बीजेपी के राम मंदिर के जवाब में अखिलेश यादव ने भी 'लांच' किया एक मंदिर
पिछले कई दशकों से भाजपा का भव्य राम मंदिर वाला वादा कोमा में है. जब बात वादों की ही है तो अखिलेश यादव ने हिंदुत्व से जुड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक मंदिर निर्माण की बात हवा में उछाल दी है.
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लोकसभा चुनाव और मंदिर की सियासत का पुराना रिश्ता रहा है. जब भी लोकसभा के चुनाव नजदीक आते हैं नेताओं के आर्काइव में यही एक मुद्दा होता है जिसको फिर से निकाला जाता है और ब्रह्मास्त्र के रूप में छोड़ दिया जाता है. भारतीय जनता पार्टी मंदिर की राजनीति करती है और ये ब्रह्म सत्य है. बीजेपी और राम मंदिर जुड़वा भाई की तरह हैं. लेकिन मंदिर बनाने का वादा अगर मौलाना मुलायम के बेटे और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव करें तो समझिये की भारतीय राजनीति संघ की विचारधारा का अमृतपान कर चुकी है, जिसका इंतजार संघ अपनी स्थापना काल के बाद से ही कर रहा है.
लोकसभा चुनाव नजदीक आते हीं मंदिर की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है.
अखिलेश यादव ने आज घोषणा की है कि अगर वो सत्ता में आएं तो तो उत्तर प्रदेश में भगवान विष्णु का नगर विकसित किया जाएगा और इसमें भव्य मंदिर भी होगा. भगवान विष्णु का यह मंदिर कंबोडिया के विश्व प्रसिद्ध अंकोरवाट मंदिर की तरह होगा. अखिलेश यादव को मालूम है कि अगर उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सामने चुनाव में उतरना है तो किसी नई मंदिर का शिगूफा तो छोड़ना ही होगा क्योंकि राम मदिर तो भारतीय जनता पार्टी का कॉपीराइट है. अखिलेश ने बाकायदा ये भी बता दिया की भारतीय जनता पार्टी के राम मेरे विष्णु के ही तो अवतार हैं.
लोकसभा चुनाव की आहट ने उत्तरप्रदेश में मंदिर की राजनीति को फिर से सुलगा दिया है. बीजेपी के नेताओं ने इस मुद्दे को भुनाने के लिए इसे उछालना शुरू कर दिया है. लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व की राजनीति को काउंटर करने के लिए अखिलेश का बयान अपनी राजनीतिक घोषणा से भलीभांति परिचित होगा. उत्तरप्रदेश के उपमुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा था कि अगर जरुरत पड़ी तो हम राम मंदिर बनाने के लिए संसद से कानून भी पास कर सकते हैं और इसके बाद से ही टीपू भैया की बेचैनी बढ़ गई थी. पूरे रिसर्च के बाद उन्होंने राम मंदिर का तोड़ विष्णु मंदिर के रूप में निकाला.
इटावा के निकट 2000 एकड़ से अधिक भूमि पर नगर विकसित करेंगे. हमारे पास चंबल के बीहड़ में काफी भूमि है. अखिलेश यादव अपने मंदिर प्रोजेक्ट का विस्तृत प्रस्तुतिकरण लेकर आये थे जिससे ऐसा लग रहा था पिछले कई दिनों से इसके ऊपर विचार रहें हो. पिछले लोकसभा चुनाव में केवल पारिवारिक कुनबे को बचाने वाली समाजवादी पार्टी नरेंद्र मोदी को हलके में नहीं लेना चाहती और ऐसे वक़्त में जब राज्य का मुख्यमंत्री भगवाधारी हो और मंदिर की राजनीति का पुराना खिलाड़ी हो.
ऐसे ये पहला मौका नहीं है जब अखिलेश भव्य मंदिर बनाने का वादा कर रहें हो उन्होंने इसके पहले भी सैफई में सबसे ऊंची मूर्ति स्थापित करने का वादा किया था. भव्य मंदिर दरअसल अपनी राजनीति को भव्य बनाने का जरिया भर है इसके बाद मंदिर और मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है. पिछले कई दशकों से भव्य राम मंदिर का वादा अभी कोमा में है, अब एक और भव्य वादा अखिलेश की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ती के लिए हो सकता है लेकिन इसके धरातल पर उतरना तो छोड़िये चुनाव के बाद अपने बयान के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया जायेगा.
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)
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