2019 का चुनाव मोबाइल पर लड़ा जाएगा या बैलट पेपर पर?
सूचना क्रांति की दिन दूनी रात चौगुनी बरकत देख कर लगता तो ऐसा ही है मोबाइल इंटरफेस सबसे ऊपर होगा, लेकिन ये नहीं समझ में आ रहा कि वास्तव में 2019 का चुनाव EVM से होगा या हम बैलट पेपर की ओर लौट चुके होंगे?
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जमाना कहां से कहां जा रहा है और उसे किधर ले जाने की कोशिश हो रही है? एक तरफ सब कुछ लेस होता जा रहा है - पेपरलेस, कैशलेस और दूसरी तरफ बैलट पेपर की बात होने लगी है. ऐसा क्यों लगने लगा है कि लोकतंत्र पेपरवर्क और पेपरलेस के पेंच में फंसता जा रहा है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि 2019 का चुनाव मोबाइल पर लड़ा जाएगा. यानी तरक्की का सफर इतना आगे बढ़ चुका होगा. सबका साथ, सबका विकास कागजों की दुनिया से निकल कर डिजिटल इंडिया के हाइवे पर दौड़ रहा होगा. अगर ऐसा हो तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है?
सूचना क्रांति की दिन दूनी रात चौगुनी बरकत देख कर लगता तो ऐसा ही है, लेकिन ये नहीं समझ में आ रहा कि वास्तव में 2019 का चुनाव EVM से होगा या हम बैलट पेपर की ओर लौट चुके होंगे?
सवालों के घेरे में EVM
सबूत सर चढ़ कर बोलता है. अगर मध्य प्रदेश में EVM से कमल का फूल नहीं खिला होता तो शायद ही कभी कोई मायावती की बात को एक हारे हुए नेता की हताशा से कहीं आगे समझ पाता.
BJP was on 1st in EVM, EC official pressed 4th button on EVM & look what she got now tell us how #CanWeTrustEVMs #BSP #Evmscam pic.twitter.com/uqESS3Cg7r
— Bahujan Samaj Party (@BspUp2017) April 1, 2017
चुनाव आयोग शायद ही इतना सक्रिय होता. क्योंकि अब तक तो यही समझाया जा रहा था कि EVM से छेड़छाड़ संभव नहीं है. आखिर इस दावे को कैसे समझा जाना चाहिये? क्या इस तरह कि कुछ EVM से छेड़छाड़ संभव है, सभी से नहीं. तो ये कैसे पता चलेगा कि कौन सी EVM पूरी तरह सुरक्षित है और कौन नहीं. क्या डेमो वाली EVM उतनी सुरक्षित नहीं होती, जितनी वोटिंग वाली होती है?
सवालों के घेरे में EVM
अगर EVM की पूरी जांच पड़ताल के बाद उन्हें चुनाव मैदान में उतारा जाता है तो भिंड किस कैटेगरी वाली मशीन पहुंची थी? EVM को लेकर ट्विटर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बड़ा ही वाजिब सवाल उठाया है?
Why hv DM n SP been tfd in MP EVM scam? Did DM or SP change software in the machine?
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) April 2, 2017
केजरीवाल बिलकुल सही कह रहे हैं. आखिर EVM में गड़बड़ी के लिए डीएम और दूसरे अफसरों के तबादले का क्या मतलब है? क्या सरकार को शक है कि उन्होंने ही टेंपरिंग की? अगर ऐसा है तो सिर्फ ट्रांसफर की ही बात क्यों? उनके खिलाफ जांच और ट्रायल क्यों नहीं?
आम तौर पर अफसरों का ट्रांसफर इसलिए होता है क्योंकि किसी खास परिस्थिति को उन्होंने ठीक से हैंडल नहीं किया होता. अगर कोई घटना या दुर्घटना हो या कानून व्यवस्था की खामी से शांति व्यवस्था पर असर पड़ा हो. ऐसे हालात अक्सर अफसरों के ट्रांसफर की वजह बनते हैं.
तो क्या भिंड मामले से जुड़े अफसर सरकार के कोपभाजन इसलिए हो रहे हैं क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से डेमो दिया और EVM की गड़बड़ी सामने आ गयी? या वे खबर छापने वालों को थाने में नहीं बिठा पाये?
सवाल चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता का है
इसी बीच अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि 2019 का चुनाव मोबाइल पर लड़ा जाएगा तो ये कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं है. विडंबना ये है कि एक तरफ प्रधानमंत्री आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ पीछे लौटने की बात हो रही है - और उन्हीं के शासन में.
अनुमान है कि 2019 तक मोबाइल यूजर की तादाद 120 करोड़ तक पहुंच जाएगी. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का अंदाजा काफी सटीक लगता है कि अगले आम चुनावों में नेताओं और मतदाताओं के बीच संपर्क के लिए मोबाइल फोन ही सबसे बड़ा इंटरफेस होगा.
ऐसा भी नहीं है कि मोदी की पार्टी और उसके नेता शुरू से ही EVM के कायल रहे हैं. पहले तो वे भी सवाल उठा चुके हैं. अब सवाल तो यही है कि ये नौबत आई क्यों? सत्ताधारी पार्टी का विपक्ष के निशाने पर होना लोकतंत्र की खूबसूरती का ही एक आयाम है, लेकिन चुनाव प्रक्रिया को लेकर उसका विवादों में घसीटा जाना ठीक नहीं कहा जा सकता. फिर तो चुनाव आयोग की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में आएगी. आखिर EVM पूरी तरह सुरक्षित है बोल कर कब तक लोगों को बहलाया जा सकता है? लोग शायद बहल भी जाते अगर भिंड पहुंची मशीन से बीजेपी की पर्ची नहीं निकली होती.
अगर भिंड की घटना नहीं हुई होती तो केजरीवाल के सवाल कब के दम तोड़ चुके होते. मायावती की आशंका पर दोबारा चर्चा हो भी पाती या नहीं कहा नहीं जा सकता. कांग्रेस नेता अजय माकन और दिग्विजय सिंह के बयान गुजरते वक्त के साथ बाकियों की तरह वीर गति को प्राप्त हो चुके होते.
अब ये सारे नेता एक सुर में बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं. अगर कोई खामोश है तो बीजेपी क्योंकि वो सत्ता में हैं. अगर सत्ता में नहीं होती तो उसके नेता भी पहले की तरह EVM पर जोर शोर से सवाल उठा रहे होते.
अब कैसे मान कर चला जाये कि 2019 में EVM की खामियों को ठीक कर पूरी तरह सुरक्षित बना लिया जाएगा और बैलट पेपर की ओर लौटने की जरूरत नहीं पड़ेगी. चुनाव आयोग को ही अब ये इंतजाम करना होगा क्योंकि सवाल पूरी चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता का है.
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