दौरे के दम पर खिलाएंगे कमल, अमित शाह का मिशन बंगाल !
दुर्गा पूजा की मूर्तियों के विसर्जन की अनुमति का मामला हो या फिर मुस्लिम तुष्टीकरण की बाकी तमाम नीतियां. भाजपा ममता की इन नीतियों को निशाना बनाकर जनता के बीच जाने की तैयारी में है.
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पश्चिम बंगाल का महापर्व दुर्गापूजा करीब आ रहा है. इससे ठीक पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तीन दिवसीय पश्चिम बंगाल दौरे पर हैं. यह उनका पहला दौरा नहीं है. इससे पहले अप्रैल में भी अमित शाह ने बंगाल का दौरा किया था. उस दौरान भाजपा अध्यक्ष ने नक्सलबाड़ी इलाके के दक्खिन कटियाजोट गांव में रहने वाले आदिवासी परिवार राजू महली के घर दोपहर का खाना भी खाया था. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर बार-बार भाजपा अध्यक्ष पश्चिम बंगाल का दौरा ही क्यों कर रहे हैं? आखिर इन दौरों के पीछे भाजपा का मक़सद क्या है? राजनीतिक जानकारों के अनुसार शाह का ये दौरा राजनीतिक रूप से काफी रोचक और अहम है. भाजपा का लक्ष्य 2019 के लोकसभा चुनाव में वहां से कम से कम दस सीटें जीतने का है. फिलहाल वहां से उसके पास केवल दो ही सांसद हैं.
अमित शाह, भाजपा अध्यक्षलूक इस्ट की नीति अपना रहा भाजपा
राजनीतिक दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में मिली शानदार जीत. पूर्वोत्तर में मणिपुर में सरकार और देश के 18 राज्यों में भाजपा या भाजपा समर्थित सरकार बनाने के बाद भाजपा की निगाहें अब पश्चिम बंगाल पर हैं. उस राज्य में पार्टी को मजबूती देने की दिशा में ठोस रणनीति को जमीनी स्तर पर उतारने की जरूरत है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इसकी कमान अपने हाथों में ले ली है.
बता दें कि 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले, इस साल के अंत से लेकर 2018 तक भाजपा शासित राज्यों - गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव होने हैं. ऐसे में इन राज्यों में 'एंटी इंकम्बेंसी' से जूझ रही भाजपा की सीटों में गिरावट तय है. इसका असर आने वाले 2019 के लोक सभा चुनाव में भी निश्चित तौर पर पड़ेगा. ऐसे में पश्चिम बंगाल ही ऐसा राज्य बचता है जहां भाजपा अपनी उपस्थिति मज़बूती के साथ दर्ज़ कर सकता है.
पश्चिम बंगाल भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से है उपजाऊ
पश्चिम बंगाल में 35 सालों तक लेफ्ट पार्टियों का वर्चस्व चला आ रहा था, जिसे तृणमूल कि ममता बनर्जी ने तोड़ा. लेकिन विपक्ष में बैठी लेफ्ट पार्टियों के ना के बराबर भूमिका निभाने की वज़ह से अब भाजपा ने बीते कुछ सालों में वहां अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है.
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. भाजपा को ये बात मालूम है कि दूसरे राज्यों में चुनावी नुकसान होने पर पश्चिम बंगाल से उसकी भरपाई की जा सकती है. भाजपा को ऐसा लगता है कि यहां की जनता सत्ताधारी तृणमूल से उबकर अब भाजपा को ही विकल्प के रूप में देख रही है. ऐसे में राज्य में बीजेपी के विस्तार और उसकी राष्ट्रवादी सियासत के लिए समुचित हालात मौजूद हैं.
यहां कमल खिलने की ओर अग्रसर
· 2014 के लोक सभा चुनावों में भाजपा ने केवल दो लेकिन महत्वपूर्ण दार्जिलिंग और आसनसोल सीट पर जीत हासिल की थी. यही नहीं तीन अन्य सीटें कोलकाता दक्षिण, कोलकाता उत्तर और मालदा दक्षिण में दूसरे स्थान पर रही थी. चुनावों में पार्टी ने अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन किया था. भाजपा को उस समय करीब 17 प्रतिशत वोट मिले थे.
· साल 2016 में हुए विधासनभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार खाता खोला था. इसमें पार्टी ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में भाजपा को करीब 11 प्रतिशत वोट मिले थे.
· पिछले महीने यानि अगस्त में हुए स्थानीय निकायों चुनावों में भाजपा वाम दलों को मात देते हुए ज्यादातर जगहों पर दूसरे स्थान पर रही थी. वही कांग्रेस चौथे पायदान पर पहुंच गयी थी.
ममता बनर्जी की तुष्टीकरण की नीति
जिस प्रकार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तुष्टीकरण की नीति अपना रही है उसे भाजपा भुनाने की कोशिश में है. चाहे दुर्गा पूजा की मूर्तियों के विसर्जन की अनुमति का मामला हो या फिर मुस्लिम तुष्टीकरण की बाकी तमाम नीतियां. भाजपा ममता की इस नीति को निशाना बनाकर जनता के बीच जाने की तैयारी में है. इसके अलावा भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों के चलते राज्य में तेजी से हो रहे ध्रुवीकरण का लाभ भी लेना चाहती है. इन सभी कारकों से भाजपा को फायदा होने की उम्मीद है.
मुस्लिम प्रभाव वाले इलाके
· पश्चिम बंगाल में 65 सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव है.
· 2016 विधानसभा चुनाव में तृणमूल को मुस्लिम बहुल इलाकों में 38 सीटें पर जीत हासिल हुई थी. इन विधानसभा क्षेत्रों में तृणमूल कांग्रेस 41 प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल करने में सफल रही थी.
· भाजपा को 2011 विधानसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. वहीं मुस्लिम बहुल इलाकों में सिर्फ 4.6 प्रतिशत वोट ही प्राप्त कर सकी थी.
· 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपना प्रदर्शन सुधारते हुए मुस्लिम बहुल इलाकों में एक सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी. वही उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 9.6 प्रतिशत हो गया था.
इस प्रकार वामपंथियों का दुर्ग ध्वस्त कर सत्ता में आई ममता बनर्जी को लेफ्ट पार्टियों के बजाए भाजपा से ज्यादा चुनौती मिल रही है. भाजपा की रणनीति का एक अहम हिस्सा विपक्षी खेमे की गैर कांग्रेसी ताकतों को खासकर ममता बनर्जी को कमजोर करना है. वहीं भाजपा का हौसला नीतीश कुमार को अपने खेमे में लाने के बाद और बुलंद हो गया है. हालांकि पश्चिम बंगाल में भाजपा कितना कमल खिला पायेगा ये तो आनेवाला समय ही बताएगा. लेकिन फ़िलहाल भाजपा का प्रयास जारी है.
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