का नाम लिया है, इसलिए मान कर चला जा सकता है कि ऐसा राहुल गांधी को जवाब देने के लिए किया होगा.
सोनिया गांधी को लिखी गुलाम नबी आजाद की चिट्ठी के बाद तो सबको खबर हो चुकी है कि कांग्रेस में बुजुर्गों का कितना सम्मान किया जाता है. कांग्रेस में रहते हुए कपिल सिब्बल ने भी एक बार पार्टी की दुर्दशा पर विचार करने की सलाह दी थी, और जिस तरीके से सोनिया गांधी की मौजूदगी में राहुल गांधी की टीम के एक नेता ने हमला बोल दिया था, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी सकते में आ गये थे. अपनी सदाबहार चुप्पी के लिए मशहूर मनमोहन सिंह को उस मीटिंग में कई बार काउंटर करने के लिए बोलना भी पड़ा था.
फिर भी राहुल गांधी बुजुर्ग नेताओं के सम्मान को लेकर पहले कई बार लालकृष्ण आडवाणी (LK Advani) की दुहाई दे चुके हैं - हो सकता है अमित शाह की तरफ से जवाबी एक्शन हो रहा हो, लेकिन क्या येदियुरप्पा के अभिनंदन का जिक्र होने पर लोग बीजेपी के सबसे सीनियर और सम्मानित नेता आडवाणी के साथ 2014 से लेकर 2019 के बीच के व्यवहार को लोग याद नहीं करेंगे.
अपने सीनियर नेताओं के अपमान का कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए, अमित शाह ने कहा है कि जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने येदियुरप्पा को उनके जन्मदिन पर सम्मानित किया है, सभी राजनीतिक दलों को सीखना चाहिये.
एक चुनावी रैली में अमित शाह कहते हैं, कांग्रेस ने हमेशा अपने नेताओं का अपमान किया है, चाहे वो एस. निजलिंगप्पा हों या पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल. सिर्फ बीजेपी ही ऐसी पार्टी है जो सीनियर नेताओं के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करना जानती है. और फिर बोले, 'प्रधानमंत्री मोदी हाल ही में कर्नाटक में थे... जिस तरह से उन्होंने लोगों के सामने येदियुरप्पा का अभिनंदन किया, वो कुछ ऐसा है जो सभी राजनीतिक दलों को सीखना चाहिए... सीखना चाहिये कि अपने बुजुर्गों, वरिष्ठों और लोकप्रिय नेताओं का सम्मान कैसे किया जाये.'
येदियुरप्पा जैसा सम्मान कितनों को मिलता है
बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी के बहाने हिंदी कवि कुमार विश्वास ने एक बार आम आदमी पार्टी में हुए अपने हाल पर कहा था, "हम से पूछो कैसे करते अपने सत्यानाश, भरी जवानी में अडवाणी होने का अहसास... जोगीरा सारारारारा."
कर्नाटक के शिवमोगा में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोर देकर खास तौर पर येदियुरप्पा का जिक्र कर रहे थे तो सुन कर बहुतों के मन में बीजेपी के सीनियर नेता आडवाणी का ख्याल आया जरूर होगा - क्योंकि विशेष ट्रीटमेंट की कौन कहे, आडवाणी को तो मार्गदर्शक मंडल बना कर घर ही बैठा दिया गया.
ऐसा तो नहीं कह सकते कि आडवाणी के साथ जो कुछ हुआ सारा कुसूर बीजेपी की नयी कमांड का ही रहा, लेकिन पार्टी के नये दौर में जो कुछ हुआ आडवाणी उसके हकदार तो नहीं ही थी - और अगर येदियुरप्पा के सम्मान की मिसाल दी जाएगी तो आडवाणी की भी याद आएगी ही.
हर किसी का अपना वक्त होता है, जैसा आज मोदी-शाह की बीजेपी में चलती है, एक दौर ऐसा भी रहा जब वाजपेयी आडवाणी की तूती बोलती रही. उस दौर के बारे में तो यहां तक दावा किया जाता है कि वाजपेयी-आडवाणी के ताकतवर होते ही, संघ की बातों को तवज्जो मिलना भी कम हो गया था. ऐसी छिटपुट चर्चाएं तो अब भी होती रही हैं, लेकिन जब मिजाज मिलते हों तो ईगो-क्लैश हर कोई महसूस नहीं कर पाता.
मोदी से पहले अमित शाह ने बेल्लारी में हुई बीजेपी की रैली में येदियुरप्पा पर भरोसा रखने की अपील की थी, जाहिर है मोदी के बाद ही येदियुरप्पा का नाम आता है. अमित शाह लोगों को समझा रहे थे, 'प्रधानमंत्री मोदी और येदियुरप्पा पर एक बार भरोसा करें... और हम आपको ऐसी सरकार देंगे, जो कर्नाटक को भ्रष्टाचार से मुक्त कराएगी - और दक्षिण भारत में शीर्ष राज्य बनाएगी.'
येदियुरप्पा को मोदी के साथ प्रोजक्ट करने की बात तो समझ में आयी थी, लेकिन कर्नाटक को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने का क्या मतलब? क्या अमित शाह सीधे सीधे विपक्षी दलों के बीजेपी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों को काउंटर नहीं कर पा रहे हैं?
दक्षिण भारत में बीजेपी को शीर्ष पर पहुंचाने की बात तो समझ में आती है, लेकिन भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने का चुनावी वादा करके वो लोगों के मन में शक क्यों पैदा कर रहे हैं? ऐसा क्यों लग रहा है जैसे वो बीजेपी के ही मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक में येदियुरप्पा के हाथ में हाथ डाल कर वैसे ही देखे गये, जैसे 2017 में अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी की शहर दक्षिणी सीट पर श्यामदेव रॉय चौधरी दादा को हाथ पकड़ कर काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने गये थे - तब श्यामदेव रॉय चौधरी का हाल भी आडवाणी जैसा ही समझा जा रहा था, और ऐसा सोचने वाला हर शख्स सही साबित हुआ. श्यामदेव रॉय चौधरी का टिकट काट कर बीजेपी ने जिसे विधायक बनाया था, अगले ही चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को उस इलाके में रोड शो करने के बाद पप्पू की दुकान पर चाय पीने भी जाना पड़ा था.
हिमाचल प्रदेश में अभी अभी जो हाल प्रेम कुमार धूमल का हुआ है, आडवाणी के साथ साथ शांता कुमार को भी उसी ओल्ड एज होम में भेजा गया था. अव्वल तो सुषमा स्वराज सरकार में विदेश मंत्री भी रहीं, लेकिन पहले की तरह अपनी किसी राजनीतिक काबिलयत के लिए तो जानी नहीं गयीं - वो तो उस दौर में अपने लंबे अनुभव और सूझ बूझ की बदौलत सेवा भाव के लिए याद की जाएंगी.
2018 में बीजेपी की हार के बाद शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे को भी दिल्ली अटैच कर ही दिया गया था. वो तो वसुंधरा राजे अपनी ताकत के बूते बनी हुई हैं, और मजबूरी में शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश की कमान सौंपनी पड़ी है, वरना प्रेम कुमार धूमल, विजय रुपानी और नितिन पटेल की तरह उनकी तरफ से भी संन्यास की घोषणा तो हो ही चुकी होती.
लेकिन देखने को तो ये भी मिल रहा है कि येदियुरप्पा चुनाव न लड़ने के साथ ही संन्यास की भी घोषणा कर देते हैं तो भी प्रधानमंत्री मोदी भरी महफिल में कहते हैं, 'कर्नाटक विधानसभा में उनका भाषण सार्वजनिक जीवन में आने वाले प्रत्येक भारतीय के लिए एक प्रेरणा है... येदियुरप्पा ने दिखाया है कि ऊंचाई तक पहुंचने के बावजूद विनम्र कैसे रहा जाता है.'
येदियुरप्पा और आडवाणी में बड़ा फर्क है
अब जबकि येदियुरप्पा भी राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने की घोषणा कर चुके हैं, आडवाणी से तुलना की जाये तो दोनों में कोई मुकाबला ही नहीं है. अब अगर बीजेपी बुजुर्गों का सम्मान देने के नाम पर येदियुरप्पा का नाम लेकर मिसाल देती है, तो मजाक जैसा ही लगता है - जैसे ही अमित शाह ऐसी बातें करते हैं और सबसे पहले आडवाणी की ही तस्वीर उभर कर आती है, तो ये स्वाभाविक ही है.
कभी भी ये नहीं भूलना चाहिये कि आडवाणी पर भ्रष्टाचार का आरोप कभी किसी राजनीतिक विरोधी ने भी नहीं लगाया - और ये भी भूलने वाली बात नहीं है कि येदियुरप्पा कभी ऐसे आरोपों से उबर ही नहीं पाये. चीजों के जैसे तैसे मैनेज हो जाने या कर दिये जाने की बात और है. कानूनी कमजोरियों का फायदा उठाने या सत्ता में होने का लाभ ले लेने की बात और होती है.
दक्षिण भारत में बनी बीजेपी की पहली सरकार के मुख्यमंत्री बने बीएस येदियुरप्पा को लोकायुक्त की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था - और फिर जेल भी भेजे गये थे. येदियुरप्पा पर मुख्यमंत्री रहते नियमों में हेर फेर करके अपने रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने का गंभीर आरोप लग चुका है.
एक बार लालकृष्ण आडवाणी का नाम एक डायरी में होने के कारण हवाला मामले में उछला भी तो वो तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिये थे, और पाक साफ होने के बाद ही चुनाव मैदान में उतरे, जबकि येदियुरप्पा जेल जाने के पहले तक कुर्सी पर डटे रहे - येदियुरप्पा बीजेपी में बुर्जुर्गों के सम्मान की मिसाल नहीं, सम्मान में भेदभाव किये जाने के नुमाइंदे हैं.
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