मान लें: हम सभी गिरिराज सिंह की तरह रंगभेदी हैं
मोदी सरकार के एक मंत्री ने महिलाओं की त्वचा के रंग पर एक "गैर-जिम्मेदाराना" टिप्पणी की है. बैन करो उसे! उससे छुटकारा दिलाओ!
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मोदी सरकार के एक मंत्री ने महिलाओं की त्वचा के रंग पर एक "गैर-जिम्मेदाराना" टिप्पणी की है. बैन करो उसे! उससे छुटकारा दिलाओ! लेकिन क्या ये सही समय नहीं है, जब हम देखें कि भारत में रोज किस कदर रंगभेद बर्दाश्त किया जा रहा है. जो हमारे लिए शर्मिंदगी की बात है. जो गिरिराज ने कहा उसमें क्या जरा भी सच्चाई थी? क्या ये संयोग नहीं है कि सोनिया गांधी की त्वचा काली नहीं है? निश्चित रूप से यह कहने में कुछ भी गलत नहीं है! हम वर्षों से दिल्ली की डिनर पार्टियों में होने वाली ऐसी बातचीत सुनते आ रहे हैं. यहां तक कि कांग्रेस वाले भी इसे स्वीकार करेंगे! इसलिए उन्होंने जो कहा वो बिल्कुल सच था!
आख्िार इसका सामना कीजिए: आज के दौर में किसी भी नेता का लुक बेहद महत्वपूर्ण होता है. टेलीविजन ने हमें खराब कर दिया है. ज्यादातर लोगों को एयर होस्टेस बहुत पसंद होती हैं. टीवी एंकर और राजनेता विशेष रूप से अच्छे दिखने चाहिए. या फिर उन्हें कॉस्मेटिक्स विभाग की खूब मदद लेनी चाहिए. मैं एक टीवी एंकर थी इसलिए दावे से कह सकती हूँ कि अपने आप को सुंदर दिखाने के प्रयास आपको कैमरे के सामने बेहतर बनाते हैं. शायद त्वचा का रंग टीवी पर महत्वपूर्ण नहीं होता, लेकिन वास्तविक जीवन में काली त्वचा होना भारत में लंबे समय से एक समस्या रही है.
अच्छा लुक राजनीति में महत्वपूर्ण माना जाता है. भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ये असर करता है. अगर आप साफ रंग के हैं तो यह निश्चित रूप से मदद करता है! हम इस छोटे से गंदे राज को स्वीकार करने में शर्म क्यों महसूस कर रहे हैं? एक संयोग है कि सभी राजनीतिक दलों के युवा प्रवक्ता एक ही कारखाने से आए हुए नजर आते हैं. अक्सर एक दूसरे से उन्हें अलग करना मुश्किल लगता है. वहां संवरना और अच्छा लुक सभी कुछ होता है. कहने के लिए और भी शब्द हैं लेकिन अगर मैं ज्यादा कहूँगी तो मुझे रंगभेदी बताकर मेरी निंदा की जाएगी.
यह सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं बल्कि पुरुषों पर भी लागू होता है. ब्रिटेन में तीन जवां दिखने वाले पुरुष प्रधानमंत्री पद की दौड़ में हैं. और वे तीनों अच्छे लुक के लिए रात-दिन मेहनत कर रहे हैं. इस दौरान सवाल उठता है कि क्या ब्रिटेन एक काले रंग वाले प्रधानमंत्री के लिए तैयार होगा? धीरे-धीरे कुछ कैबिनेट पदों को गहरे रंग वाले पुरुषों और महिलाओं को दिया जाना है लेकिन इसमें अभी समय लग जाएगा. हम जानते हैं कि यह राष्ट्रपति ओबामा के लिए कितना मुश्किल था. वह जीत गए. लोगों को हैरानी हुई क्योंकि वे अच्छे लुक वाले नहीं थे. मतदाता के रूप में हम सभी के लिए यह मुश्किल सवाल है. हमें पैकेजिंग में नहीं बहना चाहिए बल्कि विचारधारा और नीति की जांच करनी चाहिए. लेकिन हम केवल टीवी के बयान और भाषण सुनकर नेताओं का चुनाव करते हैं. उनका आचरण, उनका संवरना, उनके शब्द हमें उकसाते हैं.
जब तक कोई करिश्माई नेता महात्मा गांधी की तरह एक मजबूत संदेश के साथ नहीं आएगा तब तक सिर्फ आकर्षण ही लोगों पर असर करता रहेगा! या मार्केटिंग के साथ सब बदल जाएगा? क्या हम पुरुषों और महिलाओं की "फेयर एंड लवली" को अधिक महत्व देते हैं, और गहरे रंग को अस्वीकार करते हैं? अनजाने में इस सवाल ने एक बहस को जन्म दे दिया है. इस मामले पर चिल्लाने से पहले हम यह मान लें कि हम सभी उस "रंगभेदी" मंत्री की तरह हैं.
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