उत्तर प्रदेश में लगता है चुनावी दावे, चुनावी वादों की जगह लेने वाले हैं. आलम ये है कि सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी में दावा करने को लेकर सबसे ज्यादा होड़ मची हुई है.
पहले तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से टक्कर लेती नजर आ रही थीं - क्योंकि मायावती की आक्रामक राजनीति कांग्रेस विरोध तक ही आक्रामक होने तक सिमटी नजर आती रही, लेकिन पंचायत चुनावों के बाद से अखिलेश यादव ज्यादा एक्टिव नजर आने लगे हैं.
हाल ही में समाजवादी नेता जनेश्नर की जयंती के मौके पर प्रेस कांफ्रेंस में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का दावा रहा, 'अभी तक हम 350 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे... आज जनता की नाराजगी इतनी है कि हम 400 सीटें जीत सकते हैं - बीजेपी से जनता बहुत नाराज है, उम्मीदवार भी नहीं मिलेंगे.'
पंचायत आज तक कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने सीटों के नंबर का दावा तो दोहराया ही, ये भी कहा कि तीन सीटें विपक्ष के पास रहेंगी ताकि लोकतंत्र मजबूत रहे.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह तक अखिलेश यादव के दावे को हवा हवाई बता रहे हैं - हालांकि, बीजेपी ने भी 300 प्लस सीटों का लक्ष्य बता रखा है और बीजेपी नेताओं के मुंह से ये बात बार बार सुनने को भी मिल रही है.
अखिलेश यादव का दावा है कि योगी सरकार में समाजवादी पार्टी की सरकार के कामों को ही अपना बता कर प्रचारित किया जा रहा है, तो योगी आदित्यनाथ का दावा है कि सारे काम बीजेपी की सरकार में हुए और उनके पहले की सरकार ने सिर्फ कागज पर ही काम कराये थे.
और फिर अखिलेश यादव बीजेपी और उसकी सरकार पर झूठ बोलने का इल्जाम जड़ देते हैं - ये सवाल उठाये जाने पर योगी आदित्यनाथ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का उदाहरण देते हुए दावा करते हैं कि बीजेपी जो कहती है वही करती है. फिर तो स्पष्ट लग रहा है कि बीजेपी 2019 के आम चुनाव के उलट अयोध्या में राम मंदिर...
उत्तर प्रदेश में लगता है चुनावी दावे, चुनावी वादों की जगह लेने वाले हैं. आलम ये है कि सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी में दावा करने को लेकर सबसे ज्यादा होड़ मची हुई है.
पहले तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से टक्कर लेती नजर आ रही थीं - क्योंकि मायावती की आक्रामक राजनीति कांग्रेस विरोध तक ही आक्रामक होने तक सिमटी नजर आती रही, लेकिन पंचायत चुनावों के बाद से अखिलेश यादव ज्यादा एक्टिव नजर आने लगे हैं.
हाल ही में समाजवादी नेता जनेश्नर की जयंती के मौके पर प्रेस कांफ्रेंस में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का दावा रहा, 'अभी तक हम 350 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे... आज जनता की नाराजगी इतनी है कि हम 400 सीटें जीत सकते हैं - बीजेपी से जनता बहुत नाराज है, उम्मीदवार भी नहीं मिलेंगे.'
पंचायत आज तक कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने सीटों के नंबर का दावा तो दोहराया ही, ये भी कहा कि तीन सीटें विपक्ष के पास रहेंगी ताकि लोकतंत्र मजबूत रहे.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह तक अखिलेश यादव के दावे को हवा हवाई बता रहे हैं - हालांकि, बीजेपी ने भी 300 प्लस सीटों का लक्ष्य बता रखा है और बीजेपी नेताओं के मुंह से ये बात बार बार सुनने को भी मिल रही है.
अखिलेश यादव का दावा है कि योगी सरकार में समाजवादी पार्टी की सरकार के कामों को ही अपना बता कर प्रचारित किया जा रहा है, तो योगी आदित्यनाथ का दावा है कि सारे काम बीजेपी की सरकार में हुए और उनके पहले की सरकार ने सिर्फ कागज पर ही काम कराये थे.
और फिर अखिलेश यादव बीजेपी और उसकी सरकार पर झूठ बोलने का इल्जाम जड़ देते हैं - ये सवाल उठाये जाने पर योगी आदित्यनाथ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का उदाहरण देते हुए दावा करते हैं कि बीजेपी जो कहती है वही करती है. फिर तो स्पष्ट लग रहा है कि बीजेपी 2019 के आम चुनाव के उलट अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को ही चुनावी वादा पूरा करने की मिसाल के तौर पर पेश करने वाली है.
बीजेपी नेताओं के दावों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह के बाद अब यूपी बीजेपी अध्यक्ष भी योगी आदित्यनाथ सरकार को लेकर ऐसे दावे करने लगे हैं कि सुनते ही लोगों की हंसी फूट पड़ती है.
बीजेपी की तरफ से सबसे बड़ा दावा तो स्वतंत्रदेव सिंह (Swatantra Dev Singh) की तरफ से सामने आया है, 'यूपी में तो महंगाई नहीं है' - फिर तो सवाल ये उठता है कि क्या राम मंदिर निर्माण के वादे के बूते योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनावों में महंगाई के मुद्दे को भी दबा पाएंगे?
राम मंदिर निर्माण ही BJP का 'सत्यमेव जयते' है!
महज चार्जशीट फाइल होने तक ही नहीं, अदलतों में केस साबित होने के बाद ही पुलिसिया दावों पर यकीन करना संभव हो पाता है. सिर्फ पुलिस की कौन कहे, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही नेताओं में आगे बढ़ कर दावे करने की होड़ शुरू हो चुकी है - और ऐसे मामले में ये समझना मुश्किल हो रहा है कि समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव और बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ में लीड कौन ले रहा है?
उन्नाव गैंग रेप और हाथरस गैंग रेप - ये ऐसे दो चर्चित मामले रहे हैं जिस पर लगा राजनीति ने अपराध को भी पीछे छोड़ दिया. उन्नाव के दो मामले रहे - एक जिसमें बीजेपी विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर को सजा भी हो चुकी है - और दूसरा, जिसमें पीड़ित को जलाने की कोशिश हुई और गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाये जाने के बाद उसको बचाया न जा सका. यही एक मामला रहा जब प्रियंका गांधी वाड्रा, अखिलेश यादव और मायावती तीनों ही यूपी के बड़े विपक्षी नेता सड़कों पर उतर आये थे.
उन्नाव और हाथरस गैंगरेप को लेकर सवाल पूछे जाने पर योगी आदित्यनाथ का दावा है कि यूपी पुलिस का जो स्टैंड रहा वही आगे तक कायम रहा. मतलब, जब सीबीआई ने जांच की - लेकिन ये दावा तथ्यों से बिलकुल भी मैच नहीं करता.
उन्नाव गैंग रेप केस में यूपी के आला अफसरों को प्रेस कांफ्रेंस में कुलदीप सेंगर को 'माननीय विधायक जी' कह कर संबोधित करते सभी ने सुना. पुलिस अफसरों का दावा रहा कि तत्कालीन बीजेपी विधायक पर सिर्फ आरोप ही तो लगे हैं. अब इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जिस अपराध को यूपी पुलिस के बड़े अफसर आरोपों के दायरे में रख कर क्लीन चिट देने की कोशिश कर रहे थे, उसी अपराध के लिए अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनायी है.
हाथरस को लेकर भी योगी आदित्यनाथ का दावा उनके पुलिसवालों जैसा ही रहा. योगी आदित्यनाथ की एक बात जरूर सही है कि सामूहिक बलात्कार के आरोपियों को यूपी पुलिस ने ही गिरफ्तार किया था. हालांकि, पुलिस ने केस भी दर्ज बवाल मचने के बाद ही किया था. लेकिन असल बात वो भूल जाते हैं कि यूपी पुलिस के एडीजी प्रशांत कुमार आखिर तक रेप न होने के दावे करते रहे - और सीबीआई ने जांच के बाद न सिर्फ रेप के आरोपों को सही पाया, बल्कि गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ ही चार्जशीट भी फाइल की.
अपराधियों के एनकाउंटर के मामले में योगी आदित्यनाथ अब यूपी पुलिस की पीठ 'ठोक दो' वाले लहजे में ही थपथपाते हैं - और बार बार पूछे जाने पर भी जवाब एक ही होता है - एक्सीडेंट का क्या कभी भी हो सकता है. गाड़ी तो कभी भी पलट सकती है.
अखिलेश यादव का दावा है, 'भारतीय जनता पार्टी झूठा प्रचार कर रही है कि उत्तर प्रदेश का लॉ एंड ऑर्डर बेहतर है - झूठ बोलने में भाजपा नंबर वन है.'
ये सुन कर योगी आदित्यनाथ अपने पूर्ववर्ती अखिलेश यादव के दावों की खिल्ली उड़ा रहे हैं. आज तक के कार्यक्रम में जब योगी आदित्यनाथ को बताया गया कि अखिलेश यादव बीजेपी पर झूठ बोलने के आरोप लगा रहे थे, तो वो मुस्कुरा रहे थे.
पहले योगी आदित्यनाथ को अखिलेश यादव की बातों से रूबरू कराया गया, 'बीजेपी हमेशा झूठ बोलती है. बेरोजगारी के मामले में उत्तर प्रदेश नंबर वन है. कुपोषण के मामले में उत्तर प्रदेश नंबर वन है. भूखमरी से मरने वाली मौत के मामले में उत्तर प्रदेश नंबर वन है... आपकी सरकार ने एक भी बिजली का प्लांट नहीं लगाया... आपकी सरकार ने किसानों की कर्जमाफी नहीं की... आपने सिर्फ शिलान्यास अपने नाम किये हैं - अभी तक उद्घाटन नहीं कर पाये. पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का क्रेडिट भी वो ले लिये.'
अखिलेश यादव की बातों पर रिएक्शन मांगने पर योगी आदित्यनाथ सीधे अयोध्या मुद्दे पर ले जाते हैं. कहते हैं, 'देखिये... हमने कहा था रामलला हम आएंगे, मंदिर वही बनाएंगे... ये हमी ने कहा था और हमने कितना सच किया है... आज जब अयोध्या में राम जन्मभूमि की भव्य मंदिर निर्माण का कार्य शुभारंभ हो चुका है,' और फिर तंज भी कसते हैं, 'उनके अब्बाजान तो कहते थे कि परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा.'
'परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा,' ये मुलायम सिंह का चर्चित डायलॉग रहा है - हालांकि, चुनावों के वक्त अब वो अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने की घटना की बार बार याद दिलाते हैं. अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ को ऐसा बोलने के लिए कड़ी चेतावनी दी है, 'मैंने उनका इंटरव्यू सुना. हमारा आपका मुद्दों पर झगड़ा हो सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री अपनी भाषा पर संयम रखें... मुख्यमंत्री मेरे पिता के बारे में ऐसी भाषा का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? मेरे पिता के बारे में कहेंगे तो अपने पिता के बारे में भी सुनने के लिये तैयार रहें.'
निश्चित तौर पर राम मंदिर निर्माण हो रहा है, लेकिन ये भी याद रहना चाहिये कि ये अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संभव हो पाया है. राम मंदिर मुद्दे के अलावा योगी आदित्यनाथ बातों के जोर पर सवालों को झुठलाते ही लगते हैं - क्या बीजेपी का 'सत्यमेव जयते' यही है?
क्या देश में महंगाई है?
गुजरे जमाने में एक नारा चला था - 'ना जात पर ना पांत पर, इंदिरा जी की बात पर - मुहर लगेगी हाथ पर' और फिर वैसे ही कांग्रेस में ही एक जुमला मशहूर हुआ था, 'न खाता न बही, जो केसरी कहें वही सही.' कांग्रेस नेता सीताराम केसरी को लेकर बने इस जुमले को बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से जोड़ कर भी पेश किया जाने लगा. बीजेपी नेताओं को भी लग रहा है कि ऐसे ही दावों पर पूरे आत्मविश्वास के साथ कायम रहे तो शायद चुनावी वादों की भी जरूरत नहीं पड़ने वाली है.
यूपी की बीजेपी सरकार की तारीफ में अपने संसदीय वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने कोरोना संकट के दौरान, दूसरी लहर में भी, योगी आदित्यनाथ का काम शानदार रहा.
कुछ ही दिन बाद केंद्रीय गृह मंत्री उत्तर प्रदेश के दौरे पर पहुंचते हैं और ज्यादातर मामलों में उत्तर प्रदेश को देश में नंबर वन बताते हैं. ठीक वैसे ही, यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह का भी दावा है कि यूपी में महंगाई तो है ही नहीं.
जिस तरीके से स्वतंत्रदेव सिंह यूपी को लेकर दावे कर रहे हैं, उनकी बातों से तो ऐसा लगता है जैसे वो भी मानते हैं कि पूरे देश में महंगाई है - और जैसे योगी आदित्यनाथ के काम को कोविड 19 की दूसरी लहर के दौरान बेहतरीन बताने की कोशिश की जा रही है, लोगों को क्या लगता होगा?
बीजेपी तो वैसे भी हर चुनाव में इंटरन सर्वे कराती रहती है. यहां तक ही बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ भी सत्ता विरोधी लहर को पहले ही भांप लिया था - क्या यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मामले में भी फीडबैक मिल चुका है? बीजेपी के बड़े नेताओं के दावे तो ऐसे ही संकेत दे रहे हैं.
जब यूपी में कोरोना की दूसरी लहर के समय ऑक्सीजन, जरूरी दवाओं और अस्पतालों में बेड के लिए लोग सड़कों पर इधर उधर मदद की आस में भागते फिर रहे थे और कहीं कोई मदद नहीं मिल रही थी. योगी आदित्यनाथ अपने अफसरों को ऑक्सीजन की शिकायत करने वालों के खिलाफ एनएसए लगाने की हिदायत दिये हुए थे - क्या लोग चुनावों तक ये सब भूल जाएंगे?
हो सकता है अनुशासनहीनता के दायरे में रहने की मजबूरी के चलते योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखने वाले नेता खामोश हो जायें. हो सकता है कोरोना काल में पार्टी कार्यकर्ताओं की ही मदद कर पाने में फेल रहे बीजेपी नेता भी चुनावों के चलते बीती बातों को भुला कर आगे बढ़ जायें - लेकिन क्या वे लोग भी सब भूल जाएंगे जिनको बदइंतजामियों के चलते अपनों को गंवाना पड़ा? क्या उन मतदानकर्मियों के परिवार वाले भी कोरोना काल की पीड़ा को भुला पाएंगे, जिनको कोरोना से हुई मौत की बात मनवाने के लिए भी लड़ाई लड़नी पड़ी?
लखनऊ में आयोजित पंचायत आज तक कार्यक्रम में जब यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह यूपी में महंगाई न होने के दावा किये तो सामने बैठे लोगों में से कोई भी अपनी हंसी नहीं रोक पाया. बीजेपी नेता का कहना रहा, 'यूपी में महंगाई है ही नहीं... मैं दिन भर सुबह से शाम तक लोगों से मिलता हूं. एक भी व्यक्ति महंगाई से नाराज नहीं मिलता... प्रदेश में न महंगाई है और न ही महंगाई कोई चुनावी मुद्दा है.'
क्या योगी से लेकर मोदी तक सबको ऐसा वास्तव में लगता है कि उनके बयान ही पत्थर की लकीर है और लोग उसे आंख मूंद कर मान लेंगे? न किसी को महंगाई का तरफ ध्यान रहेगा, न कोविड 19 संकट की मुश्किलों का? बस, राम मंदिर निर्माण की वजह से फिर से बीजेपी को सत्ता सौंप देंगे?
अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला झारखंड चुनाव के वक्त ही आया था. अमित शाह ने चुनावी रैलियों में जोर शोर से क्रेडिट लेने की कोशिश की थी - लेकिन लोगों ने बीजेपी को दोबारा सत्ता नहीं सौंपी. झारखंड के बाद, बिहार को छोड़ दें, तो बीजेपी को दिल्ली और फिर पश्चिम बंगाल की पराजय तो याद होगी ही - ये पब्लिक है - और पब्लिक महंगाई भी समझती है और नेताओं की बातों का मतलब भी.
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