UP Election 2022: जाटलैंड के बाद अब यादवलैंड में अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर है!
यूपी चुनाव 2022 के तीसरे चरण (UP Election 2022 Third Phase Voting) में 59 सीटों पर होने वाला मतदान समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के लिए बड़ी चुनौती है. करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की रणनीति को भाजपा ने उनके लिए एसपी सिंह बघेल के जरिये और मुश्किल बना दिया है.
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यूपी चुनाव 2022 के दो चरणों में जाटलैंड का रण अब तीसरे चरण में यादवलैंड में प्रवेश कर चुका है. 20 फरवरी को होने वाले तीसरे चरण में 16 जिलों की 59 सीटों पर मतदान होना है. यूपी चुनाव 2022 के शुरुआती दो चरणों में किसान आंदोलन, समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन, मुस्लिम बहुल सीटों जैसे मुद्दों और समीकरणों की चर्चा थी. तो, तीसरे चरण के मुद्दे पूरी तरह से अलग नजर आते हैं. तीसरे चरण में किसान आंदोलन का गुस्सा, मुस्लिम बहुल सीटें जैसे समीकरण नही हैं. वैसे, 2017 के चुनाव में भाजपा ने इन 59 सीटों में से 49 पर जीत दर्ज की थी. जबकि, 16 में से 9 जिलों में यादव मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या होने के बावजूद यादवलैंड में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था. समाजवादी पार्टी को यादव बेल्ट की केवल 8 सीटों पर ही हासिल हुई थी. वहीं, इस बार अखिलेश यादव ने मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतर कर तीसरे चरण में भाजपा पर हावी करने की कोशिश कर रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पहले के दो चरणों के बाद तीसरे चरण में अब सीधे अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. हालांकि, भाजपा के सामने भी अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है.
तीसरे चरण में किसान आंदोलन का गुस्सा, मुस्लिम बहुल सीटें जैसे समीकरण नही हैं.
तीसरे चरण के क्या हैं मुद्दे?
तीसरे चरण की 59 सीटों की बात की जाए, तो यहां पर जाति के साथ विकास, व्यापार और सुरक्षा जैसे मुद्दे ही मायने रखते हैं. साथ ही इस चरण में इटावा जिला भी है, तो अपने आप ही इसमें परिवारवाद का मुद्दा भी जुड़ जाता है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की पिछली रैलियों में बेरोजगारी, विकास, महंगाई जैसे मुद्दे छाए रहे हैं. कानपुर में हुई एक रैली में अखिलेश यादव ने भाजपा पर बरसते हुए कहा था कि 'भाजपा ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन अब रात-रात भर जागकर किसानों को अन्ना जानवरों से खेती बचानी पड़ रही है. हवाई चप्पल पहनने वाले हवाई जहाज पर चलेंगे, लेकिन डीजल-पेट्रोल की महंगाई से गाड़ी व बाइक तक नहीं चल पा रही हैं. रोजगार के दावे हवाहवाई निकले.' वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कानपुर देहात की रैली में एक बार फिर से हिंदुत्व का दांव खेला. परिवारवाद के आरोप के साथ जहां उन्होंने एक ही जिले में सुविधाओं को बढ़ाने की बात की. इसके साथ ही पीएम मोदी ने गोवा के चुनाव में टीएमसी के नेता की एक इंटरव्यू का उदाहरण देते हुए हिंदू वोटों के बंटवारे की जिक्र भी छेड़ दिया.
करहल से चुनाव लड़ना अखिलेश की रणनीति
सीएम योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद से ही अखिलेश यादव पर भी चुनाव लड़ने का एक अघोषित दबाव बन गया था. पहले कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश अपनी संसदीय सीट आजमगढ़ की ही किसी विधानसभा से चुनावी मैदान में उतरेंगे. लेकिन, यादवलैंड में तीसरे चरण के मतदान के मद्देनजर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से सियासी समर में उतरने का मन बनाया. वैसे, ये अखिलेश यादव की एक सोची-समझी रणनीति कही जा सकती है. तीसरे चरण में अपने नाम के सहारे अखिलेश की कोशिश यादव मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की है. क्योंकि, उन्होंने जसवंतनगर से चुनाव लड़ रहे उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव से भी अपने पुराने गिले-शिकवे मिटा लिए हैं. वैसे, भाजपा ने अखिलेश के सामने केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को प्रत्याशी बनाकर करहल का मुकाबला रोचक कर दिया है. क्योंकि, किसी जमाने में एसपी सिंह बघेल सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा अधिकारी रहे थे. फिलहाल करहल का सियासी पारा पूरे यूपी में सबसे ज्यादा है. हालात ये हैं कि खुद मुलायम सिंह यादव को पहली बार करहल में चुनाव प्रचार के लिए उतरना पड़ रहा है.
गैर-यादव और गैर-जाटव वोटों को कौन सहेज पाएगा?
यूपी चुनाव 2022 से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कई बागी विधायकों और नेताओं ने भाजपा को झटका देते हुए समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवारी कर ली थी. जिसके बाद से ही संभावना जताई जाने लगी है कि गैर-यादव और गैर-जाटव मतदाता, जो लंबे समय से भाजपा के साथ बने हुए थे, अब उसके पाले से खिसक सकते हैं. हालांकि, यहां एक बात गौर करने वाली ये भी मानी जा सकती है कि पीएम नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ सरकारों की अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं का लाभ इसी वर्ग को मिलता है. वहीं, भाजपा ने पिछली बार की तरह इस बार भी यादव मतदाताओं को साथ बनाए रखने के लिए हिंदुत्व और मथुरा का दांव खेला है. वहीं, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि अखिलेश यादव के करहल से चुनाव लड़कर यादव वोटों को सहेजने की कोशिश की वजह से गैर-यादव और गैर-जाटव वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना बढ़ गई है. वहीं, तीसरे में गठबंधन समीकरण भी एक बड़ा फैक्टर होगा. समाजवादी पार्टी का महान दल और अपना दल (कमेरावादी) से, तो भाजपा का अपना दल (सोनेलाल) के साथ गठबंधन भी इस चरण में मतदाताओं पर प्रभाव डालेगा.
भितरघात अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती
वैसे, अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ अपनी राजनीतिक दुश्मनी पर विराम लगा दिया है. लेकिन, कुछ दिनों पहले ही शिवपाल यादव का केवल एक सीट मिलने को लेकर छलका दर्द समाजवादी पार्टी के मुखिया के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो शिवपाल सिंह यादव के इन 59 सीटों में फैले सभी समर्थकों का वोट समाजवादी पार्टी में ट्रांसफर होगा, इसकी संभावना कमजोर ही नजर आती है. क्योंकि, शिवपाल यादव ने इन सीटों में से कई पर प्रत्याशी भी घोषित कर दिए थे. जो तीसरे चरण के मतदान में निश्चित तौर पर अखिलेश यादव की राह में कांटे बिछाएंगे.
बसपा और कांग्रेस लगा रहे पूरी ताकत
तीसरे चरण की 59 सीटों पर बसपा और कांग्रेस भी पूरी ताकत के साथ प्रचार में जुटी हैं. हालांकि, कांग्रेस और बसपा का सियासी प्रभाव बहुत ही सीमित नजर आता है. लंबे समय तक सत्ता से दूर रहने वाला बसपा सुप्रीमो मायावती का वोटबैंक यहां अहम भूमिका निभा सकता है. ये वोटबैंक जिस पार्टी की ओर खिसकेगा, उसको यहां से आसानी से बढ़त मिल जाएगी. बसपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और भाजपा ने जातीय समीकरणों को साधने के लिए टिकट बंटवारे पर पूरा जोर दिया है.
अखिलेश के लिए गुंडागर्दी का जवाब ढ़ूंढना मुश्किल
चुनावी मैदान में मुसलमान, दंगे, गुंडागर्दी और अपराधीकरण के मुद्दे भाजपा लगातार उठा रही है. अखिलेश यादव के पास इसे काउंटर करने के लिए कोई जवाब नजर नहीं आता है. ये देखना दिलचस्प होगा कि इन मुद्दों पर किसे फायदा होगा? यूपी चुनाव 2022 में ये इकलौता ऐसा मुद्दा है, जो सारे चरणों में एक जैसा प्रभाव रखता है. क्योंकि, यूपी की जनता ने सपा शासनकाल में गुंडई और सत्ता की हनक को बहुत करीब से महसूस किया है.
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