ओबामा ने सीरिया को समझा अफगानिस्तान, वह वियेतनाम निकला
ओबामा प्रशासन से कुछ ऐसी चूक हुई कि जिससे अमेरिका विरोधी शिया समुदाय को एकजुट होने का मौका मिल गया है. अरबों की दुनिया में सऊदी अरब की चौधराहट भी खतरे में पड़ गई है.
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सीरिया की जंग में अमेरिका की हर तरफ से हार हो रही है. रणनीतिक तौर पर, राजनीतिक तौर पर और जंगी तौर पर. 25 साल की उसकी एकमात्र विश्वशक्ति होने की साख चौपट हो चुकी है.
अफगानिस्तान समझने की भूल की-
15 साल पहले अमेरिका ने अफगानिस्तान में कमजोर तालिबान शासन को उखाड़ फेंका था, जिसके पास कोई अंतर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं था. लेकिन, सीरिया के मामले में ऐसा नहीं था. उसके पक्ष में ईरान और रूस खुलकर तो चीन दबे छुपे समर्थन में था. जब राजनीतिक लड़ाई की बात आई तो अमेरिका कभी भी सीरिया को लेकर पूरी दुनिया का समर्थन नहीं मिला. क्योंकि सीरिया पूरी दुनिया के लिए चुनौती नहीं है.
तालिबान नहीं, वहां स्वार्थी ISIS है-
अफगानिस्तान में रूसी कब्जे के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद से वहां तालिबान को खड़ा किया. जिसने पूरी ताकत से रूस के साथ छापामार लड़ाई की और उसे खदेड़ दिया. लेकिन, सीरिया में अमेरिका की छत्रछाया में सऊदी अरब और तुर्की ने जिस विद्रोही दल को खड़ा किया, उसी में से ISIS खड़ा हो गया. बेशुमार तेल भंडारों का मालिक बनकर. इस्लामिक कैलिफेट के सपने संजाए. सबसे खतरनाक आतंकी संगठन बनकर.
गरीब पाकिस्तान नहीं, वहां अमीर सऊदी और तुर्क है-
अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका का मोहरा पाकिस्तान था. 1980 के दशक में जिसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह अमेरिकी मदद पर ही निर्भर थी. लेकिन सीरिया में लड़ाई के लिए अमेरिका का मोहरा सऊदी अरब और तुर्की थे, जिनके इलाके में अपने हित-अहित हैं.
पर्दे के पीछे रहने वाला अमेरिका नहीं, खुलेआम रूस है-
अफगानिस्तान की जंग में अमेरिका को मैदान में आना ही नहीं पड़ा और तालिबान और मुजाहिदीनों ने रूस को खदेड़ दिया. सीरिया में भी वही तरकीब अपनाई गई, लेकिन यहां रूस के असद सरकार के समर्थन में आ जाने से पासा उलटा पड़ गया.
तो कुल जमा अमेरिका ने जिस सीरिया को अफगानिस्तान समझकर अपनी रणनीतिक कुशलता के तले कुचलना चाहा था, वह वियेतनाम की तरह उस पर भारी पड़ गया है. असद की सेनाएं धीरे धीरे पूरी सीरिया पर काबिज होती जा रही हैं.
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