योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के लिए लखीमपुर खीरी का मामला भले ही किसानों से शुरू हुआ, लेकिन पार्टी पॉलिटिक्स की एंट्री के साथ ही पेंचीदा होता जा रहा है. अगर आरोपियों में से एक आशीष मिश्रा केंद्र की बीजेपी सरकार में मंत्री का बेटा नहीं होता तो कब का रफा दफा हो चुका होता - क्योंकि विपक्ष को भी हल्ला बोलने का मसाला आसानी से उपलब्ध हो गया है.
किसानों का मामला तो सबने देखा ही कि कैसे योगी आदित्यनाथ के भरोसेमंद अफसरों ने राकेश टिकैत को किसानों के बीच ले जाकर खत्म करा दिया - और वो भी सिर्फ एक बार ही नहीं, किसान नेता राकेश टिकैत हर उस जगह मौजूद दिखे जहां वो बवाल खत्म कराने में सक्षम दिखे.
यूपी की कानून व्यवस्था को बीजेपी के राजनीतिक विरोधी चाहे कितना ही खराब क्यों न बतायें, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तो पहले ही योगी आदित्यनाथ की सरकार को लॉ एंड ऑर्डर के मामले में देश में बेस्ट होने का तमगा दे चुके हैं, लेकिन जब भी ऐसी कोई चुनौती खड़ी होती है और जैसे ही पार्टी पॉलिटिक्स की एंट्री होती है - योगी आदित्यनाथ अपनेआप फंस ही जाते हैं. फंसते भी ऐसे हैं कि निकलने का रास्ता भी तब तक नहीं बनता जब तक हर तरीके से फजीहत नहीं हो जाती.
लखीमपुर खीरी की घटना में IPC की धारा 302 के आरोपी आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) का मामला यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने ठीक वैसा ही चैलेंज बन गया है जैसे पहले उन्नाव गैंग रेप के मामले में तत्कालीन बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और फिर मिलते जुलते मामले में बीजेपी के सीनियर नेता स्वामी चिन्मयानंद ने फजीहत करायी थी.
जिस उत्तर प्रदेश पुलिस को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'ठोक दो...' वाले स्टाइल में वरद हस्त हासिल हो कि उसकी ऐसे सभी केसों में घिग्घी बंध जाती है जब...
योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के लिए लखीमपुर खीरी का मामला भले ही किसानों से शुरू हुआ, लेकिन पार्टी पॉलिटिक्स की एंट्री के साथ ही पेंचीदा होता जा रहा है. अगर आरोपियों में से एक आशीष मिश्रा केंद्र की बीजेपी सरकार में मंत्री का बेटा नहीं होता तो कब का रफा दफा हो चुका होता - क्योंकि विपक्ष को भी हल्ला बोलने का मसाला आसानी से उपलब्ध हो गया है.
किसानों का मामला तो सबने देखा ही कि कैसे योगी आदित्यनाथ के भरोसेमंद अफसरों ने राकेश टिकैत को किसानों के बीच ले जाकर खत्म करा दिया - और वो भी सिर्फ एक बार ही नहीं, किसान नेता राकेश टिकैत हर उस जगह मौजूद दिखे जहां वो बवाल खत्म कराने में सक्षम दिखे.
यूपी की कानून व्यवस्था को बीजेपी के राजनीतिक विरोधी चाहे कितना ही खराब क्यों न बतायें, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तो पहले ही योगी आदित्यनाथ की सरकार को लॉ एंड ऑर्डर के मामले में देश में बेस्ट होने का तमगा दे चुके हैं, लेकिन जब भी ऐसी कोई चुनौती खड़ी होती है और जैसे ही पार्टी पॉलिटिक्स की एंट्री होती है - योगी आदित्यनाथ अपनेआप फंस ही जाते हैं. फंसते भी ऐसे हैं कि निकलने का रास्ता भी तब तक नहीं बनता जब तक हर तरीके से फजीहत नहीं हो जाती.
लखीमपुर खीरी की घटना में IPC की धारा 302 के आरोपी आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) का मामला यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने ठीक वैसा ही चैलेंज बन गया है जैसे पहले उन्नाव गैंग रेप के मामले में तत्कालीन बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और फिर मिलते जुलते मामले में बीजेपी के सीनियर नेता स्वामी चिन्मयानंद ने फजीहत करायी थी.
जिस उत्तर प्रदेश पुलिस को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'ठोक दो...' वाले स्टाइल में वरद हस्त हासिल हो कि उसकी ऐसे सभी केसों में घिग्घी बंध जाती है जब कोई मामला उसकी नजर में किसी 'माननीय' से जुड़ जाता है. मजबूर यूपी पुलिस करे भी तो क्या करे - हत्या के आरोपी आशीष मिश्र से पूछताछ के लिए लखीमपुर खीरी सदर के बीजेपी विधायक स्कूटर से छोड़ने पुलिस के पास छोड़ने जाते हों, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री पिता अजय मिश्रा टेनी (nion Minister Ajay Mishra Teni) बीजेपी दफ्तर में बैठ कर निगरानी कर रहे हों और नारेबाजी कर रहे समर्थकों को आश्वस्त कर रहे हों कि वो कुछ ऐसा-वैसा नहीं होने देंगे.
मुश्किल ये है कि जल्द ही योगी आदित्यनाथ जनता के दरबार में सत्ता में वापसी का आशीर्वाद मांगने जाने वाले हैं - और ऐन वक्त पर एक और निष्पक्ष जांच कराने की जिम्मेदारी भी सिर पर आ चुकी है.
योगी के सामने पार्टी-पॉलिटिक्स ही बड़ा चैलेंज
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोनभद्र के उभ्भा गांव में हुए नरसंहार का मामला हैंडल तो कर ही लिया था, जबकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने राजनीतिक रूप से घेर ही लिया था. उन्नाव में हुए दो गैंग रेप में से एक को तो योगी आदित्यनाथ ने निपटा ही डाला था. हाथरस गैंग रेप को लेकर मचे बवाल और राजनीति के बावजूद योगी आदित्यनाथ ने अपने अफसरों की मदद से काबू में कर ही लिया था - और लखीमपुर खीरी केस में भी सीनियर अफसरों ने राकेश टिकैत को मिला कर मामला सुलझा ही दिया, लेकिन केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा के केस का हिस्सा बन जाने के कारण पार्टी पॉलिटिक्स के चलते योगी आदित्यनाथ को फजीहत झेलनी पड़ रही है - और वो भी सत्ता में वापसी के लिए विधानसभा चुनाव में उतरने से ठीक पहले. योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे बड़ी मुश्किल वाली बात यही हो गयी है.
जांच पड़ताल तो लखीमपुर में प्रदर्शन कर रहे किसानों के कुचले जाने की भी होगी ही, लेकिन ये तो एक बार फिर 'माननीय' के सामने कानून और पुलिस की लाचारी का मामला बन चुका है - वैसे तो चुनावों से पहले आये ताजा सर्वे में भीव बीजेपी की सत्ता में वापसी के आकलन से योगी आदित्यनाथ की कुर्सी सुरक्षित लग रही है, लेकिन क्या लखीमपुर खीरी मामले का जरा भी असर नहीं होने वाला है?
उन्नाव गैंग रेप को लेकर खबर आयी थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चाहते थे कि तब बीजेपी के विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर को गिरफ्तार कर मामला शांत करा दिया जाये, लेकिन तभी एक बड़े नेता के फोन पर दखल दे देने के चलते हाथ खींच लेने पड़े थे. गैंग रेप के आरोपी विधायक खुलेआम घूम ही नहीं रहे थे बल्कि पुलिस अफसरों से भी मिल रहे थे. पुलिस के आला अफसर भी मीडिया के सामने आकर कह रहे थे - अभी तो माननीय विधायक जी पर सिर्फ आरोप ही लगा है. ये पुलिस अफसर उसी आरोप की बात कर रहे थे जिसके आधार पर सीबीआई ने चार्जशीट फाइल की और कुलदीप सेंगर को उम्रकैद की सजा हुई - सच क्या था ये तो योगी आदित्यनाथ और उनकी पुलिस भी तब भी जानती ही होगी - लेकिन सबके सब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे जब तक केस सीबीआई ने टेकओवर नहीं किया और हाई कोर्ट के दबाव में एक्शन शुरू किया.
बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री रहे स्वामी चिन्मयानंद के केस में भी तो बिलकुल वैसा ही हुआ था. बाद में समझौता भले हो गया हो, ये दोनों पक्षों की बात है और किन परिस्थितियों में ऐसा हुआ उस पर भी परदा ही पड़ा रहेगा, लेकिन ये तो सच है कि कुलदीप सिंह सेंगर जेल में सजा काट रहा है - और सच ये भी है कि बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज अब भी चुनाव जीतने के बाद थैंकयू बोलने और बर्थडे की जेल जाकर बधायी दे ही डालते हैं.
लेकिन योगी आदित्यनाथ की बात और है वो किसी भी परिस्थिति में साक्षी महाराज जैसा व्यवहार नहीं कर सकते - आशीष मिश्रा के आरोपी बन जाने और बीते मामलों में फजीहत झेलने के बाद योगी आदित्यनाथ पर नये सिरे से और बड़ी जिम्मेदारी आ गयी है.
अभी तो योगी पर ही है निष्पक्ष जांच की जिम्मेदारी
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का कहना है कि अजय मिश्रा के केंद्रीय मंत्री रहते लखीमपुर खीरी केस की निष्पक्ष जांच हो ही नहीं सकती. प्रियंका गांधी वाड्रा ने ये सवाल भी उठाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लखीमपुर खीरी हिंसा पर एक शब्द भी नहीं बोला है - क्या प्रधानमंत्री के मंत्रियों पर कानून लागू नहीं होता?
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने अपनी तरफ से प्रियंका गांधी वाड्रा को जवाब दे दिया है - 'भाजपा की सरकार में न्याय होता है... जितने बड़े पद पर हूं, कोई और होता तो मुकदमा दर्ज नहीं होता - ये भाजपा की सरकार है और सबके लिए समान कानून है.'
अजय मिश्रा ने कहा, किसानों के भेष में उपद्रवियों ने लोगों को मारा पीटा, अगर मेरा बेटा मौके पर होता तो उसको भी मारा जाता.
बयानबाजी अपनी जगह है, लेकिन जब बेटे आशीष मिश्रा से पुलिस की पूछताछ चल रही थी तो अजय मिश्रा लखीमपुर खीरी के ही बीजेपी दफ्तर में डटे रहे. वहां उनके काफी समर्थक जुटे हुए थे और आशीष मिश्रा के समर्थन में नारेबाजी कर रहे थे. बीजेपी दफ्तर की बालकनी पर पहुंच कर अजय मिश्रा ने समर्थकों से शांत हो जाने की अपील का अंदाज भी काफी अजीब लगा.
अजय मिश्रा ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को बताया कि वो पूछताछ के लिए गया है और बोले, "ऐसी-वैसी कोई बात नहीं है... ऐसी-वैसी कोई बात होगी तो हम आपके साथ हैं."
भला 'ऐसी-वैसी बात' से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा का क्या आशय रहा होगा?
अजय मिश्रा कार्यकर्ताओं को समझाते हैं कि उनका बेटा पुलिस के पास सिर्फ पूछताछ के लिए गया है - और लगे हाथ सरेआम ये भी यकीन दिलाते हैं कि वो कुछ ऐसा वैसा नहीं होने देंगे. मोटे तौर पर समझें तो पुलिस या कोई भी जांच एजेंसी पूछताछ में मामला संदिग्ध लगने पर आरोपी को गिरफ्तार कर लेती है. क्या अजय मिश्रा अपने बीजेपी समर्थकों को यही यकीन दिलाना चाहते हैं कि अगर उनको आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी का डर है तो वो ऐसा वैसा नहीं होने देंगे?
और जब देश का गृह राज्य मंत्री सरेआम ये ऐलान कर रहा हो तो क्या पुलिस दबाव में काम नहीं कर रही होगी?
जब लखीमपुर खीरी सदर के बीजेपी विधायक योगेश वर्मा खुद स्कूटर चलाते हुए आशीष मिश्रा को पीछे बिठाकर पुलिस के पास पूछताछ के लिए ले जाते हैं तो क्या कोई मैसेज नहीं मिल रहा है?
प्रियंका गांधी ने भी तो आम चुनाव से पहले अपने पति रॉबर्ट वाड्रा को ईडी दफ्तर में पूछताछ के लिए ऐसे ही छोड़ा था. अब कोई स्कूटर से जाता है और कोई गाड़ी में बिठा कर ले जाये - मैसेज तो यही देने की होती है कि हम सब साथ साथ हैं.
प्रियंका गांधी की पार्टी सत्ता में नहीं थी, इसलिए रॉबर्ट वाड्रा को उनके ईडी दफ्तर तक जाकर छोड़ने में एक तरह के नैतिक समर्थन का अक्स देखा गया था. ये मामला भी सिर्फ एक बीजेपी नेता से नहीं जुड़ा है. ये तो ऐसे बीजेपी नेता का है जो केंद्रीय मंत्री है और वो भी गृह विभाग का - ऐसे में निष्पक्ष जांच का सारा दारोमदार योगी आदित्यनाथ पर ही आ जाता है.
अब तो ये भी देखना होगा कि योगी आदित्यनाथ केस को अपने स्तर पर ही हैंडल कर लेते हैं या फिर उन्नाव, हाथरस और गोरखपुर की ही तरह सीबीआई को सौंप देते हैं?
ये सब होने से पहले की ही बात है जब सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया - देश में हत्या के आरोपी को नोटिस देकर ऐसे पूछा जाता है क्या?
ये सुप्रीम कोर्ट की सख्ती ही है जो यूपी पुलिस ने आशीष मिश्रा को दोबारा नोटिस भेजा और अपना पक्ष रखने को कहा और ऐसा न करने पर कानून के हिसाब से कार्रवाई की बात कही थी.
यूपी पुलिस का आशीष मिश्रा को CrPC की धारा 160 के तहत नोटिस दिया जाना भी संदेहास्पद ही लगता है - क्योंकि ऐसा नोटिस किसी मामले की जांच के दौरान घटना के गवाहों को भेजा जाता है.
आशीष मिश्रा पर धारा 302 (हत्या), धारा 120 B (आपराधिक साजिश), धारा 279 (लापरवाही से गाड़ी चलाना), धारा 338 (जानलेवा चोट पहुंचाना), धारा 304 A (गैरइरादतन हत्या) के अलावा धारा 147, 148, 149 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है.
क्या CrPC की धारा 160 के तहत नोटिस दिये जाने पर ये समझा जाये कि पुलिस आशीष मिश्रा को लखीमपुर खीरी केस में गवाह बनाने की नींव रख चुकी है - और ये केस को कमजोर करने की नींव है?
लखीमपुर खीरी केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी काफी गंभीर है और ये योगी आदित्यनाथ की सरकार और पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना रहा, "लगता है यूपी सरकार ने सही और समुचित कदम नहीं उठाया... हम सीबीआई को केस नहीं देना चाहते... केस की गंभीरता को देखते हुए कोई टिप्पणी भी नहीं करना चाहते - लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार को एक आम मामले की तरह आरोपी पर शीघ्र कार्रवाई लेनी चाहिये थी.'
अब तो पूरी तरह साफ हो चुका है कि योगी आदित्यनाथ के लिए लखीमपुर खीरी केस महज किसानों से जुड़ा मसला रह नहीं गया है - और न ही गोरखपुर के मनीष गुप्ता कांड जैसा ही. ये बात अलग है कि आशीष मिश्रा भी शुरू में गोरखपुर के आरोपी पुलिसवालों जैसा ही व्यवहार कर रहे थे. आशीष मिश्रा को तो सिर्फ दो नोटिस ही भेजना पड़ा मनीष गुप्ता केस में लापता पुलिसवालों पर तो 25 हजार का इनाम भी घोषित किया जा चुका है.
जिस उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक ट्वीट कर देने भर से पुलिस आरोपी को सीधे घर से उठा ले जाती हो, वहीं पर हत्या के एक आरोपी के साथ जो व्यवहार हो रहा है, ऐसा वीआईपी ट्रीटमेंट तो इस देश में किसी गृह मंत्री के बेटे को ही मिल सकता है!
बेहद सभ्य तरीके से सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पूछा गया सवाल भी तो यही कहता है - "आखिर आप क्या संदेश देना चाहते हैं? 302 के मामले में पुलिस सामान्यतया क्या करती है? सीधा गिरफ्तार ही करते हैं ना? आरोपी जो भी हो कानून को अपना काम करना चाहिये."
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