अफगान 'मुजाहिद', जिसने बचाया भारतीय दूतावास
इस हफ्ते मजार-ए-शरीफ पर हुए आतंकी हमले को विफल करने के लिए एक पूर्व मुजाहिदीन और मौजूदा समय में बल्ख प्रांत के गवर्नर अटा मुहम्मद नूर सुरक्षा बलों के साथ मोर्चा संभाला.
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सोमवार को जब पठानकोट एयरफोर्स बेस पर पाकिस्तानी आतंकियों का हमला चल रहा था तो उसी दिन अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ स्थित भारतीय दूतावास पर भारी हथियारों से लैस आतंकियों ने हमला बोल दिया. आतंकियों को दूतावास में पहुंचने से रोकने के लिए अफगान सेना के अलावा एक और शख्स ने मोर्चा संभाल रखा था. एक हाथ में दूरबीन और दूसरे में एके 47 राइफल. भारतीय दूतावास पर आंच नहीं आने दी.
यह शख्स कोई और नहीं बल्कि अफगानिस्तान के बल्ख प्रांत का गवर्नर और पूर्व मुजाहिदीन अटा मुहम्मद नूर था. हमले के तुरंत बाद अटा भारतीय दूतावास के नजदीक पहुंच गए और अफगान सुरक्षाबलों के साथ मिलकर इस हमले को विफल करने में अहम भूमिका निभाई.
भारतीय दूतावास के सामने आतंकियों से मोर्चा लेते अटा मुहम्मद नूर |
इस हमले में दूतावास के कर्मचारियों को बचाने में अटा की कोशिशों को खुद अफगानिस्तान में भारत के राजदूत अमर सिन्हा ने ट्वीट से जाहिर किया. मजारे शरीफ में भारतीय दूतावास पर 27 घंटे से ज्यादा चली गोलीबारी के बाद सभी राजनयिकों को सुरक्षित किया जा सका. राजदूत अमर सिन्हा ने बताया कि हमले के बाद उन्होंने अटा और उनके बेटे के साथ चाय पीकर उन्हें शुक्रिया अदा किया.
काबुल में भारतीय राजदूत अमर सिन्हा का ट्वीट |
गौरतलब है कि नूर मोहम्मद अटा अफगानिस्तान पर रूस आक्रमण के दौरान मुजाहिदीन थे और इसी दौरान उन्हें सैन्य ट्रेनिंग दी गई थी जिससे वह रूस के सैनिकों से लोहा ले सकें. वे अमहद शाह मसूद के नॉर्दन एलायंस में कमांडर भी रहे. हालांकि रूसी सेनाओं की वापसी के बाद नूर अटा तालिबान के खिलाफ हो गए और बल्ख प्रांत में अस्पताल और स्कूल बनवाने की दिशा में काम करने लगे. माना जाता है कि अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ इलाके में तालिबानी ताकतें घुसपैठ करने से महज इसलिए कतराती हैं क्योंकि यह गवर्नर नूर मोहम्मद अटा के प्रभाव में पड़ता है और वह पिछले कई वर्षों से देश से तालिबान को उखाड़ फेंकने की दिशा में काम कर रहे हैं.
यह कोई पहली बार नहीं है कि अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर आतंकियों का हमला हुआ है. इससे पहले 2008 में काबूल दूतावास पर कार बम से बड़ा हमला हुआ था जिसमें 60 लोग मारे गए थे. इसके बाद 2009 में एक बार फिर इसी दूतावास पर तालिबान का सुसाइड अटैक हुआ था. 2013 में जलालाबाद मे भारतीय दूतावास पर हमला हुआ था जिसमें 9 क्षेत्रीय लोगों कि मौत हुई थी, वहीं 2014 में अफगानिस्तान के हेरात में स्थित भारतीय दूतावास पर हमला किया गया था.
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