नोएडा से दिल्ली के बीच मैजेन्टा लाइन का उद्घाटन हुआ तो विवाद खड़े हो गए. लेकिन इन विवादों के बीच सबसे सुखद रहा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का नोएडा आना. उनके इस फैसले को अंधविश्वास के खिलाफ उठाया गया एक बड़ा कदम माना गया. खुद पीएम मोदी ने इसकी तारीफ की. उन्होंने अपने भाषण में कहा कि योगी आदित्यनाथ ने यह भ्रम तोड़ा है कि कोई सीएम नोएडा नहीं आ सकता. मुझे खुशी है कि जिस नोएडा में किसी मुख्यमंत्री के न आने की छवि बन गई थी, उस मिथक को योगी जी ने गलत साबित किया.
लेकिन योगी का ये कदम उतना क्रांतिकारी भी नहीं था. योगी नोएडा तो आए लेकिन मजबूरी में. पत्रकारों का मानना है कि योगी नोएडा नहीं आते तो क्या करते? उनके पास कोई विकल्प ही नहीं था. कैसा लगता अगर देश का प्रधानमंत्री उद्घाटन करने उत्तर प्रदेश में आए और मुख्यमंत्री कार्यक्रम में मौजूद न रहें. वो भी खुद बीजेपी का मुख्यमंत्री. इस मामले में तो कोई बहाना भी नहीं चलने वाला था. दूसरी पार्टी की सरकार होती तो गुस्से में बहिष्कार कर देते. लेकिन ऐसा कोई बहाना नहीं था.
चूंकि मेट्रो नोएडा से चलनी थी तो उसका उद्घाटन किसी और शहर से हो नहीं सकता था. मेट्रो का दूसरा सिरा दिल्ली में था. अगर दिल्ली से पीएम उद्घाटन करते तो केजरीवाल को बुलाना पड़ता. क्रेडिट केजरीवाल को कैसे दे देते. योगी के पास मरता क्या न करता वाली स्थिति होती. अगर वो नोएडा नहीं आते तो अंधविश्वास की सबसे बड़ी कहानी में फंस जाते. इससे बेहतर था कि योगी नोएडा आएं और उनकी कुर्सी जाने या न जाने का फैसला वैसे भी मोदी पर ही था और उन पर ही छोड़ दें.
मोदी ने अपने भाषण में कहा कि योगी की वेशभूषा देखकर लोग समझते होंगे कि योगी मॉडर्न सोच के नहीं होंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. पर मोदी का...
नोएडा से दिल्ली के बीच मैजेन्टा लाइन का उद्घाटन हुआ तो विवाद खड़े हो गए. लेकिन इन विवादों के बीच सबसे सुखद रहा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का नोएडा आना. उनके इस फैसले को अंधविश्वास के खिलाफ उठाया गया एक बड़ा कदम माना गया. खुद पीएम मोदी ने इसकी तारीफ की. उन्होंने अपने भाषण में कहा कि योगी आदित्यनाथ ने यह भ्रम तोड़ा है कि कोई सीएम नोएडा नहीं आ सकता. मुझे खुशी है कि जिस नोएडा में किसी मुख्यमंत्री के न आने की छवि बन गई थी, उस मिथक को योगी जी ने गलत साबित किया.
लेकिन योगी का ये कदम उतना क्रांतिकारी भी नहीं था. योगी नोएडा तो आए लेकिन मजबूरी में. पत्रकारों का मानना है कि योगी नोएडा नहीं आते तो क्या करते? उनके पास कोई विकल्प ही नहीं था. कैसा लगता अगर देश का प्रधानमंत्री उद्घाटन करने उत्तर प्रदेश में आए और मुख्यमंत्री कार्यक्रम में मौजूद न रहें. वो भी खुद बीजेपी का मुख्यमंत्री. इस मामले में तो कोई बहाना भी नहीं चलने वाला था. दूसरी पार्टी की सरकार होती तो गुस्से में बहिष्कार कर देते. लेकिन ऐसा कोई बहाना नहीं था.
चूंकि मेट्रो नोएडा से चलनी थी तो उसका उद्घाटन किसी और शहर से हो नहीं सकता था. मेट्रो का दूसरा सिरा दिल्ली में था. अगर दिल्ली से पीएम उद्घाटन करते तो केजरीवाल को बुलाना पड़ता. क्रेडिट केजरीवाल को कैसे दे देते. योगी के पास मरता क्या न करता वाली स्थिति होती. अगर वो नोएडा नहीं आते तो अंधविश्वास की सबसे बड़ी कहानी में फंस जाते. इससे बेहतर था कि योगी नोएडा आएं और उनकी कुर्सी जाने या न जाने का फैसला वैसे भी मोदी पर ही था और उन पर ही छोड़ दें.
मोदी ने अपने भाषण में कहा कि योगी की वेशभूषा देखकर लोग समझते होंगे कि योगी मॉडर्न सोच के नहीं होंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. पर मोदी का ये जुमला भी सिर्फ मजबूरी में उठाए गए एक कदम को महिमामंडित करने से ज्यादा नहीं था. योगी का इतिहास धार्मिक रूढ़ियों और अंधविश्वास से भरा रहा है.
योगी जब मुख्यमंत्री बने तो उन्हें ये भ्रम हो गया कि अखिलेश यादव ने कोई जादू टोना न कर रखा हो. इसलिए उन्होंने बाकायदा 5 कालिदास मार्ग के मुख्यमंत्री दफ्तर में जाने से पहले वहां शुद्धिकरण करवाया. जब तक शुद्धिकरण न हो गया वो लखनऊ के वीवीआई गेस्ट हाउस में ही रुके थे, वहां रहकर ही उन्होंने सभी बैठकें और मुलाकातें की थी.
मुख्यमंत्री आवास का शुद्धिकरण कराने के मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी योगी आदित्यनाथ पर तंज कसा था. अखिलेश यादव ने कहा था कि जब 2022 में वह दोबारा सत्ता में आएंगे तो पूरे मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल से धुलवाएंगे.
पिछली ही नवरात्रि में योगी आदित्यनाथ पूरे 9 दिन तक हर सरकारी कामकाज छोड़कर अपने मठ में घुस गए और नवरात्रि की पूजा में व्यस्त रहे. सभी को सख्त ताकीद थी की भले ही प्रदेश में आग लग जाए, लेकिन उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए. योगी हमेशा से इस पूजा को बेहद अहमियत देते हैं. उनका मानना है इससे बड़ी सिद्धियां प्राप्त होती हैं. और उन्हें यही सिद्धियां प्रगति के रास्ते पर ले जाती हैं.
जाहिर बात है योगी अगर अपनी छवि को मॉडर्न नेता की बनाना चाहते हैं तो अभी कई बड़े कदम उठाने होंगे. मजबूरी की महानता को बेचकर आधुनिक होने का ढिंढोरा नहीं पीटा जा सकता.
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