सामूहिक बलात्कार की शिकार 17 साल की लड़की मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह का प्रयास करती है. अगले ही दिन न्यायिक हिरासत में उसके पिता की मौत हो जाती है. बीजेपी एक बाहुबली विधायक, उसके भाई और साथियों पर आरोप लगता है. मीडिया के सामने आकर विधायक पीड़ित परिवार को निम्न स्तर का करार देता है.
दलित सांसदों की नाराजगी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिदायत पर अमल करने के टेंशन से जूझ रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चेतना तब आती है जब मामलू काफी तूल पकड़ लेता है.
'दोषी बख्शा नहीं जाएगा...' बोल कर योगी वैसे ही भरोसा दिलाते हैं जैसे 'एनकाउंटर तो चलता रहेगा...', लेकिन उनकी पुलिस वफादारी में मशगूल रहती है. ये कोई और नहीं उन्नाव के डीएम का ही कहना है, जैसा कि खबरों में आया है.
क्या योगी आदित्यनाथ अब भी नौसिखिये ही हैं?
क्या आपको कभी लगा कि योगी आदित्यनाथ तेज तर्रार नहीं हैं? योगी के हाव-भाव, चाल-ढाल से तो कभी ऐसा नहीं लगा. बस संसद में उनके रोने की घटना को छोड़ दें तो अपनी वाणी से भी योगी ने हमेशा अलग ही अहसास कराया.
बीजेपी के सहयोगी अपना दल के एक विधायक को तो लगता है कि यूपी की सारी समस्याओं की जड़ के पीछे योगी आदित्यनाथ में अनुभव की कमी है. दुद्धी से अपना दल विधायक हरिराम चेरो का कहना है कि मुख्यमंत्री को तेज तर्रार होना चाहिए, ताकि अधिकारियों को भी संदेश जाए और वो मनमानी न कर पाएं. चेरो के मुताबिक अधिकारी उन्हें गुमराह कर रहे हैं - और इस तरह तो वो पांच साल सीखने में ही लगा देंगे. चेरो अपनी निजी पीड़ा भी जोड़ देते हैं, "ऐसे ही अनुभवहीनता दिखाएंगे तो आने वाले समय में बीजेपी का जीतना मुश्किल हो जाएगा. हमारी भी पार्टी गठबंधन में है....
सामूहिक बलात्कार की शिकार 17 साल की लड़की मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह का प्रयास करती है. अगले ही दिन न्यायिक हिरासत में उसके पिता की मौत हो जाती है. बीजेपी एक बाहुबली विधायक, उसके भाई और साथियों पर आरोप लगता है. मीडिया के सामने आकर विधायक पीड़ित परिवार को निम्न स्तर का करार देता है.
दलित सांसदों की नाराजगी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिदायत पर अमल करने के टेंशन से जूझ रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चेतना तब आती है जब मामलू काफी तूल पकड़ लेता है.
'दोषी बख्शा नहीं जाएगा...' बोल कर योगी वैसे ही भरोसा दिलाते हैं जैसे 'एनकाउंटर तो चलता रहेगा...', लेकिन उनकी पुलिस वफादारी में मशगूल रहती है. ये कोई और नहीं उन्नाव के डीएम का ही कहना है, जैसा कि खबरों में आया है.
क्या योगी आदित्यनाथ अब भी नौसिखिये ही हैं?
क्या आपको कभी लगा कि योगी आदित्यनाथ तेज तर्रार नहीं हैं? योगी के हाव-भाव, चाल-ढाल से तो कभी ऐसा नहीं लगा. बस संसद में उनके रोने की घटना को छोड़ दें तो अपनी वाणी से भी योगी ने हमेशा अलग ही अहसास कराया.
बीजेपी के सहयोगी अपना दल के एक विधायक को तो लगता है कि यूपी की सारी समस्याओं की जड़ के पीछे योगी आदित्यनाथ में अनुभव की कमी है. दुद्धी से अपना दल विधायक हरिराम चेरो का कहना है कि मुख्यमंत्री को तेज तर्रार होना चाहिए, ताकि अधिकारियों को भी संदेश जाए और वो मनमानी न कर पाएं. चेरो के मुताबिक अधिकारी उन्हें गुमराह कर रहे हैं - और इस तरह तो वो पांच साल सीखने में ही लगा देंगे. चेरो अपनी निजी पीड़ा भी जोड़ देते हैं, "ऐसे ही अनुभवहीनता दिखाएंगे तो आने वाले समय में बीजेपी का जीतना मुश्किल हो जाएगा. हमारी भी पार्टी गठबंधन में है. हमें भी विधायक बनना है. सरकार की यही कार्यशैली रही तो मैं दोबारा विधायक नहीं बन पाऊंगा."
चेरो ने योगी के बारे में अपनी राय सोनभद्र में बालू खनन में होने वाली गड़बड़ी को लेकर साझा की है, लेकिन जहां तक प्रशासनिक अनुभव की बात है तो उसका असर पूरे सूबे पर होगा. वैसे भी योगी सीएम बनने से पहले सांसद तो पांच टर्म बन चुके थे, लेकिन न तो मोदी कैबिनेट में उन्हें एंट्री मिली, न कोई प्रशासनिक अनुभव लेने का मौका.
19 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दो दिन बाद योगी आदित्यनाथ 21 मार्च को बतौर सांसद लोक सभा में अपना आखिरी भाषण दिया था - और तब के चर्चित 'यूपी के लड़कों' का जिक्र छेड़ कर कहा था - 'राहुल जी मेरे से एक साल बड़े हैं और अखिलेश जी एक साल छोटे. दोनों के बीच मैं आ गया, इसलिए खेल बिगड़ गया.'
बाद में अखिलेश यादव प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे और बात बात पर योगी उनके निशाने पर आ जा रहे थे, अनुभव की बात पर अखिलेश बोले, 'भले ही मैं उम्र में आपसे एक साल छोटा हूं, लेकिन काम में आप मुझसे बहुत छोटे हैं.'
वैसे अनुभव के मामले में अखिलेश यादव को भी मायावती वैसा ही समझती हैं जैसा वो योगी को. ये बात राज्य सभा चुनाव के दौरान मायावती ने जोर देकर कही थी जब बीएसपी उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर हार गये जबकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी जया बच्चन चुनाव जीत गयीं. मायावती का कहना था कि अखिलेश को अनुभव होता तो वो बीएसपी उम्मीदवार की जीत पर जोर देते. बाद में भी अखिलेश यादव को मायावती के अनुभव की तारीफ करते सुना गया.
एक्शन भी राजनीति का ही हिस्सा हुआ करता है, हमेशा रफा दफा से काम नहीं चलता. उन्नाव केस देखें तो योगी आदित्यनाथ भी मायावती की तरह एक्शन ले सकते थे - लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बीजेपी के सीएम पर भले ही तंज कस रहे हों, लेकिन गायत्री प्रजापति केस में वो भी ऐसे ही सवालों के घेरे में थे. वैसे सामूहिक बलात्कार के आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर पहले समाजवादी पार्टी में ही रहे हैं.
मायावती के खिलाफ टिप्पणी करने वाले बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह को गिरफ्तार करने के लिए अखिलेश यादव ने भले ही एसटीएफ को लगा दिया लेकिन अमेठी वाले रेप के आरोपी गायत्री प्रजापति के मामले में मुख्यमंत्री आवास की तलाशी ले लेने की बातें करते रहे. गायत्री प्रजापति पकड़े तो गये लेकिन यूपी विधानसभा के नतीजे आने के बाद ही.
अमित शाह ने बीएसपी से झटक कर योगी को स्वामी प्रसाद मौर्या और ब्रजेश पाठक जैसे नेता तो दे दिये, लेकिन सलाहकार लाने में चूक गये. बीएसपी नेता उमाकांत यादव की तरह न सही, मगर मायावती जैसा एक्शन लेने का योगी के पास पूरा मौका था.
दोस्ती और दुश्मनी की एक दास्तां
उन्नाव गैंग रेप केस का हाल भी एक और रेप केस जैसा ही होता, अगर पीड़ित लड़की अपनी मां, चाची, चार बहनों और छोटे भाई के साथ लखनऊ नहीं पहुंच पाती - और आत्मदाह की कोशिश न की होती. डर के मारे पीड़ित परिवार सरकारी गेस्ट हाउस में शरण लिये हुए है.
प्रशासनिक एक्शन को लेकर अपडेट ये है कि बीजेपी विधायक के भाई अतुल सिंह सेंगर सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. मीका थाना प्रभारी सहित छह पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया जा चुका है. पीड़ित लड़की के बयान के अनुसार, कोर्ट में चल रहा एक केस वापस लेने से इनकार करने पर बीजेपी विधायक के भाई और उनके साथियों ने उसके पिता को पेड़ से बांधकर बुरी तरह पीटा था और घसीटते हुए ले गये.
इंडियन एक्सप्रेस ने गांववालों से बातचीत कर जो रिपोर्ट प्रकाशित की है उसमें लिखा है पीड़ित युवती के पिता को विधायक के रिश्तेदार रास्ते में उस वक्त पीटने लगे जब वो अपने घर जा रहे थे. फिर वे लोग उसे विधायक के घर ले गये और खूब पिटायी की. बाद में पुलिस को बुलाकर सौंप दिया. पुलिस ने भी ऐसे मामलों में अपनी आदत के अनुसार काम किया. सबसे आसान काम आर्म्स एक्ट में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. हालत खराब होने पर अस्पताल ले जाया गया जहां उसने दम तोड़ दिया.
इस बीच गैंगरेप पीड़ित के पिता का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वो सिलसिलेवार बता रहे हैं कि कैसे सब होता गया और पुलिस चुपचाप खड़ी मुहं देखती रही.
कुछ और भी रिपोर्ट हैं जिनमें बताया गया है कि बीजेपी विधायक के भाई का जेल में सप्लाई का ठेका है. जेल में भी पीड़ित युवती के पिता की पिटाई के इल्जाम हैं. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर माना जा रहा है कि बुरी तरह पिटायी से तमाम जख्म और आंत फट जाना मौत की वजह बनी है. आरोपी बीजेपी विधायक का बयान सुने तो तो लगता है कि उसके लिए ये महज एक और केस है. न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में विधायक सेंगर ने पीड़ित परिवार को 'निम्न स्तर' का बताया है.
बीजेपी विधायक का ये बयान क्या राजनीतिक रसूख से उपजी बेफिक्री जता रहा है? क्या ये शासन के उच्चतम स्तर से मिली आश्वस्ति का भरोसा है? यूपी की सियासत और वारदात की दुनिया में पहले पायदान पर चल रही इस घटना की तह में जाने पर कई अलग कहानियां भी सामने आती हैं. मीडिया रिपोर्ट ऐसी कहानियों से भरी पड़ी हैं. बताते हैं माखी गांव के सराय थोक मोहल्ले में रहने वाले ये सभी लोग किसी दौर में महज पड़ोसी नहीं बल्कि बेहद करीबी हुआ करते थे. करीब डेढ़ दशक पहले की बात है जब पीड़ित युवती के पिता, चाचा और ताऊ - सेंगर के बेस्ट फ्रेंड हुआ करते थे. ये बात तब की है जब सेंगर विधायक नहीं बने थे. इलाके में चारों का इतना दबदबा था कि किस्से दूर दूर तक सुनाई देते रहे. सेंगर 2002 में पहली बार विधायक बने और तीनों दोस्तों से कन्नी काटने लगे. तीनों भाइयों को ये बात हजम नहीं होती और वे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकते. देखते ही देखते ये दोस्ती एक दूसरे की जान की दुश्मन बन गयी. युवती के चाचा चाचा और ताऊ पर करीब दर्जन भर और पिता के खिलाफ 27 आपराधिक मामले दर्ज बताये जाते हैं.
भूल सुधार का मौका अभी है
पीड़ित की ओर से एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर सीबीआई जांच की गुजारिश की है. जिसे मंजूरी मिल गई है. इलाहाबात हाई कोर्ट ने भी उन्नाव केस को स्वतः संज्ञान में लिया है और यूपी सरकार से पूछा है कि वे सेंगर को गिरफ्तार करेंगे या नहीं ? जिसका जवाब 'हां' में दिया गया है.
मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि पोस्टमॉर्टम हाउस में उन्नाव के जिलाधिकारी को माखी पुलिस की हरकत पर काफी गुस्से में देखा गया. डीएम का कहना था कि वफादारी दिखाने के चक्कर में स्थानीय पुलिस ने सबकी फजीहत करा डाली. पुलिस से डीएम जानना चाहते थे कि रिपोर्ट दर्ज करने में दिक्कत क्या थी? आखिर इसकी जानकारी एसपी और डीएम को क्यों नहीं दी गयी. अगर रिपोर्ट दर्ज हो जाती तो विवेचना में सच्चाई सामने आ जाती. देखा जाये तो यही सवाल प्रदेश के राजनीतिक नेतृत्व के सामने भी उठना चाहिये.
तो क्या यूपी के सीएम इस केस में पूरी तरह चूक गये? ऐसा नहीं है. भूल सुधार का मौका खत्म नहीं हुआ है. एसआईटी बनने के बाद उसके जरिये भी तो एक्शन लिया ही जा सकता है. अगर विधान परिषद चुनाव कोई बाधा नहीं हैं तो अब देर करना ठीक नहीं होगा. उत्तर प्रदेश की 13 विधान परिषद सीटों के लिए 26 अप्रैल को चुनाव होने हैं. सत्ता पक्ष और योगी चाहें तो मायावती जैसा कदम उठाने का उनके पास मौका है. अरे, सेंगर गिरफ्तार हो भी जाते तो कौन कहे कि उनका हाल भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण जैसा हो जाता? रावण के समर्थकों का आरोप है कि पुलिस टॉर्चर के कारण उनकी हालत अपाहिज जैसी हो गयी है.
अगर सेंगर की तरह योगी को भी लगता है कि उनके विधायक को सियासी वजहों से फंसाया गया है तो इंसाफ के मंदिर में सब दूध का दूध और पानी का पानी तो हो ही जाता - और नहीं भी होता तो क्या फर्क पड़ता. जैसे खुद के खिलाफ केस वापस लेने के कदम उठाये गये, मुजफ्फरनगर दंगा भड़काने के आरोपियों के खिलाफ केस वापस लिये जा रहे हैं, वैसा ही एक और केस वापस हो जाता. एक कागज ही तो भेजना था अदालत में. आखिर सीनियर बीजेपी नेता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ रेप केस वापस लेने की बात तो अभी अभी ही सामने आयी है. अगर ऐसी नौबत आ ही गयी तो ठीक वैसे ही एक केस सेंगर का भी चला जाएगा - क्या हो जाएगा, भला? सियासत और सत्ता होती किसलिए है? बस मास्टर की एक बार हाथ लगने की देर भर ही तो होती है. है कि नहीं?
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