New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 13 मई, 2016 01:49 PM
डा. दिलीप अग्निहोत्री
डा. दिलीप अग्निहोत्री
  @dileep.agnihotry
  • Total Shares

इटली के अदालती फैसले से अगस्ता वेस्टलैंड डील मामले की आंच भारत तक आ गयी है. डील के तहत वहां घूस देने वालों को सजा सुनाई गयी. इटली में हुए फैसले का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि इसमें भारत के तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष एस.पी त्यागी को भी भ्रष्टाचार का दोषी माना गया है. इटली की मिलान अपीलीय अदालत ने अगस्ता वेस्टलैंड के मुखिया को इस मामले में भ्रष्टाचार और मनी लांड्रिंग का दोषी माना. उनकी सजा बढायी गयी. मिलान कोर्ट की यह टिप्पणी भी गौरतलब है कि भारत की तत्कालीन संप्रग सरकार ने सहयोग नहीं दिया था. यह टिप्पणी ही संप्रग सरकार की वास्तविक मंशा को उजागर करती है. वह किसी न किसी को बचाने का प्रयास कर रही थी. यह सही है कि संप्रग सरकार ने विपक्षी दबाब के चलते जनवरी 2014 में यह सौदा रद्द कर दिया था. लेकिन घूस लेने वालों के नाम सामने लाने की दिशा में उसने कोई कारगर कदम नहीं उठाया था. सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को जांच अवश्य सौंपी गयी थी लेकिन जांच को आगे बढ़ाने में इन संस्थाओं ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. 

vvip_chopper--1_650__051316120759.jpg
 हेलीकाफ्टर निर्माता देश की अदालत ने घूस देने वालों को सजा सुना दी है.

यह भी उल्लेखनीय है कि जिस समय संप्रग सरकार लाखों करोड़ रूपये के घोटालों में घिर रही थी, उस समय भी रक्षामंत्री ए.के. एंटोनी को ईमानदार माना जाता था. लेकिन उन्होंने भी स्वीकार किया था कि अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में किसी भारतीय ने रिश्वत ली थी. सौदा भी सरकार ने अपनी प्रेरणा से रद्द नहीं किया था. वरन् विपक्ष के जोरदार हंगामें के कारण ऐसा करना पड़ा था. मतलब साफ है, यदि विपक्ष ने हंगामा ना किया होता तो घूस के लेन-देन के साथ यह सौदा सम्पन्न हो जाता है. ऐसे में संप्रग की चेचरपर्सन रही सोनिया गांधी की इस बात पर विश्वास किया जा सकता है वह अगस्ता वेस्ट लैंड डील घोटाले के आरोप से डरती नहीं है. जो सरकार पन्द्रह लाख करोड़ रूपये के घोटालों के आरोप से ना हटी हो, उसके प्रभावशाली लोग भला करीब डेढ़ सौ करोड़ रूपये मात्र के आरोप से कैसे डर सकते है. लाखों करोड़ रूपये के सामने यह बेहद मामूली रकम है. लेकिन यह गंभीर इस कारण भी है कि कांग्रेस ने बोफोर्स घोटाले से कोई सबक नहीं लिया था. यह ठीक है कि उसमें भी जमकर राजनीति हुई थी, लेकिन उसमें भी घूस के लेन-देन की बात साबित हुई थी, यह भी बताया जा रहा था कि कौन लोग उससे लाभन्वित हुए थे.

ये भी पढ़ें- भारत में रक्षा सौदे और दलाली के गंदे रिश्‍ते का पूरा ताना-बाना

जब कि अगस्ता वेस्लैंड काण्ड बोफोर्स के मुकाबले अधिक स्पस्ट है. इसमें हेलीकॉप्टर निर्माता देश की अदालत ने घूस देने वालों को सजा सुना दी है. ऐसे में यह भारत की जिम्मेदारी है कि वह घूस लेने वालों को सजा दिलाए. इस तथ्य को नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता कि इटली कोर्ट के फैसले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके राजनीति सचिव अहमद पटेल, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायण का बाकायदा नाम लिया गया है. इसमें सोनिया गांधी को ड्राइविंग फोर्स बताया गया. इसका मतलब है कि अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में उनकी निर्णायक भूमिका थी. वैसे भी यह बात भारत में सभी लोग जानते थे कि सोनिया गांधी का संप्रग सरकार पर जबर्दस्त वर्चस्व था. तत्कालीन प्रधानमंत्री उनकी इच्छा के विपरीत साधारण निर्णय लेने की भी स्थिति में नहीं थे. इटली कोर्ट ने दस्तावेजी, आधार पर कहा है सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, एम के नारायण और अहमद पटेल के सामने कंपनी ने लांबिग की थी. सोनिया के राजनीतिक सचिव तक घूस की रकम पहुंचने का उल्लेख किया गया. फैसले में लिखा गया कि उनको सत्रह-अठारह मिलियन डॉलर दिए गए थे. हाथ से लिखे गए कागजों को फैसले के साथ संलग्न किया गया है.

sonia_051316120701.jpg
 सोनिया गांधी का नाम चार बार आया है. उनका नाम सिग्नोरा अर्थात श्रीमती गांधी के रूप में दर्ज है.

इसमें कूट शब्दों में दर्ज नाम तत्कालीन एयर फोर्स प्रमुख एसपी त्यागी व सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की ओर इशारा करते है? यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मिलान की यह अदालत भारत के हाई कोट के समकक्ष है इटली में इस स्तर की अदालत के फैसले का पर्याप्त सम्मान किया जाता है. भारत उससे तकनीकी रूप से प्रभावित नहीं हो सकता. लेकिन फैसले में जिस प्रकार भारत के कई प्रभावशाली लोगों का नाम दर्ज है, उससे हमारी नैतिक जिम्मेदारी अवश्य बनती है. यदि ये लोग निर्दोष है, तो इन्हें ससम्मान आरोप मुक्त घोषित होना चाहिए. यदि दोषी है, तो देश के सामने इनकी सच्चाई आनी चाहिए. फिलहाल इस बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि मिलान कोर्ट के विस्तृत फैसले में भारतीयों के नाम है. पूर्व वायुसेना प्रमुख त्यागी की भूमिका सत्रह पृष्ठो में उल्लिखित है. सोनिया गांधी का नाम चार बार आया है. उनका नाम सिग्नोरा अर्थात श्रीमती गांधी के रूप में दर्ज है. अगस्ता वेस्टलैण्ड के अधिकारी की चिट्ठी भी संलग्न है. इसमें मनमोहन सिंह का नाम है यह अधिकारी जेब में है. उसे चार वर्षो की सजा मिली है. कंपनी के लाइजनिंग प्रमुख पीटर ह्यूलेट का फैसले में संलग्न पत्र दिलचस्प है. इसमें कहा गया है कि हेलीकॉप्टर डील होने में सोनिया गांधी की सहमति अनिवार्य है. सोनिया एम आई-आठ हेलीकॉप्टर में उड़ना पसंद नहीं करती. हो सकता है कि मंहगे व अधिक आरामदेह हेलीकॉप्टर खरीदने का सौदा इसी कारण हो रहा था.

इटली की अदालत में सोनिया मनमोहन, अहमद पटेल, आस्कर फर्नाडीस आदि का नाम आना गंभीर विषय है. लेकिन कांग्रेस की ओर जिस प्रकार बचाव किया जा रहा है, उसमें विशुद्ध राजनीति है. ऐसे तर्क से पार्टी अपने नेताओं को बेदाग साबित नहीं कर सकती. कांग्रेस ने इस मामले को भी दो वर्षो से चल रही अपनी-अपनी रणनीति का हिस्सा बना लिया है. इसके तहत प्रत्येक समस्या के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दोष दिया जाता है. यह दिखाने का प्रयास होता है कि कांग्रेस दो वर्ष पहले विकसित, समृद्ध, भारत छोड़ कर सत्ता से विदा हुई थी, सभी समस्याऐं इनदो वर्षो में उत्पन्न हो गयी. इसी लकीर पर चलकर कांग्रेस इटली कोर्ट के फैसले के लिए भी नरेन्द्र मोदी को दोष दे रही थी. उसके अनुसार इटली के प्रधानमंत्री से मोदी की डील हुई थी कि कांग्रेस नेताओं का नाम आए. लेकिन कांग्रेस इस बात का जवाब नहीं देती कि अदालत ने संप्रग काल के दस्तावेज कैसे संलग्न कर दिए. इनसे मोदी का कोई लेना देना नहीं. तब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे. ऐसा भी नहीं कि इटली की कोर्ट ने कोई बड़ा धमाका कर दिया हो. संप्रग काल में ही अनेक प्रमुख लोगों के नाम इस डील पर चर्चित हुए थे.  

लेखक

डा. दिलीप अग्निहोत्री डा. दिलीप अग्निहोत्री @dileep.agnihotry

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय