उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के मगहर में कबीर के मकबरे पर टोपी पहनने से इंकार कर दिया था. ऐसा करके हिंदुत्व बलों को ये संदेश दे रहे थे कि वह अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखेंगे. आदित्यनाथ अगले दिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की होने वाली यात्रा की व्यवस्था के इंतजामों की समीक्षा करने के लिए मकबरे पर गए थे. और भले ही योगी आदित्यनाथ को टोपी की पेशकश इसलिए की गई थी क्योंकि मजार पर आने वाले सभी लोगों को परिसर के अंदर अपने सिर को ढंकना जरुरी होता है. लेकिन यूपी के भगवाधारी मुख्यमंत्री इस विचार को लेकर साफ तौर पर उत्साहित नहीं थे.
और मुख्यमंत्री के ऐसा करने से दो अन्य बीजेपी नेताओं को भी उस पवित्र स्थान पर बिना सिर को ढंके जाने के लिए प्रेरणा मिली. कबीर को पारंपरिक रूप से एक संत के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच की खाई को पाटने में अहम् भूमिका अदा की. उनके अनुयायी दोनों समुदायों से आते हैं. लेकिन योगी आदित्यनाथ ने भावनाओं के खिलाफ जाकर अपनी सोच साफ कर दी.
और अगर इतना ही काफी नहीं था तो योगी ने पुराने लखनऊ में मध्ययुगीन टाइल-वाली मस्जिद में लक्ष्मण की मूर्ति स्थापित करने का प्रस्ताव रखकर आग में घी और डाल दिया है. और इसके पीछे कारण ये दिया गया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने लखनऊ शहर की स्थापना की थी, जिसे लक्ष्मणपुरी नाम दिया गया था. मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा 17 वीं शताब्दी में मस्जिद का निर्माण कराना स्थिति को और बिगाड़ सकता है.
जब एक वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कालराज मिश्रा के कद का इंसान ये कहने लगे कि लखनऊ का नाम बदलकर "लक्ष्मणपुरी" रखा जाएगा, तो ये समझना मुश्किल नहीं...
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के मगहर में कबीर के मकबरे पर टोपी पहनने से इंकार कर दिया था. ऐसा करके हिंदुत्व बलों को ये संदेश दे रहे थे कि वह अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखेंगे. आदित्यनाथ अगले दिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की होने वाली यात्रा की व्यवस्था के इंतजामों की समीक्षा करने के लिए मकबरे पर गए थे. और भले ही योगी आदित्यनाथ को टोपी की पेशकश इसलिए की गई थी क्योंकि मजार पर आने वाले सभी लोगों को परिसर के अंदर अपने सिर को ढंकना जरुरी होता है. लेकिन यूपी के भगवाधारी मुख्यमंत्री इस विचार को लेकर साफ तौर पर उत्साहित नहीं थे.
और मुख्यमंत्री के ऐसा करने से दो अन्य बीजेपी नेताओं को भी उस पवित्र स्थान पर बिना सिर को ढंके जाने के लिए प्रेरणा मिली. कबीर को पारंपरिक रूप से एक संत के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच की खाई को पाटने में अहम् भूमिका अदा की. उनके अनुयायी दोनों समुदायों से आते हैं. लेकिन योगी आदित्यनाथ ने भावनाओं के खिलाफ जाकर अपनी सोच साफ कर दी.
और अगर इतना ही काफी नहीं था तो योगी ने पुराने लखनऊ में मध्ययुगीन टाइल-वाली मस्जिद में लक्ष्मण की मूर्ति स्थापित करने का प्रस्ताव रखकर आग में घी और डाल दिया है. और इसके पीछे कारण ये दिया गया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने लखनऊ शहर की स्थापना की थी, जिसे लक्ष्मणपुरी नाम दिया गया था. मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा 17 वीं शताब्दी में मस्जिद का निर्माण कराना स्थिति को और बिगाड़ सकता है.
जब एक वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कालराज मिश्रा के कद का इंसान ये कहने लगे कि लखनऊ का नाम बदलकर "लक्ष्मणपुरी" रखा जाएगा, तो ये समझना मुश्किल नहीं एक और अयोध्या बनाने के लिए तैयारी शुरु हो चुकी है. कुछ हफ्ते पहले, जब देश ईद मना रहा था, तब योगी ने बिना किसी लाग लपेट के इस बात की घोषणा की थी- "मैं हिंदू हूं और मुझे ईद मनाने में विश्वास नहीं है." उनकी इस टिप्पणी को हर अखबार, न्यूज़ चैनल ने हेडलाइन बना डाली. क्योंकि यह पहली बार था जब यूपी के मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से ऐसी घोषणा की थी.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि यूपी के मुख्यमंत्री का हर कदम भगवा ब्रिगेड के उस बड़े गेमप्लान का हिस्सा है जिसमें 2019 के आम चुनावों से पहले देश में सांप्रदायिक विभाजन को एक नए स्तर पर ले जाने की तैयारी है. इसे उस नए चुनावी गठबंधन का मुकाबला करने की एकमात्र रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. आखिरकार, 201 9 के आम चुनाव ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे, जिनके करिश्मे ने बीजेपी को 2014 में शानदार रिकॉर्ड जीत दिलाई थी.
हालांकि, पिछले चार सालों में मोदी की लोकप्रियता में आई गिरवाट को देखते हुए बीजेपी अपने सांप्रदायिक कार्ड को खेलने के लिए तैयार है. और भगवाधारी यूपी मुख्यमंत्री को हिंदुत्व के शुभंकर के रूप में पेश कर अगले आम चुनाव में पार्टी की नईया पार लगाना चाह रहे हैं. 26 जून को आदित्यनाथ के साथ वरिष्ठ आरएसएस नेताओं की लंबी बैठक में आदित्यनाथ के नाम का खुला समर्थन किया गया था. साथ ही अंदरूनी सूत्रों ने दावा किया कि बैठक में चुनाव से पहले ध्रुवीकरण सुनिश्चित करने की व्यापक रूपरेखा भी तय की गई थी.
आरएसएस ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इसे ही सुविधाजनक पाया क्योंकि 15 महीने पहले हॉट सीट पर बैठने के समय से ही योगी आदित्यनाथ इस रास्ते पर चल रहे थे. बुचड़ खानों को बंद करने से लेकर, "लव जिहाद", "घर वापसी" और "रोज़ा इफ्तर" की मेजबानी करने की पुरानी परंपरा को बंद करने से लेकर "मदरसा" के खिलाफ उनकी आवाज, सब सांप्रदायिक विभाजन को जन्म देने के लिहाज से लिए गए थे.
ऐसा लगता है कि पूरे भगवा ब्रिगेड को "विकास" की राजनीति से धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), समाजवादी पार्टी (एसपी), राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के गठबंधन से विपक्षी की बढ़ी हुई ताकत ने प्रेरित किया है. यूपी में हाल ही में हुए चार उप-चुनावों में बीजेपी की निराशाजनक हार में इस गठबंधन का ट्रेलर दिख गया था. 2019 में इस गठबंधन का पूरा पिक्चर दिख सकता है.
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