उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव के तारीखों की घोषणा हो चुकी है. यहाँ तीन चरण में 22, 26 और 29 नवंबर को मतदान होगा. सभी निकायों की मतगणना दिसंबर की पहली तारीख को होगी. इस बार 16 नगर निगमों के महापौर, 198 नगर पालिका परिषद व 438 नगर पंचायतों के अध्यक्षों के साथ ही 11,995 वार्डों के पार्षद-सदस्यों के लिए चुनाव होगा. इस बार 4 नए नगर निगमों को मिलकर 16 पर चुनाव होने हैं. ये चार नए नगर निगम सहारनपुर, फिरोजाबाद, अयोध्या और वृन्दावन हैं.
निकाय चुनाव को लेकर बीजेपी के संगठन और प्रदेश सरकार दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है क्योंकि लगभग छह महीने पहले ही भारी बहुमत से राज्य में बीजेपी की सरकार बनी है तो वहीं एक दल के रूप में बीजेपी ही एक ऐसी पार्टी है जो मौजूदा समय में ज्यादातर नगर निगमों में महापौर पद पर काबिज है. हालांकि छोटे नगरों यानी नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में निर्दलियों का कब्ज़ा है. पिछली बार नगर निकाय चुनावों में से 12 नगर निगमों में 10 में बीजेपी के महापौर जीते थे. और एक - एक पर पर बसपा और सपा समर्थित उम्मीदवार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे. फिलहाल बीजेपी के पाले में 11 महापौर हैं क्योंकि चर्चित इलाहाबाद भी अब उसके साथ है.
ऐसा तब हुआ था जब 2012 में पार्टी को विधानसभा में तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था. लेकिन विधानसभा चुनाव में बहुमत से जीतने वाली समाजवादी पार्टी इन चुनावों में कुछ अच्छा नहीं कर पायी थी. मुख्यमंत्री योगी के लिए भी चुनौती इस लिए बढ़ जाती है क्योंकि ये चुनाव उनके छह महीने के कार्यकाल की परीक्षा भी होगी.
योगी के लिए इन निकाय चुनावों की कितनी महत्ता है उसका ताजा उदाहरण हमें उनकी ताजमहल यात्रा में दिखता है. मुख्यमंत्री ये नहीं चाहते थे कि मतदाताओं का ध्यान किसी विवाद की तरफ जाये इसीलिए उन्होंने उनके पार्टी के नेता के द्वारा दिए गए...
उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव के तारीखों की घोषणा हो चुकी है. यहाँ तीन चरण में 22, 26 और 29 नवंबर को मतदान होगा. सभी निकायों की मतगणना दिसंबर की पहली तारीख को होगी. इस बार 16 नगर निगमों के महापौर, 198 नगर पालिका परिषद व 438 नगर पंचायतों के अध्यक्षों के साथ ही 11,995 वार्डों के पार्षद-सदस्यों के लिए चुनाव होगा. इस बार 4 नए नगर निगमों को मिलकर 16 पर चुनाव होने हैं. ये चार नए नगर निगम सहारनपुर, फिरोजाबाद, अयोध्या और वृन्दावन हैं.
निकाय चुनाव को लेकर बीजेपी के संगठन और प्रदेश सरकार दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है क्योंकि लगभग छह महीने पहले ही भारी बहुमत से राज्य में बीजेपी की सरकार बनी है तो वहीं एक दल के रूप में बीजेपी ही एक ऐसी पार्टी है जो मौजूदा समय में ज्यादातर नगर निगमों में महापौर पद पर काबिज है. हालांकि छोटे नगरों यानी नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में निर्दलियों का कब्ज़ा है. पिछली बार नगर निकाय चुनावों में से 12 नगर निगमों में 10 में बीजेपी के महापौर जीते थे. और एक - एक पर पर बसपा और सपा समर्थित उम्मीदवार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे. फिलहाल बीजेपी के पाले में 11 महापौर हैं क्योंकि चर्चित इलाहाबाद भी अब उसके साथ है.
ऐसा तब हुआ था जब 2012 में पार्टी को विधानसभा में तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था. लेकिन विधानसभा चुनाव में बहुमत से जीतने वाली समाजवादी पार्टी इन चुनावों में कुछ अच्छा नहीं कर पायी थी. मुख्यमंत्री योगी के लिए भी चुनौती इस लिए बढ़ जाती है क्योंकि ये चुनाव उनके छह महीने के कार्यकाल की परीक्षा भी होगी.
योगी के लिए इन निकाय चुनावों की कितनी महत्ता है उसका ताजा उदाहरण हमें उनकी ताजमहल यात्रा में दिखता है. मुख्यमंत्री ये नहीं चाहते थे कि मतदाताओं का ध्यान किसी विवाद की तरफ जाये इसीलिए उन्होंने उनके पार्टी के नेता के द्वारा दिए गए बयान से उपजे विवाद को शांत करने के लिए ना सिर्फ ताजमहल के दर्शन करने गए बल्कि वहां साफ सफाई भी की. वैसे योगी सरकार के लिए शिक्षामित्र, आंगनवाड़ी और किसान परेशानी का सबब बनते हैं या नहीं ये देखने वाली बात होगी.
बीजेपी के संगठन की बात करें तो हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष चुने गए महेंद्रनाथ पांडेय के लिए भी चुनौती कम नहीं है क्योंकि 2012 के विधानसभा में मिली हार के ठीक बाद तबके प्रदेश अध्यक्ष बने लक्ष्मीकांत बाजपेयी के नेतृत्व में पार्टी ने निकाय चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया था और इस बार तो बीजेपी ने प्रदेश विधानसभा में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई है ऐसे में उन्हें भारी जीत की उम्मीद होगी. अगर ऐसा नहीं होता है तो ये उनकी भी हार मानी जाएगी.
आपको बता दें की इस बार सभी दल अपने सिंबल पर चुनाव में उतर रहे हैं जिससे इन चुनावों को मिनी विधानसभा की तरह भी देखा जा रहा और विपक्षी दल इस बार करीब 6 महीने पहले मिली बुरी हार का बदला लेना चाहेंगे. वैसे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस तीनों दल अलग - अलग चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए बीजेपी के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होगी लेकिन जनता का योगी सरकार को लेकर क्या मूड है वो तो 1 दिसम्बर का रिजल्ट ही बताएगा.
अगर बीजेपी को निकाय चुनावों में जीत मिलती है तो आने वाले समय में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में भी उनको जीत की उम्मीद रहेगी और अगर हार मिलती है तो इन सीटों को लेकर उनकी चिंता बढ़ जाएगी. वैसे भी ये दोनों सीटें काफी अहमियत रखती हैं क्योंकि एक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो दूसरी उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की सीट रही है. जिससे उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी दांव पर लगेगी इसलिए बीजेपी इन चुनावों को जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. यही नहीं अगर पार्टी उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करती है तो इसका कुछ असर गुजरात चुनाव में भी देखने को मिल सकता है.
ये भी पढ़ें-
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.