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Updated: 22 नवम्बर, 2016 10:52 AM
मीनाक्षी कंडवाल
मीनाक्षी कंडवाल
  @meenakshi.kandwal
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लखनवी अदब और नवाबी ठाठ मैंने हमेशा किताबों, बातों और टीवी पर देखे सुने थे, लेकिन संयोग है कि जाना हो नहीं पाया. ऐसे में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का एसाइनमेंट जैसे ही मिला तो मैं बहुत उत्साहित थी कि लखनऊ के बारे में जो-जो सुना, उसे अब करीब से देखने और जीने का मौक़ा भी मिलेगा. और एक ड्रीम सफर के साथ.यह ड्रीम सफर था देश के सबसे बड़े एक्‍सप्रेसवे का. आगरा-लखनऊ एक्‍सप्रेसवे. अखिलेश यादव के 'ड्रीमप्रोजेक्ट' जैसी संज्ञा से ये एक्सप्रेसवे, शिलान्यास से लेकर उद्घाटन होने तक चर्चाओं में रहा. और चर्चाएं भी ऐसी कि 'दिल्ली से लखनऊ दूर नहीं' सिर्फ कहने भर के लिए नहीं बल्कि इशारों में "दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है" की तरफ इंगित करने लगा.

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अखिलेश यादव के 'ड्रीमप्रोजेक्ट' इस एक्‍सप्रेसवे पर क्‍या यूपी चुनाव का सफर भी तय होगा?

क्या वाकई ये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का वो मास्टर स्ट्रोक है जो उनके लिए सत्ता का राजपथ बनेगा ?  उद्घाटन में जेट विमानों के टेकऑफ जैसी उड़ान क्या अखिलेश को उनकी पारिवारिक कलह से भी उबार पाएगा ? क्या सचमुच बिजली-पानी और "सड़क" किसी भी राजनेता को जनता का 'हृदयसम्राट' बनाने का दम आज भी रखते हैं ?  और क्या वाकई दावों के मुताबिक रिकॉर्ड टाइम में पूरा होने वाला ये सुपरएक्सप्रेसवे आपको वर्ल्ड क्लास सुविधाओं का एहसास कराएगा?

इन सब सवालों के जवाब ढूंढने के लिए मैं दिल्ली-एनसीआर से रवाना हुई. चार कैमरों की हाईटेक यूनिट, रोड सेफ्टी एक्सपर्ट और अलग-अलग कसौटियों पर इस एक्सप्रेसवे को परखने के लिए हमारी तैयारी भरपूर थी. हमारे ड्रोन कैमरे के हवाई शॉट्स ने हमें ऐसी-ऐसी तस्वीरें दी जिन्हें सिर्फ आंखों से देख पाना मुमकिन नहीं था. देश के इस सबसे लंबे एक्सप्रेसवे का पूरा स्ट्रैच 302 किमी है. आईएएस ऑफिसर नवनीत सहगल की अगुवाई में इसका निर्माण हुआ. पूरे स्ट्रैच को पांच प्रोजेक्ट में बांटा गया था जिसकी जिम्मेदारी अलग-अलग इंजीनियर्स को सौंपी गई थी. उन इंजीनियर्स ने भी वहां पहुंचकर हमें एक्सप्रेसवे की बारीकियों के बारे में बताया. और इस प्रोजेक्ट को बनाने में  कौन सी दिक्कतें आईं, क्या उपलब्धियां रहीं और अब कितना वक्त बचा है और कब ये पूरी तरह इस्तेमाल के लिए तैयार होगा.  लेकिन जब मैं ख़ुद ड्राइविंग सीट पर बैठी तो मुझे सड़क शानदार लगी. दोस्तों से बात करने वाली भाषा में कहूं तो एकदम 'मक्खन'. जिसमें एसयूवी ड्राइव करते हुए 120 किमी की स्पीड आपको दिल्ली की सड़क की आम 60-70 किमी वाली स्पीड लगेगी. एक्सप्रेसवे पर काफी काम हो चुका है लेकिन काफी अभी भी बाकी है जिसमें फेंसिंग से लेकर सड़क पर लेन मार्किंग और पेट्रोल पंप, जनसुविधाएं और पुलिस व्यवस्था होना बाकी है. हमारे रोड सेफ्टी एक्सपर्ट, डॉ सेवाराम जो कि स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्ट में प्रोफेसर भी हैं ने तो यहां तक कहा कि 'उद्घाटन में कुछ जल्दबाज़ी कर दी गई क्योंकि रोड सेफ्टी ऑडिट रिपोर्ट आए बगैर एक्सप्रेसवे खोलना सही कदम नहीं है'.

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दुनिया की कुछ जबर्दस्‍त सड़कों में शुमार होगा यह एक्‍सप्रेसवे, बस पूरा बन जाने दीजिए...

ख़ैर, हम रियेलिटी चेक पर निकले थे तो हमें सभी पहलुओं को अपनी रिपोर्ट में शामिल करना था. और ऐसे में किसानों की बात करना बेहद जरुरी है. इस एक्सप्रेसवे के लिए ज़मीन अधिग्रहण अब तक के सबसे कामयाब अधिग्रहण में से एक हैं क्योंकि इसे लेकर शिकायत, कोई केस या कोई नि‍गेटिव फीडबैक सामने नहीं आया. 10 ज़िलों के 200 से भी ज्यादा गांवों से ज़मीन अधिग्रहित करना वो भी सभी पक्षों को संतुष्ट करके, किसी भागीरथ प्रयास से कम नहीं.

उन्नाव जि़ले में पड़ने वाले मेहंदीपुर गांव के कुछ किसानों को काम करते देखा तो मैं रुकी और उनसे बात की. उनकी आंखों की चमक उनके शब्दों से ज्यादा बोल रही थी. एक बूढ़े बाबा का सिर्फ ये कहभर देना कि "बिटिया हमार पीढ़ियां जिएंगी.. कुई बीमार होवत तो कहां से शहर जाव... हमार जमीन के, घर के दाम बढ़ गई"... वो हमारी टीम को देखकर इतना खुश थे कि चाय पिलाने के शिष्टाचार को भी ऐसे ज़ाहिर किया जैसे कि हमारा परिवार ही हों. उनके चेहरे का कौतुहल ये बता रहा था कि हमारे उड़ते ड्रोन को देखना उनके लिए विकास के किसी नक्शे पर उनकी असरदार मौजूदगी का ज़िक्र कर रहा है. वो लोग जो शायद कल तक आसमान पर उड़ते विमानों को सिर्फ तिनके जैसे देख पाते थे, आज फाइटर जेट के अपने गांव के आंगन में लैंड होने से गर्व के चरम पर हैं.

ड्राइव करने में मज़ा आया, सफर का वक्त कम होना भी फायदेमंद है और साथ ही सफर के शौकिन लोगों के लिए भरपूर रोमांच. क्योंकि ये एक्सप्रेसवे गोल्डन ट्राएंगल कहे जाने वाले आगरा-दिल्ली-जयपुर और यूपी के हैरिटेज आर्क कहे जाने वाले दिल्ली-आगरा-वाराणसी के सफर को सुखद बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता.

कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि करीब 13,000 करोड़ की लागत से बने इस प्रोजेक्ट को महज 22 महीने में पूरा कराकर अखिलेश यादव ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. पहला, उन्होंने अपनी विकासवादी छवि को मजबूत किया है, जिसे आने वाले चुनावों में भुनाने की पूरी कोशिश होगी. दूसरा, वक्त पर बिना झंझट के काम पूरा कराके उन्होंने दिखाने की कोशिश की है कि वो हर बड़ी चुनौती से पार पाने में सक्षम हैं. इसके अलावा घर में मचे राजनीतिक घमासान के बीच फिलहाल उन्होंने सबका ध्यान एक्सप्रेसवे की तरफ मोड़ दिया.

लेकिन सवाल यही कि क्या इस अधूरी सौग़ात के साथ ही वो चुनाव मैदान में उतरेंगे या फिर इसे चुनाव से पहले ही पूरा कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना जैसे ऐतिहासिक कदम की विरासत में अपना नाम भी अमर कर जाएंगे.

यहां देखिए वीडियो-

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