13000 रुपए की थाली के साथ केजरीवाल मेरा भरोसा भी खा गए...
आम आदमी की परिभाषा 2013 से 2016 तक काफी बदल गई है. श्रीमान केजरीवाल साहब भी अब थोड़े बदल गए हैं. अब देखिए एमसीडी चुनाव से ठीक पहले क्या हो गई है आम आदमी की परिभाषा...
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आम आदमी पार्टी के कर्ता धर्ता और महान समाज सेवक, देवताओं समान कर्मों वाले चक्रवर्ती नेता श्रीमान अरविंद केजरीवाल जी ने एक महाभोज का आयोजन किया था. इस भोज की विलासिता का आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. भोग के तौर पर अमूमन 13000 रुपए प्रति प्लेट का खाना आया था!
कथा कुछ ऐसी है कि विपक्षी नेतागणों ने केजरी जी पर कुछ अनूठे ही आरोप लगाए हैं. बीजेपी के विजेंद्र गुप्ता ने कहा है कि पिछले साल दिल्ली टूरिज्म और ट्रांसपोर्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (DTTDC) ने पिछले साल 11 और 12 फरवरी को दो पार्टियां की थीं. इनमें से एक में 50 और एक में 30 गेस्ट थे. इन पार्टियों का बिल 11 लाख आया था जिसे दिल्ली सरकार के खजाने से दिया गया था. पहले दिन प्रति प्लेट कीमत थी 12472 रुपए और यही प्लेट दूसरे दिन 16,025 रुपए की हो गई थी. इस मामले में मनीष सिसोदिया ने कहा है कि बीजेपी के दबाव में आकर दिल्ली गवर्नर के ऑफिस से फाइल लीक की गई है. और उन्हें ऐसा कुछ याद नहीं है कि इतना बड़ा कुछ खर्च उन्होंने पास ही नहीं किया.
अब बात जो भी हो, लेकिन केजरी महाराज पर आए दिन ये आरोप लगते आए हैं कि उन्होंने सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया है. चाहें वो गलत विज्ञापन की बात हो या फिर शाही दावत की. केजरी सरकार की आम आदमी की परिभाषा ही कुछ और बनती जा रही है. अन्ना के आंदोलन में जब केजरीवाल भीड़ में से निकलकर सामने आए थे तो ये लगा था कि एक हीरो सामने आया है. बिलकुल नायक फिल्म के अनिल कपूर की तरह केजरीवाल का भी उदय हुआ. केजरीवाल अनशन करते थे तो लोगों को लगता था कि उनके हित के लिए ये इंसान कुछ भी कर सकता है. अब देखिए क्या हो गया. जैसे-जैसे वक्त बीता इस हीरो की छवि धूमिल हो गई और अब एक एक करके जो बातें सामने आ रही हैं कम से कम केजरीवाल मेरा भरोसा तो खो ही चुके हैं.
अब जरा फ्लैशबैक में चलते हैं...... 2013-2014 में आम आदमी की परिभाषा कुछ ऐसी थी...
- आम आदमी वो आम इंसान होता है जिसे आम का फल खरीदने में भी दिक्कत होती है क्योंकि वो महंगा होता है. आम आदमी मेट्रो से सफर करके जाता है फिर भले ही वो दिल्ली का सीएम बन चुका हो. आम आदमी फिल्मों से बहुत ज्यादा इंस्पायर होता है और इसलिए नायक फिल्म की तरह आम जनसभा का आयोजन करता है. फिर भले ही वो फेल हो जाए.
आखिर आम आदमी फेल तो होता ही है ना. आम आदमी वो शख्स होता है जो शांती का प्रतीक होता है. मोहल्ले में झगड़े और आरोप लगाने के अलावा वो कुछ नहीं करता. विरोध भी शाती दे दर्ज करवाता है और इसके लिए धर्ने पर बैठ जाता है. आम आदमी रिजाइन भी करता है और आम आदमी सभी का पर्दा फाश करने के लिए कागजों पर निर्भर रहता है. आम आदमी बहुत कोशिश करता है शांती से काम करने की, लेकिन उसे करने नहीं दिया जाता है.
शब्द का वाक्य में प्रयोग- केजरीवाल एक आम आदमी हैं.
- अब देखते हैं 2016-2014 में आम आदमी की परिभाषा को...
आम आदमी वो होते हैं जो दूसरों पर आरोप लगाते हैं. आम आदमी अपने सहकर्मियों की मदद करने के लिए अपना घर बार छोड़कर दूसरे राज्य में भी जाता है. आम आदमी पर कोर्ट केस भी चलते हैं जिसमें अगर करोड़ो का बिल भी आए तो भी उसे आम आदमियों के पैसे से ही दिया जाता है. आम आदमी लाखों का खाना खाते हैं तो भी उसका बिल आम आदमियों के पैसे से दिया जाता है क्योंकि आखिर एक आम आदमी ही तो दूसरे की मदद करता है.
शब्द का वाक्य में प्रयोग- आप में सभी आम आदमी हैं.
ये तो हुई आम आदमी हालिया परिभाषा, लेकिन आने वाले एमसीडी चुनावों में आम आदमी की परिभाषा एक बार और बदल सकती है. देखने वाली बात ये होगी कि अब इस परिभाषा में कैसा मोड़ आता है.
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