5 राज्यों के चुनाव नतीजों से निकले 5 निष्कर्ष...
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों (Assembly Election Results 2022) में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर की सत्ता में वापसी कर भाजपा (BJP) ने सत्ताविरोधी लहर के दावों को भी हवा कर दिया. वहीं, पंजाब में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने चौंकाते हुए कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल जैसे पुराने और स्थापित दलों को राजनीतिक रूप से हाशिये पर डाल दिया है.
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पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों में भाजपा का बेहतरीन प्रदर्शन सबके सामने है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर की सत्ता में वापसी के साथ भाजपा ने कई रिकॉर्ड ध्वस्त करने के साथ ही सत्ता विरोधी लहर के दावों को भी हवा कर दिया. वहीं, पंजाब में आम आदमी पार्टी ने चौंकाते हुए कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल जैसे पुराने और स्थापित दलों को राजनीतिक रूप से हाशिये पर डाल दिया है. कहा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल का 'दिल्ली मॉडल' अब पंजाब में भी स्थापित होने की राह पर बढ़ चला है. चुनावी हार-जीत के बीच उत्तर प्रदेश में भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत दर्ज की है. तो, पंजाब में आम आदमी पार्टी ने 92 सीटों के साथ क्लीन स्वीप किया है. आइए जानते हैं 5 राज्यों के चुनाव नतीजों से निकले 5 निष्कर्ष...
लगातार सिमट रही कांग्रेस के लिए आने वाला समय मुश्किल होने वाला है.
1. किसान आंदोलन खारिज
किसान आंदोलन की तपिश राजनीतिक रूप से पंजाब में उतनी महसूस नहीं की गई. लेकिन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन को लेकर सियासी माहौल बनाने में किसान नेता राकेश टिकैत ने कोई कोताही नहीं बरती थी. किसान आंदोलन की वजह से जाट समुदाय के भी भाजपा से दूरी बनाने का दावा किया जा रहा था. इसी को भांपते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जाट नेता और आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ गठबंधन किया था. क्योंकि, अखिलेश यादव को भरोसा था कि मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के साथ ही जाएगा. और, इसमें जाट समुदाय के वोट जुड़ने से वो जीत के करीब पहुंच जाएंगे. लेकिन, किसान आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं में कोई प्रभाव बनाने में कामयाब नहीं रहा. किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान होने की संभावना जताई गई थी. लेकिन, ये मुद्दा बेअसर ही रहा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 136 विधानसभा सीटों में से 93 पर भाजपा ने जीत हासिल की. वहीं, समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन को 43 सीटें मिलीं. इतना ही नहीं, लखीमपुर खीरी की उन 8 विधानसभा सीटों पर भी भाजपा ने क्लीन स्वीप किया. जो किसानों के कुचले जाने की घटना के बाद से पार्टी के लिए कांटा मानी जा रही थीं.
पंजाब से शुरू हुए किसान आंदोलन को तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुलकर समर्थन दिया था. गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के लाल किला पर अराजकता फैलाने के दोषियों को कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब सरकार ने वकील तक उपलब्ध कराए थे. देखा जाए, तो किसान आंदोलन को खाद-पानी देने में पंजाब की कांग्रेस सरकार का ही हाथ था. लेकिन, पंजाब चुनाव नतीजों पर नजर डालें, तो किसान आंदोलन का समर्थन भी कांग्रेस के काम नहीं आया. जबकि, पंजाब में भाजपा कोई बहुत बड़ी पार्टी भी नहीं थी. इतना ही नहीं, कई किसान संगठनों ने भी पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन, किसान आंदोलन का फायदा इन किसान नेताओं को भी नहीं मिल सका. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पंजाब से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक किसान आंदोलन को मतदाताओं ने मुद्दा मानने से ही इनकार कर दिया. वैसे, नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून वापस लेते समय कहा था कि 'कुछ लोगों को हम समझाने में नाकाम रहे.' कहा जा सकता है कि पीएम मोदी की इस लाइन ने बहुसंख्यक छोटी जोत वाले किसानों का गुस्सा कम कर दिया था.
2. अखिलेश यादव की 'कोशिश' फेल
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा को फंसाने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल तक जातीय समीकरणों का चक्रव्यूह रचा था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी के साथ गठबंधन कर जाट समुदाय को साधने की कोशिश की. इसके साथ ही ओमप्रकाश राजभर के सुभासपा, कृष्णा पटेल के अपना दल (कमेरावादी) समेत कई छोटे दलों से गठबंधन कर गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश की. इतना ही नहीं, योगी सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं और विधायकों को यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले समाजवादी पार्टी में शामिल कर मुस्लिम-यादव गठजोड़ के साथ ओबीसी मतदाताओं की ताकत को जोड़ने की कोशिश की. लेकिन, इन तमाम सियासी समीकरणों के बावजूद अखिलेश यादव को जीत हासिल नहीं हो सकी. हालांकि, समाजवादी पार्टी का वोट शेयर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बढ़ा. लेकिन, ये इतना नहीं रहा कि अखिलेश यादव को सीएम की कुर्सी तक पहुंचा पाता.
दरअसल, अखिलेश यादव ने सूबे में भाजपा के खिलाफ बढ़त लेने की भरपूर कोशिश की. लेकिन, जिन माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार की बुलडोजर नीति की तारीफ हो रही थी. समाजवादी पार्टी ने उन्हीं माफियाओं और अपराधियों को गठबंधन के अन्य दलों के जरिये बैकडोर से एंट्री कराने की कोशिश की. माफिया मुख्तार अंसारी के भाई सिबगतुल्लाह अंसारी को अखिलेश यादव ने खुद ही गले लगाते हुए समाजवादी पार्टी में शामिल किया था. जातीय समीकरणों और मुस्लिम-यादव गठजोड़ के भरोसे पूरा यूपी विधानसभा चुनाव 2022 लड़ने की कोशिश कर रहे अखिलेश यादव अति उत्साह में जमीनी रणनीति बनाने में नाकाम रहे. इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी पर गुंडई और दबंगई जैसे आरोपों को दूर करने की जगह अखिलेश यादव की भाषा में भी आक्रामकता नजर आने लगी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो चाचा शिवपाल सिंह यादव से संबंध सुधारने के बावजूद अखिलेश यादव 'टीपू' ही साबित हुए हैं.
3. कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बन रहे केजरीवाल और भाजपा
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों में सबसे खराब हालात कांग्रेस के लिए ही बनते नजर आए हैं. गोवा और मणिपुर में कांग्रेस लगातार सिमटती जा रही है. खैर, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास वैसे भी कुछ खास करने को नहीं था. लेकिन, यहां भी वह अपनी दुर्गति होने से नहीं रोक सकी. और, दो सीटों पर ही सिमट गई. पंजाब की बात करें, तो कांग्रेस के पास सत्ता में आने का मौका था. लेकिन, अपनी गलत फैसलों और कमजोर रणनीतियों की वजह से पंजाब में कांग्रेस दोबारा सत्ता में वापसी करने में कामयाब नहीं हो सकी. वैसे, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में ही पंजाब में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुकी थी. लेकिन, कांग्रेस खेमे में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सालों तक चली खींचतान, नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस आलाकमान को धमकी, चरणजीत सिंह चन्नी को दलितों में पैंठ रखने वाला चेहरा मानने की गलती, हिंदू मतदाताओं पर प्रभाव रखने वाले सुनील जाखड़ को साइ़डलाइन किए जाने जैसी कई गलतियों से बने 'राजनीतिक खांचे' में आम आदमी पार्टी पूरी तरह से फिट हो गई. और, 92 सीटों के साथ एकतरफा जीत हासिल कर ली.
लिखी सी बात है कि पंजाब में जीत के बाद अरविंद केजरीवाल अब आम आदमी पार्टी को गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बढ़ाने की कोशिश करेंगे. जो सीधे तौर पर कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है. वहीं, गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड में भाजपा ने कांग्रेस को पूरी तरह से राजनीतिक हाशिये पर डाल दिया है. बीते कुछ चुनावों पर नजर डालें, तो इन पांचों चुनावी राज्यों में कांग्रेस का वोट शेयर बहुत तेजी से कम हुआ है. और, उत्तर प्रदेश में यह खात्मे की ओर ही है. इस स्थिति में कांग्रेस के लिए 2024 में रायबरेली लोकसभा सीट बचाना मुश्किल हो जाएगा, जहां से सोनिया गांधी सांसद हैं. बीते कुछ सालों में कांग्रेस के कई नेता पार्टी से किनारा कर चुके हैं. और, भविष्य में ये संख्या बढ़ भी सकती है. वहीं, जी-23 नेताओं ने कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार के खिलाफ ही मोर्चा खोल रखा है. देखा जाए, तो कांग्रेस अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में हैं. लेकिन, हालात ऐसे ही रहे, तो भविष्य में अरविंद केजरीवाल और भाजपा इन राज्यों में भी कांग्रेस के लिए खतरा बन सकते हैं.
4. इतनी आसानी से खत्म नहीं होगा 'मोदी मैजिक'
एक राजनीतिक दल के तौर पर भाजपा के पास अपना मजबूत वोट बैंक है. लेकिन, भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक 'कल्ट' के तौर पर स्थापित हो चुके हैं. और, भाजपा के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा केवल उनके नाम की वजह से ही भाजपा के साथ जुड़ा है. 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 325 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा था. चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. और, उन्होंने भी अपने नाम पर एक मजबूत वोट बैंक तैयार किया. लेकिन, इस चुनाव में ये मोदी मैजिक ही थी. जिसने भाजपा को पांच राज्यों के चुनाव में 4-1 से बाजी जीतने में मदद की. पीएम नरेंद्र मोदी ने पांचों राज्यों में 12 वर्चुअल, 32 फिजिकल रैलियां कीं. जिनमें से 19 फिजिकल रैलियां केवल उत्तर प्रदेश में की गई थीं. चुनाव प्रचार के लिहाज से देखें, तो पीएम मोदी ने इन 19 रैलियों के जरिये 192 सीटों पर पहुंच बनाई. और, नतीजों में 134 विधानसभा सीटें भाजपा के खाते में आईं. कहना गलत नहीं होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी का नाम आते ही चुनाव में सारे सियासी और जातीय समीकरण ध्वस्त हो जाते हैं.
5. मुद्दों पर भारी लोक कल्याणकारी योजनाएं
पांचों राज्यों में विकास एकमात्र कॉमन मुद्दा कहा जा सकता है. तो, चार राज्यों में विकास के मुद्दे पर जनता ने अपनी मुहर लगाई है. वहीं, पंजाब में भाजपा सत्ता में नहीं थी. और, पंजाब में कभी मोदी लहर का असर नहीं दिखा, तो इस बार भी राज्य में भाजपा दो सीटें ही जीत सकी. हालांकि, उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक के राज्यों में भाजपा की लोक कल्याणकारी योजनाओं का जमकर प्रभाव नजर आया. मुफ्त राशन, मुफ्त टीकाकरण, पीएम आवास योजना, गरीबों को मुफ्त बिजली, मुफ्त शौचालय जैसी योजनाओं के जरिये भाजपा ने एक लाभार्थी वोट बैंक खड़ा कर दिया है. जो जाति आदि के सियासी समीकरणों से ऊपर उठकर भाजपा के लिए वोट करते हैं. उत्तर प्रदेश में आवारा पशु, कोरोना कुप्रबंधन, ठाकुरवाद जैसे राजनीतिक आरोप भी धरे के धरे रह गए. वहीं, कानून व्यवस्था, महिला सुरक्षा और माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भाजपा और सीएम योगी आदित्यनाथ के नाम के साथ फ्लैगशिप की तरह नजर आए.
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