ट्विटर पर बिजनेस मैन हर्ष गोयनका ने लिखा-
भरतीय जब पैरिस में होते हैं तो एफिल टॉवर को देखकर कहते हैं कि हम ऐसे निर्माण क्यों नहीं कर सकते?
भरतीय जब न्यूयॉर्क में होते हैं तो एंपायर स्टेट बिल्डिंग को देखकर कहते हैं कि हम ऐसे निर्माण क्यों नहीं कर सकते?
भरतीय जब भारत में होते हैं तो सरदार पटेल की प्रतिमा को देखकर कहते हैं कि हम इसके बदले अस्पताल और स्कूल का निर्माण क्यों नहीं कर सकते.
जाहिर है गोयनका ने अपने ट्वीट के माध्यम से उन लोगों को निशाना बनाया जिन्होंने गुजरात में बनी सरदार पटेल की मूर्ति बनाए जाने का विरोध किया था. लोगों का विरोध इस बात को लेकर था कि इस मूर्ति को बनाने में 3600 करोड़ रुपए की लागत आई थी, जो कि एक बड़ा आंकड़ा है, ये बेहतर होता कि अगर इतनी बड़ी रकम को किसी और जगह उपयोग किया जाता. खैर अब इन बातों का कोई मतलब भी नहीं है क्योंकि मूर्ति तो बन चुकी है.
लेकिन गोयनका के इस ट्वीट का जवाब देते हुए बॉलीवुड एक्टर फरहान अख्तर ने जवाब दिया कि- 'यह एक झूठी समतुल्यता है. एफिल टावर और एम्पायर स्टेट बिल्डिंग दोनों ही किसी व्यक्ति द्वारा निजी धन का उपयोग कर बनाए गए थे. जबकि पटेल की मूर्ति जनता के पैसे से बनाई गई है. और यहां ये बात खत्म होती है.'
ये तो सभी जानते हैं कि सरदार पटेल की मूर्ति मोदी सरकार ने बनाई है और सरकार को पैसा देश भर की जनता टैक्स के रूप में देती है. लेकिन पटेल की मूर्ति को बनाने के लिए बहुत से लोगों ने करोड़ों का दान भी दिया है. लेकिन एफिल टॉवर और एंपायर स्टेट बिल्डिंग को लेकर फरहान अख्तर की कही बात में कितनी सच्चाई थी, ये गौर करने वाली बात है.
सरदार पटेल की प्रतिमा 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' पर 3600 करोड़ की लागत से बनी है
फरहान अख्तर को उनका जवाब भी जल्दी मिल गया. ये एक 'फैक्ट चैक' था जो True Indology ने किया था. इन्होंने फरहान अख्तर की बात को सरासर गलत साबित किया और इस बाबत कुछ तथ्य भी पेश किए.
इनका कहना था- 'ये गलत खबर है. एफिल टावर का निर्माण किसी व्यक्ति के द्वारा निजी धन का उपयोग कर नहीं हुआ है. 1889 में, फ्रांसीसी सरकार ने फ्रांसीसी क्रांति के 100 वर्षों का जश्न मनाने के लिए एक विश्व मेला आयोजित किया था. मंत्री लॉक्रॉय ने एफिल नामक एक इंजीनियर को टॉवर बनाने की जिम्मेदारी दी थी और इसके लिए पब्लिक फंड से 1.5 मिलियन फ्रैंक दिए गए थे.
उन्होंने 'कंसेशन कॉन्ट्रैक्ट ऑफ एफिल टॉवर' की कॉपी की तस्वीर भी शेयर की. ये कॉन्ट्रैक्ट फ्रांसीसी सरकार और फ्रांसीसी सिविल इंजीनियर मि. एफिल के बीच 8 जनवरी 1887 को हुआ था.
एफिल पर्यटक फीस और रेस्त्रां का किराया वसूल करने का हकदार था, जिन्होंने 20 सालों तक ऐसा किया भी. कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार, उन्होंने 20 सालों तक एफिल टावर की ओनरशिप का आनंद उठाया था.
एफिल टॉवर को बनाने वाले इंजीनियर का नाम था गुस्टावे एफिल जिनके पास 20 सालों तक एफिल टॉवर की ओनरशिप थी
इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती कि ये एक "निजी परियोजना" थी. और एफिल की मृत्यु एक अमीर आदमी के तौर पर ही हुई थी.
विश्व मेला "एक्सपोज़ीशन यूनिवर्सल" एक सफल कार्यक्रम रहा और 30 मिलियन पर्यटक एफिल टावर देखने के लिए गए. अनुमानित आय 324 मिलियन डॉलर थी जिसके सामने निर्माण लागत बहुत ही मामूली थी. इस कॉन्ट्रैक्ट ने एफिल को उस समय के दुनिया के सबसे अमीर पुरुषों में से एक बना दिया था.
तो फिलहाल एफिल टॉवर के बारे में फरहान अख्तर ने जो कहा था कि एफिल किसी व्यक्ति विशेष की निजी संपत्ति थी और उसे किसी ने निजी पैसों से बनवाया था, उसे इन तथ्यों ने गलत साबित कर दिया.
सरदार पटेल की मूर्ति बनी, उसे लेकर लोगों ने सरकार की बहुत आलोचनाएं की. देश की जनता को पूरा अधिकार है कि वो सरकार के किसी भी फैसले के साथ सहमत हो या न हो. लेकिन उसके पीछे गलत जानकारी प्रचारित करना लोगों को शोभा नहीं देता. हालांकि 'ट्रू इंडोलॉजी' ने फरहान अख्तर की बात को सिर्फ सही किया, लेकिन लोगों ने उन्हें ही सरकार की तरफदारी करने वाला, BJP का प्रचारक और सरदार पटेल की मूर्ति के बनने को सही कहने वाला बता दिया. अब लोगों का क्या करें...
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