असम में महागठबंधन की कवायद में गोगोई ने फंसाया पेंच
सही आकलन के लिए नीतीश ने अपने भरोसेमंद रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भी मदद ली है. बताते हैं कि प्रशांत किशोर पिछले हफ्ते असम का इसी मकसद से दौरा भी कर चुके हैं.
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असम में भी लड़ाई बिहार जैसी होगी. वहां भी बीजेपी बनाम बाकी का मुकाबला होगा, लेकिन नतीजा भी वैसा ही हो जरूरी नहीं. बीजेपी राज्य में धीरे धीरे जड़ें मजबूत करती जा रही है.
कांग्रेस की स्थिति कमजोर है इसलिए महागठबंधन की कोशिशें जोरों पर हैं, लेकिन उसमें खुद तरुण गोगोई ने ही पेंच फंसा दिया है.
महागठबंधन के पेंच
तरुण गोगोई भी शीला दीक्षित की तरह तीन टर्म पूरे कर चुके हैं. शीला दीक्षित की ही तरह कांग्रेस एक बार फिर गोगोई की अगुवाई में ही असम के रण में कूदने की तैयारी कर रही है. कांग्रेस को पता है कि गोगोई कई इलाकों में लोकप्रिय होने के बावजूद अब उतने मजबूत नहीं रहे, फिर भी वो कोई नया रिस्क लेने के पक्ष में नहीं है.
बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस चाहती है कि एआईयूडीएफ नेता बदरुद्दीन अजमल के साथ गठबंधन हो जाए, लेकिन गोगोई इसे खारिज कर दे रहे हैं. गोगोई का कहना है कि बदरुद्दीन अजमल और बीजेपी के बीच पहले से ही गुप्त समझौता हो चुका है.
गोगोई का कहना है कि बदरूद्दीन की पार्टी गठबंधन में 53 सीटें चाहती है जो कतई मंजूर नहीं है. असम की 126 सीटों में से पिछली बार कांग्रेस को 78 और बदरुद्दीन को 18 सीटें हासिल हुई थीं.
नीतीश की कोशिश
बदरूद्दीन और गोगोई के बीच मेल जोल कराने के मकसद से ही नीतीश ने अपने शपथग्रहण में दोनों नेताओं को बुलाया था. नीतीश ने खास तौर पर इसी मकसद से बदरुद्दीन को खुद फोन भी किया था. नीतीश की कोशिश है कि असम में एआईयूडीएफ, कांग्रेस और असम गण परिषद के बीच महागठबंधन पर सहमति बन जाए. वैसे असम गण परिषद को अपनी तरफ खींचने की बीजेपी भी कोशिश कर रही है.
वस्तुस्थिति के सही आकलन के लिए नीतीश ने अपने भरोसेमंद रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भी मदद ली है. बताते हैं कि प्रशांत किशोर पिछले हफ्ते असम का इसी मकसद से दौरा भी कर चुके हैं.
प्रशांत के दौरे के बाद नीतीश और बदरुद्दीन के बीच लंबी बातचीत की भी खबर है.
बदरुद्दीन पर डोरे
जिस तरह बिहार की लड़ाई में जीतनराम मांझी अहम हो गए थे, उसी तरह असम में बदरुद्दीन अहमद हो गए हैं. दोनों में फर्क ये है कि मांझी अपने दावों में फेल हो चुके हैं जबकि बदरुद्दीन अपनेआप को साबित कर चुके हैं. असम में उनका खासा प्रभाव है. कम से कम इतना तो है ही कि जिस पार्टी के साथ गठबंधन कर लें उसकी जीत काफी हद तक निश्चित हो जाएगी.
बीजेपी ने जबसे सर्वानंद सोनवाल को सूबे की कमान सौंपी है तभी से वो सबका साथ सबका विकास की थ्योरी समझाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, अभी वो पहचान और पैठ बनाने में ही जुटे हुए हैं.
बीजेपी से बदरुद्दीन की नजदीकियों को साबित करने के लिए गोगोई उनके बयान का ही हवाला दे रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाहौर दौरे के बाद बदरुद्दीन ने विवादित बयान दिया था. बदरुद्दीन ने कहा था, "मोदी पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लंच करने पाकिस्तान गए थे, तब उन्होंने कौन सा मांस खाया था?"
गोगोई कहते हैं कि सभी को मालूम है कि प्रधानमंत्री मोदी पूरी तरह शाकाहारी हैं, लेकिन बदरुद्दीन के इतने बड़े बयान पर भी बीजेपी नरम रुख अपना रही है. गोगोई को आरएसएस के भी खामोश रहने पर ताज्जुब हो रहा है.
वैसे जहां तक बयान की बात है तो असम कांग्रेस के ही एक नेता ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और प्रधानमंत्री को लेकर विवादित बयान दिया था.
बदरुद्दीन मुस्लिम होने के साथ साथ बांग्लादेशी मुस्लिमों के हितों के हिमायती माने जाते हैं. असम में, 2011 की जनगणना के अनुसार आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 34 पर्सेंट है. इस बड़े वोट बैंक के चलते ही बदरुद्दीन इतने अहम हो गए हैं.
ऐसा नहीं है कि गोगोई, बदरुद्दीन को अब भी फूटी आंख देखना नहीं चाहते. हाल में दोनों नेताओं की मुलाकात भी हुई है. लगता है मामला सीटों पर आ कर अटक गया है - और अड़ियल रुख अख्तियार करते हुए तरुण गोगोई ने महागठबंधन के रास्ते में पेंच फंसा दिया है.
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