अखिलेश को चाचा शिवपाल ने 'टीपू' तो आजम ने 'धोखेबाज' बना दिया!
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान समाजवादी पार्टी के कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खां (Azam Khan) को लेकर चुप्पी साधे रखी थी. वहीं, चाचा शिवपाल यादव (Shivpal yadav) को अखिलेश ने गठबंधन के सहारे पंगु बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. अब अखिलेश के लिए यही दांव उल्टे पड़ने लगे हैं.
-
Total Shares
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों के बाद संसद से इस्तीफा देकर विधायक बनना चुना था. अखिलेश यादव के नेता प्रतिपक्ष बनने के साथ ही तय हो गया था कि समाजवादी पार्टी अब पूरी तरह से उत्तर प्रदेश केंद्रित राजनीति ही करेगी. और, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपना फोकस भी 2024 के लोकसभा चुनाव पर कर दिया था. लेकिन, इन सबके बीच अखिलेश यादव पर समाजवादी पार्टी के भीतर से सवाल खड़े होने लगे हैं. पहले चाचा शिवपाल यादव ने अखिलेश के खिलाफ अपने तेवरों का प्रदर्शन किया. फिर संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने अपनी ही पार्टी पर मुसलमानों के लिए काम न करने का आरोप लगाया दिया. अब रामपुर से विधायक और कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खान के समर्थकों ने भी अखिलेश यादव पर भाजपा से दुश्मनी कराकर खुद नेता प्रतिपक्ष बन जाने के आरोप लगा दिए हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अखिलेश यादव को चाचा शिवपाल ने 'टीपू', तो आजम खान ने 'धोखेबाज' बना दिया.
मुस्लिम नेताओं का अखिलेश यादव के खिलाफ विरोध का स्वर समाजवादी पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है.
शिवपाल यादव ने भतीजे को कैसे बनाया 'टीपू'?
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों के बाद अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव के बीच मची रार ने समाजवादी पार्टी की मिट्टी पलीद कर दी. गठबंधन सहयोगियों को साथ बनाए रखने की अखिलेश यादव जितनी कोशिश कर रहे थे, सबसे पहले शिवपाल यादव ने ही उसमें पलीता लगाया. समाजवादी पार्टी के संरक्षक और अपने भाई मुलायम सिंह यादव से लेकर भतीजे अखिलेश यादव के खिलाफ बगावती तेवर अपना कर शिवपाल ने सपा को दमभर नुकसान पहुंचा दिया है. और, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आगे भी शिवपाल ऐसा करते रहेंगे. अखिलेश यादव के सामने समस्या ये है कि वह चाहकर भी शिवपाल यादव को बाहर का रास्ता नहीं दिखा सकते हैं. क्योंकि, अगर ऐसा होता है, तो भाजपा को अखिलेश पर हमलावर होने का एक और मौका मिल जाएगा कि अखिलेश यादव के लिए पारिवारिक रिश्तों को अहमियत नहीं देते हैं. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले भाजपा ने मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को पार्टी में शामिल कर अपने इस पक्ष को मजबूती दे दी थी. इस स्थिति में शिवपाल को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना अखिलेश के लिए ही चुनौती बन जाएगा.
आजम खान के समर्थकों ने क्यों बताया 'धोखेबाज'?
'क्या यह मान लिया जाए कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सही कहते हैं कि अखिलेश यादव नहीं चाहते कि आजम खान जेल से बाहर आएं?' रामपुर से समाजवादी पार्टी के विधायक और कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खान के मीडिया प्रभारी फसाहत अली खां शानू ने अपनी ही पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पर कुछ ऐसे ही निशाना साधा. फसाहत अली ने मुस्लिम समाज का जिक्र करते हुए अखिलेश यादव पर आरोपों की झड़ी लगा दी. उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि 'हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष को हमारे कपड़ों से बदबू आती है. क्या सारा ठेका अब्दुल (मुस्लिम वोटरों) ने ले लिया है. वोट भी अब अब्दुल देगा और जेल भी अब्दुल जाएगा.'
CM Yogi’s comment was right that Akhilesh Yadav doesn’t want Azam Khan to be out (of jail). We made you&Mulayam Yadav UP CM but you didn't make Azam Khan as leader of Opposition. You only went once to meet him in the jail: Azam Khan's media in-charge Fasahat Ali Khan Sanu (10.04) pic.twitter.com/DoyoXMen0x
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) April 11, 2022
इतना ही नहीं फसाहत ने कहा कि 'आजम खान दो साल से ज्यादा समय से जेल में हैं, लेकिन सपा अध्यक्ष केवल एक बार जेल में उनसे मिलने गए. और, पार्टी में मुसलमानों को महत्व नहीं दिया जा रहा है. हमारे नेता आजम खान ने अपनी जिंदगी सपा को दे दी लेकिन सपा ने आजम खान के लिए कुछ नहीं किया.' दरअसल, कुछ दिनों पहले ही फसाहत अली ने आजम खान को वरिष्ठता के आधार पर समाजवादी पार्टी की ओर से नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की बात कही थी. हालांकि, अखिलेश यादव ने नेता प्रतिपक्ष का पद अपने पास ही रखा. जिसके बाद समाजवादी पार्टी के भीतर से ही सवाल खड़े किए जाने लगे हैं.
अखिलेश की मुश्किल क्या है?
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि समाजवादी पार्टी ने अपने एमवाई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण के दम पर 111 सीटों पर जीत हासिल की. लेकिन, आजम खान जैसे कद्दावर मुस्लिम नेता और अन्य मुस्लिम समाज के मामले पर अखिलेश यादव ने पूरे यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान चुप्पी साध रखी थी. और, हाल-फिलहाल में भी अखिलेश ने मुसलमानों के किसी मुद्दे पर खुलकर बोलने से परहेज कर रखा है. हाल ही में गोरखनाथ मंदिर के हमलावर मुर्तजा अब्बासी को मानसिक रोगी बताने वाला बयान भी अखिलेश यादव पर बैकफायर कर गया था. यही वजह है कि अखिलेश हर मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं. लेकिन, खुलकर समाजवादी पार्टी का साथ निभाने वाले मुस्लिम नेताओं को ये चुप्पी रास नहीं आ रही है. इसके चलते ही संभल के सपा सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क ने खुलकर कहा था कि समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया.
हालांकि, पार्टी ने ऐसे सभी आरोपों को नकारा है. लेकिन, अखिलेश यादव के सामने मुश्किल ये है कि अगर समाजवादी पार्टी आजम खान या मुस्लिमों से जुड़े अन्य किसी मुद्दे को उठाती है. तो, इसका फायदा भाजपा को ध्रुवीकरण की राजनीति करने में मिलेगा. अब अखिलेश के लिए चुनौती ये है कि अगर मुस्लिम समुदाय के मुद्दों को उठाते हैं, तो उन पर तुष्टिकरण के आरोप लगेंगे. जिससे सीधे तौर पर भाजपा को फायदा मिलेगा. वहीं, मुस्लिम मतदाताओं के मुद्दे नहीं उठाने से उनके समाजवादी पार्टी से छिटकने का खतरा भी पैदा हो सकता है. वहीं, शिवपाल यादव की बात करें, तो भले ही उनके भाजपा में शामिल होने से अखिलेश यादव को कोई खास फर्क न पड़े. लेकिन, इससे अखिलेश की छवि एक 'अहंकारी' नेता के तौर पर बन जाएगी. जो अपने हितों के लिए दूसरों को कुर्बान करने में तनिक भी संकोच नहीं करता है.
आपकी राय