अजित पवार अभी तो महाराष्ट्र की राजनीतिक के सबसे बड़े लाभार्थी हैं
अजित पवार (Ajit Pawar) महाराष्ट्र (Maharashtra Political Drama) के चुनाव शुरू होने से लेकर अब तक जितना फायदा (ACB Clean Chits) उठा चुके हैं वो इतना है कि अगर फिर से डिप्टी सीएम नहीं भी बनते तो मलाल नहीं होना चाहिये.
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अजित पवार (Ajit Pawar) महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार में डिप्टी सीएम बनेंगे या नहीं अब तक साफ नहीं हुआ है. ये तो तय है कि डिप्टी सीएम एनसीपी का ही होगा, लेकिन बकौल प्रफुल्ल पटेल डिप्टी सीएम को लेकर फैसला 22 दिसंबर को होगा. अभी तो महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अलावा महज 6 मंत्री हैं - और मंत्रिमंडल विस्तार में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस हिस्सेदारी पर लगभग सहमति बना चुके हैं.
वैसे अजित पवार डिप्टी सीएम नहीं भी बनते तो कोई गिला या मलाल नहीं रहना चाहिये - क्योंकि देवेंद्र फडणवीस को तीन दिन का मुख्यमंत्री बनाने के एवज में अजित पवार को इतना मिल चुका है (ACB Clean Chits) जो पूरे पांच साल की कुर्सी से कम नहीं है.
महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव नतीजे आने के बाद (Maharashtra Political Drama) अगर पैमाइश हो कि कौन फायदे में रहा और किसे नुकसान हुआ, तो सबसे ज्यादा फायदे में अजित पवार का ही नाम आता है. जाहिर है कोई सबसे बड़ा लूजर भी तो होगा ही.
अजित पवार की तो बल्ले बल्ले हो गयी
2014 में जब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो पहला एक्शन सिंचाई घोटाले में अजित पवार की भूमिका की जांच के आदेश देना ही रहा. और वही देवेंद्र फडणवीस जब पांच साल बाद फिर से कुर्सी पर बैठे तो भी पहला आदेश अजित पवार से ही जुड़ा लगता है. मगर, दोनों ही आदेशों में उत्तर दक्षिण का फर्क रहा. पहले वाले में अजित पवार की भूमिका की जांच का आदेश था - और दूसरी बार अजित पवार को ही बचाने वाला आदेश रहा होगा. जरूरी नहीं कि मुख्यमंत्री सारे आदेश लिख कर ही दे. मतलब काम होने से होता है.
अजित पवार का काम तो तभी हो चुका था जब देवेंद्र फडणवीस को विधायकों के समर्थन वाले एक पत्र से मुख्यमंत्री बनवा दिया और खुद डिप्टी सीएम बन बैठे. ताजा अपडेट ये है कि घोटाले के दो मामलों में महाराष्ट्र का एंटी करप्शन ब्यूरो तो अपनी तरफ से क्लीन चिट दे चुका है. बस अदालत की मंजूरी का इंतजार है.
अजित पवार को क्लीन चिट देने की रणनीति भी सोच समझ कर बनायी गयी. 25 नवंबर को खबर आयी कि ACB ने सिंचाई घोटाले से जुड़े नौ मामले बंद कर दिये तो चारों तरह चर्चाएं शुरू हो गयीं कि अजित पवार को देवेंद्र फणडवीस ने कुर्सी पर बैठते ही पाक साफ घोषित कर दिया. तभी एंटी करप्शन ब्यूरो ने मीडिया के सामने सफाई दी कि जो नौ मामले बंद किये गये हैं उनका अजित पवार से कोई वास्ता नहीं है. एसीबी ने बिलकुल सही जानकारी दी थी. दरअसल, ये काम दो दिन बाद किया गया.
अजित पवार सबसे ज्यादा फायदे में तो देवेंद्र फडणवीस को सबसे ज्यादा घाटा हुआ है.
एसीबी के नागपुर ऑफिस की तरफ से बॉम्बे हाई कोर्ट में हलफनामा देकर बताया गया कि सिंचाई घोटाले में तत्कालीन डिप्टी सीएम अजित पवार की कोई भी दोषपूर्ण भूमिका नहीं बनती. हाई कोर्ट में दायर हलफनामे में एंटी करप्शन ब्यूरो ने बताया, 'VIDC के चेयरमैन को अमल करने वाली एजेंसियों के भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि उनका कोई कानूनी कर्तव्य नहीं था.' बतौर सिंचाई मंत्री अजित पवार ही तब VIDC के चेयरमैन रहे.
27 नवंबर को ही अमरावती एसीबी के एसपी श्रीकांत धिवरे ने भी बिलकुल वैसा ही हलफनामा देकर हाई कोर्ट से कहा कि ब्यूरो को ऐसा कोई सबूत मिला जो साबित कर सके कि सिंचाई घोटाले में अजित पवार को दोषी ठहराया जा सके. दिलचस्प बात ये रही कि नागपुर एसीबी की अधीक्षक रश्मि नांदेकर की तरफ से दायर एफिडेविट की भाषा भी बिलकुल नागपुर के अधिकारी जैसी ही रही.
खास बात ये रही कि ये सब महाविकास अघाड़ी सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे के शपथ लेने के ठीक एक दिन पहले का वाकया है.
महाराष्ट्र में कौन कितने फायदे में?
एंटी करप्शन ब्यूरो की क्लीन चिट से तो साफ है कि अजित पवार महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम में सबसे ज्यादा फायदे में रहे - लेकिन देवेंद्र फडणवीस को छोड़ कर महाविकास अघाड़ी सरकार से जुड़े हर हिस्सेदार को लाभ ही हुआ है.
1. सबसे बड़ा फायदा : महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान जब प्रवर्तन निदेशालय के शरद पवार और अजित पवार सहित एनसीपी के कई नेताओं के नाम आये तो शरद पवार और अजित पवार की प्रतिक्रिया अलग अलग देखी गयी. शरद पवार ने जहां ED दफ्तर जाकर पेश होने की घोषणा कर दी, वहीं अजित पवार राजनीति ही छोड़ने की बात करने लगे. उसी दौरान अजित पवार ने विधानसभा से भी इस्तीफा भी दे दिया था. कई दिनों तक उनके चुनाव लड़ने पर भी संशय बना रहा लेकिन बाद में चुनाव लड़े भी और अच्छे अंतर से जीते भी.
और अब तो अजित पवार के दोनों ही हाथों में लड्डू देखा जा सकता है - कहां सबसे बड़े भ्रष्टाचारी का तमगा और कहां धड़ाधड़ क्लीन चिट. बहुत संभावना है कि वो फिर से महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम भी बन जायें.
2. बाकी भी फायदे में : बहुत बड़े फायदे वाले तो उद्धव ठाकरे ही रहे. कांटोंभरा ताज ही सही, ठाकरे परिवार से पहला चुनाव भले ही आदित्य ठाकरे ने लड़ा हो, पहला सीएम तो उद्धव ही बने हैं.
शरद पवार के फायदे का आकलन भी अलग तरीके से हो सकता है. चुनावों में उनकी सक्रियता ही डूबती एनसीपी को न सिर्फ बचा लिया बल्कि मिली जुली सरकार में भी दबदबा बरकरार है - अब कहने वाली बात अलग है कि 'हमें क्या मिला?'
सच तो ये है कि कुर्सी पर भले ही उद्धव ठाकरे बैठे हों लेकिन सबको शरद पवार ही अपने इशारों पर नचा रहे हैं. माना जा रहा है कि सत्ता का रिमोट कंट्रोल तो शरद पवार के पास है और उद्धव ठाकरे तो सिर्फ एक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर हैं.
रही बात कांग्रेस की तो उसे फायदा बिलकुल वैसा ही मिला है जैसे 2015 में बनी नीतीश सरकार में मिला था. बीजेपी को सत्ता से दूर रखने की थोड़ी खुशी और थोड़ी सत्ता में हिस्सेदारी - वैसे भी सूबे में चौथे नंबर की पार्टी के लिए ये कम भी नहीं है.
3. सबसे बड़ा घाटा : घाटे में तो बीजेपी के सारे नेता ही रहे. विशेष घाटे में वे नेता माने जा सकते हैं जो एनसीपी और कांग्रेस छोड़ कर चुनावों से पहले ही बीजेपी ज्वाइन किये थे - और अब सुनने में आ रहा है कि वे सभी इस्तीफा देकर या तो अपने दलों में लौट जाना चाहते हैं या फिर शिवसेना में एंट्री की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन सबसे ज्यादा घाटे में देवेंद्र फडणवीस ही लगते हैं. चुनाव पूर्व गठबंधन को बहुमत दिलाने के बावजूद दोबारा जबरन कुर्सी पर बैठने की तोहमत लगी और कर्नाटक के बीएस येदियुरप्पा की तरह इस्तीफा देकर भागना पड़ा.
ऊपर से बीजेपी के बागी नेताओं ने अलग जीना हराम कर रखा है. पंकजा मुंडे तो बड़ी मुश्किल से मान भी गयी हैं, लेकिन परदे के पीछे विनोद तावड़े और खुल कर एकनाथ खड़से जैसे नेता महाराष्ट्र में बीजेपी के हर नुकसान के लिए देवेंद्र फडणवीस को ही टारगेट कर रहे हैं.
अगर इस हिसाब से सोचा जाये तो महाविकास अघाड़ी सरकार में अजित पवार फिर से डिप्टी सीएम नहीं भी बन पाते तो किसी तरह का नुकसान नहीं समझना चाहिये - क्योंकि तीन दिन में जो मिल चुका है वो बीते पांच साल की मुसीबतों और भविष्य की मुश्किलों के मुकाबले बहुद ज्यादा है.
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