AAP के चुनावी वादे चांद-तारे तोड़कर लाने जैसे
दिल्ली (Delhi Election 2020) के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) ने 'मैनिफेस्टो' से पहले 'गारंटी कार्ड' (Impossible Promises in Manifesto and Gaurantee Card) भी बांट दिया है - लेकिन एक बात समझ में नहीं आती कि आखिर AAP के घोषणा पत्र में चांद-तारे तोड़ कर लाने जैसे वादे किये क्यों जाते हैं?
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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) सत्ता में आये लोकपाल वादे के साथ ही थे, लेकिन वो भी दुनियादारी वाले कसमें-वादे-प्यार-वफा जैसा ही रहा. दो चुनाव जीतने के बाद तीसरी कवायद में जुटे हैं, लेकिन वादे पर वादे करते चले जा रहे हैं. ठीक ही है, वादे तो वादे हैं, वादों का क्या?
पूरे हों न हों, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने तीसरे चुनाव घोषणा पत्र में भी बड़े शान से दिल्ली में लोकपाल जैसे कई वादों को शामिल कर लिया गया है. ऐसे कई वादे मैनिफेस्टो में शामिल किये गये हैं जो दिल्ली के लिए चांद-तारे तोड़ कर लाने के वादे से कम नहीं हैं.
दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल का 'मैनिफेस्टो' तो बाद में आया है, 'गारंटी कार्ड' (Impossible Promises in Manifesto and Gaurantee Card) तो वो पहले ही बांट चुके हैं. बस एक बात समझ में नहीं आती, आखिर AAP के घोषणा पत्र में ऐसे असंभव से वादे शामिल किये जाते ही क्यों हैं?
AAP के बड़े चुनावी वादे!
दिल्ली चुनाव (Delhi Election 2020) मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) के लिए अस्तित्व बनाये रखने का सवाल लेकर आया है. अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर कई चुनावों में आम आदमी पार्टी को मैदान में उतार चुके हैं और बार बार मुंह की भी खा चुके हैं. लिहाजा AAP का दिल्ली में सत्ता पर काबिज रहना जरूरी हो गया है - और यही वजह है कि वो अपनी पसंद के सभी साम-दाम-दंड-भेद का खुल कर इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे सियासी हथियारों में से एक है - आप के चुनावी वादे.
AAP के चुनाव घोषणा पत्र से पहले 'केजरीवाल गारंटी कार्ड' पेश करते हुए अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि सत्ता में लौटने पर कोई भी सरकारी स्कीम बंद नहीं की जाएगी. अच्छी बात है. गारंटी कार्ड में बिजली और पानी से लेकर यमुना को स्वच्छ और अविरल बना देने तक के वादे किये गये हैं. मोहल्ला क्लिनिक और झुग्गी में रहने वालों को पक्के मकान के साथ साथ CCTV कैमरे और मोहल्ला मार्शल की भी बातें शुमार हैं - लेकिन पिछले वादों को लेकर जब भी सवाल पूछा जाता है तो केजरीवाल का एक जैसा ही जवाब होता है - काम चल रहा है या अगले एक साल में हो जाएगा.
गजब!
अगले एक साल में कैसे हो जाएगा?
AAP के वादे आखिर व्यावहारिक क्यों नहीं होते हैं? अरविंद केजरीवाल ने अपने सरकारी इरादों का गारंटी कार्ड भले बांट दिया हो, लेकिन दिल्ली के लोगों ने अभी ऐसी कोई गारंटी नहीं दी है. हो सकता है ऐसे दावे की प्रेरणा अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली हो क्योंकि आम चुनाव से पहले वो दो-तीन साल आगे केंद्र सरकार की तरफ से किये जाने वाले कामों के बारे में बताया करते थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो साबित कर दिया, केजरीवाल भी ऐसा कर पाएंगे ये उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए बगैर किसी तर्क वितर्क के नहीं मान लेने के लिए मजबूर जरूर करता है. ये अरविंद केजरीवाल के चुनावी वादे ही हैं जो उनको टारगेट पर खड़ा कर दिये हैं - और विरोधी तो विरोधी उनके दोस्त नीतीश कुमार तक कहने लगे हैं कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में कोई काम नहीं किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंद्री अमित शाह और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी तो आक्रामक हैं ही, नीतीश कुमार तो यही समझा रहे हैं कि केजरीवाल ने पूर्वांचल के लोगों के साथ धोखा किया है.
ऐसे वादे भला किस काम के?
पूर्वांचल के लोगों को लुभाने के लिए केजरीवाल की पार्टी आम के मैनिफेस्टो में भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की कोशिश जैसे वादे भी किये हैं. लोकपाल और स्वराज बिल के साथ आप ने इस बार दिल्ली में 24 घंटे वाले बाजारों का भी वादा किया है - जो मुश्किल कौन कहे, वे तो नामुमकिन ही लगते हैं.
1. 24 घंटे वाले बाजार: AAP के मैनिफेस्टो में एक बड़ा ही दिलचस्प चीज है - 24 घंटे बाजार खोलने की तैयारी. आम आदमी पार्टी का मैनिफेस्टो कहता है कि सत्ता में पार्टी की वापसी हुई तो प्रायोगिक तौर पर 24 घंटे बाजार खोलने की अनुमति देने के लिए प्रोजेक्ट लाया जाएगा.
आप के इस वादे में प्लस प्वाइंट यही है कि कम से कम इस बात के लिए दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार का मुंह नहीं देखना होगा. प्रयोग के तौर पर ही नहीं बल्कि पूरी तरह से अमल में भी लाया जा सकता है, लेकिन क्या केजरीवाल और उनके साथियों को इसके साइड इफेक्ट का अंदाजा है?
अभी तो सारे कामकाज और बाजार दिन के होते हैं, तब भी प्रदूषण बढ़ने पर या बढ़ने के डर से ऑड-ईवन लागू करना पड़ता है - सोचा है 24 घंटे के बाजार होने की स्थिति में क्या हाल होगा? बाजार तो तभी चलेगा जब लोग खरीदारी के लिए जाएंगे. जब लोग खरीदारी के लिए जाएंगे तो गाड़ियों की आवाजाही भी बढ़ेगी - और बाकी गतिविधियां भी.
CCTV तो लगे नहीं ठीक से, फिर अपराध भी बढ़ सकते हैं - अगर आप की सरकार बनी तो दिल्ली पुलिस की कमान को लेकर दबाव बनाने और शोर मचाने का अच्छा मौका मिल सकता है. 24 घंटे के बाजार का कंसेप्ट तो अच्छा है, लेकिन उसके हिसाब से बड़े सारे जरूरी इंतजाम भी करने होंगे और ये सब बहुत मुश्किल लगता है.
2. लोकपाल और स्वराज बिल: सत्ता में वापसी पर आप ने जन लोकपाल विधेयक पारित कराने के लिए प्रयास जारी रखने की बात कही है. साथ ही दिल्ली स्वराज बिल भी लाये जाने का वादा है. लोकपाल पर दिल्ली सरकार के प्रस्ताव को 2016 में केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया था. उसके बाद से अब तक शायद ही कभी इसकी चर्चा सुनने को मिल पायी हो. स्वराज बिल के साथ भी वैसी ही हुआ, दिल्ली विधानसभा में बिल पास हो गया, लेकिन उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल सकी.
फिर से ऐसे वादों को क्या मतलब है - कम से कम 2024 तक तो ये मुमकिन भी नहीं है. मौजूदा मोदी सरकार का कार्यकाल 2024 तक ही है.
3. दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा: दिल्ली में जब भी चुनाव होते हैं 'पूर्ण राज्य का दर्जा' दिलाने की चर्चा जरूर होती है. लोक सभा चुनाव के दौरान भी अरविंद केजरीवाल और उनके साथी कहा करते थे कि वोट उसे दो जो दिल्ली को पूर्ण राज्य बना देने या बनवा देने का वादा करे. मई में आम चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद फिर से ये बात सुनाई देने लगी है.
आम मैनिफेस्टो में फिर से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने वाली बाद शामिल की गयी है. इस केस में भी वही बात लागू होती है - 2024 तक तो केजरीवाल के सत्ता में वापस आ जाने के बाद भी ये संभव नहीं है.
4. भोजपुरी वालों के लिए: अरविंद केजरीवाल की पार्टी भोजपुरी को आठवीं अनूसूची में शामिल कराने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की बात कर रही है. कौन सा दबाव? कैसा दबाव? 2024 तक तो केंद्र सरकार किसी के भी दबाव में आने से रही - फिर ऐसे चुनावी चकल्लस से क्या फायदा होने वाला है?
क्या अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को दिल्ली की संवैधानिक और प्रशासनिक स्थिति की तस्वीर साफ नहीं नजर आ रही है. अगर वो खुद किसी गफलत में है तो दिल्ली के लोगों को गुमराह करने से भी कोई फायदा नहीं होने वाला है - और अरविंद केजरीवाल भी तो मानते ही हैं कि पब्लिक सब जानती है. वो भी दिल्ली की पब्लिक! है कि नहीं?
हर पार्टी अपने चुनाव घोषणा पत्र को अलग अलग नाम दे रही है. बीजेपी का मैनिफेस्टो संकल्प पत्र कहलाता है तो, कांग्रेस इसे वचन पत्र कह रही है. आप तो मैनिफेस्टो में भी डबल धमाका लेकर आ रही है. एक तरफ गारंटी कार्ड और दूसरी तरफ ऐसे हवाई वादे, आखिर लोग कैसे समझें कि माजरा क्या है?
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