लो आ गये 'अच्छे दिन', आमित शाह के दावे की सच्चाई !
अकाउंट में 15 लाख के वादे को 'सियासी जुमला' बताने वाले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का अच्छे दिन वाला बयान भी एक जुमला है. हकिकत आपके सामने है.
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'अच्छे दिन आने वाले हैं' मोदी के इस वादे पर भारत की जनता 2014 में फ़िदा हो गई थी. इसके बाद चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत से जीत मिली. इस अप्रत्यासित जीत से गदगद मोदी ने तब ट्विटर पर लिखा, 'India has won! भारत की विजय. अच्छे दिन आने वाले हैं'. तब से ही देश के लोग अपने अच्छे दिन की टकटकी लगाकर इंतजार कर रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 7 सितम्बर को भुवनेश्वर में पत्रकारों से कहा कि पार्टी ने जो अच्छे दिन का वादा किया था, वे आ गए हैं. यानी की उनका वादा पूरा हो गया है.
अमित शाह, भाजपा अध्यक्षअमित शाह के अनुसार हाल के विधानसभा चुनावों में मिला शानदार जनादेश यही दर्शाता हैं कि अच्छे दिन आ गए हैं. जनादेश से बड़ा कोई प्रमाण पत्र नहीं हो सकता. भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, असम, हरियाणा, झारखंड, जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र में पार्टी की जीत साबित करती है कि 'अच्छे दिन' का जुमला सच हो चुका हैं. शआह का कहना था कि ग्रामीण विद्युतीकरण अभियान, वन रैंक वन पेंशन, मुद्रा योजना, स्वच्छ भारत योजना से लोगों को लाभ हुआ है. यहां तक की उज्जवला योजना के तहत मुफ्त एलपीजी के करोड़ों लाभार्थी अच्छे दिन को महसूस कर रहे हैं. यानी की भाजपा अध्यक्ष के अनुसार देश के लोग खुश हैं और सुखी हैं. इसका श्रेय निश्चित तौर पर भाजपा के द्वारा लाए गए काल्पनिक 'अच्छे दिन' को जाता है.
बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था
जबकि हकीकत तो अच्छे दिन से कोसो दूर नजर आ रही है. अर्थव्यवस्था पहले से ही धीमी गति से चल रही थी. पिछले छे तिमाही से तो इसमें अब लगातार गिरावट आ रही है. अब जीडीपी ग्रोथ रेट 5.7 प्रतिशत पर पहुंच गयी है. नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को धराशायी कर दिया है. इससे एक तरफ तो मैन्युफैक्चरिंग का भट्ठा बैठ गया. वही औद्योगिक उत्पादन की हालात भी खराब हो चुकी है. कृषि की विकाश दर भी 3 फीसदी से निचे हो गयी है. रीयल एस्टेट मार्केट की हालत भी पस्त हो गई है. इस मार्केट के गिरने से इससे जुड़े उद्योगों जैसे सीमेंट, स्टील, पेंट की हालत खासता हो गयी है.
अच्छे दिन की हकिकत 42 फीसदी बढ़ी किसानों की आत्महत्या
नोटबंदी के कारण संगठित और असंगठित क्षेत्र के लोगों की नौकरियां बड़े पैमाने पर चली गयी. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के अनुसार नोटेबंदी से 15 लाख लोग बेरोजगार हो गए. मोदी ने सालाना दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वायदा किया था. हकीकत तो उस वादे के बिल्कुल उलट है. श्रम ब्यूरो के सर्वे के अनुसार वर्ष 2015 और 2016 में 1.55 और 2.13 लाख नए रोजगार का सृजित हुए जो पिछले आठ का सबसे निचला स्तर है. किसान आत्महत्याओं में लगातार वृद्धि हो रही है. केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद किसानों की आत्महत्या की दर 42 फीसदी बढ़ गई है.
मोदी सरकार के तीन साल की तुलना अगर यूपीए के आखिरी 3 सालों से किया जाए तो कश्मीर में आतंकवाद से 42 फीसदी ज्यादा मौतें. फिर भी अमित शाह कह रहे हैं कि अच्छे दिन आ गए हैं! पिछले साल केंद्रीय परिवहन मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने लोकसभा चुनावों के दौरान इस्तेमाल किए गए पार्टी के 'अच्छे दिन' के नारे से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह हमारे गले में फंसी हड्डी है. पर लगता है भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष उनसे सहमत नहीं हैं. उन्होंने ना आव देखा ना ताव और अच्छे दिन का एलान कर दिया.
अमित शाह को शायद ये भी याद नहीं है कि उन्होंने 14 जुलाई 2015 भोपाल में क्या कहा था. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले जो 'अच्छे दिन' लाने का वादा किया था, उसमें कम से कम 25 साल लगेंगे. तब उन्होंने कहा था कि 'देश को दुनिया के सर्वोच्च स्थान पर बैठना है तो पांच साल की सरकार कुछ नहीं कर सकती.' लेकिन शायद वो अपने कही बाते ही भी भूल गए हैं और उन्होंने अच्छे दिन का ऐलान कर दिया. यानी की जो काम वो 25 साल में करने वाले थे वो तो केवल 3 वरर्षों में ही पूरा हो गया है.
क्या अकाउंट में 15 लाख के वादे को 'सियासी जुमला' बताने वाले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का अच्छे दिन वाला बयान भी एक जुमला है? जमीनी हकीकत का आंकलन और उनका खुद का भोपाल का बयान तो यही दर्शाता है.
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