पंजाब चुनाव प्रचार को देखकर 10 बातें जो मैंने जानीं
पंजाब के सबसे बड़े क्षेत्र मालवा (69 सीट) में प्रभावी AAP को यहीं रोकना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. और कांग्रेस अपने कैप्टन अमरिंदर सिंह पर भरोसा कर सकती है.
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कुछ दिन प्रचार अभियान का पीछा करने के बाद बड़े नतीजों पर पहुंचने की कवायद खतरे से भरी है. इसलिए, जादुई क्रिस्टल बॉल पास होने का दावा किए बिना पंजाब में अपनी चुनाव कवरेज यात्रा के कुछ अहम पहलुओं को आप तक पहुंचा रहा हूं. मेरा इरादा चॉपिंग ब्लॉक पर अपनी गर्दन रखने का नहीं है, इसलिए मैंने अपने विश्लेषण को उन्हीं बिंदुओं तक सीमित रखा है जो किसी भी निष्पक्ष चुनाव पर्यवेक्षक को काफी हद तक साफ दिखें.
1. मालवा में प्रभावी स्थिति में AAP
पंजाब में मालवा सबसे बड़ा क्षेत्र है क्योंकि 117 सदस्यीय विधानसभा में 69 सीटें यहीं से आती हैं. मालवा में हमने जहां का भी दौरा किया, वहां मतदाता अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए जोश से भरे दिखाई दिए.
इसमें कोई शक नहीं कि मालवा में AAP बेहतर प्रदर्शन करेगी. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि यह प्रदर्शन कितना अच्छा होगा. दिल्ली की तरह क्लीन-स्वीप जैसा? या फायदा कांग्रेस के साथ बंट जाएगा? मालवा के बठिंडा और पटियाला क्षेत्र क्रमश: बादल और अमरिंदर सिंह परिवारों के गढ़ माने जाते हैं. मतदाता अकालियों से बहुत चिढ़े हुए हैं इसलिए अकाली क्षेत्र में AAP के बेहतर प्रदर्शन की संभावना है. लेकिन यहां यह देखना अहम होगा कि क्या कांग्रेस अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों को खुद के पास बचाए रखने में कामयाब होती है?
अगर कांग्रेस मालवा में अपनी मजबूत समझी जाने वाली सीटों पर AAP की बढ़त को रोकने में कामयाब होती है तो मालवा से बंटा हुआ जनादेश सामने आएगा. वहीं, अगर कांग्रेस के गढ़ भी ढह जाते हैं तो AAP की झाड़ू मालवा क्षेत्र में ऐसी फिरेगी कि वो पंजाब के इस पावर-सेंटर में प्रदर्शन के दम पर ही सरकार बनाने के काफी नजदीक तक पहुंच जाएगी.
2. खेवनहार के तौर पर कैप्टन
खुद को अलग-थलग रखने और महाराजा की तरह बर्ताव करने के बावजूद कैप्टन अमरिंदर सिंह की छवि मतदाताओं में अच्छी है. वो अकेले हैं जो AAP के स्वीप और कांग्रेस के सफाए के बीच में डटे हुए हैं.
अगर कांग्रेस पंजाब जीतने में सफल रहती है तो इसका बहुत बड़ा कारण मतदाताओं पर कैप्टन अमरिंदर सिंह की पकड़ रहेगा. कैप्टन सिंह बेशक नवजोत सिंह सिद्धू और भगवंत मान की तरह लफ्जों से खेलना नहीं जानते हों लेकिन सिख समुदाय के लिए अहमियत रखने वाले मुद्दों पर वर्षों से उन्होंने जो स्टैंड लिया है उससे राज्य के लोगों की सद्भावना उन्होंने अवश्य अर्जित की है.
हाल में जितने राज्यों में चुनाव हुए हैं, अगर उनसे तुलना की जाए तो कांग्रेस के पंजाब में चुनाव प्रचार में अधिक धार दिखाई दी. कांग्रेस प्रशांत किशोर और उनकी टीम के सुझाए प्रचार के आधुनिक तौर-तरीकों का पंजाब में इस्तेमाल कर रही है. वहीं, यह भी सच है कि P.K. (जिस नाम से उनके दोस्त और विरोधी उन्हें जानते हैं) के पास मार्केटिंग के लिए मजबूत दावेदार भी है.
3. AAP का प्रभाव क्षेत्र सीमित
पंजाब तीन क्षेत्रों में बंटा है- मालवा, माझा और दोआबा. सबसे बड़े क्षेत्र मालवा (69 सीट) में AAP सबसे प्रभावी स्थिति में हैं. मालवा में बठिंडा, बरनाला, पटियाला, फरीदकोट, मानसा, पटियाला और संगरूर जिले आते हैं. मालवा वही क्षेत्र है जहां AAP ने सबसे अधिक ताकत और संसाधन झोंके हैं.
मालवा के बाहर जहां हमने दौरा किया, वहां AAP का असर वैसा नहीं दिखा जैसा कि मालवा क्षेत्र में दिखा. माझा क्षेत्र में अमृतसर, पठानकोट और तरन तारन और इनके आसपास का दौरा करते हुए हमें अधिकतर मतदाता 'हाथ' (कांग्रेस का चुनाव चिह्न) का साथ देने का संकेत देते दिखे.
दोआबा क्षेत्र के जालंधर, होशियारपुर और कपूरथला जैसे जिलों में भी कांग्रेस मजबूत दिखाई दी. लेकिन यहां AAP की स्थिति उतनी कमजोर नहीं दिखी जितनी की माझा में.
माझा और दोआबा में ढांचा खड़ा नहीं कर पाने की खामी उन बिंदुओं में शामिल है जिन पर AAP को विचार मंथन करना होगा. ये नहीं कहा जा सकता कि AAP इन क्षेत्रों में पूरी तरह साफ हो जाएगी.अगर इन दोनों क्षेत्रों से AAP कुछ सीटों को भी जीतने में कामयाब रही तो AAP का रास्ता आसान हो जाएगा. मालवा में AAP के बेहतर स्थिति में होने की चर्चा माझा और दोआबा तक पहुंच रही है, इससे इन दोनों क्षेत्रों के मतदाताओं के प्रभावित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
4. खराब पिच पर खड़े बादल
बादलों के लिए पंजाब में स्थिति कुछ कुछ वैसी ही है जैसे कि 2014 चुनाव से पहले केंद्र में यूपीए की थी. सुखबीर सिंह बादल के पास दावा करने के लिए कुछ विकास प्रोजेक्ट हैं. अमृतसर के गोल्डन टेम्पल में 'टूरिस्ट प्लाजा' विश्वस्तरीय हैं. यद्यपि भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप, ड्रग्स का नासूर और खराब कानून-व्यवस्था, ऐसे पहलू हैं जिन्होंने बादल को ढलान वाली स्थिति में ला दिया. जब हमने मतदाताओं से जानना चाहा कि वे सुखबीर सिंह बादल के बारे में क्या राय रखते हैं, तो जवाब मिला कि सुखबीर खुद तो नेकनीयत वाले शख्स हैं लेकिन शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष जिन लोगों से घिरे रहते हैं, उनसे वो नाखुश हैं.
दूसरे राज्यों के अन्य नेताओं की तरह बादलों ने अपनी संपत्ति को छुपाने के लिए कोई कोशिश नहीं की. इनमें से कुछ तो विरासत में मिली लेकिन संपत्ति का बड़ा हिस्सा अकाली सरकार के कार्यकाल के दौरान भी जुटा. संपत्ति का भड़कीला दिखावा ऐसे वक्त में किया गया जब मतदाताओं को घर का गुजारा चलाना भी मुश्किल हो रहा था. ये वो सच्चाई है जिसने मतदाताओं को गुस्से में ला दिया. बादल परिवार के कारोबारी हित बस संचालन से लेकर होटल और केबल टेलीविजन जैसे अहम व्यवसायों से जुड़े हैं.
5. केजरीवाल- मास्टर जादूगर?
कोई ये तर्क दे सकता है कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं से जो लंबे-चौड़े वादे किए थे, उनमें से कई पर वो खरे नहीं उतरे. AAP ने शहरी मध्यम वर्ग में जो शुरुआती अपील दर्ज की थी, उसमें अब तक काफी हिस्सा खो दिया है. लेकिन ग्रामीण पंजाब, खासतौर पर मालवा के गरीबों में केजरीवाल मसीहा सरीखे हैं. केजरीवाल अपने भाषणों में ये कहना नहीं भूलते कि वो चमत्कार होता दिखाने के लिए बहुत छोटे व्यक्ति हैं. केजरीवाल दिल्ली में मिले अपार जनादेश को प्रभु की इच्छा बताते हैं. साथ ही वो पंजाब के मतदाताओं को ये विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि दिल्ली जैसा कामों में चमत्कार पंजाब में भी हो सकता है. केजरीवाल चाहते हैं कि लोग विश्वास करें कि AAP का भविष्य 'ऊपरी शक्ति' ने लिखा है.
सभी राजनीतिक दलों में AAP की रैलियों में भीड़ अधिक जुड़ी हुई और उत्साहित नजर आती है. मतदाता केजरीवाल की ओर बड़ी उम्मीद लगाए दिखते हैं. दिल्ली में AAP के प्रदर्शन से विमुख होने की जगह गरीब तबका इस बात से खुश है कि AAP ने दिल्ली में बिजली और पानी के बिल कम कर दिए.
पंजाब के लोगों की पहचान जोखिम लेने वालों के तौर पर होती है. इसका सबूत दुनिया भर में बसे प्रवासी सिखों की कामयाबी की कहानियां हैं. कई मतदाता AAP को वोट देने के अपने फैसले को कुछ इस तरह बयां करते हैं- 'जुआ खेल के देखते हैं.' मतदाता कहते हैं कि अकालियों और कांग्रेस को दशकों तक आजमा कर देखा, इसलिए नई पार्टी को मौका देकर उनके पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है.
6. सिद्धू का असर सीमित
क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब में अपने हाथ को कुछ ज्यादा ही आंक कर देखा है. सिद्धू पर ऐसे आरोपों के बावजूद कि वे नेता के नाते अपना कर्तव्य निभाने की जगह अपना ज्यादा समय टीवी पर बिताते हैं, उनका प्रभाव अमृतसर के आसपास नजर आता है. इसमें कोई शक नहीं कि सिद्धू ओजस्वी वक्ता हैं. वे राज्य में कुछ सीटों को स्विंग करने में सक्षम हो सकते हैं. लेकिन सिद्धू वैसी क्रांतिकारी शक्ति होने से काफी दूर है, जैसा कि वो खुद को समझते हैं.
7. ड्रग्स असल समस्या
अकाली पिछले दो साल से ऊंचे आवाज में ये कहते रहे हैं कि ड्रग्स समस्या को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता रहा है. अकाली इस ओवर-हाइप को विपक्ष और मीडिया का ही किया-धरा बताते रहे हैं. अकालियों का दावा है कि राहुल गांधी के पास अपने इस दावे के लिए कोई सबूत मौजूद नहीं है कि पंजब के 70 फीसदी युवा ड्रग्स के आदि हैं.
बादलों के खिलाफ इस संदर्भ में आरोप बेशक बढ़ा-चढ़ा कर किए गए हों लेकिन ड्रग का दाग गोंद की तरह उनके दामन से चिपक गया है. और ये भारी नुकसान पहुंचा रहा है. विपक्ष के दावों के मुकाबले ड्रग्स के आदि लोगों का आंकड़ा बेशक बहुत कम हो लेकिन ड्रग का नासूर चुनाव में और किसी भी मुद्दे की तुलना में बादलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है.
8. कट्टरपंथियों से केजरीवाल का समर्थन लेना खतरनाक खेल
पंजाब की साम्यवादी ताकतों को समर्थन देने की लंबी परंपरा रही है. साथ ही अलगाववादी मूवमेंट का इतिहास भी इससे जुड़ा है. बाहर से ये बेशक विश्वसनीय न लगे, वैचारिक विभाजन के दोनों तरफ के चरमपंथी- अति वामपंथी और दक्षिणपंथी- दोनों ही इस चुनाव में केजरीवाल को समर्थन दे रहे हैं. खालिस्तान समर्थक तत्व मानते हैं कि अकाली अपने मूल पंथक अजेंडा पर नरम पड़े हैं और वो अकालियों को सबक सिखाने के लिए AAP का समर्थन करना चाहते हैं. अपने वोटों को बढ़ाने के लिए केजरीवाल कट्टरपंथियों का समर्थन ले रहे हैं लेकिन दीर्घ परिप्रेक्ष्य में देखें तो पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य के लिए ये खतरनाक साबित हो सकता है.
9. BJP ने खुद को अपने हाल पर छोड़ा
पंजाब में सियासी हाशिए पर पहुंच गई ताकत का नाम है BJP. पार्टी नेताओं ने दीवार पर लिखी इबारत पढ़ ली है, इसीलिए उनकी पूरी कोशिश लो-प्रोफाइल रहने की है. वे इस चुनाव को BJP के लिए प्रतिष्ठा की जंग नहीं बनाना चाहते. BJP पंजाब की जगह उत्तर प्रदेश में अपनी अग्नि-परीक्षा मान रही है. पार्टी पंजाब चुनाव को अकाली सरकार के कामकाज पर लोगों के जनादेश के तौर पर ले रही है.
इस चुनाव में बीजेपी बहुत कम कोशिश करती दिखी. सिर्फ उतनी ही जिससे कि ये सुनिश्चित हो सके कि अकालियों को बुरा ना लगे.
10. भारतीय राजनीति का भविष्य
राष्ट्रीय संदर्भ में देखें तो पंजाब बहुत छोटा राज्य है. ऐसे में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का मुद्दा देश के लोगों के जेहन पर अधिक छाया हुआ है. हालांकि अगर AAP पंजाब को जीतती है तो इससे भारतीय राजनीति की धारा में अहम मोड़ आएगा क्योंकि फिर AAP को राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी ताकत के तौर पर देखा जाएगा.
दिल्ली को सही मायने में कहें तो अर्ध-राज्य ही माना जा सकता है. राष्ट्रीय राजधानी में केजरीवाल के हाथ बंधे हैं. हालांकि पंजाब में पुलिस से लेकर सभी मंत्रालयों तक, शासन के सभी स्तर पर नियंत्रण विजेता के हाथ में ही रहेगा. अगर AAP पंजाब चुनाव जीतती है तो फिर उसके पास अपना सही बूता दिखाने का मौका होगा. या फिर ये भी साबित हो सकता है कि दिल्ली में शासन की कमी राजधानी में सत्ता को साझा करने के ढांचे की वजह से नहीं बल्कि AAP की पैदाइशी अयोग्यता की वजह से है, जिसके चलते वो खुद को शासन के लिए जरूरी मजबूत ताकत में खुद को तब्दील नहीं कर सकती.
पंजाब में जो भी पार्टी जीत हासिल करेगी उसका तात्कालिक असर उसके लिए गुजरात चुनाव के संदर्भ में हौसला बढाने वाला होगा. गुजरात में भी त्रिकोणीय मुकाबला होने के पूरे आसार बनते दिख रहे हैं.
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