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Updated: 21 अप्रिल, 2019 11:57 AM
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मायावती और मुलायम सिंह यादव का एक मंच पर होना उत्तर प्रदेश की राजनीति में वाकई ऐतिहासिक वाकया रहा. 19 अप्रैल को करीब ढाई दशक बाद संभव हो पाये इस पल को लेकर दोनों पक्षों के चेहरे पर खुशी देखते ही बन रही थी.

चार साल पहले नीतीश कुमार भी बीजेपी से 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ कर 20 साल बाद ऐसे ही लालू प्रसाद के साथ हाथ मिलाया था. लालू और नीतीश का साथ तो जल्दी ही छूट गया, मायावती और मुलायम परिवार का कितना चलता है देखना होगा.

सार्वजनिक तौर पर तो मायावती और मुलायम सिंह के रिश्ते लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जैसे ही लगते हैं - लेकिन बीच की कुछ घटनाएं और उस दौरान दोनों ही नेताओं के बात-व्यवहार बिलकुल अलग तस्वीर दिखाते हैं. ऐसा लगता है जैसे मायावती की मुलायम सिंह यादव से नाराजगी जरूर रही, लेकिन उनके बच्चों से नहीं - और उसी तरह मुलायम सिंह यादव ने भी मौके पर मायावती के सम्मान का पूरा ख्याल. ऐसे कुछ वाकये ही बता रहे हैं कि यूपी के इन दो क्षत्रपों के राजनीतिक विरोध से इतर एक सॉफ्ट कॉर्नर भी हमेशा कायम रहा.

सियासी दुश्मन के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर कैसे!

राजनीति में जो गला काट प्रतियोगिता सार्वजनिक सभाओं में नजर आती है वैसी ही निजी रिश्तों में हो जरूरी नहीं होता. अरविंद केजरीवाल की अरुण जेटली और शीला दीक्षित के साथ हंसती मुस्कुराती तस्वीरें इसी बात की मिसाल हैं - और इस मामले में सिर्फ नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है. मगर, कुछ वाकये ऐसे होते हैं जो नेताओं के बीच निजी स्तर पर भी नफरत पैदा कर देते हैं - 2 जून 1995 का लखनऊ गेस्ट हाउस कांड ऐसा ही रहा.

लखनऊ गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती और मुलायम सिंह के मिलने की कौन कहे किसी तरह के राजनीतिक गठबंधन तक के बारे में सोचना मुश्किल हुआ करता था. अब वो बात नहीं रही, बल्कि मायावती को अपने लिए वोट मांगने के लिए आने पर मुलायम सिंह सरेआम एहसान मान रहे हैं.

यूपी की सियासी तहरीर ऊपर से ही ऐसी लगती है, लिफाफे के अंदर का मजमून काफी अलग नजर आता है. सितंबर, 2018 में बीजेपी में शामिल हुए मायावती के सुरक्षा अधिकारी रहे डिप्टी एसपी पद्म सिंह इस बात के गवाह रहे हैं. मायावती के साथ साथ पद्म सिंह मुलायम सिंह के लिए भी काम कर चुके हैं - और यही वजह रही कि वो अखिलेश यादव को भी बचपन से ही जानते हैं. मायावती और मुलायम सिंह यादव की तनातनी के बीच निजी रिश्तों की कहानी पद्म सिंह की ही जबानी मीडिया तक पहुंची थी.

बात 2002 की है जब दिल्ली जाने वाली फ्लाइट में मायावती बैठी हुई थीं. कुछ देर बाद अखिलेश यादव और डिंपल की एंट्री हुई. सामने मायावती को देखा तो दोनों ने अभिवादन किया - लेकिन मायावती अपने स्वभाव के अनुरूप कुछ भी रिएक्ट नहीं किया. ये उन दोनों के लिए आश्चर्य की कोई बात नहीं रही होगी क्योंकि मायावती की छवि शुरू से ही ऐसी ही बनी हुई है.

फ्लाइट जब दिल्ली पहुंच गयी तो उतरने के बाद मायावती ने युवा दंपती के बारे में पूछा जिन्होंने उन्हें विश किया था. पद्म सिंह ने मायावती को बताया कि वे कोई और नहीं बल्कि गेस्ट हाउस कांड के लिए जिम्मेदार मुलायम सिंह यादव के बेटे-बहू हैं.

mulayam singh, akhilesh yadav, mayawatiदेश हित के नाम पर वोट के लिए गिले शिकवे ऐसे ही दूर किये जाते हैं...

ये जानते ही मायावती अपने सुरक्षा अधिकारी पद्म सिंह पर गुस्सा हो गयीं और डांटते हुए से बोलीं, 'तुमने मुझे बताया क्यों नहीं... तुम्हें मुझे चुपचाप बता देना चाहिये था. उनके बेटे-बहू ने मुझे नमस्ते किया, मुझे भी सही से उनका अभिवादन करना चाहिये था... वो लड़का मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा? उसकी पत्नी क्या सोच रही होगी? ये सही नहीं हुआ.'

मायावती का इस तरह अफसोस जताना बता रहा है कि मुलायम सिंह को लेकर वो जो कुछ भी सोच रखती हों, लेकिन उनके बच्चों के प्रति ऐसा कुछ नहीं नहीं था. इस घटना के साल भर बाद ही ऐसा संयोग हुआ कि फ्लाइट में ही दोनों नेताओं को अगल बगल सीट मिल गयी. सुरक्षा अधिकारियों के लिए ये बड़ी टेंशन वाली बात थी. स्थिति को संभाला जाये तो कैसे? पद्म सिंह के दिमाग में एक आइडिया सूझा और उन्होंने समाजवादी पार्टी के एक नेता से बात करके मुलायम सिंह यादव को पहले बैठने के लिए राजी कर लिये. बाद में वो मायावती को लेकर गये और वो अपनी सीट पर बैठ गयीं. सफर शुरू हुआ.

पूरे रास्ते दोनों नेताओं ने एक दूसरे की तरफ देखा तक नहीं. नजर न मिले इसलिए एहतियातन लगातार अखबार ऊपर उठाकर पढ़ते रहे. सब कुछ प्लान के मुताबिक होता कब है. कुछ तो हादसों के हिस्से का भी होता है.

दिल्ली में प्लेन के लैंड करते ही मुलायम सिंह और मायावती दोनों अपनी अपनी सीट से उठे और गलियारे में आमने सामने खड़े हो गये. मुलायम सिंह हाथ जोड़ कर बोले, 'नमस्ते बहन जी!'

फिर मुलायम सिंह ने कहा, 'बहन जी आप पहले उतरें.'

लेकिन मायावती खड़ी रहीं और बोलीं, 'नहीं, नहीं. आपकी सीट हमसे आगे है तो पहले आप जाइये.'

मायावती के कहने के बावजूद मुलायम सिंह अपनी जगह खड़े रहे और कहा, 'बहन जी, आप मेरी बहन हैं. आप पहले जाएंगी. आप मुझसे बड़ी हैं.'

उस वाकये के बारे में बताते हुए पद्म सिंह रोमांचित हो उठते हैं - और कहते हैं कि उनका ये भाव उन्हें बेहद पसंद आया. पद्म सिंह के पास दोनों नेताओं से जुड़े ऐसे कई संस्मरण याद हैं. ये दो घटनाएं ये समझने के लिए तो काफी हैं कि राजनीति में निजी रिश्ते उतने कड़वे नहीं होते जितने टीवी बहसों और चुनावी रैलियों के भाषणों में नजर आते हैं.

मैनपुरी का मैसेज कितना असरदार होगा?

मैनपुरी अरसे से मुलायम सिंह यादव का गढ़ रहा है. देखा जाये तो मुलायम सिंह को मैनपुरी के लिए मायावती के वोट मांगने की वैसी कोई जरूरत नहीं थी. मुलायम के लिए सीट निकालना कोई मुश्किल काम नहीं लगता - और वो भी तब जब कोई नेता अपने इलाके लोगों से आखिरी चुनाव बता कर वोट मांग रहा हो. फिर भी मैनपुरी समागम की खास अहमियत है. मैनपुरी के मंच से मायावती और मुलायम सिंह ने मिल कर अपने अपने वोट बैंक को संदेश देने की कोशिश की है - जब हमारे दिल मिल गये तो किसी के भी दिल में दरार क्यों रहे.

कहने को तो बदायूं, संभल, फिरोजाबाद से लेकर फर्रूखाबाद तक यादव वोटों की बहुतायत है लेकिन 2014 के नतीजे सारी उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं. गोरखपुर उपचुनाव में गठबंधन ने भले बाजी मार ली हो, लेकिन आगे की राह मुश्किल हो चली है. सपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले प्रवीण निषाद पहले ही बीजेपी में पहुंच चुके हैं - और पार्टी ने भोजपुरी स्टार रविकिशन को मोर्चे पर तैनात कर दिया है. बाकी सीटों की कौन कहे आजमगढ़ जो मुलायम सिंह की सीट रही, इस बार अखिलेश यादव चुनाव मैदान में हैं और बीजेपी उम्मीदवार दिनेशलाल यादव निरहुआ जबरदस्त टक्कर दे रहा है. ऐसे में दलित और यादव वोटों के एकजुट होना सपा-बसपा गठबंधन हर हाल में जरूरी हो चला है.

मैनपुरी में गठबंधन की रैली में मायावती और मुलायम सिंह को एक मंच पर लाकर अखिलेश यादव ने गठबंधन के वोटों को एकजुट करने की आखिरी कोशिश की है. 2014 और फिर 2017 के चुनाव नतीजों को देखते हुए सपा-बसपा गठबंधन के लिए कुछ सीटों को छोड़ कर हर सीट बड़ी चुनौती है. देखना ये है कि मायावती और मुलायम सिंह यादव के गिले-शिकवे भुल कर आगे बढ़ने के सार्वजनिक प्रदर्शन का कितना असर होता है?

मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव तो फूले नहीं समा रहे हैं, लेकिन लखनऊ गेस्ट हाउस कांड का बार बार जिक्र कर मायावती ने साफ कर रही हैं कि उस घटना को न तो वो भूली हैं, न ही कभी भूल पाएंगी. मायावती के जीवन की वो ऐसी घटना है जिसे भूल पाना मायावती क्या किसी के लिए भी संभव नहीं हो पाता. मायावती का उस घटना का हर मौके पर जिक्र उसके पीछे की दूरगामी राजनीतिक सोच की ओर इशारा करती है. मायावती अपने वोटर के दिमाग से उस घटना की याद मिटने नहीं देना चाहतीं क्योंकि बाद में भी उनके पास गठबंधन को लेकर कुछ कहने की गुंजाइश बची रहे. पहला मैसेज तो ये है कि वो दलितों और पिछड़ों के हित के लिए निजी पीड़ा तक नजरअंदाज करने के लिए तैयार हैं. दूसरा गठबंधन चाहे जिससे हो बहुजन समाज पार्टी हर हाल में अपने स्टैंड पर कायम रहती है - यही वो बात है जिसके चलते बीएसपी का वोटर अपने नेता पर आंख मूंद कर भरोसा करता है - और मायावती की राजनीति चलती रहती है.

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