वक्त है पाक सेना और जैश को औकात दिखाने का
जैश नेता मौलाना मसूद की गिरफ्तारी से साफ है कि पाक पर पठानकोट के गुनाहगारों पर चाबुक चलाने का दबाव है. लेकिन एक सच ये भी है कि आंतकी संगठनों को खाद-पानी देती पाक सेना और खुफिया एजेंसी ISI भारत के लिए चुनौती बने रहने वाले हैं.
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भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों को सुधारने के रास्ते में पाकिस्तानी की घोर भारत विरोधी सेना और जैश-ए-मोहम्मद अवरोध खड़े करेंगे. पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हुए हमलों के बाद जैश- ए- मोहम्मद के नेता मौलाना मसूद अजहर की गिरफ्तारी से ये बात शीशे की तरह से साफ हो जाती है.
जैश और पाकिस्तान सेना की भारत से खुन्नस पुरानी है. इन दोनों ने भारत को क्षति पहुंचाने की हर मुमकिन कोशिशें की. इस सच्चाई के चलते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए भारत से रिश्ते सुधारने की कोशिशों को धक्का लग सकता है. उनके लिए मौलाना मसूद अजहर या दूसरे आतंकियों से दूरियां बनाना कठिन है. वजह ये है कि इन्हें ताकत तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI से ही मिलती है. ISI एक तरह से पाकिस्तान सेना का गुटका संस्करण है. वह पाकिस्तान सेना के अंतर्गत काम करती है. आजकल ISI की तरफ से जैश सरीखे संगठनों को हमारे पंजाब में आतंकवाद के दौर के बचे हुए गुटों को फिर से खड़ा करने का जिम्मा सौपा गया है.
ISI की ख्वाहिश है कि जैश के आतंकी गुरदासपुर-पठानकोट-जम्मू सेक्टर में अपना खूनी खेल बढ़ाएं. दरअसल, ISI आतंकी संगठन लश्कर-ए-तोयबा पर अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते जैश को नए हथियार के रुप में फिर से खड़ा कर रहा है. हमारी संसद पर हमले के बाद अपनी खूंखार छवि बनाने वाले जैश के पर ISI ने कतरे थे. क्योंकि इसके प्रमुख मौलाना मसूद अजहर ने पाकिस्तान सेना को ही चुनौती देनी शुरु कर दी थी. कहने वाले कहते हैं, जैश- ए- मोहम्मद तो लश्कर ए तोयबा से ज्यादा खतरनाक संगठन है. आईएसआई की ओर से जैश में नयी जान फूंकना भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए नयी चुनौती होगा.
बेशक मौलाना मसूद अजहर की गिरफ्तारी से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साक्ष्य आधारित पाकिस्तान निर्यातित आतंकवाद को सामने लाने का मौका मिला है. भारत की अंतर्राष्ट्रीय साख मजबूत हुई है. अगर आने वाले समय में भारत आतंकवाद आधारित युद्ध करता है तो शायद ही दुनिया पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखे. अब ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है पाकिस्तान आतंकवाद की प्रयोगशाला और जन्नत है. अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विगत मंगलवार को अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के आखिरी 'स्टेट ऑफ यूनियन' भाषण में इस बात की चेतावनी दी कि पाकिस्तान समेत विश्व के कुछ हिस्से नए आतंकी समूहों के लिए पनाहगाह बन सकते हैं. अब आप समझ सकते हैं कि पाकिस्तान से भारत को किस तरह से डील करना होगा. चुनौती कठिन है, नामुमकिन तो नहीं है. उधर, पाकिस्तानी नेत़ृत्व के लिए तो ये शर्म से डूब मरने लायक बात है. बेशक, भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्ते नहीं सुधर पाने के लिए हमारा पड़ोसी ही दोषी है. भारत ने उसको कई मौके दिए ताकि संबंध बेहतर हो सके. पर पाकिस्तान सरकार अपने देश में फूल-फूल रहे आतंकियों पर लगाम नहीं कस सकी. इस बीच, मौलाना मसूद अजहर को गिरफ्तार किए जाने को मामूली घटना के रूप में ले रहे हैं. ये मुंबई हमले में हाफिज सईद तथा जकीउर्रहमान लखवी से तुलना कर रहे हैं. पुनरावृत्ति की संभावना खारिज नहीं कर सकते. लेकिन मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान ने आतंकवादियों के पाकिस्तानी होने से ही इन्कार किया था. इस बार ऐसा नहीं है. हमले के बाद से कार्रवाई, छापे, गिरफ्तारियां के दौर चल रहे हैं. इसलिए मौलाना मसूद अजहर की गिरफ्तारी अहम मानी जा सकती है.
मौलाना मसूद अजहर को 1994 में कश्मीर में फर्जी पासपोर्ट के साथ गिरफ्तार किया गया था. भारत ने 1999 में कंधार विमान अपहरण मामले में मौलाना मसूद और दो और पाकिस्तानी आतंकियों को रिहा किया था. रिहा होने के बाद मौलाना मसूद ने कश्मीर में भारत के खिलाफ लड़ने के लिए आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद की शुरुआत की. इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर को भारत से अलग करना था. अजहर को साल 2001 में भारत के संसद में भी हमला करने का प्रमुख संदिग्ध माना गया था. आपको याद होगा कि अक्टूबर 2001 में जैश ए मौहम्मद के आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया था. यानी इतने खूंखार आतंकी की पाकिस्तान में पठानकोट हमले के बाद गिरफ्तारी से साफ है कि पाकिस्तान दबाव में तो है.
अब सवाल ये है कि क्या इन हालातों में भारत- पाकिस्तान के संबंध सुधर सकते हैं? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भारत से संबंध सुधराने को लेकर गंभीर लगते हैं. पर बड़ा सवाल ये है कि क्या उनके देश की आर्मी भी इसी तरह की सोच रखती है. शायद नहीं. आप पाकिस्तान आर्मी के गुजिश्ता दौर के पन्नों को खंगाल लीजिए. आपको समझ आ जाएगा कि वह किस हद तक भारत-विरोधी रही है. जनरल अयूब खान से लेकर राहील शरीफ सभी भारत विरोधी रहे हैं. पाकिस्तान की सेना में पंजाबियों का वर्चस्व साफ है. उसमें 80 फीसद से ज्यादा पंजाबी हैं. ये भारत से नफरत करते हैं. इस भावना के मूल में पंजाब में देश के विभाजन के समय हुए खून-खराबे को देखा जा सकता है. पाकिस्तान का पंजाब इस्लामिक कट्टरपन की प्रयोगशाला है. वहां पर हर इंसान अपने को दूसरे से बड़ा कट्टर मुसलमान साबित करने की होड़ में लगा रहता है. पंजाब के अलावा पाकिस्तान के बाकी भागों में भारत विरोधी माहौल इतना नहीं है. पाकिस्तान आर्मी ने ही देश में चार बार निर्वाचित सरकारों का तख्तापलटा. अयूब खान, यहिया खान, जिया उल हक और परवेज मुशर्ऱफ ने पाकिस्तानी सेना को एक माफिया के रूप में विकसित किया. देश में निर्वाचित सरकारों को कभी कायदे से काम करने का मौका ही नहीं दिया. जम्हूरियत की जड़ें जमने नहीं दीं. वर्ष 1956 तक देश का संविधान नहीं बन पाया. जब बना भी तो चुनाव नहीं हो पाए और सेना ने सत्ता हथिया ली. पाकिस्तानी सेना ने देश के विशव मानचित्र में सामने आने के बाद अहम राजनीतिक संस्थाओं पर भी प्रभाव बढ़ाना शुरु कर दिया. भारत से खतरे की आड़ में ही पाकिस्तान में लगातार सैनिक शासन पनपता रहा है. 1947 के बाद से पाकिस्तान में लगभग तीस साल तक सैन्य शासन रहा और सेना ने केंद्रीयकरण को बढ़ावा दिया. जब सेना का शासन नहीं रहा तब भी इस केंद्रीयकरण का प्रभाव बना रहा.
इन सब बातों को देखते हुए भारत के सामने सच में पाकिस्तान सेना के साथ-साथ जैश सरीखे आतंकी संगठनों का मुकाबला करना कोई आसान तो नहीं होगा. भारत को पाकिस्तान से संबंध सुधारने की प्रक्रिया को जारी रखते हुए सेना और जेश के नापाक इरादों पर पानी फेरना होगा.
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