10 फायदे, जो कांग्रेस को कर्नाटक में लिंगायत धर्म बनाने से मिलेंगे
कर्नाटक सरकार ने भाजपा का सबसे बड़ा वोट बैंक माने जाने वाले लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता की मंजूरी दे दी है जिससे बीजेपी बैकफुट पर आ गयी है. जानते हैं कि इस दांव से कांग्रेस को कितना फायदा हो सकता है.
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सियासी पारा अपने चरम पर पहुंच गया है. सभी राजनीतिक पार्टियों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने राजनीतिक दांव चलना शुरू कर दिए हैं. और इसी के तहत कांग्रेस ने एक ऐसा दांव चल दिया है, जिससे बीजेपी बैकफुट पर आ गयी है.
सिद्धारमैया की अगुवाई वाली कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने नागमोहन कमेटी की सिफारिशों को स्वीकारते हुए भाजपा का सबसे बड़ा वोट बैंक माने जाने वाले लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता की मंजूरी दे दी है और इसे अनुमोदन के लिए गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है. कांग्रेस के इस दांव से आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए परेशानी खड़ी हो गयी है.
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता की मंजूरी दे दी है
आइए जानते हैं इस दांव से कांग्रेस को कितना फायदा हो सकता है
1. कर्नाटक में लिंगायत समुदाय राज्य की कुल आबादी का 17 फीसदी है और भाजपा के कद्दावर नेता तथा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से आते हैं. ऐसी स्थिति में कांग्रेस लिंगायत समुदाय के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो सकती है.
2. अब चूंकि सिद्धारमैया की अगुवाई वाली कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने इसके अनुमोदन के लिए केंद्र के पास भेजा है ऐसे में इसमें देरी होने पर कांग्रेस भाजपा पर ठीकरा फोड़कर चुनाव में फायदा उठा सकती है. लिंगायत समुदाय का असर प्रदेश के 224 में से करीब 100 सीटों पर है.
3. चूंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है और अगर उसने इसका अनुमोदन नहीं किया तो संभव है कि लिंगायतों के एक हिस्से में बीजेपी के प्रति नाराजगी बढ़े और चुनाव में उसे उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है जो परोक्ष रूप से कांग्रेस को फायदा पहुंचा सकता है.
4. वर्ष 2013 में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को एक ज्ञापन भेजा गया था, जहां प्रमुख लिंगायत नेताओं ने वीरशैव-लिंगायत के लिए अलग धर्म का दर्जा मांगा था और इस ज्ञापन के एक हस्ताक्षरकर्ता बीएस येदियुरप्पा भी थे. ऐसे में भाजपा बैक फुट पर है और कांग्रेस आक्रामक.
5. वीरशैव को लिंगायत के साथ अलग धर्म का दर्जा देकर कांग्रेस ने वीरशैव के विरोध को भी शांत करते हुए उसके वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश की.
लिंगायत समुदाय का असर प्रदेश के 224 में से करीब 100 सीटों पर है
6. जब कांग्रेस ने 1990 में मुख्यमंत्री पद से लिंगायत नेता विरेन्द्र पाटिल को हटा दिया था तब से लिंगायत मतदाताओं का कांग्रेस से मोह भंग हो गया था. अब कांग्रेस की इस चाल से लिंगायत वोटर्स वापस कांग्रेस में आ सकते हैं.
7. कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के लिंगायत मंत्रियों ने बेंगलुरु में एक विशाल रैली की योजना बनाई है, जहां वे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सम्मानित करेंगे. उत्तर कर्नाटक जो लिंगायतों का गढ़ माना जाता है वहां कांग्रेस करीब 5 लाख लिंगैतों को इकट्ठा करने की योजना बना रही है. इस प्रकार कांग्रेस इस मुद्दे को चुनाव तक जीवित रखना चाहती है जिससे वो भुना सके.
8. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस के द्वारा उठाया गया यह नापा-तौला कदम है. अगर नए 20 से 30 फीसदी मतदाता कांग्रेस को वोट देते हैं तो इसे 20 से 25 सीटों का फायदा होगा और सरकार बनाने के लिए 113 की जादुई संख्या पाई जा सकती है.
9. कई राजनीतिक विश्लेषक तो इसे सिद्धारमैया द्वारा उठाया गया "मास्टर स्ट्रोक" मानते हैं. उनके अनुसार कांग्रेस के लिए खोने के लिए कुछ भी नहीं है यहां तक कि लिंगायतों का 10 फीसदी वोट भी अगर कांग्रेस को मिलता है तो भी यह एक बड़ा लाभ होगा.
10. कर्नाटक सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय के लिए एक अलग धर्म का दर्जा देने के लिए कुछ घंटे बाद ही लिंगायत और वीरशैव अनुयायियों के बीच संघर्ष शुरू हो गया था. इससे यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि कांग्रेस इस समुदाय को विभाजित करने में सफल रही जिसका फायदा इसे चुनाव में मिलना तय है.
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