हाथरस के घटनाक्रम (Hathras Case) ने योगी आदित्यनाथ सरकार के गवर्नेंस के तरीके पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है. हाथरस प्रशासन और यूपी पुलिस का जो रवैया देखने को मिला है, उसने कोरोना वायरस के मुश्किल वक्त और लॉकडाउन के दौरान बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के सारे किये कराये पर पानी फेर दिया है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस के एसपी सहित पांच पुलिस अफसरों को सस्पेंड कर तो दिया है, लेकिन ये उस सवाल का जवाब नहीं है जो हाथरस के मामले में हर कोई पूछ रहा है - आखिर वो कौन सा सच है जिसे छिपाने की कोशिश की गयी है?
सवाल ये है कि जो कुछ हुआ और होता रहा है उसे लेकर क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अंधेरे में रखा गया और अफसरों ने गुमराह किया - या पुलिस अफसरों (Police Officers Suspended) को बलि का बकरा बनाया गया है?
शक की गुंजाइश तो सरकार की ही देन है
हाथरस में विपक्षी नेताओं और मीडिया को एंट्री देना तो दूर, वहां के लोगों को भी आधार कार्ड देखने और बहुत ही जरूरी काम बताने पर आने जाने दिये जाने की खबर आयी. पूरे इलाके में पुलिस का कड़ा पहरा लगाने सिवा नेताओं और मीडिया को रोकने के पुलिस वाले या दूसरे अफसर भी कुछ बताने को भी तैयार नहीं दिखे.
बहुत देर बाद एक अफसर ने मीडिया को बताया कि चूंकि यूपी की एसआईटी पीड़ित परिवार से पूछताछ और गांव में जांच कर रही है, इसलिए किसी को जाने नहीं दिया जा रहा है, नहीं तो किसी को रोकने की कोई विशेष मंशा नहीं है.
सवाल है कि एसआईटी कौन सी गोपनीय जांच कर रही थी जिसमें मीडिया के पहुंच जाने से खलल पड़ जाती?
और गांव के लोग जो बता रहे थे कि बाहर निकलने के लिए आधार कार्ड देखा जा रहा है और कड़ी पूछताछ के बाद ही कुछ लोगों को बाहर निकलने की इजाजत मिल रही है. पीड़ित परिवार तो जैसे नजरबंद ही रहा. परिवार का ये भी आरोप रहा कि पुलिस ने उनको फोन पर बात करने से रोक दिया था - और कई लोगों के तो फोन भी ले लिये गये थे.
पुलिस अफसरों के खिलाफ जो एक्शन हुआ है...
हाथरस के घटनाक्रम (Hathras Case) ने योगी आदित्यनाथ सरकार के गवर्नेंस के तरीके पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है. हाथरस प्रशासन और यूपी पुलिस का जो रवैया देखने को मिला है, उसने कोरोना वायरस के मुश्किल वक्त और लॉकडाउन के दौरान बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के सारे किये कराये पर पानी फेर दिया है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस के एसपी सहित पांच पुलिस अफसरों को सस्पेंड कर तो दिया है, लेकिन ये उस सवाल का जवाब नहीं है जो हाथरस के मामले में हर कोई पूछ रहा है - आखिर वो कौन सा सच है जिसे छिपाने की कोशिश की गयी है?
सवाल ये है कि जो कुछ हुआ और होता रहा है उसे लेकर क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अंधेरे में रखा गया और अफसरों ने गुमराह किया - या पुलिस अफसरों (Police Officers Suspended) को बलि का बकरा बनाया गया है?
शक की गुंजाइश तो सरकार की ही देन है
हाथरस में विपक्षी नेताओं और मीडिया को एंट्री देना तो दूर, वहां के लोगों को भी आधार कार्ड देखने और बहुत ही जरूरी काम बताने पर आने जाने दिये जाने की खबर आयी. पूरे इलाके में पुलिस का कड़ा पहरा लगाने सिवा नेताओं और मीडिया को रोकने के पुलिस वाले या दूसरे अफसर भी कुछ बताने को भी तैयार नहीं दिखे.
बहुत देर बाद एक अफसर ने मीडिया को बताया कि चूंकि यूपी की एसआईटी पीड़ित परिवार से पूछताछ और गांव में जांच कर रही है, इसलिए किसी को जाने नहीं दिया जा रहा है, नहीं तो किसी को रोकने की कोई विशेष मंशा नहीं है.
सवाल है कि एसआईटी कौन सी गोपनीय जांच कर रही थी जिसमें मीडिया के पहुंच जाने से खलल पड़ जाती?
और गांव के लोग जो बता रहे थे कि बाहर निकलने के लिए आधार कार्ड देखा जा रहा है और कड़ी पूछताछ के बाद ही कुछ लोगों को बाहर निकलने की इजाजत मिल रही है. पीड़ित परिवार तो जैसे नजरबंद ही रहा. परिवार का ये भी आरोप रहा कि पुलिस ने उनको फोन पर बात करने से रोक दिया था - और कई लोगों के तो फोन भी ले लिये गये थे.
पुलिस अफसरों के खिलाफ जो एक्शन हुआ है वो एसआईटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही हुआ है - और पीड़ित परिवार के साथ साथ पुलिस अफसरों के भी पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट के आदेश दिये गये हैं. ये टेस्ट झूठ का पता लगाये जाने लिए कराये जाते हैं. मतलब, टेस्ट के जरिये ये जानने की कोशिश होगी कि पुलिस झूठ बोल रही है या पीड़ित परिवार के लोग?
सस्पेंड किये गये पुलिस अफसरों में शामिल हैं हाथरस के एसपी विक्रांत वीर, सीओ राम शब्द, इंसपेक्टर दिनेश कुमार वर्मा, एसएसआई जगवीर सिंह और थाने के हेड मुहर्रिर महेश पाल. पहले खबर आयी थी कि हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार पर भी एक्शन हुआ है, लेकिन एक्शन वाले सरकारी कागज में उनका नाम नहीं है. डीएम प्रवीण कुमार पर पीड़ित परिवार ने कई गंभीर आरोप लगाये हैं और उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें वो बयान बदलने की सलाह दे रहे हैं. साथ में धमका भी रहे हैं कि मीडिया वाले चले जाएंगे उसके बाद वही लोग रहेंगे. बताते हैं कि जब डीएम परिवार के लोगों से बात कर रहे थे तो घर में ही किसी ने वीडियो बना लिया और फिर सोशल मीडिया पर डाल दिया. पुलिस और प्रशासन को वीडियो बनाने और वायरल करने का शक परिवार पर ही हुआ और उसके बाद उनके फोन ले लिये गये थे. ये बातें पीड़ित लड़की के एक भाई ने पुलिस से छुपते हुए खेतों के रास्ते निकल कर मीडिया को बतायी है.
कैमरा पर सिर्फ ये ही बोले कि ऊपर से ऑर्डर है.ये ऊपर से ऑर्डर किसने दिये थे? कोई सिपाही या दारोगा कहे तो समझ में भी आता है, जब बड़े बड़े अफसर भी ऐसे ही बोल रहे हों तो शक तो गहराएगा ही. है कि नहीं?
जिस ऊपर के आदेश की बात हो रही है वो कितने ऊपर की है? दारोगा और सिपाही के लिए तो एसपी का ही हुक्म ऊपर का आदेश होता है, लेकिन अगर ऐसी ही बात प्रशासनिक अधिकारी भी करें तो शक गहरा जाता है - क्योंकि उनके लिए किसी एसपी का आदेश ऊपर का आदेश नहीं होता.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने योगी सरकार के एक्शन को लेकर कहा है कि अफसरों को मोहरा बनाया गया है. प्रियंका गांधी वाड्रा ने अफसरों के कॉल रिकॉर्ड सार्वजनिक करने की मांग की है ताकि मालूम हो सके कि जो कुछ हुआ वो किसके आदेश से हुआ?
निश्चित तौर पर ऊपर का ये आदेश रहस्य बना हुआ है. ऐसा दो तरीके से हो सकता है. हो सकता है सबको वास्तव में ऊपर से आदेश मिला हो. अफसरों के लिए लखनऊ से मिला हर आदेश ऊपर का ही आदेश होता है. ये भी हो सकता है कि स्थानीय स्तर पर ही ऊपर के आदेश के नाम पर जवाब देने से बचने का रास्ता खोजा गया हो - फिर तो ऐसा भी हो सकता है कि मुख्यमंत्री कार्यालय और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी हाथरस की हकीकत न बताकर गुमराह किया गया हो.
यूपी पुलिस के एडीजी की तरफ से बताया गया है कि मेडिकल रिपोर्ट से रेप की पुष्टि नहीं हुई है. पुलिस की नजर में रेप इसलिए नहीं हुआ है क्योंकि बॉडी पर स्पर्म नहीं मिले हैं. पुलिस ने मौत की वजह सदमे और गर्दन पर चोट के कारण बतायी है. ऐसे में हत्या का मामला तो चलेगा, लेकिन सेक्शुअल असॉल्ट का नहीं. पुलिस ने केस के चार आरोपियों को गिरफ्तार किया हुआ है. किसी लड़की पर कुछ लड़के हमला करें और उसकी गर्दन की हड्डी टूट जाये और मौत की वजह सदमा हो - फिर तो सवाल ये भी उठता है कि किस बात का सदमा या शॉक जो भी शब्द
इस्तेमाल किया जाये. हमले की शिकार लड़की को किस चीज का शॉक लगेगा? ये शॉक शारीरिक चोट की वजह से लगा है या मानसिक आघात के कारण?
बड़ा सवाल तो ये भी है कि पुलिस सिर्फ हत्या का मामला क्यों मान रही है?
निर्भया केस के बाद बलात्कार के कानूनों में काफी बदलाव हुए हैं और नयी व्यवस्था में अगर कोई पुरुष किसी लड़की या महिला को घूर कर भी देखता है और उसे आपत्तिजनक लगता है तो ये यौन हमले का मामला बनता है - फिर क्या यूपी पुलिस को ये नहीं मालूम कि पीड़ित के साथ बदसलूकी हुई होगी और आत्मरक्षा में उसने भी भी तो आखिरी दम तक संघर्ष किया होगा. जिस मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने बॉडी पर स्पर्म न मिलने के कारण बलात्कार के आरोप को झुठलाने की कोशिश की है - उसी रिपोर्ट में पीड़ित के प्राइवेट पार्ट को नुकसान पहुंचने की भी बात है.
क्या ऐसे सवालों के लिए सबूत न बचें, इसीलिए यूपी पुलिस ने रात के ढाई बचे शव का अंतिम संस्कार कर दिया और घर वालों को पास तक फटकने नहीं दिया?
क्या यही सारी बातें छुपाने के लिए मीडिया और विपक्षी नेताओं को इलाके में घुसने से रोका गया, परिवार पर कड़ा पहरा बैठा दिया गया और हर किसी को गांव से बाहर निकलने से रोका गया?
कहीं ऐसा तो नहीं कि शव के जबनर अंतिम संस्कार के बाद भी कुछ सबूत बचे हों उनको नष्ट करने के लिए ये सब किया गया?
योगी बार बार फंस कैसे जाते हैं?
प्रवासी मजदूरों और कोटा से यूपी के छात्रों की योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह आगे बढ़कर सक्रियता दिखायी थी और तब ऐसा लगने लगा था कि राजनीतिक विद्वेष की वजह से ही उनके विरोधी नौसिखिया साबित करने पर तुले रहते हैं - और हमेशा ही उनकी संसद में बिलख कर रोते हुए नेता की छवि की याद दिलाने की कोशिश करते हैं.
यूपी के मुख्यमंत्री को लेकर मायावती की बीजेपी नेतृत्व को सलाह और प्रियंका गांधी वाड्रा का इस्तीफा मांगना तो राजनीति से प्रेरित ठहराया जा सकता है, लेकिन बीजेपी की ही सीनियर नेता उमा भारती ने योगी आदित्यनाथ को जो नसीहत दी है - उस पर खुद योगी आदित्यनाथ, बीजेपी नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या सोच रहा है?
हाथरस की घटना ने योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक परिपक्वता और प्रशासनिक दक्षता पर एक बार फिर से सवाल खड़ा कर दिया है. करीब करीब वैसे ही सवाल उठाया है जैसे गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत के मामले में देखने को मिला था. जैसे सोनभद्र में हुए नरसंहार के बाद प्रियंका गांधी के दौरे में पहले हेकड़ी दिखायी और फिर घुटने टेक दिये - और प्रवासी मजदूरों के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा की भेजी बसों के मामले को हैंडल किया था.
आखिर क्या वजह है कि जो कांग्रेस नेतृत्व केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की हर कवायद में नाकाम हो जाता है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी, मोदी सरकार को घेरने के चक्कर में विपक्षी खेमे में खुद ही घिर जाते है, लेकिन प्रियंका गांधी एक बार नहीं बल्कि बार योगी आदित्यनाथ को कठघरे में खड़ा कर देती हैं?
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