'बाबा का बुलडोजर' (Baba Ka Bulldozer) इस बार वैसे ही चल पड़ा है, जैसे 2017 में एंटी रोमियो स्क्वॉड घर से घूमने फिरने निकले लोगों पर कहर बन कर टूटा था. एक दौर तो ऐसा भी देखने को मिला कि सड़क पर निकला कोई भी शिकार हो जाता था. पुलिसवाले तो वही थे, पुलिसवालों के कामकाज का तौर तरीका भी नहीं बदला था - शोहदों की तलाश में निकलते तो कभी पति-पत्नी नहीं बच पाते और कभी भाई-बहन भी नहीं.
यूपी पुलिस की एंटी रोमियो टीम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का नया आइडिया था. बुलडोजर पहली पारी में आजमाया हुआ नुस्खा है. बुलडोजर भी योगी आदित्यनाथ की राजनीति को आगे वैसे ही बढ़ा रहा है जैसे 'घर वापसी' कार्यक्रम रहा हो या फिर 'लव जिहाद' के खिलाफ उनकी मुहिम, जिसने कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर योगी आदित्यनाथ की छवि गढ़ी थी.
एंटी रोमियो स्क्वॉड तो ज्यादा विवाद होने पर बंद भी कर देना पड़ा था, लेकिन बुलडोजर के नाम पर तो मैंडेट भी मिल चुका है. चुनावी रैलियों से शुरू हुआ बुलडोजर का प्रदर्शन जीत के जश्न में तो किसी बड़े ब्रांड के लोगो की तरह देखा जाने लगा था - और ये ब्रांड भी कोई और नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'बुलडोजर बाबा' के रूप में बनी नयी पहचान रही.
लखनऊ से बाराबंकी तक योगी सरकार के बुलडोजर चलने की चर्चा हो रही है. जैसे मोदी सरकार ने 2019 के बाद सत्ता में वापसी करते ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाकर चुनावी वादा पूरा किया था, योगी सरकार की दूसरी पारी में लैंड माफिया की करोड़ों की संपत्ति पर बुलडोजर एक्शन के जरिये भी वैसा ही संदेश देने की कोशिश लगती है - और यहां तक तो ठीक है, लेकिन उसके आगे एक्शन के पीछे की राजनीति खतरनाक संकेत दे रही है.
लैंड माफिया के साथ साथ हजरतगंज में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने बीएसपी के एक नेता के खिलाफ...
'बाबा का बुलडोजर' (Baba Ka Bulldozer) इस बार वैसे ही चल पड़ा है, जैसे 2017 में एंटी रोमियो स्क्वॉड घर से घूमने फिरने निकले लोगों पर कहर बन कर टूटा था. एक दौर तो ऐसा भी देखने को मिला कि सड़क पर निकला कोई भी शिकार हो जाता था. पुलिसवाले तो वही थे, पुलिसवालों के कामकाज का तौर तरीका भी नहीं बदला था - शोहदों की तलाश में निकलते तो कभी पति-पत्नी नहीं बच पाते और कभी भाई-बहन भी नहीं.
यूपी पुलिस की एंटी रोमियो टीम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का नया आइडिया था. बुलडोजर पहली पारी में आजमाया हुआ नुस्खा है. बुलडोजर भी योगी आदित्यनाथ की राजनीति को आगे वैसे ही बढ़ा रहा है जैसे 'घर वापसी' कार्यक्रम रहा हो या फिर 'लव जिहाद' के खिलाफ उनकी मुहिम, जिसने कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर योगी आदित्यनाथ की छवि गढ़ी थी.
एंटी रोमियो स्क्वॉड तो ज्यादा विवाद होने पर बंद भी कर देना पड़ा था, लेकिन बुलडोजर के नाम पर तो मैंडेट भी मिल चुका है. चुनावी रैलियों से शुरू हुआ बुलडोजर का प्रदर्शन जीत के जश्न में तो किसी बड़े ब्रांड के लोगो की तरह देखा जाने लगा था - और ये ब्रांड भी कोई और नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'बुलडोजर बाबा' के रूप में बनी नयी पहचान रही.
लखनऊ से बाराबंकी तक योगी सरकार के बुलडोजर चलने की चर्चा हो रही है. जैसे मोदी सरकार ने 2019 के बाद सत्ता में वापसी करते ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाकर चुनावी वादा पूरा किया था, योगी सरकार की दूसरी पारी में लैंड माफिया की करोड़ों की संपत्ति पर बुलडोजर एक्शन के जरिये भी वैसा ही संदेश देने की कोशिश लगती है - और यहां तक तो ठीक है, लेकिन उसके आगे एक्शन के पीछे की राजनीति खतरनाक संकेत दे रही है.
लैंड माफिया के साथ साथ हजरतगंज में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने बीएसपी के एक नेता के खिलाफ बुलडोजर चलाया है. एलडीए के मुताबिक ये जिस इमारत पर एक्शन हुआ है वो अवैध तरीके से बनायी गयी थी.
ये सवाल तो खड़ा होता ही है कि कैसे एलडीए के अधिकारी सोते रहे और लखनऊ में ही अवैध इमारत खड़ी हो गयी. वो भी तब जिसमें पांच साल से तो योगी ही सरकार रही - ऐसे ही बांदा विकास प्राधिकरण ने पूर्व विधायक बृजेश प्रजापति से उनके चार मंजिला मकान और दफ्तर में अवैध निर्माण का नोटिस दिया है - और 7 अप्रैल तक संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर इमारत ढहा देने की बात कही है.
बाकी मामले अपनी जगह हैं, लेकिन बृजेश प्रजापति (Brijesh Prajapati) का मामला तो महज राजनीतिक ही लगता है. वैसे ही जैसे बीएमसी ने मुंबई में कंगना रनौत और सोनू सूद के खिलाफ कार्रवाई की थी. तब तो शरद पवार जैसे नेता ने भी बीएमसी के एक्शन को गैरजरूरी माना था.
बृजेश प्रजापति का मामला इसलिए भी दिलचस्प लगता है क्योंकि चुनावों से ऐन पहले वो बीजेपी छोड़ कर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर लिये थे. ये स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ पाला बदलने वालों नेताओं से जुड़ा पहला ही मामला है - क्या ऐसे और भी नेता निशाने पर हो सकते हैं?
पहले क्यों नहीं चला बुलडोजर?
बृजेश प्रजापति को बांदा विकास प्राधिकरण की तरफ से मिले नोटिस में कहा गया है कि अगर वो 7 अप्रैल तक अपने निर्माण से संबंधित ब्यौरा देने में असफल होते हैं तो इमारतें ढहा दी जाएंगी. एक इमारत पूर्व विधायक का आवास है और दूसरी उनका दफ्तर.
विकास प्राधिकरण का नोटिस तो नहीं, लेकिन उसकी टाइमिंग सवाल जरूर खड़े करती है. ऐसा तो है नहीं कि चुनावों के दौरान रातों रात वो अपना मकान और दफ्तर दोनों ही बनवा लिये और किसी को पता ही नहीं चला.
अव्वल तो विकास प्राधिकरण के कार्यक्षेत्र के दायरे में आने वाले इलाके में कोई भी निर्माण पहले से पास हुए नक्शे के मुताबिक ही होने चाहिये. अमूमन लोग मकान बनवाने से पहले नक्शा बनवा कर प्राधिकरण से मंजूरी भी लेते हैं - और उसके बाद भी प्राधिकरण की टीम इलाके में जाकर जांच पड़ताल भी करती रहती है कि कोई भी निर्माण नियमों के मुताबिक हो रहा है या नहीं.
ये चीजें तो बृजेश प्रजापति के मामले में भी हुई होंगी - और अगर नहीं हुआ तो किसे जिम्मेदार माना जाएगा? बृजेश प्रजापति को या विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को?
अगर अवैध निर्माण के लिए अब नोटिस भेजा जा रहा है तो पहले क्यों नहीं भेजा गया या भेजा जा सकता था? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि वो उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के विधायक हुआ करते थे?
और अब ये सब इसलिए होने लगा है क्योंकि वो बीजेपी छोड़ कर समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े - और हार भी गये? बृजेश प्रजापति 2017 में बीजेपी के टिकट पर तिंदवारी से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन इस बार स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ बीजेपी छोड़ कर सपा ज्वाइन करने वाले नेताओं में वो भी शुमार रहे. प्रजापति भी स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और दोनों हार भी गये.
असल में बृजेश प्रजापति बीजेपी में बीएसपी से ही आये थे जैसे स्वामी प्रसाद मौर्य और छोड़ कर सपा भी साथ ही गये. बृजेश प्रजापति के बुरे दिन तो बीजेपी छोड़ने के साथ ही शुरू हो गये थे - पाला बदल कर जब वो सपा उम्मीदवार के तौर पर इलाके में वोट मांगने पहुंचे तो लोगों ने दौड़ा लिया. अपने इलाके के गांव जमालपुर पहुंचे बृजेश प्रजापति को देखते ही लोगों ने नारेबाजी शुरू कर दी - काम नहीं तो वोट नहीं.
बड़ा सवाल यही है कि बृजेश प्रजापति को बांदा विकास प्राधिकरण ने चुनावों से पहले नोटिस क्यों नहीं भेजा था?
ऐसे सवाल और भी हैं - क्या बृजेश प्रजापति की ही तरह स्वामी प्रसाद मौर्य या उनके साथ बीजेपी से सपा में गये नेताओं के खिलाफ भी बाबा का बुलडोजर चलने वाला है?
बुलडोजर के निशाने पर कौन लोग हैं?
ये अखिलेश यादव ही हैं जो सबसे पहले योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा बोलना शुरू किये थे - और फिर देखते ही देखते योगी ने भी मोदी के खिलाफ कांग्रेस के 'चौकीदार' की तरफ बुलडोजर को अपना हथियार बना लिया.
चुनावों में बुलडोजर पर खूब बहस हुई: समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव शुरू से ही बुलडोजर को लेकर योगी सरकार पर हमलावर रहे. कह रहे थे कि सत्ता में आये तो वो भी बीजेपी वालों पर बुलडोजर चलवाएंगे. ऐसा बोल कर अखिलेश ने अपना वोट बैंक तो साध लिया, लेकिन विकल्प तलाश रहे बाकियों ने निराश होकर बीजेपी की ही सरकार बनवा दी.
लेकिन अयोध्या की रैली में जब अखिलेश यादव अपने तरीके से योगी आदित्यनाथ को टारगेट कर रहे थे तो सोचा भी न होगा कि अपना हथियार ही बैकफायर करेगा. अयोध्या की रैली में अखिलेश यादव कह रहे थे, 'जो जगहों के नाम बदलते थे... आज एक अखबार ने उनका नाम बदल दिया है. अखबार अभी गांवों में नहीं पहुंचा होगा... हम बता देते हैं, उनका नाम है - बुलडोजर बाबा.'
फिर क्या था, योगी आदित्यनाथ की तरफ से भी पलटवार होते देर नहीं लगी, 'बुलडोजर हाइवे भी बनाता है... बाढ़ रोकने का काम भी करता है... और माफिया के कब्जे को मुक्त भी कराता है.'
अखिलेश यादव ने जब योगी आदित्यनाथ ने बुलडोजर बाबा कह कर संबोधित किया था, 20 फरवरी को तीसरे चरण के लिए वोट डाले जा रहे थे. कन्नौज और इटावा में भी उसी दिन वोट डाले जा रहे थे. 2019 में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज से लोक सभा चुनाव हार गयी थीं.
और 25 फरवरी को चुनाव कैंपेन पर निकले योगी आदित्यनाथ ने एक फोटो शेयर किया था. वो भी वोटिंग का ही दिन था. शेयर की गयी तस्वीर में उनकी रैली में कई बुलडोजर खड़े नजर आ रहे थे.
फिर क्या था, बीजेपी की कैंपेन टीम ने नया नारा ही गढ़ डाला - यूपी की मजबूरी है, बुलडोजर बाबा जरूरी है.
जैसे सर्जिकल स्ट्राइक करता हो बुलडोजर: जिस योगी आदित्यनाथ से लोग सिर्फ राम मंदिर निर्माण, हिंदू धर्म रक्षक और जनसंख्या पर काबू पाने वाले नेता के तौर पर जानते समझते रहे - योगी के ऐसे समर्थकों को उम्मीद है कि वो उन लोगों पर बुलडोजर जरूर चलवाएंगे जिन्हें वे पसंद नहीं करते.
कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे प्रधानमंत्री मोदी के पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की तरह योगी आदित्यनाथ के समर्थक बुलडोजर को भी लेने लगे हैं. लोगों को ऐसे लगा जैसे योगी पाकिस्तान के खिलाफ भी बुलडोजर चला सकते हैं
जैसे केंद्रीय जांच एजेंसियों पर उठते हैं सवाल: विपक्षी दल अक्सर ही मोदी सरकार पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल का इल्जाम लगाते रहे हैं - और ऐसा लगता है बाबा का बुलडोजर भी आगे चल कर वही राह पकड़ने वाला है.
अब ये सवाल तो बनता ही है कि क्या बृजेश प्रजापति के बाद अगला नंबर स्वामी प्रसाद मौर्य या उनके साथ समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने वाले नेताओं में से किसी का हो सकता है? क्या योगी आदित्यनाथ के विरोध की राजनीति करने वाले नेताओं के साथ भी ऐसा ही होने वाला है?
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