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Updated: 04 सितम्बर, 2021 06:09 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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अमेरिकी सेना की डेडलाइन से एक दिन पहले ही हुई वापसी के बाद अफगानिस्तान पर पूरी तरह से तालिबान का कब्जा हो चुका है. इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान ने पहले ही साफ कर दिया था कि सरकार को लोकतंत्र नहीं शरिया कानून से ही चलाया जाएगा. इस वजह से अफगानिस्तान में फिलहाल जैसे हालात हैं, वो किसी से छिपे नही हैं. सत्ता में काबिज होने से पहले महिलाओं के हक-हुकूक का बात कर रहा तालिबान अब महिलाओं से घरों में रहने को कह रहा है. और, इसके फैसले के पीछे की वजह बता रहा है कि हमारे लड़ाकों को महिलाओं का इज्जत करना नहीं आता है. क्योंकि, अलग-अलग प्रांतों से आने वाले तालिबानी लड़ाकों की इस मामले में ट्रेनिंग नहीं हुई है. अफगानिस्तान में महिलाओं की जबरन शादियां हो रही हैं, हिजाब न पहनने पर गोली मार दी जा रही है. आसान शब्दों में कहें, तो हर रोज कई ऐसी खबरें अफगानिस्तान से आ रही हैं, जो किसी को भी झकझोर देने के लिए काफी होंगी.

अफगानिस्तान में महिलाएं ही नहीं, पूर्व सैनिक और अफगान नागरिक भी आतंकी संगठन तालिबान के डर में जिंदगी गुजारने को मजबूर हो गए हैं. काबुल पर कब्जे के साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान में सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी थी. इस मामले पर चीन, पाकिस्तान और रूस जैसे देशों ने तालिबान के लिए अपना समर्थन भी जाहिर कर दिया है. वहीं, भारत के पास 'वेट एंड वॉच' के सिवा कोई विकल्‍प नजर नहीं आ रहा है. बताया जा रहा था कि अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई को भी तालिबानी हुकूमत का हिस्सेदार बनाया जाएगा. हालांकि, जब तक तालिबान सरकार का गठन नहीं हो जाता है, ये सभी बातें कयास ही कही जा सकती हैं. माना जा रहा है कि 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' में जल्द ही तालिबानी सरकार की घोषणा की जा सकती है. मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि तालिबान का सबसे बड़ा धार्मिक नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा अफगान सरकार का नेतृत्व करेगा.

लोगों को पता है कि तालिबान के सत्ता में आने पर वो एक बार फिर से मध्यकालीन क्रूर सोच वाले आतंकी संगठन की गिरफ्त में फंसने जा रहे हैं.लोगों को पता है कि तालिबान के सत्ता में आने पर वो एक बार फिर से मध्यकालीन क्रूर सोच वाले आतंकी संगठन की गिरफ्त में फंसने जा रहे हैं.

वहीं, ये भी खबरें सामने आ रही हैं कि तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को सरकार का सर्वोच्च नेता बनाया जाएगा. वैसे, 20 साल पहले के तालिबानी राज में अफगान महिलाओं, बच्चों और पुरुषों के लिए परिस्थितियां आसान नही थीं. 1996 से 2001 के बीच में अफगानिस्तान के लोगों ने तालिबानी बर्बरता का जो चेहरा देखा था, उसकी वापसी की दहशत से ही काबुल एयरपोर्ट पर हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी. लोग जान हथेली पर रखकर किसी भी हाल में देश छोड़कर भागने को आमादा यूं ही नहीं हो गए थे. लोगों को पता है कि तालिबान के सत्ता में आने पर वो एक बार फिर से मध्यकालीन क्रूर सोच वाले आतंकी संगठन की गिरफ्त में फंसने जा रहे हैं. इस्लामिक कानून और शरिया के नाम पर तालिबान ने औरतों, मर्दों और बच्चों पर भरपूर ज़ुल्म ढाए हैं. 20 साल बाद फिर से सत्ता में लौटे तालिबान ने बीते तीन दशकों में हजारों लोगों को मौत बांटी है. अनगिनत आत्मघाती हमलों से आतंक फैलाकर तालिबान ने हथियारों के बल पर फिर से अफगानिस्तान में वापसी कर ली है. कुल मिलाकर अगर ये कहा जाए कि अफगानिस्तान में आतंकी ही सरकार चलाएंगे, फिर चाहे वो हैबतुल्लाह अखुंदजादा हो या मुल्ला बरादर गलत नहीं होगा.

कौन है हैबतुल्लाह अखुंदजादा?

तालिबान के सरगना हैबतुल्लाह अखुंदजादा को धार्मिक मामलों के बड़े जानकार के रूप में पहचान मिली हुई है. 2016 में मुल्ला उमर के बाद तालिबान का नेता बने मुल्ला मंसूर की अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत होने पर हैबतुल्लाह अखुंदजादा को इस आतंकी संगठन का नेता बनाया गया था. कहा जाता है कि अखुंदजादा को तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मोहम्मद याकूब भी उसका समर्थन करता है. क्योंकि, मुल्ला मंसूर की मौत के बाद मोहम्मद याकूब को तालिबान का सरगना बनाए जाने की मांग पर उसने हैबतुल्लाह अखुंदजादा का नाम आगे कर दिया था. अखुंदजादा के शरिया का जानकार होने की वजह से मुल्ला उमर के तालिबानी राज में उसको इस्लामी कानूनों के जरिये लोगों में डर पैदा करने का काम दिया गया. चोरी जैसे मामलों में हाथ-पैर काटने से लेकर महिलाओं के हिजाब न पहनने पर सरेआम कोड़े बरसाने तक की अमानवीय और कठोर शरिया कानूनों को अफगानिस्तान में लागू करने का श्रेय उसी को जाता है. कहना गलत नहीं होगा कि 1996 से 2001 के तालिबानी राज में महिलाओं, पुरुषों और बच्चों के साथ हुए हर अत्याचार के पीछे हैबतुल्लाह अखुंदजादा की कट्टर सोच ही कारण रही है.

अमानवीय और कठोर शरिया कानूनों को अफगानिस्तान में लागू करने का श्रेय अखुंदजादा को जाता है.अमानवीय और कठोर शरिया कानूनों को अफगानिस्तान में लागू करने का श्रेय अखुंदजादा को जाता है.

वैसे, तालिबान हमेशा से ही अपने सर्वोच्च नेताओं को छिपाता आया है. दुनिया की तमाम खुफिया एजेंसियों के पास हैबतुल्लाह अखुंदजादा की केवल एक ही तस्वीर है. तालिबान का सर्वोच्च नेता होने के नाते वह सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने नहीं आता है. इस्लामिक त्योहारों पर ही हैबतुल्लाह अखुंदजादा के वीडियो सामने आते हैं. अखुंदजादा एक ऐसा आतंकी है, जिसके ठिकाने के बार में तालिबान के कई बड़े नेताओं को भी जानकारी नहीं है. कट्टरपंथी आतंकी हैबतुल्ला अखुंदजादा तालिबान के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों पर अंतिम फैसला करने का अधिकार रखता है. अखुंदजादा इतना ज्यादा कट्टरपंथी है कि तालिबान का सरगना बनने के बावजूद उसने अपने बेटे से ऊपर इस्लाम को चुना. तालिबान के आत्मघाती दस्ते में शामिल उसके बेटे की मौत अफगानिस्तान के एक मिलेट्री बेस पर हमले के दौरान हो गई थी. इसकी वजह से इस आतंकी संगठन में उसकी पकड़ और मजबूत हो गई.

बीते साल अमेरिका के साथ शांति समझौते के बाद तालिबान के आतंकियों ने अफगानिस्तान में धीरे-धीरे कहर बरपाना शुरू कर दिया. सत्ता में काबिज होने तक तालिबानी लड़ाकों ने अफगान सरकार के अधिकारियों, सैनिकों, न्यायधीशों, उच्च पदों पर बैठी महिलाओं और पत्रकारों की निर्मम तरीके से हत्याएं कीं. तालिबान ऐसा कर लोगों में दहशत फैलाना चाहता था, जिससे उसे सत्ता में वापसी के लिए बहुत ज्यादा कोशिशें न करनी पड़ें. और, हुआ भी कुछ ऐसा ही. अफगानिस्तान के कई प्रांतों पर तालिबान ने बिना लड़ाई के ही कब्जा कर लिया. इन प्रांतों के कई गवर्नर देश छोड़कर भाग गए, तो कुछ अफगानिस्तान के साथ मिलकर सत्ता चलाने को तैयार हैं. हैबतुल्लाह अखुंदजादा के तालिबान सरकार का सर्वोच्च नेता बनने पर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का हनन होना तय है.

कौन है मुल्ला बरादर?

बताया जा रहा है कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार का नेतृत्व इस आतंकी संगठन का संस्थापक सदस्य और दोहा में राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख मुल्ला अब्दुल गनी बरादर करेगा. मुल्ला बरादर को सत्ता की कमान देने के पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि वो अमेरिका के साथ शांति समझौते की बातचीत का अगुआ रहा है. मुल्ला बरादर को कथित तौर पर उदारवादी माना जाता है. उसने सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिदीनों के नेतृत्व किया था. मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने अपने बहनोई मुल्ला उमर के साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की थी. अमेरिका के अफगानिस्तान पर धावा बोलने के बाद तालिबान के अन्य नेताओं के साथ मुल्ला बरादर ने भी पाकिस्तान में शरण ली थी. अपनी सैन्य विशेषज्ञता की वजह से ही मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को पिछले तालिबानी राज में रक्षा मंत्री बनाया गया था. मुल्ला उमर का दायां हाथ कहलाने वाला मुल्ला बरादर तालिबान के हर जुल्म-ओ-सितम में बराबर का हिस्सेदार रहा है.

मुल्ला बरादर को कथित तौर पर उदारवादी माना जाता है.मुल्ला बरादर को कथित तौर पर उदारवादी माना जाता है.

तालिबान का सबसे बड़ा राजनीतिक चेहरा होने की वजह से ही मुल्ला बरादर को 2018 में पाकिस्तान की जेल से रिहा कर दिया गया था. अफगान सरकार से बातचीत के आरोप में उसे कथित तौर पर गिरफ्तार किया गया था. दरअसल, अमेरिका ने तालिबान से बातचीत के लिए मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को छोड़े जाने का अनुरोध किया था. जिसके बाद कतर के दोहा में स्थित राजनीतिक कार्यालय में अमेरिका के साथ बातचीत जारी रखी. अफगानिस्तान में फिलहाल जो हालात हैं, उसे देखते हुए कहा जाए कि मुल्ला बरादर अपनी बातों से अमेरिका को धोखा देने में कामयाब रहा, तो गलत नहीं होगा. अमेरका के साथ तालिबान की वार्ता का नेतृत्व करते हुए मुल्ला बरादर ने वो तमाम वादे किए जो इस आतंकी संगठन को अफगानिस्तान की सत्ता में वापस लाने के लिए अहम थे. फरवरी 2020 में जब तालिबान और अमेरिका के बीच दोहा समझौता हुआ, तो तालिबान ने धीरे-धीरे अफगानिस्तान के इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था.

औरतों, बच्चों और पुरुषों को लेकर किए गए तालिबान के इस राजनीतिक चेहरे के तमाम वादे किसी रसातल में धंस चुके हैं. जिस मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को अमेरिका तालिबान का उदारवादी चेहरा मानकर वार्ता की मेज पर लाया था. उसी के फैसलों से भविष्य में अफगानिस्तान में तालिबान का कहर और ज्यादा बढ़ने वाला है.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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