अखिलेश यादव ने भाजपा के शिकार के लिए मजबूत 'जाल' बुना है, लेकिन 'चूहों' का क्या करेंगे?
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ यूपी चुनाव 2022 का सबसे बहुप्रतीक्षित गठबंधन (Alliance) कर लिया है. लेकिन, अखिलेश यादव की इस गठबंधन राजनीति को कांग्रेस, बसपा, आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम जैसे दलों की भीड़ नुकसान पहुंचाएगी.
-
Total Shares
यूपी चुनाव 2022 का सबसे बहुप्रतीक्षित गठबंधन आखिरकार मूर्तरूप में आ ही गया. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के नेता और अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया है. अखिलेश यादव गठबंधन की राजनीति को मजबूत करने की नीयत से खुद ही चाचा शिवपाल सिंह यादव के आवास पर पहुंचे थे. पारिवारिक और राजनीतिक औपचारिकताओं के बीच 45 मिनट की मुलाकात में यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए गठबंधन पर मुहर लग गई. ट्विटर पर भी भतीजे अखिलेश और चाचा शिवपाल ने संदेश दिया कि चुनाव में चाचा-भतीजा की जोड़ी एक ही पाले में खड़ी दिखाई देगी. यूपी चुनाव 2022 के मद्देनजर समाजवादी पार्टी के मुखिया छोटे दलों से गठबंधन के जरिये भाजपा के सामने खुद को सबसे मजबूत विपक्ष के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. और, काफी हद तक इस मामले में कामयाब भी नजर आ रहे हैं.
किसान आंदोलन के सहारे संजीवनी पाने वाले आरएलडी नेता जयंत चौधरी और भाजपा के पूर्व सहयोगी रहे ओमप्रकाश राजभर समेत अपना दल कमेरावादी, जनवादी पार्टी (एस), महान दल जैसे कई छोटे सियासी दलों से गठबंधन ने समाजवादी पार्टी को सूबे के अलग-अलग हिस्सों में मजबूती दी है. इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने बसपा और कांग्रेस के बागियों के साथ भाजपा के भी कुछ नेताओं (जिनका टिकट कटने की संभावना है) पर अपना ध्यान लगाया हुआ है. और, अब चाचा शिवपाल सिंह यादव के सपा के साथ गठबंधन से यादव मतदाताओं में हो सकने वाले बिखराव को भी अखिलेश यादव ने काफी हद तक संभाल लिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अखिलेश यादव ने भाजपा के शिकार के लिए मजबूत 'जाल' बुना है. लेकिन, अहम सवाल ये है कि अखिलेश यादव के पास इस जाल को नुकसान पहुंचाने वाले 'चूहों' यानी कांग्रेस, बसपा, आम आदमी पार्टी जैसे सियासी दलों की काट क्या है?
अखिलेश यादव की गठबंधन राजनीति वाले प्रयोग की राह में रोड़े कम नही हैं.
कांग्रेस को नजरअंदाज करना पड़ सकता है भारी
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का पूरा चुनावी कैंपेन 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' के सहारे सूबे की आधी आबादी पर केंद्रित कर दिया गया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने महिलाओं के बीच पकड़ बनाने के लिए 40 फीसदी महिला प्रत्याशियों के अलावा खासतौर से महिला घोषणा पत्र भी जारी किया है. खैर, आधी आबादी को साधने का प्रियंका गांधी का ये फॉर्मूला कितना काम आएगा, ये चुनावी नतीजे तय कर देंगे? लेकिन, कुछ महीनों पहले तक उत्तर प्रदेश में 'चिर मूर्छा' से ग्रस्त कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी ने कहीं न कहीं संजीवनी खोज ही ली है. उन्नाव का मामला हो या हाथरस का महिलाओं से जुड़े अपराध की घटनाओं में प्रियंका गांधी की मौजूदगी जमीन पर नजर आती है. आगरा, सोनभद्र और लखीमपुर खीरी जैसे मामलों पर प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा को लगातार अपने निशाने पर रखा. इन सभी मामलों से लोगों के बीच प्रियंका गांधी की योगी आदित्यनाथ सरकार से जूझने वाली छवि बनी. जबकि, अखिलेश यादव माहौल को केवल गठबंधन के सहारे अपने पक्ष में जुटे रहे.
अखिलेश यादव के शिवपाल सिंह के साथ गठबंधन तय होने के साथ ही मान लिया गया है कि अब समाजवादी पार्टी का भाजपा को टक्कर देने के लिए चलाया जा रहा गठबंधन अभियान थम गया है. तो, ये भी माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस अपने प्रत्याशियों को उतारकर समाजवादी पार्टी के लिए रास्ता छोड़ने के मूड में नही है. क्योंकि, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में प्रियंका गांधी अभी से 2024 के आम चुनाव के लिए कांग्रेस की जमीन तैयार करने की कोशिश कर रही है. दरअसल, अगर इस यूपी चुनाव 2022 में कांग्रेस खुद को साबित करने में कामयाब नहीं हो पाती हैं, तो उसके लिए आगे की राह आसान नहीं होने वाली है. तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने पहले से ही कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है. इस स्थिति में देश के सबसे बड़े सूबे से कांग्रेस को चुनौती देने वाले एक और नेता के सामने आने को प्रियंका गांधी रोकने की पूरी कोशिश करेंगी. और, इसका अंदाजा बिहार के महागठबंधन में टूट से लगाया जा सकता है. जहां आरजेडी और कांग्रेस अब आमने-सामने आ चुकी हैं.
अखिलेश यादव को कांग्रेस की अहमियत का अंदाजा लगवाने के लिए प्रियंका गांधी हरसंभव कोशिश करेंगी.
दरअसल, कांग्रेस चाह रही है कि प्रियंका गांधी के चेहरे के जरिये समाजवादी पार्टी को कम से कम इतना नुकसान पहुंचा दिया जाए, जिससे अखिलेश यादव को कांग्रेस के साथ की अहमियत का एहसास हो जाए. अगर कांग्रेस अपने इस प्लान में कामयाब हो जाती है, तो छोटे सियासी दलों के साथ गठबंधन के मजबूत आधार पर खड़े अखिलेश यादव बहुमत से पीछे रह जाएंगे. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 केवल कांग्रेस ही नहीं, सपा का भी राजनीतिक भविष्य तय करेगा. अगर अखिलेश यादव इसमें कामयाब नहीं हो पाते हैं, तो उनकी साख पर बट्टा लग जाएगा. जो ठीक उसी तरह का होगा, जैसा 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती पर 'जीरो' सीट लाने पर लगा था. प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में फिलहाल जितनी मेहनत की है, उसे देखकर इतना कहा जा सकता है कि इस संजीवनी का असर सूबे में कांग्रेस को जिलाए रखने के काम आ ही जाएगा. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ खास है नहीं. और, जमीन पर अपनी उपस्थिति दिखाकर वो अखिलेश यादव पर मानसिक तौर पर बढ़त लेने में कामयाब हो ही जाएगी.
बसपा सुप्रीमो मायावती का जनाधार
बसपा का प्रदर्शन सीटों के मामलों में 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही गिरना शुरू हो गया था. लेकिन, इस दौरान हुए दो विधानसभा और दो लोकसभा चुनावों में बसपा सुप्रीमो मायावती के परंपरागत वोटबैंक ने उनका साथ नहीं छोड़ा. बसपा का वोट शेयर इन सभी चुनावों में करीब 20 फीसदी से ज्यादा पर ही टिका रहा. क्योंकि, जिन सीटों पर मायावती मजबूत नजर आई हैं, वहां भाजपा विरोधी वोटों में सपा और बसपा के बीच बंटवारा जरूर हुआ. 2017 के विधानसभा चुनाव में कई मुस्लिम बहुल सीटों पर सपा के हारने और भाजपा के जीतने की वजह बसपा सुप्रीमो मायावती ही रहीं. क्योंकि, दलित मतदाताओं के साथ ही मुस्लिम वोटों में भी बसपा ने सेंध लगाई थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस को वोट शेयर में नुकसान हुआ था. लेकिन, बसपा का वोटबैंक करीब 20 फीसदी ही रहा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो मायावती के नाम पर भाजपा विरोधी मतदाताओं का बंटने की संभावना इस बार भी बनी ही रहेगी. अगर ऐसा होता है, तो नुकसान अखिलेश यादव का ही होगा.
ओवैसी को कमतर समझने की भूल
अखिलेश यादव ने इस बार अपने एमवाई यानी मुस्लिम+यादव समीकरण में बदलाव करते हुए इसे महिला और युवा में बदल दिया है. हालांकि, माना जा रहा है कि भाजपा के खिलाफ मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद समाजवादी पार्टी ही है. लेकिन, मुस्लिम बहुल सीटों पर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की भी नजर है. सूबे की 100 मुस्लिम बहुल सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी अपनी पूरी ताकत झोंककर मुसलमानों की लीडरशिप खड़ी करने का ख्वाब देख और दिखा रहे हैं. अगर इन सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी का थोड़ा सा भी जादू चल गया, तो इसका सीधा नुकसान समाजवादी पार्टी के खाते में ही जाने वाला है. पिछले विधानसभा चुनाव में दर्जनों ऐसी सीटें रही थीं, जहां हार-जीत का अंतर 100 से 2000 तक रहा था.
शहरी सीटों पर केजरीवाल देंगे टक्कर
भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा करने के लिए उत्तर प्रदेश की शहरी सीटों पर आम आदमी पार्टी भी समाजवादी पार्टी के लिए चुनौती खड़ी कर सकती है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल सूबे में पदार्पण कर रहे हैं. लेकिन, पार्टी का संगठन शहरी सीटों पर तेजी से बढ़ा है. एनसीआर क्षेत्र की सीटों पर भी आम आदमी पार्टी समाजवादी पार्टी के लिए सिरदर्द के तौर पर ही उभरती दिखाई दे रही है. दिल्ली मॉडल के जरिये मुफ्त बिजली-पानी और शिक्षा की योजनाओं के सहारे अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के लिए यूपी की शहरी सीटों पर ठीक-ठाक माहौल बना दिया है. अखिलेश यादव के साथ आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं होने के चलते अब केजरीवाल के लिए भी सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का रास्ता साफ है. आम आदमी पार्टी भी सपा के खिलाफ 'वोटकटवा' की भूमिका निभाएगी ही.
आपकी राय