यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के इलाके में ब्राह्मण-ठाकुर राजनीति तो जैसे रीति रिवाजों का हिस्सा रही है, लेकिन नये सिरे से इसका एपिसेंटर बनना बीजेपी (BJP) के लिए नया सिरदर्द साबित हो सकता है.
गोरखपुर (Gorakhpur) के एक विधायक डॉक्टर राधामोहन दास अग्रवाल की ठाकुरों पर टिप्पणी को लेकर विवाद को बीजेपी ने गंभीरता से लिया और नोटिस देकर जवाब मांगा है. साथ ही, गोरखपुर से बीजेपी सांसद रविकिशन शुक्ला ने बीजेपी विधायक का इस्तीफा तक मांग डाला है.
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के बाद और 2019 के आम चुनाव से पहले बीजेपी को बैलेंस करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी है. बीजेपी के लिए चिंता की बात ये है कि एक बार फिर विवाद गहराने लगा है - हैरानी की बात तो ये है कि विवाद के केंद्र में बीजेपी के वही विधायक हैं जो योगी आदित्यनाथ के बेहद खास रहे हैं.
डरना जरूरी है!
गोरखपुर में विवाद की शुरुआत तो हुई एक इंजीनियर के तबादले से लेकिन बढ़ते बढ़ते बीजेपी के शहर विधायक डॉक्टर राधामोहन दास अग्रवाल के इस्तीफे तक आ पहुंची है - इस्तीफा मांगने वाले भी बीजेपी के ही सांसद रविकिशन शुक्ला हैं. ऊपर से बीजेपी के प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर ने नोटिस भेज कर जवाब मांग लिया है.
विवाद की शुरुआत तो एक असिस्टैंट इंजीनियर के तबादले को लेकर हुई, लेकिन बीजेपी विधायक की यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी से बवाल काफी बढ़ गया. राधा मोहन दास अग्रवाल ने काम में लापरवाही को लेकर सहायक अभियंता केके सिंह की डिप्टी सीएम से शिकायत की थी. एक्शन हुआ और इंजीनियर को मुख्यालय से संबद्ध कर दिया गया.
बीजेपी सांसद रवि किशन इंजीनियर को कर्मठ और भरोसेमंद बताते हुए तबादला रोकने के लिए पत्र लिख कर डिप्टी सीएम से गुजारिश की है. देखते ही देखते रवि किशन के साथ इंजीनियर के पक्ष में गोरखपुर ग्रामीण विधायक विपिन सिंह, पिपराइच विधायक महेंद्र पाल सिंह, कैम्पियरगंज विधायक फतेह बहादुर सिंह और सहजनवा एमएलए शीतल पांडेय खड़े हो गये हैं. दूसरी तरफ...
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के इलाके में ब्राह्मण-ठाकुर राजनीति तो जैसे रीति रिवाजों का हिस्सा रही है, लेकिन नये सिरे से इसका एपिसेंटर बनना बीजेपी (BJP) के लिए नया सिरदर्द साबित हो सकता है.
गोरखपुर (Gorakhpur) के एक विधायक डॉक्टर राधामोहन दास अग्रवाल की ठाकुरों पर टिप्पणी को लेकर विवाद को बीजेपी ने गंभीरता से लिया और नोटिस देकर जवाब मांगा है. साथ ही, गोरखपुर से बीजेपी सांसद रविकिशन शुक्ला ने बीजेपी विधायक का इस्तीफा तक मांग डाला है.
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के बाद और 2019 के आम चुनाव से पहले बीजेपी को बैलेंस करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी है. बीजेपी के लिए चिंता की बात ये है कि एक बार फिर विवाद गहराने लगा है - हैरानी की बात तो ये है कि विवाद के केंद्र में बीजेपी के वही विधायक हैं जो योगी आदित्यनाथ के बेहद खास रहे हैं.
डरना जरूरी है!
गोरखपुर में विवाद की शुरुआत तो हुई एक इंजीनियर के तबादले से लेकिन बढ़ते बढ़ते बीजेपी के शहर विधायक डॉक्टर राधामोहन दास अग्रवाल के इस्तीफे तक आ पहुंची है - इस्तीफा मांगने वाले भी बीजेपी के ही सांसद रविकिशन शुक्ला हैं. ऊपर से बीजेपी के प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर ने नोटिस भेज कर जवाब मांग लिया है.
विवाद की शुरुआत तो एक असिस्टैंट इंजीनियर के तबादले को लेकर हुई, लेकिन बीजेपी विधायक की यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी से बवाल काफी बढ़ गया. राधा मोहन दास अग्रवाल ने काम में लापरवाही को लेकर सहायक अभियंता केके सिंह की डिप्टी सीएम से शिकायत की थी. एक्शन हुआ और इंजीनियर को मुख्यालय से संबद्ध कर दिया गया.
बीजेपी सांसद रवि किशन इंजीनियर को कर्मठ और भरोसेमंद बताते हुए तबादला रोकने के लिए पत्र लिख कर डिप्टी सीएम से गुजारिश की है. देखते ही देखते रवि किशन के साथ इंजीनियर के पक्ष में गोरखपुर ग्रामीण विधायक विपिन सिंह, पिपराइच विधायक महेंद्र पाल सिंह, कैम्पियरगंज विधायक फतेह बहादुर सिंह और सहजनवा एमएलए शीतल पांडेय खड़े हो गये हैं. दूसरी तरफ से बांसगांव से बीजेपी विधायक कमलेश पासवान राधा मोहन दास अग्रवाल के सपोर्ट में आ गये हैं.
इंजीनियर का तबादला और कानून व्यवस्था पर टिप्पणी के बीच एक ऑडियो वायरल हुआ है. बीजेपी सांसद रवि किशन इसे भी मुद्दा बना रहे हैं. वायरल ऑडियो में डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल की एक टिप्पणी है जो विवाद की वजह बनी है. किसी से बातचीत में बीजेपी विधायक अग्रवाल सलाह देते हैं - 'ठाकुरों से ठीक से रहिये... ठाकुरों की सरकार चल रही है.'
ऐसी ही एक टिप्पणी को लेकर आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करायी गयी है, जिसके बाद से वो योगी सरकार के खिलाफ और भी आक्रामक हो गये हैं. संजय सिंह ने यूपी में ब्राह्मणों को टारगेट किये जाने का आरोप लगाया है. दरअसल, विकास दुबे एनकाउंटर के बाद यूपी में तेज हो चली ब्राह्मण पॉलिटिक्स के चलते ये मुद्दा काफी संवेदनशील हो गया है क्योंकि अखिलेश यादव और मायावती इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने को लेकर कांग्रेस में भी आलोचना के शिकार हो रहे जितिन प्रसाद भी जोर शोर से ब्राह्मणों का मुद्दा उठा रहे हैं.
ये मामला सिर्फ ठाकुरों पर टिप्पणी का नहीं है. ऊपर से तो ऐसा लगता है कि एक ब्राह्मण सांसद, एक वैश्य विधायक के खिलाफ मुहिम चला रहा है - लेकिन इसकी आड़ में जातीय लामबंदी शुरू हो गयी है.
गोरखपुर और आस पास के इलाके में ब्राह्मण बनाम ठाकुरों राजनीतिक दुश्मनी के तमाम किस्से हैं और हिंसा के कई वाकये भी, लेकिन हैरानी की बात ये है कि बीजेपी जिस मुसीबत से जूझती रही है उसकी नींव डॉक्टर राधामोहन दास अग्रवाल के नाम पर ही रखी गयी थी - और ये 18 साल पुरानी बात है.
बीजेपी के लिए बड़ा चैलेंज
बीएचयू से मेडिकल की डिग्री हासिल कर डॉक्टर बने राधामोहन दास अग्रवाल को राजनीति में लाने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही हैं. 1998 में गोरक्षनाथ पीठ का उत्तराधिकारी बनने के बाद जब योगी आदित्यनाथ पहली बार लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे तो राधामोहन दास अग्रवाल को गोरखपुर नगर विधानसभा क्षेत्र के लिए अपना चुनाव संयोजक बनाया था. फिर 2002 में योगी आदित्यनाथ की बदौलत ही राधामोहन दास अग्रवाल पहली बार विधायक बने. 2007 में योगी आदित्यनाथ ने अग्रवाल को बीजेपी ज्वाइन करा दिया.
राधामोहन दास को पहली बार विधायक बनाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने खूब मेहनत की थी क्योंकि वो उनकी जीत को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके थे - और वो भी बीजेपी के तत्कालीन विधायक और अधिकृत प्रत्याशी शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ. शिव प्रताप शुक्ला फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री हैं.
आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच पर एक तरफ अगर योगी आदित्यनाथ हुआ करते थे तो दूसरी ओर शिव प्रताप शुक्ला जरूर देखने को मिलते रहे - और ये राजनीतिक रणनीति की वजह से हो रहा था.
दरअसल, 2002 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने शिव प्रताप शुक्ला की उम्मीदवारी का विरोध किया था. जब बीजेपी नेताओं ने योगी आदित्यनाथ की बात को अनसुना कर दिया तो वो डॉक्टर राधामोहन दास अग्रवाल को मैदान में उतार दिये - और डंके की चोट पर जिता भी डाले.
फिर तो योगी आदित्यनाथ के दबदबे के चलते शिव प्रताप शुक्ला को बीजेपी का टिकट मिलना भी बंद हो गया. शिव प्रताप शुक्ला धीरे धीरे योगी आदित्यनाथ के दबदबे के चलते हाशिये पर चले गये. जब बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को इलाके के ब्राह्मणों की नाराजगी को लेकर फीडबैक मिला तो नयी तरकीब निकाली गयी. जुलाई, 2016 में यूपी विधानसभा चुनावों से करीब साल भर पहले खास रणनीति के तहत राज्य सभा भेजा गया - और फिर मोदी सरकार की कैबिनेट में शामिल हुए.
अब उसी गोरखपुर में राधामोहन दास अग्रवाल की कथित टिप्पणी के बाद एक बार फिर ब्राह्मण-ठाकुर विवाद बढ़ता जा रहा है - और विवाद के केंद्र में योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी रहे विधायक के होने से मामला दिलचस्प और काफी गंभीर हो गया है.
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