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Updated: 28 मार्च, 2019 03:58 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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बुधवार को भारत ने जासूसी उपग्रह मार गिराने वाली मिसाइल A-SAT की कामयाबी सिद्ध करने के लिए 'मिशन शक्ति' टेस्ट को अंजाम दिया. अभी पीएम मोदी ने इसके बारे में देश को संबोधित कर के सूचना ही दी थी कि तरह-तरह के सवाल उठने शुरू हो गए. सवाल दागने वालों में सबसे आगे है कांग्रेस, जिसने मिशन शक्ति का पूरा क्रेडिट खुद ले लिया. कांग्रेस ने कहा कि यूपीए की सरकार के दौरान ही ये सब शुरू हो गया था, लेकिन DRDO के प्रमुख जी सतीश रेड्डी ने सारी पोल खोल दी और साफ कर दिया कि ये सब मोदी सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ.

मिशन शक्ति टेस्ट के बाद भारत के पास वो ताकत आ चुकी है जो अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन के पास थी, लेकिन इस टेस्ट ने बहुत से सवाल भी खड़े कर दिए हैं. ये सवाल राजनीति से जुड़े हैं, जो अब हवा में तैर रहे हैं. आइए नजर डालते हैं ऐसे ही 5 सवालों पर और जानते हैं उनके जवाब.

मिशन शक्ति, मोदी सरकार, राजनीतिमिशन शक्ति टेस्ट के बाद भारत के पास वो ताकत आ चुकी है जो अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन के पास थी.

1- क्या ये परीक्षण राहुल गांधी की 'न्याय' स्कीम को काउंटर करने के लिए था?

कांग्रेस पार्टी आरोप लगा रही है कि राहुल गांधी ने जिस न्‍यूनतम आय गारंटी योजना की घोषणा की थी, उसकी चर्चा को दबाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने A-SAT मिसाइल परीक्षण करवाया. तो पहला सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये मिशन राहुल गांधी की न्याय स्कीम को काउंटर करने के लिए था? इसका जवाब है नहीं. क्योंकि डीआरडीओ के प्रमुख जी सतीश रेड्डी ने ये साफ कर दिया है कि इस प्रोजेक्ट पर दो साल से काम चल रहा था. और छह महीने पहले ही 'मिसाइल मोड' में चला गया था. ऐसे में यह संयोग भर है कि राहुल गांधी की स्कीम के कुछ दिन बाद ही ये परीक्षण हुआ है, जिसकी तैयारी काफी पहले से ही चल रही थी.

2- 2011 में भारत ने इसकी क्षमता हासिल कर ली थी तो क्या मोदी सिर्फ क्रेडिट ले रहे हैं?

मिशन शक्ति टेस्ट के बाद से ही कांग्रेस लगातार ये कह रही है कि ये सब यूपीए के समय में ही शुरू हो गया था. डीआरडीओ के प्रमुख ने ये भी साफ किया है कि 2011-12 में उनके पास क्षमता तो थी, लेकिन सरकार ने प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी. यूपीए सरकार ने इस प्रोजेक्‍ट की क्षमता का परीक्षण करने की अनुमति न देने का कारण यह बताया था कि इससे अंतरिक्ष में सैटेलाइट का मलबा गिरेगा. और ऐसा होने से अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय नाराज हो सकता है. (यह बात काबिल-ए-गौर है कि 2008 में चीन ने दुनिया की परवाह किए बगैर अंतरिक्ष में 800 किलो वजनी सैटेलाइट को मारकर ऐसा ही परीक्षण किया था). पाकिस्‍तान और चीन से तनाव के चलते भारतीय सेनाओं की गतिविधि की गोपनीयता बनाए रखने के लिए जरूरी था कि दुनिया को भारत की इस ताकत का परिचय हो जाए. लिहाजा मोदी ने दो साल पहले ही इस प्रोजेक्ट के परीक्षण को हरी झंडी दे दी थी. यानी भारत की इस सामरिक ताकत को दुनिया के सामने लाने का क्रेडिट तो प्रधानमंत्री मोदी के ही पास है.

3- इसकी घोषणा क्या वैज्ञानिक नहीं कर सकते थे?

सवाल ये भी उठ रहे हैं कि इसकी घोषणा पीएम मोदी ने क्यों की? खुद डीआरडीओ के प्रमुख ने घोषणा क्यों नहीं की? आपको बता दें कि इस मिशन को डीआरडीओ, इसरो और डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस ने साथ मिलकर किया. ये सभी विभाग पीएमओ के अधीन आते हैं. वहीं दूसरी ओर, पीएम मोदी के घोषणा करने की एक वजह ये भी है कि ये कोई सामान्य परीक्षण नहीं था. एक नई दुनिया में प्रवेश करने वाला परीक्षण था और कई विभागों का मिला-जुला काम था. ऐसे में देश के प्रतिनिधि यानी पीएम को ही आगे आना था, इसलिए उन्होंने ही इसकी घोषणा की.

4- मोदी का देश को संबोधित करना क्या जरूरी था?

यहां एक बात ध्यान देने की है कि भले ही मिशन शक्ति को सिर्फ एक टेस्ट की तरह देखा जा रहा हो, लेकिन ये महज एक मिसाइल का परीक्षण करना भर नहीं है, बल्कि दुनिया की टॉप-4 ताकतों में शुमार होना है. ऐसे में यह संबोधन न सिर्फ देशवासियों के लिए था, बल्कि पूरी दुनिया के लिए था. दुनिया को अपनी ताकत के बारे में बताना था और साफ करना था कि इसका लक्ष्य क्या था. लक्ष्य की बातें कोई वैज्ञानिक दुनिया को नहीं बता सकता, इसलिए पीएम मोदी ने ही देश को संबोधित किया.

5- क्या चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है?

लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है और देश में आचार संहिता लागू है. ऐसे में सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या पीएम मोदी का संबोधन आचार संहिता का उल्लंघन है? ऐसा नहीं है. ये घोषणा देश के प्रधानमंत्री ने की है और प्रधानमंत्री किसी पार्टी का नहीं, बल्कि देश का होता है. आचार संहिता लागू होने का मतलब ये नहीं है कि उस दौरान अगर देश में कुछ होगा तो प्रधानमंत्री उसके बारे में बताएंगे ही नहीं. अगर कुछ भी होता है तो कार्यवाहक के रूप में पीएम को ही सामने आना होता है, इसलिए पीएम मोदी ने सामने आकर संबोधन किया.

वहीं दूसरी ओर, इसके तकनीकी पहलू पर ध्यान दें तो चुनाव आयोग ने एक कमेटी का गठन किया है जो इस बात की जांच कर रही है कि क्या किसी भी तरह से पीएम मोदी का संबोधन आचार संहिता का उल्लंघन है? हालांकि, ये बात सामने आ रही है कि इस संबोधन के लिए पीएम मोदी ने नमो टीवी का इस्तेमाल किया और यूट्यूब का एक लिंक मीडिया के साथ शेयर किया था. ऐसे में ये संबोधन आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है. हां, अगर संबोधन के लिए दूरदर्शन या ऑल इंडिया रेडियो का इस्तेमाल किया जाता तो यह आचार संहिता उल्लंघन जरूर होता, क्योंकि तब सरकारी संपत्ति का इस्तेमाल होता. इतना ही नहीं, अभी चल रही जांच में अगर ये पाया जाता है कि संबोधन को रिकॉर्ड करने के लिए दूरदर्शन के स्टूडियो का इस्तेमाल किया गया होगा तो इसे आचार संहिता के दायरे में जरूर माना जा सकता है.

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#मिशन शक्ति, #मोदी सरकार, #राजनीति, Mission Shakti Test, Anti Satellite Missile, Modi Government

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