आखिर राहुल गांधी को अब भी ट्यूशन की जरूरत क्यों पड़ रही है
करीब डेढ़ दशक के लंबे अनुसंधान के बाद भी राहुल गांधी को ट्यूशन लेना पड़े, फिर क्या कहेंगे? राहुल गांधी को स्थापित करने की कांग्रेस में शिद्दत से कोशिश हो रही है - मास्टर क्लास का कंसेप्ट इस कड़ी में लेटेस्ट है.
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सोशल मीडिया के ट्रोल वैसे तो किसी के नहीं होते, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से उनका कुछ अलग ही नाता है. जब राहुल गांधी ने कैलाश मानसरोवर के फोटो ट्विटर पर शेयर किये तो लोगों ने गूगल करना शुरू कर दिया. कुछ देर बाद ही लोगों ने मिलते जुलते फोटो पोस्ट कर राहुल गांधी के कैलास मानसरोवर में होने पर ही सवाल खड़े कर दिये.
Why Rahul Gandhi tweeting pictures off the internet?
Is he somewhere else and pretending to be in Mansarovar? pic.twitter.com/tuMC7Qdb9E
— Mahesh Vikram Hegde (@mvmeet) September 5, 2018
एक सवाल ये भी उठा कि अगर वास्तव में राहुल गांधी वहां हैं तो वो सेल्फी क्यों नहीं पोस्ट कर रहे? बहरहाल, इस सवाल का जवाब भी आ गया है. लेखक साध्वी खोसला ने अपनी टाइमलाइन पर राहुल गांधी की यात्रा के कुछ फोटो शेयर किये हैं - और कांग्रेस की ओर से कंफर्म किया गया है कि वे फेक नहीं हैं. साध्वी खोसला ने अपने अपने बॉयो में खुद को शिवभक्त बताया है - ध्यान रहे राहुल गांधी भी खुद को शिवभक्त साबित करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं.
Here’s the man at #KailashYatra !
Lord Shiva will bless you in abundance @RahulGandhi ! The blessings of Bhole Baba will give you all the strength to consume and digest the poison. pic.twitter.com/nzDu1NwdKa
— Sadhavi Khosla (@sadhavi) September 7, 2018
संभव है राहुल गांधी ने सेल्फी उस घटना से सबक लेते हुए न पोस्ट की हो, जिसमें बीजेपी ने कांग्रेस के ट्वीट को रीट्वीट किया था. उस ट्वीट में राहुल गांधी को किसी हॉल में इधर उधर देखते देखा गया था. बीजेपी ने राहुल गांधी को कन्फ्यूज साबित करने की कोशिश की थी.
क्या राहुल गांधी अब भी कन्फ्यूज्ड हैं?
2012 में प्रकाशित पत्रकार आरती रामचंद्रन की किताब में भी राहुल गांधी को कई मामलों में कन्फ्यूज्ड नेता के तौर पर पेश किया गया था - और किताब के हवाले से कई अंतर्राष्ट्रीय अखबार और पत्रिकाओं में ऐसे लेख आये थे. तब राहुल गांधी के सामने 2014 की चुनौती थी, जिसमें वो पूरी तरह चूक गये. छह साल बाद राहुल गांधी वैसे ही मोड़ पर खड़े लगते हैं.
2019 के लिए राहुल गांधी बड़ी शिद्दत से तैयारी कर रहे हैं. सैम पित्रोदा के निर्देशन में ऐसी तैयारियों का ट्रायल विदेशों में होता है और देश में विधानसभा चुनाव इसकी प्रयोगशाला बनते हैं. गुजरात और कर्नाटक चुनाव के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी ऐसे एक्सपेरिमेंट होने हैं.
राहुल गांधी की तैयारियों को लेकर दैनिक भास्कर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट में राहुल गांधी के लिए आयोजित होने वाली मास्टर क्लास का विस्तार से जिक्र है. 2004 में राहुल गांधी की सक्रिय राजनीति में एंट्री हुई और तब से वो कभी किसानों के बीच, कभी समाज के हाशिये पर के लोगों के घरों में देखे गये - और 2014 के बाद से तो अक्सर संसद में भी मुद्दों को उठाते रहते हैं. पहले माना जाने लगा था कि राहुल गांधी जिम्मेदारियों से भागते हैं लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद वो प्रधानमंत्री पद की इच्छा भी जता चुके हैं - और बाद में राजनीतिक वजहों से ऐसी बातों से दूरी भी बनाने लगे हैं.
भीड़ में कैसे नजरें मिलाएंगे
2019 की तैयारियों को लेकर राहुल गांधी के लिए जो मास्टर क्लास आयोजित किये जाते हैं अब तक ऐसे 50 से ज्यादा सेशन हो चुके हैं और हर सेशन कम से कम तीन घंटे का होता है. इनमें ऐसे ट्विटर यूजर और ब्लॉगर बुलाये जाते हैं जिनकी पोस्ट या तो वायरल हो जाती है या फिर वे अक्सर ट्रोल होते हैं. इनके साथ सवाल जवाब का कोई तय फॉर्मैट तो नहीं होता, लेकिन मुख्य बिंदु नोट किये जाते हैं और बाद में उनसे पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन बनाये जाते हैं.
सीखना अच्छी बात है, लेकिन...
राहुल गांधी के लिए जो मास्टर क्लास चल रही है उसके लिए कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम खूब ठोक-बजा कर एक्सपर्ट को सेलेक्ट करती है. बताते हैं कि मास्टर क्लास में एक्सपर्ट की संख्या सीमित रखी जाती है - ऐसा इसलिए ताकि वो सभी से नजरें मिलाकर बात कर सकें.
अगर ऐसे रिहर्सल हो तो भीड़ के साथ कोई कैसे आंख से आंख मिलाकर बात कर पाएगा? अगर संभव नहीं हुआ तो गले मिलने के बाद भी आंख मारते पकड़ा जाएगा - और फिर विरोधी आंखों का खेल कह कर टूट पड़ेंगे.
डेढ़ दशक का रिसर्च और फिर से ट्यूशन
मास्टर क्लास पर रिपोर्ट में लिखा है, "राहुल के नजदीकी सूत्रों ने भास्कर को बताया कि ‘मुद्दों को समझने’ और ‘बड़ी जिम्मेदारी’ (इशारा पीएम के पद की ओर) स्वीकार करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष ने एक्सपर्ट्स के साथ मंथन का यह सिलसिला शुरू किया है. ऐसे सत्र पिछले साल दिसंबर में उनके कांग्रेस की कमान संभालने के बाद से ही शुरू हो गए थे."
राहुल गांधी के मास्टर क्लास के ये सेशन सुर्खियों में छाये मुद्दों और महत्वपूर्ण घटनाओं को लेकर आयोजित किये जाते हैं.
1. जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद राहुल गांधी ने सीनियर वकीलों और कुछ पूर्व न्यायाधीशों के साथ गहन विचार-विमर्श किया था.
2. गवर्नेंस की बारीकियों को समझने के मकसद से आयोजित सेशन में राहुल ने रिटायर नौकरशाहों से मिलकर वस्तुस्थिति को समझने की कोशिश की.
3. डोकलाम जैसे मुद्दे और विदेश नीति को लेकर भी सेशन आयोजित किये गये हैं जिनमें पूर्व राजनयिक और थिंकटैंक संस्थाओं से जुड़े लोगों ने शिरकत की है.
सिर्फ इतना ही नहीं, देश के सामने खड़ी चुनौतियों और जटिल समस्याओं का स्थाई हल खोजने के लिए भी राहुल गांधी के लिए ऐसे सेशन आयोजित होते हैं.
1. किसानों की समस्याओं को लेकर जाने माने कृषि विशेषज्ञों के साथ 10 सेशन आयोजित किये गये हैं.
2. देश में रोजगार के अवसर पैदा करने को लेकर भी ऐसा पांच सेशन हो चुके हैं.
3. समाज के कमजोर वर्गों और महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं को रोकने के उपायों पर भी चर्चा हुई है.
4. राफेल डील और रक्षा सौदों की बारीकियां जानने के लिए भी राहुल कई सेशन में शिरकत कर चुके हैं.
डिकोडिंग राहुल गांधी के आने के बाद आरती रामचंद्रन की टिप्पणी रही - 'राहुल की राजनीति में विसंगतियां हैं, मुद्दे महज प्रतीक के तौर पर हैं, मौकापरस्ती है लेकिन राष्ट्रीय मुद्दों से जूझने वाला कमिटमेंट नहीं दिखाई देता.'
2019 की तैयारी...
किताब को आधार बनाते हुए द इकोनॉमिस्ट ने तभी लिखा था, 'ऐसा साफ लगता है कि ब्रांड राहुल पूरी तरह से कनफ्यूज्ड है. एक व्यक्ति जिसके पास हर तरह की सुविधाएं हैं, जो सिर्फ अपने परिवार की वजह से खड़ा है, वो अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए जूझता दिखता है.'
राजीव गांधी जब देश के प्रधानमंत्री थे उनकी बातों को लेकर एक कार्टून बना था और उसमें एक वक्तव्य था - 'हमने देखा है, हम देख रहे हैं, हम देखेंगे'
अब अगर कोई वैसा ही कार्टून राहुल गांधी पर बनाये तो वक्तव्य होगा - 'हमने सीखा है, हम सीख रहे हैं, हम सीखेंगे'
सवाल ये है कि बरसों के रिसर्च के बाद अब भी राहुल गांधी को पॉलिटिकल ट्यूशन की जरूरत क्यों पड़ रही है? लिखा हुआ भाषण पढ़ना कोई गुनाह नहीं है, लेकिन क्या इसी बिनाह पर वो 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करने की सोच रहे हैं?
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